बोले फतेहपुर: ‘अर्जुन खोजे ‘द्रोणाचार्य..मैदान से हारे खिलाड़ी
Fatehpur News - फतेहपुर में खेलो इंडिया योजना के तहत युवाओं की प्रतिभा को निखारने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण खिलाड़ी परेशान हैं। शहर में केवल एक स्पोर्ट्स स्टेडियम है, जहां उचित कोचिंग और...
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फतेहपुर। सरकार खेलो इंडिया योजना के तहत गांव-गांव में खेल प्रतिभा निखारना चाहती है लेकिन संसाधनों के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। युवा खिलाड़ी राहुल कहते हैं शहर के इकलौते लोधीगंज, जीटी रोड स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम में क्रिकेट, बैडमिंटन, हॉकी, एथलेटिक्स के ही कोच हैं। विडंबना देखिए.. क्रिकेट का कोच है पर संसाधन नहीं। हॉकी का कोच है पर टर्फ मैदान नहीं है। बैडमिंटन कोर्ट है पर जागरूकता के अभाव में खिलाड़ी नहीं। एथलेटिक्स की प्रतिभा निखारने को दो कोच नकाफी हैं। और तो और उपकरण ही नहीं हैं। कहने को तैराकी का कोच तैनात है पर स्विमिंग पूल नहीं है। रही बात फुटबॉल, कबड्डी, बास्केट बॉल, वॉलीबॉल की तो कोर्ट हैं न कोच। युवा खिलाड़ी निहाल कहते हैं युवाओं को खेलों से जोड़ने का प्रयास किया तो जा रहा है पर वह न के बराबर है। यहां विभिन्न खेलों में परचम लहराने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए न ही अच्छा मैदान न ही बेहतर कोच। स्पोर्ट्स स्टेडियम में संसाधनों का अभाव है। वहीं शहर के तमाम मैदानों में कब्जे हैं, जिनमें खिलाड़ियों का अभ्यास कर पाना संभव नहीं है। युवा खिलाड़ी अर्जित उपाध्याय ने बताया कि यूं तो शहर में 12 खेल मैदान हैं लेकिन कहीं कूड़ा फेंका जाता है तो कहीं अन्ना मवेशी चरते नजर आते हैं, ऐसे में हम आखिर खेलने जाएं भी तो कहां?
युवा खिलाड़ी नीरज मिश्रा ने बताया कि शहर के खेल मैदान हो या गांव के मैदान, अधिकांश अतिक्रमण की जद में हैं। मैदानों में कहीं भवन निर्माण सामग्री डाली जा रही है तो कहीं दबंग जानवरों को बांध रहे हैं। कहीं वाहन खड़े किए जा रहे हैं। कई बार इनके सौन्दर्यीकरण की मांग उठी लेकिन पालिका के जिम्मेदार बजट की कमी बता रुचि ही नहीं लेते। इसका दंश शहर की प्रतिभाओं को भुगतना पड़ रहा है।
निहाल यादव ने बताया कि मैदान नहीं होने से छोटे-छोटे खाली स्थानों पर ही अभ्यास करना पड़ता है। शहर में कोई प्रशिक्षक नहीं है जो गुरु द्रोणाचार्य बनकर अर्जुन जैसा महारथी बना सके। हम खुद ही खेलते हुए सीखते हैं। खिलाड़ी मो. अफताब ने बताया कि शहर में सिर्फ एक ही स्टेडियम है, जहां पर सिर्फ 25 बच्चे रहकर अपनी खेल प्रतिभा निखार रहे हैं। यहां पर कई खेलों के कोच ही नहीं हैं। मजबूरन युवाओं को दूसरे शहर की ओर रुख करना पड़ता है। स्टेडियम में बड़े टूर्नामेंट न होने से खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका ही नहीं मिलता है। क्रिकेट खिलाड़ी सुजीत सिंह कहते हैं कि बाहर की टीमें आकर यहां टक्कर लें तो हमें भी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले। तभी अपनी तैयारियों का सही आंकलन कर पाएंगे। अन्यथा खुद को बेहतर मानने की गलतियां होती रहेंगी।
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सुझाव
- समय-समय पर टूर्नामेंट होने चाहिए, जिससे खिलाड़ियों को प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।
- शहर में एक स्पोर्ट्स कालेज की शुरुआत कर जल्द संचालन कराना चाहिए।
- शहर के खेल मैदानों से कब्जे हटवाए जाएं, उन्हें विभिन्न खेलों के हिसाब से व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
- जिले की आबादी को देखते हुए सरकारी जमीनों को चिह्नित कर खेल मैदान बनवाए जाएं।
- खेल मैदानों में खिलाड़ियों के लिए खेल उपकरण व अन्य सुविधाएं दी जाएं, बाहरी जिले में टूर्नामेंट को भेजा जाए।
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शिकायतें
- टूर्नामेंट न होने से प्रतिभा का आंकलन नहीं हो पाता, आपस में ही प्रैक्टिस करनी पड़ती है।
- स्पोर्ट्स कालेज न होने से क्रिकेट छोड़ बाकी खेलों का नहीं मिल पाता प्रशिक्षण
- शहर के खेल के मैदानों में कहीं मवेशी चर रहे हैं, कहीं लोगों ने वाहन स्टैंड बना रखा है तो कहीं कूड़ा घर बने हुए हैं।
- जिले में आठ हजार से ज्यादा युवा खेलों में रुचि रखते हैं लेकिन कोई प्रशिक्षण केंद्र नहीं।
- जो खेल मैदान हैं भी, वहां पर कोई उपकरण नहीं हैं, जिम्मेदारों के दावे सिर्फ बातों तक ही सीमित है।
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बोले खिलाड़ी
शहर के खिलाड़ियों का मनोबल मैदान और प्रशिक्षक न होने से कम होता जा रहा है। इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
-राहुल यादव
सही प्लेटफार्म न मिलने से खेल प्रतिभा नहीं निखर रही है। प्रशिक्षक और खेल मैदान न होना इसका बड़ा कारण है।
-निहाल यादव
शहर में बड़ा मैदान न होने के कारण गली-कूचों में ही क्रिकेट खेलते हैं। जो बेहतर हो सकते हैं उन्हें कोच चाहिए।
-मो.आफताब
जिले में एक ही स्पोर्ट्स स्टेडियम है। जिसमें सिर्फ 25 बच्चे ही हैं। आबादी को देखते हुए एक और स्टेडिम की जरूरत है।
-आयुष सिंह
कोच और अच्छे प्रशिक्षक न होने से हमारी चुनौतियां बढ़ जाती हैं। इस कारण शहर का युवा आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
-अवधेश आनंद
सुविधाओं के न मिलने से खेल प्रतिभाएं उभर नहीं पाती हैं। कई जगह खेल के उपकरण भी नहीं हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए।
-अमित यादव
खेल मैदानों से कब्जे हटाने की जरूरत है। स्टेडियम में संसाधनों की भारी कमी है। कई खेलों के उपकरण की नहीं हैं।
-अभय
गरीब घरों के बच्चे गली-कूचों में ही खेलते रह जाते हैं, अगर अच्छा प्लेटफार्म मिले तो वे भी प्रतिभा निखार सकते हैं।
-शिशिर कुमार
स्पोर्टस एजुकेशन के केंद्र न होने से प्रतिभाओं को मौका नहीं मिलता है। बच्चे क्रिकेट खेलने तक ही सीमित रह जाते हैं।
-हिमांशु
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बोले जिम्मेदार
यह सही है कि जिले में खेल के मैदान और एकेडमी की कमी है। शहर में एक खेल का मैदान बन कर तैयार है, जल्द ही यहां गेदबाज के चयन को लेकर कैम्प लगाए जाएंगे। अंडर 14 से 19 के स्टेट लेवल के टूर्मांमेंट जिले स्तर पर भी कराए जा रहे हैं। स्कूलों के मैदानों में भी प्रतियोगिताएं कराने पर विचार किया जा रहा है।
- प्रिंस रियासत अली, प्रभारी निदेशक/संयुक्त सचिव, उप्र क्रिकेट एसोसिएशन
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