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बोले फतेहपुर: घर-घर घूमती आशाओं को बैठने का ठिकाना तो दीजिए

Fatehpur News - फतेहपुर में 2359 आशा बहुएं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें संसाधनों और मानदेय की कमी का सामना करना पड़ रहा है। उनका कार्य प्रसव, टीकाकरण और महिला सशक्तिकरण में शामिल है, लेकिन...

Newswrap हिन्दुस्तान, फतेहपुरThu, 20 Feb 2025 05:55 PM
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बोले फतेहपुर: घर-घर घूमती आशाओं को बैठने का ठिकाना तो दीजिए

फतेहपुर। सुदूरवर्ती गांवों और शहर की उपेक्षित बस्तियों की महिलाओं के बीच स्वास्थ्य सेवाएं और केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं लेकर जाने वालीं जिले में कार्यरत 2359 आशा बहुएं बिना संसाधन और बेहद कम पैसों पर काम कर रही हैं। आशा बहू ब्लॉक वार काम करती हैं। इनमें भी क्लस्टर बने हैं। इन क्लस्टर की हेड 'आशा संगिनी' कही जाती हैं। इन सबको कोई मानदेय नहीं मिलता। प्रसव केस पर प्रोत्साहन राशि या 'इंसेंटिव' दिया जाता है। आशा बहू उर्मिला गुप्ता ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्रों में बैठने तक की व्यवस्था नहीं होती, ऐसे में सर्दी, गर्मी, बरसात हमें बाहर की गुजारनी पड़ती है। आशा बहू चंद्रावती ने बताया कि आज तक मानदेय का प्रावधान नहीं हुआ। हसवा ब्लाक के सातों जोगा निवासी उर्मिला शर्मा बताती हैं कि ब्लॉक मुख्यालय से स्वास्थ्य केंद्र 24 किलोमीटर दूर है। पति या घर के किसी एक सदस्य को लेकर आना पड़ता है। जिला मुख्यालय और दूर है। इसके बदले यात्रा भत्ता के रूप में मात्र 150 रुपये मिलते हैं। प्रसव कराने के लिए 600 रुपये तक के बीच इंसेंटिव की कई कैटेगरी हैं। विडंबना यह कि करीब 20 वर्ष पहले तय प्रोत्साहन राशि महंगाई के इस दौर में भी यथावत है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने में ही थक जाते हैं लेकिन विडंबना ये है कि वहां भी बैठने को जगह नहीं मिलती। केंद्रों में खड़े होकर डॉक्टरों या विभागीय कर्मचारियों का इंतजार करना पड़ता है।

औरेई की आशा अंजू चौधरी ने बताया कि आशा बहुएं गर्भवतियों, बच्चों के टीकाकरण की लिस्टिंग, संस्थागत प्रसव कराना, टीबी मरीजों को दवा खिलाना, बाल विकास, महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता आदि कार्य करती हैं। इन सब कामों के बदले महीने में दो-तीन हजार रुपये ही कमा पाती हैं।

आशा बहू रीना देवी, गीता देवी, रासी देवी आदि का आरोप है कि स्वास्थ्य केंद्रों पर बैठे कई ऑपरेटर हैं जो कागज जमा करने के नाम पर प्रति केस 20 रुपये ले लेते हैं। उदाहरण देकर समझाती हैं कि जैसे मटिहा की कोई आशा बहू उसका ब्लॉक तो हसवा है लेकिन नजदीक स्वास्थ्य केंद्र असोथर है। यदि ब्लाक मुख्यालय के अलावा दूसरे केंद्र पर प्रसव होता है तो उसका प्रमाण पत्र लेना होता है। इसके एवज में दूसरे ब्लाक की आशा बहू शोषण की शिकार होती हैं। अब आने जाने का खर्चा, फिर फोटोकॉपी करा कर कागज जमा करना ऊपर से 20 रुपये देना इन सबके बाद मिलने वाली प्रोत्साहन राशि में बचता ही क्या है।

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सुझाव

- स्वास्थ्य केंद्रों पर आशा कार्यकत्रियों के लिए एक कमरा और प्रसाधन की व्यवस्था होनी चाहिए।

- आबादी के हिसाब से आशा कार्यकत्रियों की संख्या काफी कम है। सरकार को इनकी नियुक्ति करनी चाहिए।

- यात्रा और नाश्ता भत्ता बढ़ाया जाए, यात्रा भत्ता के लिए 150 रुपये मिलते हैं मंहगाई के लिहाज से कम है।

- स्वास्थ्य से जुड़े अन्य प्रशिक्षण देकर उन्हें स्किल्ड बनाने की जरूरत है ताकि भविष्य में वे विभाग के अन्य कार्यों में भी मदद कर सकें।

- आशा कार्यकत्रियों को ब्लॉक वार नहीं नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र वार संबद्ध किया जाए, विभागीय वसूली पर अधिकारी निगरानी करें।

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शिकायतें

- स्वास्थ्य केंद्रों पर रुकने की व्यवस्था नहीं है। रात को कुर्सियों पर बैठकर समय बिताना पड़ता है।

- आशा बहुओं की संख्या आबादी के हिसाब से कम होने के चलते कार्यकत्रियों से ज्यादा काम कराया जाता है।

- विजिट के नाम पर दिया जाने वाला इंसेंटिव काफी कम है। बढ़ती महंगाई में यह नाकाफी है। बढ़ाया जाना चाहिए।

- कई बार सरकारी योजनाओं की सही से जानकारी न होने पर लोगों को लाभ पहुंचाने में भी दिक्कत होती है, विभाग प्रशिक्षण को गंभीर नहीं है।

- कागज जमा करने और प्रसव प्रमाण पत्र जमा करने और लेने में अवैध वसूली की जाती है, जिससे आशा बहुएं काफी परेशान होती हैं।

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बोलीं आशा बहू

कम मानदेय के साथ-साथ सुविधाएं भी नहीं मिलतीं, स्वास्थ्य केंद्रों में हमारे लिए बैठने तक की व्यवस्था नहीं है।

-उर्मिला शर्मा

प्रोत्साहन राशि बहुत कम मिलती है, लेकिन आर्थिक जरूरतों के चलते उसे बचाने को पैदल चलना पड़ता है।

-सुनीता देवी

सम्मानजनक राशि न मिलने के चलते घर वाले और बच्चे भी अब यह काम छोड़ने के लिए कहते हैं।

-प्रीति देवी

स्वास्थ्य केंद्रों तक में बैठने, आराम करने या प्रसाधन की व्यवस्था नहीं है, ऐसे में बहुओं को दिक्कत होती है।

-अंजू देवी

दिहाड़ी मजदूर से भी बदतर हालात हैं। मिल रहा पैसा इस दौर में नाकाफी है। काम करने पैदल चलना पड़ता है।

-सीता यादव

रात में अस्पतालों में रुकने पर काफी दिक्कत होती है, प्रसाधन तक के इंतजाम नहीं मिलते हैं।

-सुनीता

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बोले जिम्मेदार

प्रत्येक स्वास्थ्य केन्द्र पर आशाओं को बैठने के लिए एक कमरा आरक्षित किया जाएगा। कागजात के नाम पर आशाओं से उगाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, सभी एमओआईसी को पत्र जारी कर कड़े निर्देश दिए जाएंगे। मानदेय बढ़ाना जिला स्तर पर संभव नहीं है। यह शासन तय करेगा।

- डॉ. इश्तियाक, प्रभारी सीएमओ

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