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बोले फर्रुखाबाद:किसानों की मेहनत की मलाई खा रहे दुकानदार

Farrukhabad-kannauj News - किसान सेम की फसल उगाने में जुटे हैं लेकिन उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहा है। वे 50-70 रुपये प्रति किलो बेच रहे हैं जबकि दुकानदार इसे 1000-1200 रुपये में बेचते हैं। किसानों को मार्केटिंग और कीटनाशक की...

Newswrap हिन्दुस्तान, फर्रुखाबाद कन्नौजFri, 25 April 2025 12:17 AM
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बोले फर्रुखाबाद:किसानों की मेहनत की मलाई खा रहे दुकानदार

दालमोठ के रूप में सेम का स्वाद बेहद ही निराला होता है पर जो सेम किसान भरपूर मेहनत के बाद तैयार करते हैं उनकी जिदंगी में कोई बहार नहीं आ पा रही है। पग-पग पर दुष्कर स्थिति का सामना कर रहे हैं। दिन रात रखवाली के बाद सेम के बीज की जब मार्केटिंग की नौबत आती है तो वह औने-पौने में ही बिक जाता है। इस साल तो सेम किसानों को तकदीर ने ही धोखा दे दिया। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यहां का जो छुटपुट मार्केट है उसमें उन्हें 50 से 70 रुपये किलो के ही रेट मिलेंगे। उन्हें इस बात का मलाल है कि जिस फसल को मेहनत के साथ तैयार करते हैं उसमें उसी बीज को दालमोठ के रूप में दुकानदार 1000 से 1200 रुपये किलो में बेचने का काम करते हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान सें चर्चा के दौरान किसान रमेश शाक्य कहते हैं कि न तो कृषि विभाग और न ही औद्यानिक मिशन से कोई मदद मिल रही है। यदि आर्थिक स्तर पर मदद मिले तो खेती का रकब भी बढ़ेगा और किसानों को फायदा भी होगा।

किसान अंशुल शाक्य अपनी समस्या बताते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत मार्केट की है। अपने जनपद में कोई बेहतर मार्केट नहीं है। गिने चुने दुकानदार सेम का बीज खरीदते हैं। मजबूरी में इन्हीं दुकानदारों को सेम का बीज औने-पौने दामों में बेचते हैं। राहुल की पीड़ा है कि सेम के बीज को सुरक्षित रखने के लिए जब कीटनाशी दवाओं का प्रयोग करते हैं तो वह भी कारगर साबित नहीं होता है। इससे बेल में फंगस लग जाता हैऔर किल्ली तक नहीं फूटती हैं। कई दफा नुकसान हो चुका है पर कोई सुनने वाला नहीं है। चंद्रपाल की मानें तो हरा सेम बीज तैयार करने को प्रशिक्षण मिलना चाहिए, वह यहां पर नहीं मिल पा रहा है। कृषि वैज्ञानिक भी कोई बात बताने नहीं आए हैं जिससे खेती को बेहतर किया जा सके। कमलेश शाक्य कहते हैं कि जनपद में सेम के बीज बिक्री को बेहतर मार्केट बने। इसके लिए सरकारी तंत्र को ध्यान देना होगा। उपेक्षा इसी तरह से रही तो किसान इस खेती से दूर हो चलेंगे। जगदीश भी लंबे समय से सेम की खेती कर रहे हैं। कहते हैं कि पिछले साल जरूर सेम के बीज का रेट अच्छा मिला था। यहां पर दुकानदारों की मोनोपोली का ही नतीजा होता है कि रेट अच्छे नहीं मिल पाते हैं और उनकी बोली पर ही संतोष करना पड़ता है। अंकित और दीपू कहते हैं कि सेम की खेती मचान पर होती है। मचान पर भी ठीक ठाक खर्च आ जाता है इसके लिए सरकार को चाहिए कि मचान बनाने को सब्सिडी उपलब्ध कराए।

दिन भर लगता है पूरा परिवार तब भी नहीं होती आमदनी: सेम की खेती करने वाले किसान आमदनी में इजाफा न होने से व्यथित हैं। किसानों की मानें तो सेम की खेती की सुरक्षा करना काफी कठिन होता है। इसकी हमेशा देखभाल करनी पड़ती है और जब बेल तैयार होकर सेम निकलनी शुरूहोती है इसके बाद तो इसकी सुरक्षा करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। पता नहीं रहता है कि एक दिन पहले जो फसल सही सलामत है, अगले दिन उसकी हालत क्या रहेगी। किसान कहते हैं कि सेम की खेती में पूरा परिवार लगता है और सेम तोड़ने के बाद उसका बीज निकालने के लिए महिलाएं-बच्चे सब लग जाते हैं फिर भी आमदनी बेहतर नहीं हो पाती है। इसके लिए एक अच्छे मार्केट की जरूरत है। कृषि और उद्यान विभाग के अधिकारियों को अच्छे मार्केट की तलाश करनी चाहिए जिससे बेहतर रेट मिल सके। सरकार को भी सेम बीज किसानों की तरक्की के लिए मार्केटिंग की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। इससे सेम की बीज की सही कीमत मिल सकेगी।

सुझाव-

1. अच्छे रेट के लिए जिले में ही अच्छा सुलभ मार्केट मिले।

2. बगैर मिलावट के बीज और कीटनाशी उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

3. सेम बीज अनुदान पर उपलब्ध हो जिससे मदद मिले।

4. खेती को बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है।

5. सेम की खेती के लिए मचान बनाने को सब्सिडी मिले।

शिकायतें-

1. पूरा परिवार सेम की खेती में लगता है मगर कोइ खास लाभ अर्जित नहीं होता।

2. कीटों से फसलों को बचाना मुश्किल होता है।

3. बीजों पर अनुदान न मिलने से भी किसानों को दिक्कत आती है।

4. अन्ना मवेशियों से भी सेम की खेती को खतराबना रहता है।

5. मिलावटी बीज से किसान परेशान रहते हैं।

बोले लोग-

कीटों से सबसे अधिक सेम की फसल को खतरा रहता है। अच्छी कीटनाशी दवाएं नहीं मिल पाती हैं इससे दिक्कत आती है।

-सुधांशु पाल

अन्ना मवेशियों से सेम की खेती की सुरक्षा करना काफी कठिन हो जाता है। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए।

-राकेश शाक्य

अनुदान भी मिलना चाहिए। क्योंकि सेम की खेती में लागत कम नहीं आती है। सरकार को ध्यान देना चाहिए। ताकि हमारा भला हो सके।

-चंद्रपाल

कृषि विभाग को सेम किसानों की चिंता करनी चाहिए। यदि बेरुखी का हाल रहा तो खेती का रकबा और कम हो जाएगा।

-अमर सिंह

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