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बोले फर्रुखाबाद:कभी थी सबकी सवारी, अब नहीं खिंचती गाड़ी

Farrukhabad-kannauj News - एक समय में शहर में पांच से छह हजार रिक्शा चालकों को रोजगार मिलता था, लेकिन ई-रिक्शा के आगमन से उनकी रोजी-रोटी संकट में आ गई है। रिक्शा चालक अब दिन भर सवारी का इंतजार करते हैं, लेकिन सवारियां नहीं...

Newswrap हिन्दुस्तान, फर्रुखाबाद कन्नौजMon, 7 April 2025 02:18 AM
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बोले फर्रुखाबाद:कभी थी सबकी सवारी, अब नहीं खिंचती गाड़ी

एक समय अपने शहर में ही पांच से छह हजार रिक्शा वालों को सीधे तौर पर रोजगार मिलता था। मगर बदले समय में आधुनिकीकरण ने रिक्शा वालों की रोजी रोटी पर सीधे प्रहार किया है। पिछले दस वर्षों में ई-रिक्शा वालों की संख्या में बढ़ोतरी से पैर से चलने वाले रिक्शा खत्म होते जा रहे हैं। अपनी आजीविका के लिए शहर में आस पड़ोस के जिलों से भी गरीब बेरोजगार रिक्शा चलाने को यहां पर आते थे। मगर अब उनका रोजगार पूरी तौर पर छिन गया है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान 75 वर्षीय रिक्शा चलाने वाले जगदीश कहने लगे कि 25 साल से रिक्शा चलाते चलाते बुढ़ापा आ गया। अब तो खुद का खर्च निकालना भी मुश्किल है। परिवार की बात कौन करे, दिन भर में यदि सौ रुपये की जुगाड़ हो जाए तो बड़ी बात है। लोग अब रिक्शा पर अब तो बैठना भी पसंद नहीं करते जबकि इसमें भरपूर मेहनत पड़ती है। हमें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाए तो जीवन की गाड़ी चल पड़े। अब को काफी मुश्किल है.

हरदोई के रहने वाले रिक्शा चालक संतोष कहने लगे कि इतना रुपया भी उनके पास में नहीं है कि ई-रिक्शा खरीद सकें। ऐसे में पैर से चलने वाले रिक्शा से ही काम चला रहे हैं। दिन भर सवारी का इंतजार करते हैं। कुछ भले लोग मिल जाते हैं तो उससे थोड़ा बहुत खर्च निकल आता है। अक्सर तो पूरा दिन सवारियों का इंतजार करते करते गुजर जाता है। सवारियां नहीं मिलती हैं। मंजीत कहते हैं कि दस वर्ष हो गए हैं। यहां पर रिक्शा चलाने को आया था। सोचा था कि इससे घर का तो नहीं खुद का खर्च निकल आएगा। मगर ऐसा नहीं हो रहा है। ई-रिक्शा की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। सवारियां बुलाने पर भी नहीं आती हैं। कभी-कभी मन व्यथित हो जाता है कि आखिर क्या किया जाए। इतनी पूंजी नहीं है कि दूसरा धंधा कर सकें। मलिखान अपनी व्यथा कहते हुए रुंआसे हो गए। कहते हैं कि 40 साल की उम्र में यहां पर रिक्शा चलाने आए थे। अब उम्र 65 के करीब पहुंच गई है। दिन भर इंतजार के बाद भी सवारियां नहीं मिल पाती हैं। घर का खर्च चलाना तो दूर, खुद का भी खर्च नहीं निकल पाता है। रुपया होता तो दूसरा काम करता, मगर मजबूरी है कि हाथ वाला रिक्शा चला रहे हैं। पड़ोसी जनपद शाहजहांपुर के एक गांव के रहने वाले बिहारी कहते हैं कि जैसे ही समय बदला उसकी मार किसी और पर नहीं, हम पर पड़ी है। पहले पांच सौ रुपये तक कमा लिया करते थे, अब तो सौ रुपये तक भी नहीं जुटा पाते हैं। सरकार की कोई योजना भी उन पर लागू नहीं होती हैं। काश सरकार उन्हें भी योजनाओं से लाभान्वित कराए।

समय की मार बढ़ने की बजाय घट गया किराया: इसे समय की मार ही कहेंगे कि रिक्शा का एजेंसियों की ओर से पहले दिन भर का किराया 40 रुपया हुआ करता था। रिक्शा का प्रचलन कम होने से जहां एजेंसियां बंद हो गईं तो वहीं जो बची खुची एजेंसियां हैं। उन्होंने किराया भी घटाकर प्रतिदिन 30 रुपया कर दिया है। रिक्शा एजेंसियों में भी अब रिक्शों की संख्या कम हो रही है। रिक्शा वाले कहते हैं कि पहले रिक्शा एजेंसियों में रहने का इंतजाम हुआ करता था। अब जब से रिक्शा खत्म हा गए हैं तो अब खुद ही रहने का इंतजाम करना पड़ता है। रामलड़ैते कहते हैं कि पेट की खातिर कहीं किसी दुकान के बरामदे में या फिर दूसरी जगह पर रहकर गुजारा कर रहे हैं। उन लोगों की जीवन सुरक्षा की भी कोई गारंटी नहीं है। आयुष्मान कार्ड तक नहीं बने हैं। यदि यही बन जाते तो कम से कम बीमारी में खर्च से मुक्ति मिल जाती।

सुझाव-

1. जीवन सुरक्षा की गारंटी प्रदान करने की आवश्यकता है।

2. श्रम विभाग कैंप लगाकर रिक्शा वालों का पंजीकरण किया जाए।

3. रहने का भी अस्थाई ठिकाना ही सही, मिलना चाहिए।

4. रिक्शा वालों के लिए भी कुछ रूट सुरक्षित किए जाएं।

5. ऐसी कोई व्यवस्था हो जिससे कि गुजर बसर सही से हो सके।

शिकायतें-

1. पुलिस बेवजह सवारी लेते समय करती हैपरेशान।

2. जीवन सुरक्षा की गारंटी न होने से बीमारी हालत में होती मुश्किल।

3.श्रम विभाग की योजनाओं का नही मिल पाता लाभ।

4. आयुष्मान कार्ड की भी नहीं मिल रही सुविधा।

5. ई रिक्शा के चलन से आजीविका पर आया संकट।

बोले रिक्शा वाले

हम लोगों की जीवन सुरक्षा के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए जिससे कि परिवार का भरण पोषण सही तरीके से हो सके।

-राजू

ई-रिक्शा वालों से कम किराया सवारियों से लेते हैं फिर भी सवारियां रिक्शा पर नहीं बैठती हैं। हमारे जीवन में अब अंधकार छा रहा है।

-मौजीराम

वह वक्त याद आ रहा है जब सवारियां इंतजार करतीं थीं। अब वक्त यह है कि हम सवारियों का इंतजार करते हैं। फिर भी नहीं मिलतीं।

-रामभजन

ई-रिक्शा वालों ने हमारा सब कुछ छीन लिया है। एक समय था कि सवारियां रिक्शा का इंतजार करती थीं। आज आसपास नहीं फटकतीं।

-कल्लू

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