बोले फर्रुखाबाद:जिंदगी सिमटी घर के अंदर, खतरा बन गए बंदर
Farrukhabad-kannauj News - बंदरों का आतंक शहर के मोहल्लों में बढ़ता जा रहा है। लोग घरों से बाहर निकलने में डरते हैं और बच्चों को स्कूल भेजने में परेशानी होती है। बंदर अजीब हरकतें करते हैं, जिससे कई लोग घायल हो चुके हैं। स्थानीय...
संभवता ऐसा कोई मोहल्ला नहीं है जहां बंदरों के झुंड के झुंड न हो। गली मोहल्लों से लेकर सड़कों और छतों पर झुंड के रूप में विचरण करने वाले बंदर बेहद खतरनाक हैं। खूंखार हो चुके बंदरों ने कई लोगों की जाने भी ले ली हैं। शहर की सब्जी मंडियों से लेकर मंदिरों के आस पास सार्वजनिक स्थानों, कूड़ा डंपिंग स्थलों पर बंदरों का आतंक चरम सीमा पर है। ऐसे में लोगों को संभलकर निकलना पड़ रहा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में भोले मियां कहने लगे कि बंदरों का आतंक दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। यहां तक कि अब तो छतों को छोड़ दीजिए बंदर गलियों में भी नहीं निकलने दे रहे हैं। जहां पर कूड़ा इकट्ठा होता है वहां पर बंदरों का हुजूम इकट्ठा होता है। यदि सभलकर नहीं निकले तो बंदर अचानक हमला बोल देते हैं।
पुष्पेंद्र भदौरिया कहते हैं कि छतों पर तो अब निकलना ही बंद हो गया है। पहले घर के सभी लोग छतों पर ही सोते थे और सर्दियों में तो धूप के लिए छतों पर ही सभी लोग रहते थे। अब तो ऐसा संभव ही नहीं है। क्योंकि बंदर किसी भी समय हमला कर सकते हैं। विशाल सिंह कहते हैं कि बंदरों का आतंक इस कदर है कि घरों से बाहर जब लोग निकलते हैं तो लाठी-डंडा लेकर निकलना पड़ता है। नायाब खान कहने लगे कि स्कूल के समय में बच्चों को भेजने में खासी दिक्कत आती है। क्योंकि गलियों में बंदरो के झुंड इकट्ठे रहते हैं। जब तक बच्चे घर नहीं आ जाते हैं तब तक चिंता बनी रहती है। अंकित अग्रवाल कहते हैं कि बंदर भारी नुकसान भी करते हैं। कई दफा तो कपड़े भी फाड़ देते है। ऐसे में कपड़े छत पर सुखाना बंद कर दिया है। अंशुल शुक्ला के मुताबिक जहां-जहां कूड़ा डंपिंग स्थल बनाये गये हैं वहां बंदरों का हुजूम इकट्ठा रहता है। यह अक्सर जान के दुश्मन बन जाते हैं। पंकज दुबे कहते हैं कि सुबह जब मंदिर जाते हैं तो अक्सर बंदरों से सामना हो जाता है। ऐसे में बंदरों से बचने के लिए हाथ में लाठी लेकर जाना पड़ता है। क्योंकि पलक झपकते ही हमला कर देते हैं। केके द्विवेदी कहने लगे कि बंदरों से आजादी मिलनी चाहिए। बंदरों के आतंक से इस कदर लोग परेशान हैं कि उन्हें रास्ता चलना भी कठिन हो गया है। खासतौर पर बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं के सामने दिक्कत है। पिछले समय में कई लोग बंदरों के हमले में अपनी जान भी गंवा चुके हैं। रामू मिश्रा कहते हैं कि पालिका की ओर से बंदरों को पकड़ने के लिए पिछले समय में जो अभियान चलाया गया उसका कोई असर नहीं निकला। जिस एजेंसी की ओर से बंदर पकड़े गए उन्हें पास में ही छोड़ दिया गया। ऐसे में बंदरों ने वापस आकर यहीं डेरा जमा लिया। बंदरों का आतंक सिर्फ शहर तक ही सीमित नहीं है बल्कि आस पास के गांव में इस कदर बंदर हैं कि उन्हें काबू करना भी मुश्किल पड़ जाता है। एक तो अन्ना मवेशियों से किसान बुरी तरह परेशान हैं तो दूसरा बंदर इस कदर आफत बने हैं कि फसलों को मौका लगते ही उजाड़ना शुरू कर देते हैं। शहर के पड़ोसी गांव खानपुर, चांदपुर, बाबरपुर, सरैया, धंसुआ, हथियापुर आदि गांव में भी सैकड़ों की तादाद में बंदर हैं।
बोले लोग-
सब्जी मंडी और उसके आस पास क्षेत्र में बंदरों का आतंक चरम सीमा पर है। इसका हल तत्काल निकाला जाए।
कृष्णपाल सिंह
पालिका को बंदरों को पकड़ने के लिए युद्ध स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है। इसको लेकर आवाज उठाई है। -आकिब
पालिका अभियान चलाये पर यह सुनिश्चित करे कि बंदरों को दूसरे स्थानों पर जंगलों में ही छुड़वाया जाए ताकि वापसी न हो। -हेमंत पटेल
बंंदरों को पकड़वाने के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं। इसी का नतीजा है कि लोग छतों पर जाने से भी घबराते हैं। - मनोज कुमार
बुजुर्गों के सामने बंदरों से निपटना काफी कठिन है। फतेहगढ़ में पिछले दिनों बंदरों के हमले में एक बुजुर्ग घायल हो गये थे।
-मेहंदी हसन
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