पीपल के पत्तों का आखिरी ताजिया उठा, रात में पहुंचा कर्बला
फर्रुखाबाद में पीपल के पत्तों का ताजिया लगभग 200 वर्षों से निकाला जा रहा है। यह ताजिया मोहर्रम के बाद चेहेल्लुम के अगले दिन निकाला जाता है और कर्बला में रखा जाता है। इस ताजिया को बनाने में कई दिन लगते...
फर्रुखाबाद, संवाददाता। पीपल में जितनी हिंदू धर्म की आस्था है शहर के मुसलमानों की भी कम नहीं है। इसलिए पीपल के पत्तों का ताजिया बनाकर कर्बला में रखा जाता है। देर शाम पीपल के पत्तों का ताजिया उठा और देर रात कर्बला पहुंचा। मंगलवार देर शाम मोहल्ला सूफी खां के इफ्तखार अली के निवास से पीपल के पत्तों का बना ताजिया उठाया गया। पीपल के पत्तों का ताजिया उठाया गया तो बड़ी संख्या में इमाम हुसैन के चाहने शामिल हुए। मोहर्रम के बाद चहेल्लुम होने के अगले दिन निकाले जाने वाले पीपल के पत्तों का ताजिया जहां ऐतिहासिक है तो वहीं इसमें कर्बला की शहादत के साथ पीपल के पत्तों की बड़ी आस्था है। पीपल के पत्तों का ताजिया लगभग 200 वर्ष से निकलता आ रहा है। पीपल के पत्तों का ताजिया बनाने में कई दिन का समय लगता है। लेकिन इसको बेहद खूबसूरती से बनाया जाता है। पहले लकड़ी का ढांचा तैयार किया जाता है और इसके बाद कागज और पन्नी का इस्तेमाल होता है। इसके बाद पीपल के पत्तों से ताजिया तैयार किया जाता है जो देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। चांद हुसैन बताते है कि लगभग 200 वर्ष से पीपल के पत्तों का ताजिया निकल रहा है। पीपल के पत्तों का ताजिया बनाने का उनके बुजुर्गों का क्या मकसद रहा होगा यह तो बताना मुश्किल है लेकिन यह तय है कि पीपल का पेड़ आस्था से जुड़ा रहा है इसलिए पीपल के पत्तों का ताजिया बनाया जाता है और कर्बला में रखा जाता है।
यह होता है आखिरी ताजिया
फर्रुखाबाद। मोहर्रम और चहेल्लुम तक तजिए निकाले जाते हैं लेकिन यह पीपल के पत्तों का वह ताजिया होता है जिसको आखिरी ताजिया कहा जाता है। चेहेल्लुम के अगले दिन निकाला जाने वाला पीपल के पत्तों का ताजिया जब निकलता है तो इसकी जियारत करने को भारी भीड़ उमड़ती है। यह ताजिया मंगलवार को रात 11 बजे के बाद कर्बला पहुंचा।
मजलिस में आंसुओं से तरवतर हुए इमाम के सैदाई
फर्रुखाबाद। मोहल्ला सूफी खां स्थित चांद हुसैन के निवास पर मजलिस का एहतमाम किया गया। पीपल के पत्तों का ताजिया उठाने से पहले मौलाना सदाकत हुसैन सैथकी ने मजलिस को खिताब किया। कहा मोहर्रम हो चुका है और चहेल्लुम भी। गम की कोई सीमा नहीं होती है। इमाम हुसैन की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता है। इस मौके पर फरमान हैदर, सलीम हैदर, वसीम हैदर, शारिक हैदर, शोबी हुसैन, सैफ हुसैन आदि रहे।
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