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अयोध्या-शहीद राजकुमार में बचपन से था देशसेवा का जुनून

अयोध्या । सीआरपीएफ के कोबरा कंपनी के शहीद जवान सूबेदार राजकुमार यादव में बचपन...

Newswrap हिन्दुस्तान, फैजाबादMon, 5 April 2021 09:10 PM
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अयोध्या । सीआरपीएफ के कोबरा कंपनी के शहीद जवान सूबेदार राजकुमार यादव में बचपन से ही देशसेवा का जुनून था। वह हमेशा अच्छी पढ़ाई के लिए प्रतिबद्ध थे और कड़ा परिश्रम करते थे। रानोपाली गांव में उनके साथियों की संख्या बहुत कम है। कारण उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा अपनी नानी के घर पर खुर्दाबाद में रहकर की थी। वह रानोपाली में शादी के बाद से मुस्तकिल रुप से रहने के आए। फिर भी गांव के हर युवा से उनकी पहचान थी और उन्होंने एक अभिभावक की तरह गांव के नवयुवकों को बेहतर जीवन जीने का रास्ता दिखाने की कोशिश की।

गांव का हर व्यक्ति कहता है कि वह इतने मिलनसार और हंसमुख थे कि खुद से लोगों को बुलाकर उनका हालचाल पूछते और कहते कि हमारी कोई जरूरत पड़े तो नि:संकोच बता देना। एक बेहतरीन इंसान की छाप समाज में बनाने वाले जांबाज जवान के बारे में उन्हीं के जूनियर अरुण विश्वकर्मा खुद तो कारपेंटर है, लेकिन शहीद जवान के मुरीद भी। कहते हैं कि उनमें देशसेवा का जज्बा कूट-कूटकर भरा था। वह सभी विद्यार्थियों को आर्मी और पुलिस में भर्ती होकर देशसेवा की सलाह देते थे। उनकी ही प्रेरणा से अरुण ने भी पढ़ाई की और सेना में भर्ती होने के लिए परीक्षा भी दी लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। बताते हैं कि उन्हीं की प्रेरणा थी कि गांव का ही एक जवान आशीष यादव सेना की नौकरी कर रहा है।

शहीद परिवार के पड़ोसी आनंद यादव का कहना है कि वह बड़े देशभक्त व्यक्ति थे और हम सभी को देशभक्ति और सैनिक के जाबांजी की कई कहानियां सुनाया करते थे। वह हमेशा एक अभिभावक की ही भूमिका में दिखते थे। हमेशा पढ़ने-लिखने और सेहत दुरुस्त बनाने के लिए प्रेरित करते थे। इसी तरह उन्हीं के पड़ोसी मोहित पाण्डेय का कहना है कि वह बहुत सपोर्टिंग नेचर के थे। ड्यूटी से आने के बाद अपने सभी परिचितों का हालचाल लेते थे। गांव से सम्बन्धित लोगों की भी खोज खबर लेते और परिवार के बच्चों व उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में जरूर पूछते थे। यहां रहते तो शादी-समारोह में जाते और परिवार की सदस्य की तरह काम में भी हाथ बंटाने की कोशिश करते थे।

इस गांव के निवासी डा. तपन चौधरी का कहना है कि वह इतने सज्जन व्यक्ति थे कि हर किसी मदद के लिए खुद दौड़ पड़ते थे। उनमें थोड़ा भी अहंकार नहीं था। पहचान का कोई व्यक्ति मिला तो छोटा हो या बड़ा पहले स्वयं अभिवादन करते फिर घर का हाल जानने के लिए सबके बारे में अलग-अलग पूछते थे। उन्हें कभी किसी से ऊंची आवाज में बात करते नहीं सुना गया। डा. चौधरी यह कहना नहीं भूलते कि मैने कोई बनावटी बात नहीं कही है जो सच्चाई थी उसी को बयां किया है। इसी तरह सुनील विश्वकर्मा का भी कहना है कि उनके जितना अच्छा इंसान आज के समय में बहुत कम ही हैं। वह हर तरह से लोगों की मदद बढ़चढ़कर करने के हिमायती थे। उनके पट्टीदार जयप्रकाश यादव कहते हैं कि उनसे इतना अपनापन मिला कि कभी एहसास नहीं हुआ कि हमारे और उनके बीच कोई अंतर है।

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