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बोले इटावा: पहले बच्चे ढूंढ़ के लाओ... फिर पढ़ाओ

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Newswrap हिन्दुस्तान, इटावा औरैयाFri, 21 Feb 2025 06:00 PM
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बोले इटावा: पहले बच्चे ढूंढ़ के लाओ... फिर पढ़ाओ

शहर में संचालित 1084 बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक जूनियर हाईस्कूल हैं। इनमें ज्यादातर में साफ टॉयलेट, शुद्ध पेयजल, साफ-सफाई नहीं रहती। इससे शिक्षक परेशान रहते हैं। शिक्षकों को विभागीय कार्यों के अलावा अन्य कार्य भी करने पड़ते हैं। महिला शिक्षकों के परिजनों को भी इन कामों में सहयोग करना पड़ता है। शिक्षक अनमोल बताते हैं कि शिक्षकों की समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं देता। मतदान, मतगणना व अन्य कामों में शिक्षकों की ड्यूटी लगा दी जाती है। इसके लिए अलग से छुटटी नहीं दी जाती। प्राथमिक स्कूलों में 50 फीसदी ऐसे स्कूल हैं जिनमें बच्चे अधिक और शिक्षक कम हैं। वर्षों से जिले में शिक्षकों के समायोजन नहीं किए गए हैं इससे कई स्कूलों में छात्र संख्या के हिसाब से शिक्षकों की संख्या कम है तो कहीं ज्यादा है।

शिक्षिका गीता कुमारी ने बताया कि शिक्षकों पर स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने का दबाव होता है। स्कूल छोड़कर गांव-गांव जाकर अभिभावकों से मिलकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करना होता है। इस काम में शिक्षक सफल भी होते हैं और अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने भी लगते हैं। लेकिन जैसे ही जब फसल का समय आता है तो वे बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर देते हैं और केवल मिड-डे मील के समय भेजते हैं। ऐसे में जब भी अधिकारी निरीक्षण को आते हैं तो छात्र संख्या कम होने पर शिक्षकों पर कार्रवाई कर दी जाती है।

शिक्षक गोविन्द शुक्ला ने कहा कि सर्दी, कोहरा, बरसात के समय भी शिक्षक देरी से पहुंचता है तो कार्रवाई कर दी जाती है, अर्द्धवार्षिक हो या वार्षिक परीक्षा शिक्षकों को अपने स्कूल के बच्चों के लिए प्रश्नपत्र और उत्तर पुस्तिका स्वयं ही व्यवस्था करके देनी पड़ती है।

महिला शिक्षक नेता अर्चना चौधरी कहतीं हैं कि शहर के अधिकतर स्कूलों में महिलाओं के लिए अलग से टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है और जो हैं भी तो बहुत गंदे हैं। सफाई कर्मी स्कूलों में सफाई करने नहीं पहुंचते। महिला शिक्षकों के साथ पुरुष शिक्षक भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हैं।

स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की डिजिटल आईडी बनाने के लिए आदेश आया है। जिसे कम समय में पूरा करना होगा। लेकिन अधिकतर बच्चों के आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र न होने से यह शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। महिला शिक्षकों को बच्चों के पालन पोषण और बीमारी आदि के लिए बाल्य देखभाल अवकाश(सीसीएल) की सुविधा है। बच्चों के 18 साल के होने तक दो साल की सीसीएल लेने का नियम है, लेकिन अधिकतर महिला शिक्षकों को ये अवकाश नहीं मिल पाता। जिनके पास जुगाड़ होता है या फिर जो पैसे खर्च करतीं हैं उनको अवकाश मिल जाता है। शिक्षिका कामना सिंह कहतीं हैं कि जब स्कूल में बराबरी से पढ़ाई करातीं हैं तो महिला शिक्षकों के साथ भेदभाव क्यों किया जाता है। महिला शिक्षक घर की जिम्मेदारी उठाने के साथ ही बेहतर शिक्षा देने के काम में लगी रहती है। शिक्षण कार्य से इतर सरकारी कार्यों में परिजनों की भी मदद लेनी पड़ती है।

सरकारी स्कूलों में भी हों जागरूकता कार्यक्रम : शिक्षक अवींद्र जादौन कहते है कि जब भी कोई जागरूकता अभियान चलाया जाता है उसके कार्यक्रम आयोजित करने का जिम्मा सरकारी विभाग पर रहता है। लेकिन आयोजन प्राइवेट स्कूलों में किया जाता है। सरकारी स्कूलों में भी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, इससे परिषदीय स्कूल के बच्चों को भी जागरूक होने का मौका मिल सकेगा। स्कूलों में खाद्यान्न पहुंचाने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। स्कूलों में बच्चों के लिए हेल्थ कैंप भी लगाए जाएं।

स्कूलों में सफाई को नहीं पहुंचते हैं कर्मचारी

शिक्षक सुनील कुमार ने कहा कि स्कूलों में साफ सफाई के लिए कोई कर्मचारी तैनात नहीं है। अधिकारी कहते हैं कि ग्राम पंचायत में काम करने वाले सरकारी सफाई कर्मचारी से ही सफाई कराएं, लेकिन ये कर्मचारी कभी स्कूलों की सफाई करने नहीं पहुंचते हैं। शिक्षकों को खुद ही झाड़ू उठानी पड़ती है। फिर भी निरीक्षण पर जाने वाले अधिकारी गंदगी होने की बात कहकर शिक्षिकों की क्लास लगा देते हैं। जब उनके स्कूलों में सफाई कर्मचारी नहीं है तो सफाई कौन करेगा। फिर भी शिक्षक अपने स्कूल को साफ सुथरा रखने को जो बन पड़ता है करते हैं।

शिक्षक और शिक्षिकाओं को जो भी समस्याएं आती हैं। उसका निस्तारण समय से किया जाता है। यदि फिर भी किसी शिक्षक को कोई समस्या है तो वह सीधे भी संपर्क कर सकता है। प्राथमिकता से समस्या का निदान कराया जाएगा। - मनोज कुमार, डीआईओएस।

परिषदीय स्कूलों में पहले की तुलना काफी सुविधाएं हैं। सभी स्कूलों में टॉयलेट बने हैं। सफाई की समस्या है तो इसके लिए शिक्षक अपने स्कूल की पंचायत के प्रधान से संपर्क करके सफाई कर्मी से सफाई कराएं, यदि वे सफाई नहीं करते हैं तो इसकी जानकारी बीएसए कार्यालय को दी जाए। - डा.राजेश कुमार, बीएसए।

आंगनबाड़ी में पढ़ाई करने वाले पांच से छह वर्ष के बच्चों की अपार आईडी बनाने के आदेश आए हैं।

-मनीष चौधरी

बच्चों के लिए स्कूल के समय में खाद्यान्न लेने जाना पड़ता है। इससे बच्चों की पढ़ाई में रुकावट आती है।

-पारुल गुप्ता

शिक्षकों की कमी से बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। शिक्षकों की संख्या बढ़ानी चाहिए।

-कमलेश कांत

12 वर्षों से शिक्षकों की पदोन्नती नहीं हुई है। सालों से स्थानांतरण नहीं हुए। चहेतों पर कृपा रहती है।

-संजीव यादव

स्कूल में पीने के पानी की ठीक व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों को पीने के लिए पानी तक घर से लाना पड़ता है।

-उमाकांत

एरियर बिल पास करने के नाम पर भ्रष्टाचार होता है। भुगतान के लिए विभाग के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

-सुमित

ऑनलाइन अवकाश की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। अवकाश के लिए ऑनलाइन आवेदन करते है।

-ललित

बच्चों को पढ़ाने के प्रति ग्रामीण क्षेत्र के अभिभावक गंभीर नहीं रहते। मिड-डे मील के समय भेजते हैं।

- अनुपम

हर पंचायत में सफाई कर्मियों की तैनाती है लेकिन वे स्कूलों की सफाई नहीं करते। इससे भी दिक्कतें हैं।

-ज्योत्स्ना

प्राइवेट स्कूल वाले लाखों रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च करते हैं। इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।

-गीता कुमारी

ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों की तरफ भागते हैं। अभिभावक भी सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते हैं।

-साधना दिवाकर

बीएसए कार्यालय में भ्रष्टाचार चरम पर है। बिना पैसे के कोई काम नही होता है। बाबू फाइल लटकाए रहते हैं।

-विनय

सुझाव---

1. स्कूलों में बने टॉयलेट और परिसर की नियमित साफ- सफाई कराई जाए।

2. छात्र संख्या बढ़ाने के लिए अलग से स्टाफ रखा जाए, इससे शिक्षकों का दबाव कम हो सके।

3. शिक्षकों को शिक्षण कार्य से इतर दूसरे कामों में न लगाया जाए। स्कूलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था होनी चाहिए।

4. स्कूलों में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाए, इससे छात्र स्वस्थ रहेंगे। छात्र-छात्राओं को समय-समय पर खानपान की जानकारी दी जाए।

5. बकाया एरियर, अवकाश या अन्य कामों की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए। ऑनलाइन हाजिरी की व्यवस्था पर रोक लगे। यह शिक्षकों के लिए उचित नहीं है।

समस्या----

1. स्कूलों की साफ सफाई नहीं होती है और न ही टॅायलेट में सफाई का ध्यान रखा जाता है। इससे संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा रहता है।

2. स्कूलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है। स्कूलों में हैंडपंप लगे हैं लेकिन बड़ी संख्या में खराब हैं। इससे बच्चे और अध्यापक दोनो ही परेशान होते है।

3. बकाए के भुगतान, अवकाश के लिए अधिकारियों की परिक्रमा करने के अलावा चढ़ौती भी देनी होती है।

4. शिक्षकों से शिक्षण कार्य के अलावा पल्स पोलियो अभियान, मतदाता पुनरीक्षण कार्य, बोर्ड परीक्षा ड्यूटी का भी काम लिया जाता है।

5. स्कूलों में होने वाली परीक्षाओं के लिए न तो प्रश्नपत्र मिलते हैं और न ही उत्तर पुस्तिका दी जाती है। जिससे अध्यापकों को खासी परेशानी उठानी पड़ती है।

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