बोले इटावा: छोटे-छोटे कामों के लिए महीनों दौड़ाए जाते हैं हम
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विकास की रफ्तार बढ़ाने में शहर के राज्य कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन बार-बार स्थानांतरण, परिवार से दूर पोस्टिंग, महंगाई भत्ता, ट्रांसपोर्ट और मेडिकल भत्तों का भुगतान समय से न होने से वह परेशान रहते हैं। कर्मचारी भगवानदीन कहते हैं कि कोई दिक्कत अधिकारी को बताते हैं तो वह कहते हैं हम खुद ही समस्या में हैं। ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं। कम से कम महीने में एक दिन तो हमारी बात जरूर सुनी जाए। समाधान दिवस आयोजित किया जाए। विमलेश सिंह बताते हैं कि सरकारी कार्य डिजिटल किए जा रहे हैं लेकिन कार्यस्थल पर डिजिटल सुविधा का अभाव रहता है। सीताराम बताते हैं कि महिला कर्मचारियों और संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात कर्मियों को खुद की और परिवार की सुरक्षा की चिंता रहती है। कई बार हमारे बच्चों को अच्छे स्कूल नहीं मिल पाते। वहीं राजीव यादव बताते हैं कि प्रमोशन से जुड़े मामले में देरी और खुद के मानदेय-वेतन आदि का बिल वाउचर पास कराने को कार्यालय के कई-कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। कर्मचारी राजीव यादव कहते हैं कि स्थाई कर्मचारियों तक को मेडिकल का भुगतान समय से नहीं हो रहा। राज्य सफाई कर्मियों के लिए सुनिश्चित करियर प्रोन्नयन (एसीपी) भी सितंबर माह से रुका है। निलंबित कर्मचारियों को क्लीन चिट मिलने के बाद भी उन्हें पूर्ण वेतन नहीं मिल रहा है।
कर्मचारी रामकुमार शाक्य ने कहा कि विभागीय कार्यों में आ रही कुछ शिकायतों के निस्तारण के लिए शहर से लखनऊ जाना पड़ता है। जिलास्तर लेवल पर ही समस्याओं का निस्तारण हो जाना चाहिए। कर्मचारी गिरेंद्र ने कहा कि सरकार कई विभागों को निजी हाथों में देने की तैयारी में है। ऐसे में प्राइवेट कंपनियां कम भुगतान कर्मचारियों को करेंगी। पालिका कर्मी अनिल वाजपेयी कहते हैं कि अगर यही हाल रहा तो सबसे बुरी स्थिति आउटसोर्सिंग कर्मिंयों की होगी। वर्तमान में इन कर्मचारियों का गुजारा इतने मानदेय से नहीं हो रहा है। वहीं इन्हें संबधित विभाग के क्लर्क भी इनका पैसा देने के लिए टहलाते हैं। बिना चढ़ावे के पैसा पास नहीं करते हैं। कैशलेस इलाज की सुविधा पर निजी अस्पताल पहले जमा करा लेते रुपये: कर्मचारी अरुण गौतम कहते हैं कि स्थायी कर्मचारियों को भी खास सुविधा नहीं मिल रही है। कर्मचारियों के सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में कैशलेस इलाज की सुविधा है, लेकिन निजी अस्पताल बिना पैसा जमा कराए इलाज शुरू नहीं करते हैं। इलाज हो भी हो जाए तो सीएमओ के यहां मेडिकल भुगतान की फाइल महीनों लंबित रहती है। दरअसल सीएमओ के यहां से फाइल पास होने के बाद भी संबंधित विभाग मेडिकल भुगतान रोके रहता है। जो रिश्वत नहीं देता है उसकी फाइल लटक जाती है।
सुझाव--
1. यूपीएस पर राज्य कर्मचारियों की प्रतिक्रिया ली जाए, ताकि उसकी विसंगतियों की जानकारी सरकार
को मिले।
2. समय से कर्मचारियों को एसीपी मिले, इसकी गोपनीय आख्या को पारदर्शी बनाते हुए विभागीय स्तर पर लागू किया जाए।
3. आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को कर्मचारी सेवा नियमावली के तहत वेतनमान दिया जाए।
4. कर्मचारी व उनके परिवार के लिए सरकारी स्तर पर अपीलीय बोर्ड का गठन होना चाहिए।
5. सभी विभागाध्यक्ष अपने कर्मचारियों के साथ माह में एक बार बैठक कर उनकी समस्याओं को जानें। इससे उन्हें बड़ी राहत मिलेगी।
समस्या--
1. कर्मचारियों की शिकायतों के थाना स्तर पर समाधान में लेटलतीफी व मनमानी होती है।
2. कर्मचारियों की मांगों और समस्याओं को विभागीय अधिकारी शासन तक नहीं पहुंचाते हैं। जिससे उनकी बहुत सी मांगे वर्षों लंबित रहती है।
3. कर्मचारियों का मेडिकल भुगतान समय पर नहीं होता है। फाइल को लटकाया जाता है। इस कार्य को प्राथमिकता पर कराया जाए।
4. कई फील्ड कर्मचारियों को वाहन भत्ता नहीं मिलता है न ही कोई वाहन की व्यवस्था होती है।
5. बिना प्रशिक्षण वाले कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है। कई आउटसोर्स कर्मचारी अधिकारियों के घरों के नौकरी में जुटे हैं इसे बंद किया जाए।
ढीली करनी पड़ती है कर्मचारियों को जेब
पीडब्ल्यूडी विभाग के कर्मचारी संजय कहते हैं कोर्ट में विभाग की ओर से काउंटर शपथ पत्र लगाने के लिए
200 रुपये मिलते हैं। जबकि सरकारी वकील 200 रुपये देने पर टहला देते हैं। उन्हें अपनी जेब से पांच से आठ हजार रुपये तक खर्च करने पढ़ते हैं। उनके मुताबिक कोर्ट तक किसी तरह काम चल जाता है। लेकिन हाईकोर्ट में कर्मचारियों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह हाल सभी विभागों का हैं। कर्मचारियों को अपने खर्च का भुगतान पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। जी हुजूरी करनी पड़ती है।
हम हक मांगते हैं तो कहते हैं कि आंदोलन कर रहे हो
कर्मचारी घनश्याम चौहान का कहना है कि कर्मचारी यदि अपने हक को लेकर आवाज उठाता है तो अधिकारी कहते हैं कि हम आंदोलन कर रहे हैं। धरना प्रदर्शन या हड़ताल की नौबत तब आती है जब हमारी बात को नजरअंदाज किया जाता है। हम अपनी मांगों की शुरुआत सादगी से करते हैं लेकिन जब बात नहीं मानी जाती है तब हमको आंदोलन करने के लिए विवश होना पड़ता है।
कई विभागों में नई भर्ती नहीं आई है। युवाओं की उम्र निकलने के बाद उनके पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचता है।
-अश्वनी कुमार
कर्मचारी मांगों को लेकर वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। जबकि अधिकारी कर्मचारियों की समस्या पर मौन रहते हैं।
- अरुण कुमार
जिन विभागों में पदोन्नतियों की कार्रवाई पेंडिंग है, उनको तत्काल पूरा कराया जाए। कोरोना काल में रोके गए भत्ते जारी करें।
- भूपेंद्र
दिव्यांगों के लिए अलग गैलरी होनी चाहिए। दिव्यांगों के लिए उनके कार्यस्थल पर रैंप और शौचालय होना चाहिए।
- राजीव कुमार
वेतन विसंगतियां बहुत ज्यादा हैं। जो समिति बनी थी, उसने संस्तुतियां की थीं कि इन्हें वेतन बढ़ोतरी के दायरे में लाया जाए।
- सुदीप कमल
सभी विभागों में प्रोत्साहन के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए समय-समय पर कार्यों का मूल्यांकन भी हो।
- राम कुमार शाक्य
सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस में वीआईपी मूवमेंट होता है। इसके बाद भी यहां आठ की जगह एक ही कर्मी है। समस्याएं भी हैं।
- गिरेंद्र
सफाई कर्मियों का सितंबर 2024 से एसीपी रुकी हुई है। इसकी रिपोर्ट भी लग चुकी है। विभाग पास नहीं कर रहा है।
-राजीव
अहर्ता के आधार पर तैनाती की जाए, नॉन ट्रेंड युवाओं से ट्रेंड का काम लिया जा रहा है। ट्रेंड युवा बेरोजगार हैं।
- मनोज कुमार
सिंचाई विभाग में 107 पद कर्मियों के लिए स्वीकृत हैं। लेकिन इसमें ज्यादतर पद खाली हैं। इससे काम प्रभावित होता है।
-अरविंद धनगर
वर्षों से पीएफ का भुगतान रुका है। शिकायत चेयरमैन से भी की जा चुकी है। अब तक समस्या का समाधान नहीं हुआ है।
-राजीव यादव
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की रिक्त पदों पर भर्ती होनी चाहिए। आउटसोर्सिंग के बजाय स्थानीय नियुक्ति हों।
- अजय यादव
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