बोले इटावा: हम बुजुर्गों की मदद को बनवाइए हेल्प डेस्क
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सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारियों को राहत और सम्मान के साथ जीवन जीने की चाह होती है लेकिन सरकारी कार्यालयों में उनका चक्कर लगाना आम समस्या बन गई है। इटावा के पेंशनर्स भी इससे अछूते नहीं है। वह मुख्यत: पेंशन लागू होने में देरी, दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रिया, जीवित प्रमाणपत्र के लिए दौड़, आयकर रिटर्न दाखिल करने में असहज होना, यदि सेवा के दौरान कोई लंबित कानूनी मामला हो तो उसका समय से समाधान न होना, छुट्टी के बकाया या अन्य भत्तों के लिए उन्हें बार-बार दौड़ना पड़ता है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से पेंशनरों ने कहा कि उन्हें उपरोक्त काम समय से पूरे न होने की पीड़ा सालती है। उनकी मांग हैं कि जिले स्तर पर हेल्प डेस्क बनाई जाए जहां नोडल अफसर बैठे। जहां वह अपनी समस्या बताकर निस्तारण करा सकें। उन्होंने कहा कि राजनेताओं को 70 वर्ष पर ही 20 प्रतिशत पेंशन दे दी जाती है। वहीं उनको 80 वर्ष की उम्र पर 20 प्रतिशत पेंशन बढ़कर मिलती है। यह भेदभाव क्यों?
कारागार में प्रधान बंदी रक्षक रहे दीप सिंह बोले कि यह सच्चाई है कि हम पेंशनरों की सुनवाई कहीं नहीं होती। 20 से 30 वर्षों तक हम विभागों में सेवा देते हैं, लेकिन अपने विभाग के लोग ही मुंह फेर लेते हैं। बाबू टरकाते हैं और अफसरों से मिलना मुश्किल हो जाता है। सेवानिवृत्त एके दीक्षित कहते हैं कि हम पेंशनर्स के लिए जिला स्तर पर एक हेल्प डेस्क होनी चाहिए। समस्याएं सुनने के लिए एक नोडल अधिकारी भी होना चाहिए। पुलिस विभाग से सेवानिवृत राजनारायण ने बताया कैशलेस चिकित्सा योजना के तहत इलाज देने में निजी अस्पताल आनाकानी करते हैं। कई अस्पतालों ने सीधे मना कर दिया है कि वे कैशलेस चिकित्सा योजना से नहीं जुड़े हैं। बेहतर अस्पतालों में कैशलेस इलाज की व्यवस्था की जाए। वहीं सिंचाई विभाग में सहायक अभियंता रहे निर्मल सिंह ने बताया कि अस्पतालों में सशुल्क इलाज के बाद प्रतिपूर्ति भुगतान के लिए आवेदन करिए तो स्वास्थ्य विभाग में आपत्ति-अनापत्ति के नाम पर उत्पीड़न किया जाता है। हमें बार-बार दौड़ाया जाता है। तीन दिन से अधिक समय तक एक पटल पर पेंशन संबंधी फाइल लंबित नहीं रहनी चाहिए। दो लाख से ऊपर के भुगतान के लिए फाइल लखनऊ भेजी जाती है। उस राशि के भुगतान के लिए कई बार दौड़ लगानी पड़ती है। दस लाख तक इलाज का भुगतान जिलास्तर पर ही होना चाहिए। बिजली विभाग में रहे लज्जा राम बोले 80 वर्ष होने पर पेंशन में 20 फीसदी वृद्धि हो जाती है। इस प्रावधान का लाभ केवल 12 फीसदी पेंशनरों को मिल पाता है। जबकि सरकार को यह वृद्धि सेवानिवृत्त होते ही लागू कर देनी चाहिए।
समस्या होंगी हल
पेंशनर को पूरी सहूलियत देने के प्रयास किए जाते हैं। इनकी पेंशन निर्बाध रूप से हर महीने की पहली तारीख को जारी कर दी जाती है। एरियर या अन्य भुगतान भी समय से पेंशनर के बैंक खाते में भेज दिए जाते हैं। फिर भी दिक्कत है तो वह मिल सकते हैं। - डोगरा शक्ति, वरिष्ठ कोषाधिकारी।
सुझाव--
शहीदों और पूर्व सैनिकों के परिजनों की तरह पर जिला मजिस्ट्रेट की अगुवाई में पेंशनरों के साथ मासिक बैठक हो।
पेंशनरों के लिए थ्री स्टार वृद्धाआश्रम का निर्माण हो, जहां पेंशनर अपना कुछ समय गुजार सकें।
रेलवे और परिवहन निगम की बसों में पेंशनरों को किराये में छूट देने का प्रावधान बने।
सेवानिवृत्ति के बाद से ही पेंशन में वार्षिक वृद्धि देने से सरकार पर दबाव कम होगा और पेंशनरों को भी
लाभ मिलेगा।
कैशलेस योजना से जुड़े निजी अस्पतालों को जिला स्तर पर अनिवार्य गाइडलाइन जारी की जाए।
समस्या--
चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति में आयकर कटौती से दोहरी मार पड़ती है।
पेंशनर के बेटे की मृत्यु होने पर उनकी पुत्रवधू को आश्रित नहीं माना जाता, यह अन्याय है।
जिला और प्रदेश स्तर पर पेंशनर सलाहकार समिति है लेकिन कभी उनकी बैठक नहीं होती।
चिह्नित अस्पतालों में भी पेंशनरों की प्रमुख बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता है। कई कर्मचारियों को पेंशन और अन्य लाभ नहीं दिए जा रहे हैं।
पेंशनरों की समस्या सुनने के लिए कोई अधिकारी या मजिस्ट्रेट नियुक्त नहीं है। उन्हें अपनी समस्याओं के निस्तारण को विभागों के कई चक्कर लगाने पड़ते है।
ट्रेजरी में रैंप नहीं, फूल जाती पेंशनर्स की सांस
पेंशनर अनिल त्रिपाठी बताते हैं कि पेंशन पाने वाले 59 साल से लेकर 100 साल तक के कर्मचारी जिले में हैं। साल में एक दो मर्तबा अपना जीवित प्रमाणपत्र या अन्य प्रमाणपत्र के लिए पेंशनर को कोषागार आना होता है। ऐसे में शारीरिक रूप से कमजोर व दिव्यांग पेंशनर के सामने बड़ी समस्या रहती है। कोषागार में अधिकांश काम दूसरी मंजिल पर स्थित कार्यालय के कमरों में किए जाते हैं, कमजोर पेंशनर को दूसरी मंजिल तक पहुंच पाना बड़ा मुश्किल होता है। अस्पताल, रेलवे स्टेशन पर जिस प्रकार दिव्यांग व शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिये रैंप बने हुए हैं, इसी प्रकार के रैंप यदि यहां भी बन जाएं तो बुजुर्ग पेंशनर को काफी सहूलियत हो सकती है। पेंशनर डा.वीके गुप्ता बताते हैं कि बड़ी संख्या में पेंशनर दूसरे शहरों में रहने वाले अपने बेटों बेटियों के साथ रहते हैं। लेकिन उनको अपने काम के लिए दूर दराज से यहां आना पड़ता है। आजकल सब कुछ ऑनलाइन हो गया है लेकिन जीवित प्रमाणपत्र के लिए शहर में कोई ऑनलाइन व्यवस्था चालू नहीं की गई है, जीवित प्रमाणपत्र अपने जिले में ही आकर देने की अनिवार्यता खत्म हो जाए तो पेंशनर को बहुत आराम मिल सकता है।
रेल किराए में मिले 40 फीसदी छूट
मुन्ना सिंह बताते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों को रेल किराया में 40 फीसदी की छूट मिलती थी। कोरोना काल के बाद उस पर रोक लग गई। उसे तत्काल बहाल करना चाहिए। एक जनवरी 2020 को सरकार ने महंगाई राहत भत्ता रोक दिया था। कोरोना के बाद भुगतान शुरू हुआ, लेकिन 30 जून 2021 तक का भुगतान फ्रीज कर दिया गया। उसका जल्द से जल्द भुगतान किया जाना चाहिए।
पटल पर तीन दिन से ज्यादा न रोकें फाइल
रघुवीर यादव ने कहा कि पेंशनरों की फाइल का निस्तारण तत्काल प्रभाव से किया जाए। एक पटल पर तीन दिन से ज्यादा फाइल न रोकी जाए। ज्यादा समय तक लंबित रहने से बार-बार कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं। आठ से 10 लाख की मेडिकल प्रतिपूर्ति के भुगतान के लिए फाइल को ऊपर न भेजा जाए। जिले स्तर पर ही भुगतान कराने की योजना तैयार हो।
डीएम की अगुवाई में प्रति माह हो पेंशनर्स की बैठक
शिरोमणि त्रिपाठी का कहना है कि पेंशनरों की समस्याएं समझने और शिकायतें सुनने के लिए जिलास्तर पर न कोई नोडल अधिकारी है, न कोई पटल तय है। उनकी मांग है कि डीएम की अगुवाई में हर माह या तीन माह पर कम से कम एक बैठक जरूर हो जिसमें पेंशनर अपनी समस्याएं रख सकें। विभिन्न सेवाओं से सेवानिवृत्त अधिकारियों-कर्मचारियों के पास विशेषज्ञता और अनुभव है। उनका शहर के विकास सहित विभिन्न कार्यों में उपयोग हो सकता है।
मेडिकल प्रतिपूर्ति का आवेदन डॉक्टर को न भेजकर सीधे सीएमओ को भेजना चाहिए। इससे बड़ी राहत मिलेगी।
-विमल पाठक
इनकम टैक्स में छूट दें या 50000 से 2 लाख रुपये तक सीमा तय की जाए। पेंशन पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।
-विजय बहादुर सिंह
बसों में किराए में छूट देने का प्रावधान बने। ट्रेन में बुजुर्गों को 40 फीसदी छूट का लाभ फिर दिया जाए।
-सोमेश अवस्थी
मेडिकल प्रतिपूर्ति का आवेदन डॉक्टर को न भेजकर सीधे सीएमओ को भेजना चाहिए। इससे बड़ी राहत मिलेगी।
-विमल पाठक
पेंशनर के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। जबकि पेंशनर भी सरकारी विभाग से ही आते हैं ।
-सत्य नारायण
मेडिकल प्रतिपूर्ति का लाभ दो माह में मिल जाना चाहिए। कई माह देरी से मिलने पर आर्थिक परेशानी होती है।
-सतीश चंद्र
पेंशनर समिति की नियमित बैठक हो। शासकीय सेवकों की भांति यात्रा सुविधा मिले। साथ ही पुरानी पेंशन बहाल की जाए।
-राम किशन
प्रशासन वृद्धाश्रम की व्यवस्था करे। वहां कुछ समय बिताने की व्यवस्था हो। इससे पेंशनर का समय व्यतीत हो सके।
- नरेंद्र भदौरिया
कैशलेस योजना का लाभ भर्ती होने पर ही मिलता है। यह सुविधा ओपीडी इलाज पर भी मिलना चाहिए।
-देवी दयाल वर्मा
पेंशन कम से कम 30 हजार होनी चाहिए। कई पेंशनर अब भी 6 से 7 हजार पेंशन पा रहे हैं। इतने से गुजारा नहीं होता।
-महेश चंद्र सक्सेना
30 जून व 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले कार्मिकों को काल्पनिक वेतन वृद्धि देने का आदेश काफी दिनों से लटका है।
-एके दीक्षित
सांसद-विधायकों को पुरानी पेंशन का लाभ मिलता है तो पेंशनरों को भी मिले। पेंशनरों को इनकम टैक्स से छूट दे।
-मुन्ना लाल
40 फीसदी राशि की रिकवरी 15 वर्षों में होती है। इसके 11 वर्ष में भुगतान का आदेश जारी हो। इससे पेंशनर को फायदा मिलेगा।
-आनंद
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