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बोले इटावा: चोक नालियां- सड़क पर सीवर यहीं बने हैं रेल कर्मियों के घर

Etawah-auraiya News - बोले इटावा: चोक नालियां- सड़क पर सीवर यहीं बने हैं रेल कर्मियों के घरबोले इटावा: चोक नालियां- सड़क पर सीवर यहीं बने हैं रेल कर्मियों के घर

Newswrap हिन्दुस्तान, इटावा औरैयाSat, 22 Feb 2025 01:27 AM
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बोले इटावा: चोक नालियां- सड़क पर सीवर यहीं बने हैं रेल कर्मियों के घर

रेल यूनियन इटावा शाखा के मंत्री दलेल सिंह यादव कहते हैं कि स्वच्छता और सुरक्षा को लेकर रेलवे की मुहिम ‘स्वच्छता ही मिशन है। खुद रेलवे की कॉलोनियों में यह चरितार्थ होते नहीं दिखती। रेल अफसर कर्मचारियों की कॉलोनियों की साफ-सफाई कराने के प्रति सजग नहीं हैं। कर्मचारी विनोद कुमार ने बताया कि कॉलोनी की ओर जाने वाली सड़क पर गंदगी फैली रहती है। नालियों की सफाई न होने से वह चोक हो गई हैं। गंदा पानी ओवरफ्लो होकर सड़क पर भरता है। इससे सड़क भी टूट जाती है। संक्रामक रोग फैलते हैं। कर्मचारी राकेश शर्मा ने कहा कि कॉलोनी के आवासों में 268 आवास कंडम घोषित किए जा चुके हैं। कर्मचारी रेलवे की ओर से दिए गए घरों में न रहकर किराये के मकान में मजबूरी में रह रहे हैं। जो आवास अभी कंडम घोषित नहीं हैं उनकी हालत भी ठीक नहीं है। बारिश के समय इन आवासों की छतों से प्लास्टर गिरता है। छतों पर कंटीली झाड़ियां उग आई हैं। शिकायत पर आश्वासन मिलता है कि योजना बन रही है। जल्द सभी समस्याओं का निस्तारण होगा। जबकि वर्षों से विकास कार्य नहीं हुए।

अस्पताल सिर्फ मेडिकल बनाने तक सीमित: रेलवे कॉलोनी की राधिका ने कहा कि कर्मचारी व उनके परिवारों के इलाज के लिए रेल विभाग की ओर से परिसर में ही अस्पताल बनवाया गया था। लेकिन रखरखाव न होने से यह अस्पताल केवल नाम का ही बचा है। सिर्फ रेल कर्मचारियों के मेडिकल बनाने तक ही सीमित है। कर्मचारी किशनपाल कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधा देना तो रेलवे की जिम्मेदारी है, लेकिन यहां के अस्पताल में कोई सुविधा नहीं है। सिर्फ ओपीडी की सुविधा है। पैथोलॉजी नहीं है और न ही मरीजों को भर्ती करने की कोई सुविधा है। रेलवे कर्मचारी और उनके परिजन अच्छे इलाज के लिए कानपुर या तो टूंडला के अस्पतालों का रुख करते हैं। या फिर इन्हें निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ता है।

जरायम का बना अड्डा: कर्मचारी प्रेम सिंह मीना ने बताया कि न तो कॉलोनियों में पुलिस की गश्त होती है और न ही कोई जीआरपी या आरपीएफ के जवानों की तैनाती है। जरायम का बड़ा अड्डा कॉलोनी बन गई है। कॉलोनी में रहने वाले विशाल गुप्ता ने कहा कि देर शाम कॉलोनी के किनारे रेलवे ट्रैक की ओर बड़ी संख्या में अराजकतत्व आ जाते हैं। ये लोग चरस, शराब, स्मैक का सेवन भी करते हैं। नशे की हालत में आए दिन मारपीट होती है। रात में घर आने वाले कर्मचारियों के पैसे छीने लेते हैं। कई बार शिकायत की गई पर सुरक्षा को लेकर अफसर संजीदगी नहीं दिखाते।

एक किमी लगाना पड़ता अतिरिक्त चक्कर: प्रेम सिंह मीना ने बताया कॉलोनी से प्लेटफार्म के लिए छोटा रास्ता था, जिसको बंद कर देने से भी हम लोग परेशान हैं। इस गेट के बंद होने से एक किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाकर प्लेटफार्म या स्टेशन पहुंचना पड़ता है। इस गेट को खोलने की मांग रखी गयी तो बेटिकट यात्रियों को रोकने के लिए गेट बंद किये जाने का तर्क दे दिया गया।

स्टेशन से 200 मीटर की दूरी पर पसरा रहता अंधेरा: सत्येंद्र तिवारी ने कहा कि रेलवे स्टेशन के सभी पांच प्लेटफार्म पर पर्याप्त रोशनी है। लेकिन यहां से दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित रेलवे कॉलोनी जाने वाली सड़क पर लगीं स्ट्रीट लाइटें खराब हैं। एक, दो ही ठीक हैं। शाम होने के बाद घर से निकलने में डर लगता है। रात के अंधेरे में आने वाले रेलवे कर्मचारियों या फिर उनके परिजनों को अपने मोबाइल फोन की रोशनी ऑन करनी पड़ती है। तब वह घर पहुंच पाते हैं। वहीं पंकज कहते हैं कि घरों की वायरिंग वर्षों पहले कराई गई थी। आए दिन हादसे होते रहते हैं। बारिश के दिनों में लोगो को खतरे का डर सताता है।

जंक्शन का दर्जा, आवास जर्जर

परिचालन की दृष्टि से इटावा रेलवे स्टेशन उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज मंडल का एक महत्वपूर्ण स्टेशन है। इटावा-भिंड, ग्वालियर-इटावा, आगरा तथा इटावा-मैनपुरी रेल लाइन चालू होने के बाद इटावा जंक्शन का दर्जा रेलवे स्टेशन को मिल चुका है। रेलवे में काफी बदलाव हुआ है लेकिन नहीं बदली है तो सिर्फ 400 से ज्यादा रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवारों के आवासों की सूरत।

कालोनियों में सुरक्षा के इंतजाम नहीं

कर्मचारी विमल निगम ने बताया कि कर्मचारियों के परिवारों के रहने के लिए पांच अलग-अलग कॉलोनी बनाई गई हैं। यहां ठीक से सफाई नहीं होती है। स्टेशन परिसर और प्लेटफार्मों पर सुरक्षा के लिए जीआरपी व आरपीएफ तैनात है, लेकिन कॉलोनियों की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं न तो लोकल पुलिस गश्त करती है और न ही जीआरपी जवानों की तैनाती है, अराजकतत्वों की आवाजाही होती है।

अस्पताल में महिला डाक्टर नहीं

कर्मचारी दिनेश साहू ने कहा कि इलाज के लिए संचालित अस्पताल की हालत दयनीय है। अस्पताल में न तो टेस्ट की सुविधा है और न ही दवाइयां मिलतीं हैं। पुरुष मरीजों के लिए तो प्राथमिक इलाज की सुविधा मिल जाती है लेकिन महिलाओं को इलाज में अधिक संकट आता है। महिला डाक्टर की मांग कर्मचारियों के परिवार लंबे समय से कर रहे हैं लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

टंकियों में नहीं पहुंचता पानी

रेलवे कालोनी में पानी की सप्लाई रेलवे की टंकी से होती है। तीन साल पहले बनी टंकी में घरों तक पानी सप्लाई के लिए नई पाइप लाइन बिछाई गई थी। लेकिन पानी का फ्लो इतना कम है कि छत पर रखी टंकियों में पानी नहीं पहुंच पाता है। इससे सुबह व शाम पानी आने पर परिवार के लोगों पूरे दिन उपयोग के लिए पानी स्टोर करना पड़ता है।

कर्मचारियों की जो भी समस्याएं संज्ञान में आती हैं उनका निराकरण कराया जाता है। अब जो भी समस्याएं कर्मचारियों ने बताई हैं उनका भी प्राथमिकता से निराकरण कराया जाएगा। कॉलोनी में साफ-सफाई को लेकर स्थानीय रेलवे अधिकारियों से कहा जाएगा।

-अमित कुमार सिंह, जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर मध्य रेलवे

माल गोदाम रोड पर बनी कॉलोनी के घरों में बारिश के समय छतें टपकती हैं हादसे का डर रहता है।

-राम जी, रेल कर्मी

नालियां चोक होने से पानी की निकासी नहीं हो पाती। गंदा पानी सड़क पर फैला रहता है। रोड भी इससे टूट रहीं।

- दिनेश चंद्र

कॉलोनी में सफाई के लिए कर्मचारी नहीं आते। यहां रह रहे कर्मचारियों को ही सफाई करनी पड़ती।

- अफसाना

आराजकतत्व कॉलोनी में आ जाते हैं। घर से काम पर जाने पर परिवार की सुरक्षा की चिंता रहती है।

-महेश चन्द्र

आवासों के बाहर सीवर टैंक तो बने हैं लेकिन इनका कनेक्शन नहीं किया गया कुछ खुले भी पड़े हैं।

- विनोद कुमार

अपने खर्चे से आवास की छत को ठीक कराया है शिकायतों के बाद भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। सफाई ठप है।

- प्रेम सिंह मीना

विभाग के द्वारा आवासों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है लंबे समय से रंगाई पुताई भी नहीं कराई गई।

-शशि देवी

रेलवे अस्पताल में महिला डॉक्टर नहीं है स्त्री संबंधी रोग बताने में महिलाएं असहज होती हैं।

-राधिका

घर की दीवारों से प्लास्टर झड़ता है छत भी काफी कमजोर है बारिश में सुरक्षा की चिंता और बढ़ जाती है।

- राकेश शर्मा

रेल कॉलोनियों में अव्यवस्थाओं का अंबार है। कर्मी जर्जर आवास में रहने को मजबूर हैं।

-दलेल सिंह यादव, शाखा मंत्री

सुझाव--

1. रेलवे कर्मचारियों के जो आवास अभी सुरक्षित हैं उनका जीर्णोद्धार हो जाए तो कर्मचारियों के परिवारों को काफी राहत मिलेगी।

2. दो-तीन साल में अगर आवासों की रंगाई पुताई कराई जाए तो खस्ता हाल होने से बचेगें।

3. कॉलोनियों की साफ सफाई के लिए सफाई कर्मी तैनात किए जाएं जिससे गंदगी के अंबार न लगे। संक्रामक बीमारियां नहीं फैलेंगी।

4. नालियों की साफ-सफाई बारिश से पहले कराई जाए तो कर्मचारियों के आवासों में जलभराव नहीं होगा।

5. रेलवे अस्पताल में महिलाओं के लिए महिला डॉक्टर की तैनाती के साथ पैथोलॉजी की सुविधा हो। अभी लोगो को प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है।

समस्या---

1. अंग्रेजों के समय के दर्जनों सरकारी आवास बने हैं जो मेंटिनेंस न होने से जर्जर हो रहे लेकिन स्थानीय रेलवे अधिकारी इस गंभीरता से ध्यान नहीं देते है।

2.सफाई न होने से कॉलोनियों की नालियां चोक हो चुकी हैं और चारों तरफ कंटीली झाड़ियां उग गई है। जिससें जंगली जीव-जंतु घरों में घुस आते है।

3. आवासों में बिजली की वायरिंग कराई जाए, यहां करंट लगने के कई हादसे हो चुके हैं

4. कॉलोनी की सड़के टूटी पड़ी हैंै बारिश के दिनों में स्थिति और खराब हो जाती है। लोगों की गिरने से हड्डियां टूट रहीं हैं।

5. कंडम आवासों को खाली कराने से पहले अधिकारियों को नए आवासों की व्यवस्था करनी चाहिए ।

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