बोले इटावा: मिट्टी बैंक न बाजार, चाक पर महंगी बिजली की मार
Etawah-auraiya News - बोले इटावा: मिट्टी बैंक न बाजार, चाक पर महंगी बिजली की मारबोले इटावा: मिट्टी बैंक न बाजार, चाक पर महंगी बिजली की मार
मिट्टी के बर्तन बनाकर आजीविका चलाने वाले कुंभकार गुणवत्ता वाली मिट्टी न मिलने से वह पहले ही परेशान हैं ऐसे में महंगी बिजली के चलते वह चॉक चलाने से पहले कई बार सोचते हैं। सृजन का ज्ञान रखने वाले शहर के मोहल्ला मकसूदपुरा के कुम्हारों ने उनकी समस्याएं कैसे हल की जा सकती हैं पर भी आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से खुलकर बातचीत की। विमला देवी कहती हैं कि घर के कामकाज से समय मिलने पर वे चॉक चलाती हैं, दीयों- पुरवों या अन्य कृतियों में रंग भरती हैं। तीन प्रमुख समस्याएं हैं जिससे हर कुम्हार परिवार बेहद परेशान हैं। दीये, बर्तन आदि बनाने के लिए गुणवत्ता वाली मिट्टी का न मिलना और महंगी बिजली और शहर में प्रशासन की ओर से कुम्हारों का बाजार तय न होना।
कुम्हार शिवकुमार ने बताया कि 50 साल से मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं। अब मिट्टी बहुत महंगी हो गई है, इससे दीपक बनाने में लागत अधिक आती है और इलेक्ट्रिक चॉक चलाने से बिजली का बिल बहुत आता है। हम लोगों पर महंगाई की डबल मार पड़ रही है।हमारा मुनाफा बहुत घट गया है। ग्राहक मोलतोल करते हैं। आजीविका चलाना मुश्किल हो गया है। रंजना बोलीं वह अपने परिवार के साथ मिलकर मिट्टी के दीये बनाती हैं। कई वर्षों से दीयों की मांग त्योहारों पर कम हो गई है।अब लोग सजावट के लिए चाइनीज लाइटों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मिट्टी के दीयों का काम कम हो गया है।
छुन्ना सिंह ने बताया कि अत्यधिक मेहनत के बाद भी इतने पैसे नहीं मिलते कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकें। इसलिए नई पीढ़ी इस काम से दूरी बना रही है। हमारे यहां बच्चे अब मजदूरी या फिर अन्य व्यवसाय कर रहे हैं।
सतेंद्र प्रजापति ने बताया एक दशक पहले एक ट्रॉली मिट्टी 700 रुपये की मिल जाती थी। जबकि आज के समय में चार हजार रुपये की एक ट्रॉली मिट्टी मिल रही है। नुमाइश में हमें निशुल्क दुकान लगाने की जगह मिलनी चाहिए। त्योहारों पर बाजार में सड़क पर दीये बेचने पर दुकानदारों को रुपये न देने पड़े। रामलीला या फिर नुमाइश के पास प्रशासन को मिट्टी के बर्तन का बाजार लगवाना अनिवार्य कर देना चाहिए। राघवेंद्र ने बताया मकसूदपुरा मोहल्ले में कुम्हारों के घर के सामने बने नाले में कचरा भरा रहता है। सफाई कर्मी यहां नहीं आते हैं।
परंपरागत व्यवसाय छोड़ रहे युवा : राम प्रसाद ने बताया कि मिट्टी दूर के गावों से मंगानी पड़ती है इसलिए लागत ज्यादा आ रही है। यदि शहर में ही मिट्टी बैंक बन जाए तो लागत कम लगे। सीमा बताती हैं कि मिट्टी के साथ पुआल के दामों में भी इजाफा हो रहा है। इसकी वजह से दीये, गमले, गिलास आदि को बनाने की रकम ज्यादा आ रही है। उस हिसाब से बाजार से रकम नहीं मिल पाती। वंदना बताती हैं कि समृद्ध अतीत वाले कुम्हारों का जीवन दोहरे संकट में हैं। एक तो प्लास्टिक ने बनीं वस्तुएं हैं। दूसरा बर्तन या अन्य जरूरतमंद वस्तु बनाने के लिए जरूरी ईंधन तक सुलभ नहीं रह गए।
बांके लाल प्रजापति बताते हैं कि पूरे घर में एक कीपेड वाला मोबाइल है। उसको रिचार्ज कराना भारी पड़ता है, लोग कहते हैं कि मोबाइल से भी सामान बिकता है। पर पढ़े लिखे न होने से हम यह काम नहीं कर पाते।
सुझाव--
रामलीला मैदान या फिर नुमाइश में कुंभकारों का बाजार बनाया जाए।
कुम्हारों के लिए मिट्टी का बैंक बनना चाहिए ताकि उचित दाम पर उपलब्धता हो। मिट्टी के लिए जमीन का पट्टा मिले।
कुम्हारों के लिए क्लस्टर बने और उनके लिए एक कॉमन फैसिलिटी सेंटर स्थापित हो।
कुंभकारों को बुनकरों की तरह फिक्स रेट या सब्सिडी पर बिजली दी जाए। उनकी शिल्पी के रूप में पहचान बने।
कुंभकारों के क्षेत्रों में हेल्थ कैंप लगे। उसमें आयुष्मान कार्ड बनवाने की भी व्यवस्था रहे। इसका बुजुर्गों को लाभ मिलेगा।
जिम्मेदार विभागों को भी उनके इलाकों में कैंप लगाक र योजनाओं का लाभ दिलाना चाहिए।
समस्या--
त्योहारों पर बाजार में दुकानों के आगे सामान बेचने पर अवैध रूप से रुपये लिए जाते हैं।
एक दशक से मिट्टी की स्थिति गंभीर हो गई है। इससे उत्पाद बनाने में दिक्कतें आ रही हैं।
कुंभकारों के क्षेत्रों में कई तरह की समस्याएं हैं। उनकी सुनवाई के लिए कोई एक स्थान नहीं है।
बिजली के मनमाने बिलों से लगभग हर महीने समस्या आती है। गलत बिल जल्द सुधारे नहीं जाते।
कई कुंभकार परिवारों के आयुष्मान कार्ड अभी नहीं बने हैं। इससे गंभीर रोगों का इलाज महंगा पड़ रहा है।
चाइनीज उत्पादों पर पूरी तरह बैन लगे, इससे कुम्हारों के कारोबार पर आने वाला संकट दूर होगा।
मिट्टी रखने को पर्याप्त जगह नहीं है। बरसात में नुकसान होता है। लगातार बढ़ते दामों से भी हमारी रोजी रोटी पर असर पड़ता है।
-सुमन देवी
हमारे बच्चे इस पेशे में नहीं आना चाहते। वे पढ़- लिखकर नौकरी या व्यवसाय करने के इच्छुक हैं। प्रयास हो कि नए लोग इससे जुड़ें।
-ओमवती
देव दीपावली जैसे मौकों पर दीयों की सरकारी खरीद सीधे कुम्हारों से होनी चाहिए। इससे उन्हें सीधा आर्थिक लाभ होगा।
-रेनुका
मिट्टी और पुआल के दाम भी बढ़े हैं। इसका असर दीये, गमले, गिलास और मिट्टी से बने सामानों के निर्माण पर पड़ रहा है।
-सीमा देवी
प्लास्टिक के सामानों के बढ़ते चलन ने मिट्टी के सामानों को समेट दिया है। जिन लोगों की इसी से चल रही है, उनकी मजबूरी है।
- बांके लाल प्रजापति
पावरलूम बुनकरों की तरह फिक्स बिजली बिल हमें भी मिले। अभी घरेलू रेट पर बिल आता है। जिसके चलते हम परेशान रहते हैं।
- उर्मिला
लागत और मेहनत के हिसाब से मिट्टी के सामान बनाने में मुनाफा नहीं मिलता। कई बार लागत तक नहीं निकलती ऊपर से बिचौलिये हावी हैं।
-शिवम कुमार
कुम्भकारी से बड़ी मुश्किल से दाना-पानी किसी तरह चल रहा है। हमें सरकार से उम्मीदें हैं सरकार को हमारे लिए ठोस नीति बनानी चाहिए।
- ब्रज मोहन
शादी-विवाह और मकान निर्माण के लिए ऋण या रिश्तेदारों से आर्थिक सहयोग लेना पड़ता है। कई बार घरेलू खर्चों के लिए भी लेना पड़ता है।
-सुरेश कुमार
एक तो कीमत बढ़ गई है, दूसरे अच्छी गुणवत्ता की मिट्टी मिल भी नहीं पाती। बाजार में चाइनीज उत्पादों से भी कड़ी टक्कर मिल रही है।
- अनिल कुमार
कुछ लोगों के पास अब इलेक्ट्रिक चॉक हैं, जिसमें मेहनत कम लगती है। बिजली सस्ती हो जाए तो इसका लाभ सभी कुम्हारों को मिलेगा।
-वंदना
सरकार ठोस योजना बनाए ताकि इस कला को संजीवनी मिले। यह आत्मनिर्भर भारत के लिए जरूरी भी है।
-सुरेंद्र कुमार
नुमाइश में कुम्हारों को निशुल्क दुकान लगाने के लिए जगह मिलना चाहिए। वैसे भी साल में कुछ ही दिन लोग हमारे सामान खरीदतें हैं।
-अतेंद्र कुमार
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