बोले इटावा: पुरुषों से भरे रैन बसेरों में कैसे ठहरें आशा बहुएं
Etawah-auraiya News - बोले इटावा: पुरुषों से भरे रैन बसेरों में कैसे ठहरें आशा बहुएं बोले इटावा: पुरुषों से भरे रैन बसेरों में कैसे ठहरें आशा बहुएं
स्वास्थ्य विभाग की डोर संभालने वाली आशा बहुएं और संगिनी का काम करने वाली महिलाएं तमाम संकटों से जूझते हुए भी इटावा में सुरक्षित प्रसव के लक्ष्य को पूरा कर रही हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान आशा बहू विमलेश कहतीं हैं कि आशाओं की परेशानी की वजह खुद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का योजनाओं का सही से क्रियान्वयन न करा पाना है। ज्ञापन देने और अधिकारियों से मुलाकात के बाद भी आशाओं की समस्याएं ज्यों की त्यों हैं। हर संकट में साथ देने वाली आशा बहुंओं का बीमा नहीं होता। सुमित्रा नंदिनी कहतीं हैं कि हम आशा बहुओं का कार्य ग्रामीण क्षेत्र में गर्भवती महिला को प्रसव के लिए सुरक्षित अस्पताल तक पहुंचाना और सुरक्षित प्रसव कराकर वापस घर छोड़ना होता है। लेकिन इस कार्य के लिए अल्प मानदेय दिया जाता है। कई बार इसके लिए संबंधित अधिकारियों को बताया गया पर सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा। रैन बसेरों में पुरुषों का कब्जा हैं,ऐसे में वह कहां रुकें।
आशा कर्मचारी यूनियन की महामंत्री संगीता ने बताया कि कभी-कभी रात के समय भी महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है मरीज को तो अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है लेकिन आशाओं के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं होती। सुरक्षा की चिंता सताती है। कई बार यह कहा गया कि अस्पतालों में आशाओं की आकस्मिक जरूरत पड़ने पर ठहरने की व्यवस्था की जाए लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
प्रोत्साहन राशि हर माह नहीं मिलती: आशा का काम कर रही कुसुमा ने बताया कि विभाग की ओर से उन्हें कुल 3500 रुपए का मानदेय दिया जाता है। इसमें 2000 राज्य सरकार की और 1500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है। समस्या यह है कि यह प्रोत्साहन राशि उन्हें प्रतिमाह नहीं मिलती। यदि प्रत्येक माह यह प्रोत्साहन राशि मिल जाए तो उनका संकट कुछ काम हो जाए लेकिन यह प्रोत्साहन राशि कई कई महीनो के बाद दी जाती है। फिर सुविधा शुल्क मांगा जाता है।
कटौती क्यों हो रही सही जवाब नहीं मिलता: आशा सरोजनी ने बताया कि उन्हें प्रोत्साहन राशि वाउचर भरने पर दी जाती है लेकिन समस्या यह है कि जितने वाउचर भरे जाते हैं उस हिसाब से प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती बल्कि उसमें कटौती कर ली जाती है। जब इस संबंध में अधिकारियों से बातचीत की जाती है तो वह कहते हैं अपना अकाउंट चेक करें। आज तक यह नहीं बताया गया की कटौती किस बात की होती है। आशा का काम कर रही रागिनी देवी ने बताया कि सभी कामकाज बैंक अकाउंट से होते हैं जो भी प्रोत्साहन राशि मिलती है वह बैंक अकाउंट में ही आती है। लेकिन पहले तो बैंकों के कई चक्कर लगाने के बाद भी उनके खाते नहीं खोले जाते और यदि एक बार खाता खुल गया तो फिर उसमें एंट्री करने के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उन्होंने बताया की दो आशाएं काफी समय से रामनगर स्टेट बैंक में खाता खुलवाने के लिए चक्कर लगा रही है लेकिन अभी तक उनके खाते नहीं खोले गए। आशाओं को कभी भी अवकाश नहीं दिया जाता। अपने परिवार को समय नहीं दे पाती।
सुधा बताती हैं कि सरकारी कार्य के लिए आने-जाने का जो मद मिलता है उससे ज्यादा तो खर्च हो जाता है। आशा बहुओं का बीमा नहीं कराया जाता। सुमित्रा बताती हैं कि कोरोनाकाल में हमें पीपीई किट तक नहीं मिली।
मोबाइल हुए खराब, कामकाज के लिए कर्ज ले खरीदने पड़ रहे
आशा बहू रानी शुक्ला का कहना है कि उन्हें सरकारी कामकाज करने के लिए चार साल पहले मोबाइल दिए गए थे इनमें से ज्यादातर मोबाइल खराब हो चुके हैं। इन दिनों सभी काम ऑनलाइन हो रहा है जो मोबाइल के माध्यम से ही किया जाता है। आशाओं ने बताया कि कई लोगों ने पैसे ना होने की स्थिति में रुपए उधार लेकर मोबाइल फोन खरीदा है ताकि ऑनलाइन कामकाज करती रहें और अब थोड़े-थोड़े करके उधार ली रकम वापस कर रही हैं।
आने जाने का खर्चा मिलता है कम : संगनियों को करीब 20 किलोमीटर के क्षेत्र में आना-जाना पड़ता है और आशाओं के कार्य का निरीक्षण करना पड़ता है। एक संगिनी के क्षेत्र में लगभग 20 आशा कामकर रही है। उनके कामकाज को देखने और उन्हें प्रोत्साहन के लिए जाना पड़ता है। इस काम के लिए उन्हें जो रकम मिलती है वह काफी कम है। किराया इससे अधिक खर्च हो जाता है।
प्रोत्साहन राशि समय पर दी जाएगी
आशाएं अपना काम बखूबी कर रहीं हैं। प्रोत्साहन राशि का समय पर भुगतान करने की यदि किसी आशा की शिकायत है तो उसको दूर किया जाएगा। अस्पताल में आशाओ को ठहरने का प्रबंध करने का भी प्रयास करेंगे।
- डा.गीताराम, सीएमओ।
सुझाव---
आशा बहुओं को रात में अस्पताल से वापस जाने में काफी कठिनाई होती है व्यवस्था हो कि आशा बहुएं रात में अस्पताल में रुक सकें।
आशा बहुओं को प्रोत्साहन राशि मिलती है लेकिन उसका भुगतान समय से नहीं होने के कारण उन्हे आर्थिक परेशानी होती है।
बैंक एकाउंट खोलने और फिर एकाउंट में एंट्री कराने में काफी कठिनाई होती है। स्वास्थ्य विभाग को बैंकों से तालमेल कर बेहतर व्यवस्था बनानी चाहिए
आशा बहुओ को ब्याज पर रुपए लेकर मोबाइल खरीदना पड़ता है। विभाग की ओर से नया मोबाइल दिया जाना चाहिए।
समस्या--
आशा बहुओं के लिए कोई दुर्घटना बीमा भी नहीं कराया गया है। यदि कोई दुर्घटना हो जाती है तो इलाज कराने के लिए भी परेशान होना पड़ता है।
रात में गर्भवती महिला को प्रसव के लिए अस्पताल छोड़कर वापस जाने पर आशा बहू के साथ दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पीएचसी व सीएचसी में ठहरने की व्यवस्था नहीं है।
आशा बहुओं का कहना है कि उनकी प्रोत्साहन राशि में से कटौती कर ली जाती है।
आशा बहुओं के नियमों के अनुसार 67 मदों में भुगतान किया जाना चाहिए, जिन पर वे काम करती हैं पर सिर्फ आठ मदों में भुगतान किया जाता।
कामकाज में काफी कठिनाई आती है और विभाग में सुनवाई नहीं होती। प्रोत्साहन राशि तो समय से मिले।
-कृष्णा
लंबे समय से प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी किए जाने की मांग चल रही है लेकिन कुछ नहीं हुआ।
-सुषमा
आशा बहुओं को आने-जाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। रात में परेशानी और बढ़ जाती।
- अनीता
अपने कामकाज के साथ ही बैंकों के बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं हमें सहूलियत दी जानी चाहिए।
-सुनीता देवी
बैंक में यदि किसी तरह खाता खुल भी जाए तो फिर एंट्री नहीं होती। यह बड़ी परेशान का कारण है।
-शकुंतला देवी
आशा को कभी छुट्टी नहीं मिलती और यह भी निश्चित नहीं है आशाओं को तमाम परेशानी होती हैं । -
सुमित्रा देवी
आने-जाने का जो व्यय दिया जाता है वह काफी कम है जबकि खर्चा काफी अधिक हो जाता है।
- संगीता
आने-जाने का जो व्यय दिया जाता है वह काफी कम है जबकि खर्चा काफी अधिक हो जाता है।
- संगीता
आशाएं समस्याओं से परेशान हैं और उनकी समस्याओं की कही सुनवाई नहीं हो रही।
सुषमा राजपूत
24 घंटे डयूटी के लिए तैयार रहना पड़ता है लेकिन इसके बदले में जो मानदेय मिलता है वह बेहद कम है।
- सीमा
आशाओं को मोबाइल उपलब्ध करा दें ताकि ऑनलाइन काम चलता रहे। फोन किस्त पर खरीदना पड़ता है।
-सुधा
आशाओं के लिए दुर्घटना बीमा योजना की भी कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में उन्हें परेशानी होती है।
- विजया देवी
केंद्र व राज्य सरकार से कुल मिलाकर 3500 रुपये ही मिलते हैं, जो कार्य को देखते हुए कम हैं।
-रजनी देवी
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