बोले इटावा: संसाधन मिलें तो बड़े-बड़ों को चित कर बजा दें जिले का डंका
Etawah-auraiya News - बोले इटावा: संसाधन मिलें तो बड़े-बड़ों को चित कर बजा दें जिले का डंकाबोले इटावा: संसाधन मिलें तो बड़े-बड़ों को चित कर बजा दें जिले का डंका
इटावा ऐतिहासिक शहर है, जहां कुश्ती प्रमुख खेल है। यहां के कई पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के चरखा दांव से जिले को अलग पहचान मिली। इटावा महोत्सव व सैफई महोत्सव में होने वाले अखिल भारतीय दंगल ने देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। सैफई में अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम हैं पर सुविधाएं नदारद हैं। ग्रामीण अंचल के पहलवानों को दूसरे जिलों का रुख करना पड़ रहा। पहलवानी में करियर बनाने की तैयारी कर रहे युवा पहलवान कहते हैं कि उनको उचित संसाधन मिलें तो वह बड़े-बड़ों को अपने दांव से चित कर जिले का डंका बजवा दें। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में इनडोर हॉल और मैट बेहद जरूरी है।
इटावा में बने कुश्ती के कई पुराने अखाड़े देश भर में प्रसिद्ध हैं लेकिन आज की स्थिति यह है कि इनमें से अधिकांश अखाड़े सुविधाओं के अभाव में बंद हो गए हैं। उर्दू अखाड़ा, जामा मस्जिद अखाड़ा, गड्ढा अखाड़ा के साथ ही बगिया अखाड़ा जैसे पुराने अखाड़े अपना अस्तित्व खोते चले गए। कभी जिले भर में आयोजित होने वाले बड़े दंगल भी लगभग समाप्त से हो गए हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से पहलवानों ने अपना दर्द साझा किया। बताया कि प्रशिक्षण न मिलना, सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलना, सामाजिक और पारिवारिक दबाव, अपर्याप्त स्पॉन्सरशिप और अवसर की कमी बड़ी समस्याएं हैं।
सोनू यादव कहते हैं कि वर्तमान में सिंड़ौस, सहसों, कुंडेश्वर, इटावा महोत्सव और बकेवर महोत्सव में होने वाले आयोजनों को छोड़ दें तो इकदिल के रामलीला मैदान, मढैया अजबपुर, लंगूर की मठिया, नगला इच्छा, इटगांव, नगला गौर, सैफई जैसे बड़े आयोजन अब लोगों की स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं। जिले ने कई बड़े व अंतरराष्ट्रीय पहलवान देश और दुनिया को दिए। एशियाई गेम में अपनी कुश्ती के दांव से बड़े खिलाड़ियों को धूल चटा देने वाले स्वर्गीय चंद्रपाल सिंह का नाम आज भी लोग याद करते हैं। भरथना के रहने वाले कुश्ती में गोल्ड मेडल जीत चुके मलखान सिंह यादव बताते हैं कि सुविधाओं के अभाव में युवा कुश्ती से दूर जा रहे हैं। मिट्टी के बजाय अब मैट जरूरत बन गई है। संसाधनों की कमी कुश्ती जैसे परंपरागत खेल को रोकने में कामयाब होती दिख रही है। कुश्ती के छोटे अखाड़े और स्पोर्ट्स स्टेडियम में मैट की व्यवस्था उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव ने कुश्ती और पहलवानी को जिले में बढ़ावा देने के लिए सैफई में अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम बनवाए बल्कि उनमें जरूरी सुविधाओं के साथ ही समय-समय पर कुश्ती व दंगल के आयोजन कराकर खिलाड़ियों का मनोबल भी बढ़ाया। जिलाजीत सोनू पहलवान का कहना है यदि समय रहते कुश्ती को सरकारी सहयोग नहीं मिला तो यह खेल लुप्त हो जाएगा। जिम और एयर कंडीशन फिटनेस सेंटर ने पुराने अखाड़े को किनारे कर दिया है इसलिए जरूरी है कि युवा पीढ़ी को स्वस्थ रखने के लिए कुश्ती जैसे परंपरागत खेल को बढ़ावा दिया जाए। उस्ताद कालीचरण का कहना है कि युवा कुश्ती में क रियर बनाना चाहते हैं। वह अभ्यास के लिए आते हैं पर कई संसाधन न मिलने से निराश होकर छोड़ देते हैं। इकदिल की रहने वाली महिला पहलवान जोया सिंह का कहना है कि वह कानपुर में रहकर प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं क्योंकि जिले में न तो प्रशिक्षक उपलब्ध है और न ही मैट की सुविधा। यदि स्टेडियम में ही यह सुविधा उपलब्ध हो जाए तो किसी भी पहलवान को अन्य जिलों में जाने की जरूरत न पड़े।
महिला पहलवानों के लिए संसाधन नहीं:जोया आगे बताती हैं कि कई महिला पहलवान भी उनके साथ कानपुर में प्रशिक्षण ले रही हैं, क्योंकि जिले में महिला पहलवानों के लिए सुविधाएं नहीं हैं।
सैफई ने दंगल व पहलवानों को दी एक नई पहचान
कटरा लाखापुर के दिलीप पहलवान का कहना है कि सैफई में होने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन से जिले के दंगल व पहलवानों को एक नई पहचान मिली। स्वर्गीय नेताजी के निधन के बाद यह आयोजन लगभग शून्य सा हो गया है। वहीं दूसरी ओर इटावा महोत्सव में होने वाले अखिल भारतीय दंगल ने भी एक नई पहचान बनाई थी। देशभर के पहलवान इस आयोजन में जुड़ते थे। वर्तमान में यह आयोजन संसाधनों की कमी की वजह से जिला स्तर तक ही सीमित रह गया। नगला करौड़ी के राजीव पहलवान का कहना है कि सैफई जैसे आयोजन को एक बार फिर से शुरू करने की आवश्यकता है जिससे देश भर के पहलवान अपनी सुख सुविधाओं का बेहतर प्रदर्शन करते हुए हमारे जिले को भी कुश्ती के लिए एक बार फिर से नई ऊर्जा दे सकें।
अन्य खेलों के लिए खुला खजाना, कुश्ती हुईं मायूस
बगिया अखाड़ा के खलीफा कफीस पहलवान का कहना है कि कुश्ती और दंगल परंपरागत भारतीय खेल है इन्हें क्रिकेट, फुटबॉल व हॉकी के मुकाबले तरजीह नहीं मिलती न तो प्रशिक्षण उपलब्ध है और न ही बजट मिलता है। डिम्पल पहलवान का कहना है कि कुश्ती के खेल को क्षेत्र में बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। कम से कम खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए उचित सुविधाएं मिलनी चाहिए जिससे वह बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। युवा पहलवान सागर यादव कहते हैं कि स्कूली स्तर पर भी खिलाड़ियों को चयन की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। अंडर -14, अंडर - 15 व अंडर-19 जैसे मुकाबले व ट्रायल की व्यवस्था न होने से खिलाड़ी निराश होते हैं स्कूलों में भी कुश्ती को बेहतर खेल के तौर पर बढ़ावा देने की जरूरत है। पहलवान अनुज ने कहा कि इटावा स्पोर्ट्स स्टेडियम में ही यदि बेहतर प्रशिक्षण और मैट आदि की सुविधा उपलब्ध हो जाए तो कुश्ती के दांव-पेच सीखकर पहलवान जिले का नाम और बढ़ाएंगे।
इटावा स्पोर्ट्स स्टेडियम में अप्रैल सत्र में डिमांड खेल निदेशालय से की जाएगी। जरूरी संसाधन और कोच उपलब्ध कराए जाएंगे। कुछ लोगों ने निजी तौर पर सरकारी जमीन पर प्रैक्टिस की व्यवस्था की थी जो सरकारी सिस्टम के अनुसार उचित नहीं थी, इसलिए टिनशेड को हटा दिया गया।
सर्वेन्द्र सिंह चौहान, जिला क्रीड़ा अधिकारी
कुश्ती के कोच की मांग लंबे अरसे से की जा रही, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में हमें मायूसी होती है।
- भुवनेश
स्टेडियम में पहलवानों के साथ ही पुलिस व सेना भर्ती के लिए युवा आते हैं ऐसे में सुविधाएं बढ़ाई जाएं। कुश्ती को आगे बढ़ाएं।
- नितिन
सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए साथ ही खिलाड़ियों को प्रशिक्षण और भरपूर पोषण मिले।
- युगल किशोर, पहलवान
बारिश के दिनों में पहलवान को अभ्यास करने में काफी दिक्कत होती है। मैदान पर पानी भर जाता है तब अभ्यास ठप हो जाता है।
- सुमित
कोच नहीं है दंगल मैदान पर तो अव्यवस्था की भरमार है, यहां पर संसाधन बढ़ाए जाएं तो सहूलियत होगी।
- गौरव
खुले मैदान की वजह से अभ्यास प्रभावित होता है हॉल की व्यवस्था हो जाए तो मौसम की वजह से खेल प्रभावित नहीं होगा।
- पंकज
सीनियर खिलाड़ी कुश्ती छोड़ रहे हैं अन्य पहलवान दिल्ली व हरियाणा का रुख कर रहे, जरूरी है जिले में सुविधाएं उपलब्ध हो।
- आलोक
ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुश्ती की प्रतिभाओं की कमी नहीं है, प्रशिक्षण और सुविधाएं मिले तो जिले का नाम और रोशन होगा।
- सागर यादव
स्टेडियम में कोच नहीं है हॉल और मैट तो बहुत दूर की बात है उपकरण नहीं है प्रैक्टिस की उचित सुविधा नहीं है।
- सोनू यादव
अभ्यास में मिट्टी की गुणवत्ता काफी अहम है, सुविधा मिल जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन कर पाएंगे।
- कालीचरण
स्टेडियम में 2021 में कुश्ती को प्रशिक्षण कैम्प में शामिल किया गया था। खिलाड़ियों के लिए कोच और मैट की सुविधा बढ़ाएं।
- जोया सिंह
सरकारी स्तर पर कुश्ती को बढ़ावा देने के कारगर प्रयास नहीं हुए। इस खेल के प्रति युवाओं में रुचि कम होने लगी है।
- मलखान सिंह
सुझाव--
1. कुश्ती के लिए एक बड़ा हॉल बनवाया जाए जिसमें मैट जरूर बिछाई जाए।
2. स्टेडियम में कुश्ती कैंप की शुरुआत फिर से की जाए साथ ही बेहतर कोच भी उपलब्ध कराए जाएं।
3. कुश्ती के लिए खिलाड़ियों को रहने के लिए हॉस्टल व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
4. खिलाड़ियों के पोषण और उनको भरपूर डाइट की भी व्यवस्था होनी चाहिए
5. जिला स्तर पर कुश्ती के लिए ट्रायल रन की व्यवस्था की जाए और स्कूल स्तर पर भी खिलाड़ियों का चयन किया जाए।
समस्या--
1. जिले में अखाड़े बंद होने के बाद स्टेडियम में भी व्यवस्था न मिलने से खिलाड़ी परेशान हैं।
2. कुछ पहलवानों ने निजी खर्चे पर अखाड़े की शुरुआत की थी जिसे प्रशासन ने बंद कर दिया। इसे फिर से चालू कराया जाए।
3. स्टेडियम में बनी जिम का उपयोग पहलवान और खिलाड़ी नहीं कर पाते।
4. स्पोर्ट्स स्टेडियम में कोच उपलब्ध नहीं है जिससे प्रशिक्षण नहीं हो पा रहा।
5. बेहतर सुख सुविधाओं की कमी व मैट उपलब्ध न होने से पहलवान परेशान है। इसे तत्काल पूरा किया जाए।
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