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बोले इटावा: अच्छा ट्रैक व प्रशिक्षक मिल जाएं तो हम पदकों से भर देंगे झोली

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Newswrap हिन्दुस्तान, इटावा औरैयाFri, 28 Feb 2025 02:23 AM
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बोले इटावा: अच्छा ट्रैक व प्रशिक्षक मिल जाएं तो हम पदकों से भर देंगे झोली

इटावा में महात्मा ज्योतिबा फुले स्पोर्ट्स स्टेडियम कब्जे से भी जूझ रहा है। खिलाड़ियों को समर्पित मैदान के मुख्य दरवाजे के पास कपड़े सूखाए जाते हैं। पास ही में सर्कस का सामान पड़ा रहता है। खिलाड़ी इंद्रजीत ने बताया कि स्टेडियम आने पर पहले हम लोग इस समस्या से दो-चार होते हैं। फिर स्टेडियम में प्रवेश करते ही प्रशिक्षकों की कमी अखरती है। अधिकारियों से मांग करने पर जल्द प्रशिक्षक मिलने का आश्वासन देते हैं, पर तैनाती नहीं हो पाती। सलमान बताते हैं कि प्रशिक्षकों का अनुभव न मिल पाने से कड़ी मेहनत के बाद भी पदक जीतने से खिलाड़ी चूक रहे हैं। खिलाड़ी गौरव भदौरिया ने बताया कि अन्य जिलों से भी खिलाड़ी प्रशिक्षण लेने आते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो बिना अनुमति के प्रशिक्षण लेते हैं। खिलाड़ी रोकते हैं तो यह लोग मारपीट को उतारू हो जाते हैं।

इन खेलों का मिलता है प्रशिक्षण: महात्मा ज्योतिबा फुले स्पोर्ट्स स्टेडियम में एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबाल, क्रिकेट, टेबल टेनिस, वॉलीबाल, फुटबाल, भारोत्तोलन, हॉकी, कबड्डी, बॉक्सिंग और ताइक्वांडो का प्रशिक्षण दिया जाता है।

ओपन जिम की सुविधा: खिलाड़ी सुप्रीत बघेल बताते हैं ग्रामीण क्षेत्रों की खेल प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें आगे बढ़ाने के उद्देश्य से जिले के आठ ब्लॉकों की 28 ग्राम पंचायतों में 10 खेल मैदान, 10 मिनी स्टेडियम और आठ मॉडल पार्कों का निर्माण कराया गया था। कुछ में ओपन जिम की भी व्यवस्था की गई थी। शासन ने गांव में खेल मैदान तैयार कराया तो आमजन को उम्मीद जगी थी कि अब शहर के साथ देहात से भी खिलाड़ी निखरकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा दिखाएंगे।इसके बाद भी योजना परवान नहीं चढ़ सकी।

पंचायतों में बने स्टेडियम की घास काटने वाली मशीनें खराब: ग्रामीण क्षेत्र के खिलाड़ी अतुल सिंह ने बताया कि उन्हें महात्मा ज्योतिबा फुले स्पोर्ट्स स्टेडियम या फिर सैफई के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम आना पड़ता है। दरअसल, पंचायतों में बने स्टेडियम की देखभाल नहीं हो पा रही। बरसात के बाद स्टेडियम की घास काफी बढ़ गई है घास को काटने वाली मशीनें खराब पड़ी हैं, खिलाड़ी अभ्यास नहीं कर पा रहे। कौशलेंद्र और प्रतीक की मानें तो उन्हें आज तक यह ही नहीं पता चला कि उन्हें खेलने के लिए सरकार की ओर से सामान भी दिया गया है, जबकि योजना लागू होने के समय गांव प्रधानों को आदेश दिए गए थे कि वह गांव में मुनादी कराकर युवाओं को इसकी जानकारी दें।

जसवंतनगर में 42 लाख की लागत से बना स्टेडियम: रवि यादव ने बताया कि जसवंतनगर में बने स्टेडियम में जिम और झूले टूटे पड़े हैं। सफाई व्यवस्था भी चौपट है। यूरिनल साफ नहीं रहते। इससे संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा भी बना रहता है। वहीं रनिंग ट्रैक पर पत्थर पड़े होने की वजह से गांव के युवा सुबह- शाम दौड़ भी नहीं पाते हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने वाले सैफई में एक तरणताल भी है लेकिन इसका लाभ छात्र-छात्राओं और लोगों को आसानी से नहीं मिल रहा है। यह आए दिन बंद रहता है।वहीं खिलाड़ियों की मांग है कि बास्केट बाल का कोर्ट भी बने जिससे दूसरे जिलों में न जाना पड़े। महिलाओं के लिए बैंडमिंटन के प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।

तरणताल में ताला तैराकी कहां सीखें

तालकटोरा की तरह सैफई में बना अंतरराष्ट्रीय तरणताल को तैराकों का इंतजार है। यहां तीन प्रकार के तरणताल बने हैं। इन पर 10 मीटर, 7.5 मीटर, 5 मीटर व 3 मीटर के डाइविग टावर बनाए गए हैं। करीब तीन हजार दर्शकों की क्षमता के तरणताल का निर्माण 207 करोड़ की लागत से कराया था। ये तरणताल अंतरराष्ट्रीय मानक पूरा करने से विश्वकप टूर्नामेंट कराने के लिए उपयुक्त हैं। फिलहाल मेजर ध्यान चंद स्पोर्ट्स कालेज के अंतर्गत इसकी देखरेख की जा रही है।विद्युत कनेक्शन भी हो चुका। फिर भी इसके बंद रहने से बच्चों को स्वीमिंग करने के लिए अन्य स्थानों पर जाकर महंगा शुल्क चुकाना पड़ता है।

स्टेडियम के बाहर सुखाने आते हैं कपड़े

स्टेडियम के बाहर ही बड़ी संख्या में कपड़े धोने का काम करने वाले अपने कपड़ों को सुखाते हैं, हर रोज दो सौ से अधिक लोग यहां पहुंचकर धोये कपड़े सुखाने आते हैं, इनसे खिलाड़ियों को दिक्कतें हो रहीं हैं। संडे बाजार से होने वाली समस्या को लेकर खेल विभाग की ओर से नगर पालिका को अवगत कराकर बाजार दूसरी जगह शिफ्ट करने को कहा गया है, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

संडे बाजार लगने से हर रविवार को दिक्कत

स्टेडियम के बाहर हर संडे को बाजार लगता है। दो सौ से अधिक दुकानें लगाई जातीं हैं। संडे के दिन प्रशिक्षण को स्टेडियम आने वाले खिलाड़ियों को दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। बाजार से जहां पूरा रोड जाम हो जाती है वहीं गंदगी भी कई-कई दिनों तक फैली रहती है।

सर्कस लगने से होती हैं खिलाड़ियों को दिक्कतें

जिले में एक मात्र बड़ा स्टेडियम है। स्टेडियम के बाहर नुमाइश में लगने वाला सर्कस स्टेडियम के मेन गेट के बाहर खाली पड़ी जगह में लगता है, इससे दो महीने तक लगातार दिक्कतें आतीं हैं। जबकि महोत्सव समिति के पास दूसरी बड़ी जगह भी हैं वहां पर सर्कस लगाया जा सकता है, लेकिन शिकायतों के बाद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।

स्टेडियम में घुसपैठ करके बिगड़ैल करते हैं परेशान

स्टेडियम में अराजकतत्वों और बिगड़ैल युवाओं पर रोक नहीं लग पा रही। ये लोग युवाओं को बेवजह परेशान करते हैं। पक्का बाग के महेश सिंह बताते हैं कि उनका बेटा फुटबाल खेलता है। वह दोस्तों संग स्टेडियम में प्रैक्टिस करता था। 25 दिन पहले स्टेडियम आने वाले लड़कों को बेवजह उलझकर झगड़ा करने लगे और विरोध करने पर नुमाइश चौराहे पर मारपीट की।

सुझाव--

1. स्पोर्ट्स स्टेडियम में बास्केट बॉल का कोर्ट बनाया जाए। इससे खिलाड़ियों को दूसरे जिलों में न जाना पड़े।

2. खेल एसोसिएशनों की प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने का शुल्क निर्धारित होना चाहिए।

3. शहर में और भी मैदान तैयार किए जाने चाहिए, ग्रामीण क्षेत्र में बने मिनी स्टेडियमों में संसाधनों को बढ़ाना चाहिए।

4. मिनी स्टेडियम में प्रशिक्षकों की तैनाती हो, इससे खिलाड़ियों की राह आसान हो जाए।

5. स्पोर्ट्स स्टेडियम में शासन को स्थायी प्रशिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए।

समस्या--

1. बास्केट बॉल का कोर्ट न होने से बच्चे अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं। इससे बड़ी प्रतियोगिताओं में बच्चे भाग नहीं ले पाते हैं।

2. स्पोर्ट्स स्टेडियम में पानी छिड़काव की व्यवस्था न होने पर क्रिकेट की पिच खराब हो जाती है।

3. स्टेडियम में महिला शौचालय की संख्या बढ़ाई जाए। चेंजिंग रूम भी बढ़ने चाहिए।

4. स्टेडियम में बाहर से आने वाले खिलाड़ियों की एक ही जगह पर रुकने की व्यवस्था हो।

5. पंचायतों में बने स्टेडियम में बच्चे अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं। उसमें झाड़ियां उग रही हैं।

स्पोर्ट्स स्टेडियम में फुटबॉल का प्रशिक्षण लेने गए थे। पता चला कि यहां कोई प्रशिक्षक नहीं है।

- आयुष भदौरिया

जसवंतनर क्षेत्र में बने मिनी स्टेडियम में झाड़ियां खड़ी हुई हैं। बच्चे खेल नहीं सकते न दौड़ लगा सकते हैं।

- गौरव भदौरिया

एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम में अन्य जनपदों से महिला खिलाड़ी आती हैं। महिला शौचालय कम हैं, इनकी संख्या बढ़नी चाहिए।

- साधना

टीवी पर हॉकी देखने से मन हॉकी के लिए आकर्षित हो गया। स्टेडियम में रजिस्ट्रेशन कराया है, सुविधाएं बढ़ें।

- रश्मि

बिना कोच के कोई भी खिलाड़ी बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर सकता, जरूरी है कि जिन खेलों के खिलाड़ी हैं वो प्रशिक्षण देते रहें।

-सलमान

जूडो जैसे खेल में भी अल्पकालिक प्रशिक्षक हैं। ऐसे में जरूरी है कि सभी खेलों के लिए उपयुक्त कोच तैनात हों।

- विपिन

बास्केटबॉल के लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत पड़ती है, स्टेडियम में कोर्ट न होने से बच्चे अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं।

- इंद्रजीत

स्पोर्ट्स स्टेडियम में बिना रजिस्ट्रेशन के भी लोग आ जाते हैं और खेलते हैं रोकने पर यह लोग मारपीट करने लगते हैं।

-सुप्रीत बघेल

ग्रामीण इलाकों में बने स्टेडियम से इन बच्चों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। बच्चे खेतों में कबड्डी और क्रिकेट खेलते हैं।

- दीपक

हॉकी में परचम लहराना चाहती हूं लेकिन स्थायी प्रशिक्षक नहीं है, रोजाना स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रही हूं।

- पलक

पढ़ाई के साथ बच्चों को खेल के लिए समय निकालना भी बड़ी चुनौती है। स्कूलों में ही खेल प्रबंध हो जाए तो ठीक रहेगा।

-मोहित

स्पोर्ट्स स्टेडियम में अभी बीते कुछ सालों में संसाधनों की कमी है। एक स्टेडियम ही खेल प्रशिक्षण का सहारा है।

-अनूप यादव

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