खस्ताहाल सड़क के कारण कावंड़ियों को जल चढ़ाने में हुई परेशानी
राजा का रामपुर, हिन्दुस्तान संवाद। सावन के अंतिम सोमवार को पूरा हो गया। सावन के अंतिम सोमवार को श्रद्धालु कम्पिल गंगाजी से जल भरने के लिए कावंड़ लेकर आ
सावन के अंतिम सोमवार को श्रद्धालु कम्पिल गंगाजी से जल भरने के लिए कावंड़ लेकर आए और भगवान शिव का जलाभिषेक किया। कांवड़ियों ने रास्ते में ऊबड़-खाबड़ सड़कों को लेकर जो अपना दर्द बयां किया। गंगाघाट से शिव मंदिर तक आने में उनको काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। कावंड़ यात्रियों ने बताया कि पहरा-रुदायन मार्ग जर्जर, खस्ताहाल है। कांवडियों ने रोष करते हुए कहा कि प्रशासन की लापरवाही की वजह से उनको यात्रा में खासी परेशानी उठानी पड़ी। इस पर कई कावंड़ियों के गिर जाने के कारण कावंड़ खंडित हो गयी। इस मार्ग से कंपिल गंगा से जल लेकर कांवड़िया गुजरते हैं। वह जर्जर हालत में हैं। यात्रा से पूर्व इसकी मरम्मत तक नहीं कराई गई। जिससे प्रशासन की लापरवाही साफ उजागर होती है।
अंतिम सोमवार को कावंड़ यात्रा में कावडिया बोले
श्यामवीर का कहना है टूटी जर्जर सड़क को कांवड़ यात्रा के लिए बेहतर बनाने का अधिकारी भले ही दावा कर रहे। हकीकत कुछ और ही है। कांवड़ यात्रा के दौरान जगह-जगह जर्जर टूटी सड़क पर चलना किसी चुनौती से कम नही।
गोविंद मिश्रा ने बताया पहरा से रुदायन तक जर्जर टूटी सड़क को लगभग 10 सालों से अधिक समय से देख रहें। मरमम्त के नाम पर प्रतिवर्ष इसका पैसा भी निकलता होगा। सड़क मरम्मत का काम सिर्फ कागजों तक ही सीमित होकर रह गया है। वास्तविकता से इसका कोई लेना-देना नहीं। प्रतिवर्ष इसी टूटी सड़क पर कांवड़ लेकर गंगा से जल भरकर लाना पड़ता है। जो किसी मुसीबत से कम नही है।
कुलदीप वर्मा का कहना सात किमी का यह मार्ग जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार है। कांवड़ लेकर जब कंपिल गंगाजी से जल लेकर से लौटते हैं। जैसे ही फर्रुखाबाद की सीमा खत्म होती है। रुदायन स्टेशन पार करते है। सामने टूटी संकरी सड़क देखकर ऐसा लगता है।
डॉ. सूर्यकांत मिश्रा ने बताया पहरा रुदायन मार्ग पर कांवड़ लेकर चलना श्रद्धालुओं के लिए किसी परीक्षा से कम नही है। इस पर पैदल कांवड़ लेकर चलना किसी मुसीबत से कम नहीं है। टूटी सड़क पर चलने से पैरों में छाले पड़ जाते हैं।
राजन ने बताया डांक कावड़ लेकर कंपिल गंगा से लौट रहे। परसौंन शिव मंदिर पर जल चढ़ाना था। कस्बा में चौराहे पर गड्ढे में पैर पड़ जाने के कारण गिर गये और जल फैल गया। वापस फिर 30 किलोमीटर कंपिल गंगाजी पर जाकर जल लाना पड़ा। पुनः फिर गिर जाने के कारण कावंड़ खंडित हो गई।
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