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सपा-कांग्रेस के बीच यूं ही नहीं बढ़ने लगीं तल्‍खियां, BJP की तैयारियां देख नए समीकरण टटोल रहा विपक्ष

  • अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति बदलते हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाया और 'दो लड़कों की जोड़ी' हिट हो गई। लेकिन हाल में यूपी की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव और मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस दोनों के लिए गठबंधन का अनुभव अच्‍छा नहीं रहा।

Ajay Singh लाइव हिन्दुस्तानTue, 10 Dec 2024 11:31 AM
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UP Politics: लोकसभा चुनाव-2024 में अपने गठबंधन से यूपी की सियासी बाजी पलट देने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तल्‍खियां बढने लगी हैं। महाराष्‍ट्र चुनाव के बाद शिवसेना की बयानबाजी के बहाने महाअघाड़ी गठबंधन से नाता छुड़ा चुकी समाजवादी पार्टी के कांग्रेस से रिश्‍ते अब यूपी में भी एक नए मोड़ पर पहुंच चुके हैं। समाजवादी पार्टी की ओर से वरिष्‍ठ नेता रामगोपाल यादव लगातार बयान दे रहे हैं। राहुल गांधी की बजाए ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का नेता बनाने की बातें जोर पकड़ रही हैं। वहीं कांग्रेस की ओर इमरान मसूद जैसे वरिष्‍ठ नेता भी जवाबी प्रतिक्रिया देने में चूक नहीं रहे। ऐसे में अब यूपी के राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे हैं कि क्‍या महाराष्‍ट्र की तरह यूपी में भी समाजवादी पार्टी अलग राह पकड़ सकती है? क्‍या 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले सपा और कांग्रेस अपने-अपने सियासी पासे फेंक अपने लिए पहले से बेहतर पिच तैयार करने की रणनीति पर काम कर रही हैं।

संभल हिंसा के बाद खुद को मुसलमानों का बड़ा हितैषी साबित करने की दोनों पार्टियों के बीच दिखी होड़ से भी ऐसी अटकलों को बल मिल रहा है। सबसे अहम सवाल जो उठाया जा रहा है वो ये कि अभी से मिशन-2027 की तैयारियों में दिन-रात एक कर चुकी भाजपा से मुकाबले के लिए क्या अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी लोकसभा चुनाव की तरह ही एक साथ मैदान में उतरेगी या फिर दोनों ने कुछ नए समीकरणों की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से अलर्ट मोड में आई भाजपा जहां 'कांठ की हांडी...' वाले मुहावरे से सपा-कांग्रेस की जोड़ी के धराशायी होने की भविष्‍यवाणी कर रही है वहीं विपक्ष 2027 के पहले कोई नया प्‍लान तैयार करने में जुटा है।

2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की साझेदारी हिट रही थी। उस चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से सपा ने 37 तो कांग्रेस ने छह सीटें जीतीं। जबकि बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई। उसकी सहयोगी आरएलडी को दो सीटें मिलीं। जबकि ठीक एक चुनाव पहले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी 37 सीटों पर लड़ने के बावजूद महज 5 सीटों पर सिमटकर रह गई थी और कांग्रेस 67 सीटों पर लड़कर सिर्फ एक रायबरेली की सीट बचा पाई थी। उस चुनाव में भाजपा ने 78 सीटों पर उम्‍मीदवार उतारे थे जिनमें से 62 जीते थे। 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था। राजनीति के कई जानकार कहते हैं कि 2019 में सपा का बसपा से गठबंधन, बसपा के लिए तो फायदेमंद रहा, जिसकी वजह से वो 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी लेकिन सपा के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हुआ।

गठबंधन का फायदा किसे

जानकारों का कहना है कि उस चुनाव में सपा के वोट बसपा को तो ट्रांसफर हुए लेकिन बसपा के वोट सपा के उम्‍मीदवारों को नहीं मिले। 2024 के लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति बदलते हुए एक बार फिर (2017 के विधानसभा चुनाव में भी सपा-कांग्रेस का गठबंधन था) कांग्रेस से हाथ मिलाया और इस बार 'दो लड़कों की जोड़ी' हिट हो गई। लेकिन हाल में यूपी की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव और मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस दोनों के लिए गठबंधन का अनुभव बहुत अच्‍छा नहीं रहा।

यूपी के बाहर सीट बंटवारे में तवज्‍जो नहीं

यूपी के बाहर के प्रदेशों में सपा को लगता रहा कि सीट बंटवारे में उसे तवज्जो नहीं मिल रही है। इसे लेकर दोनों पार्टियों के बीच तल्‍खियां पहले से थीं लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस द्वारा अडानी समेत अन्‍य उद्योगपतियों का लगातार विरोध भी सपा सहित कई क्षेत्रीय दलों को असहज कर रहा है। ऐसे में जब इंडिया गठबंधन की कमान ममता बनर्जी के हाथों में देने का दावा तृणमूल कांग्रेस ने ठोंका तो सपा ने उसका समर्थन करने में देर नहीं लगाई। सपा के बाद आरजेडी और इंडिया गठबंधन में शामिल अन्‍य कई दल भी ममता बनर्जी को नेता बनाने की मांग का समर्थन कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। इधर, सपा के वरिष्‍ठ नेता रामगोपाल यादव की तल्‍ख टिप्‍पणियों और उस पर कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता इमरान मसूद के जवाब ने माहौल को और गरमा दिया है। दरअसल, सपा को यह साफ लगने लगा है कि कांग्रेस, यूपी के बाहर सपा को कोई अहमियत देने के मूड में नहीं है। मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र इन राज्यों में कांग्रेस ने सपा को सीट बंटवारे में कोई तवज्जो नहीं दी। केवल महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में उसे दो सीटे मिलीं। सपा इससे नाराज है। वो महाविकास अघाड़ी से बाहर आ चुकी है।

लोकसभा में बदल गई सांसद अवधेश प्रसाद की सीट

उधर, यूपी विधानसभा उपचुनाव में सपा ने जब कांग्रेस को दो ही सीटें दीं तो कांग्रेस उपचुनाव से बाहर हो गई। इधर, लोकसभा में बदली नई सीट व्यवस्था भी दोनों पार्टियों में दूरियों की कई वजहों में एक मानी जा रही है। पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव फैजाबाद से अपने सांसद अवधेश प्रसाद को अपने साथ सामने बिठा कर सत्‍ता पक्ष को खास संदेश देते थे। अब अवधेश प्रसाद की सीट पीछे हो गई। सपा, इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ नहीं देने से भी खफा है। ये बात और है कि अभी तक खुलकर कुछ कहा नहीं है। अखिलेश यादव ने इतना जरूर कहा कि वह कांग्रेस से इस बात से नाराज नहीं हैं लेकिन गठबंधन को सिटिंग अरेंजमेंट देखना चाहिए था।

नए समीकरणों की तलाश

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सपा के रणनीतिकार यह मानते हैं कि यूपी में गठबंधन का जितना फायदा कांग्रेस को मिलता है उतना सपा को नहीं। उल्‍टे कांग्रेस दबाव बनाकर अच्‍छी खासी सीटें ले लेती है। इधर, मुस्लिम वोटरों के बीच कांग्रेस अपनी दावेदारी बढ़ाने की कोशिश में दिखती है। इससे भी सपा के रणनीतिकार सतर्क हुए हैं। सपा एमवाई (मुस्लिम-यादव) के साथ दलित वोटरों को जोड़कर एक मजबूत आधार खड़ा करने की कोशिश में है। इसके लिए उसे खुद को इनका सबसे बड़ा प्रतिनिधि बनाए रखने के लिए कांग्रेस से प्रतिस्‍पर्धा मंजूर नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच बढ़ती ये दूरियां सपा-कांग्रेस गठबंधन के मिशन यूपी-2027 पर क्‍या असर डालेंगी? इस पर दोनों के नेता लगातार सोच रहे हैं। इसके साथ ही वे उन संभावित समीकरणों पर भी मंथन कर रहे हैं जो उन्‍हें बीजेपी की अक्रामक रणनीति से मुकाबले के लिए कारगर प्‍लेटफार्म मुहैया करा सकें।

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