बोले देवरिया : स्कूल की लम्बी दूरी महिला शिक्षकों के लिए बन रही है चुनौती
Deoria News - कानपुर में एक दुर्घटना में दो महिला शिक्षकों सहित तीन लोगों की मृत्यु हो गई। शिक्षिकाएं विद्यालय जा रही थीं जब उनकी कार एक बस से टकरा गई। शिक्षिकाओं को घर से विद्यालय की दूरी तय करने में कठिनाई होती...
Deoria news : कानपुर में मंगलवार को एक हादसे में दो महिला शिक्षक समेत तीन लोगों की माैत हो गई। विद्यालय जा रहीं शिक्षकों की कार बस से टकरा गई। घर से विद्यालय की दूरी अधिक होने के कारण ये सभी शिक्षिकाएं एक साथ कार से विद्यालय आती-जाती थीं। देवरिया में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं,जिनकी जिला मुख्यालय से दूरी 30 से 40 किलोमीटर है। बनकटा ब्लाॅक स्थित प्राथमिक विद्यालय की दूरी करीब 55किमी है। यहां सैकड़ों महिला शिक्षक ऐसी हैं जो प्रतिदिन 30 से 40 किमी तक की दूरी तय करती हैं। रोजाना यह लम्बी दूरी तय करना इनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। देवरिया। देवरिया के भुजौली कॉलोनी में रहने वाली रागिनी सिंह बैतालपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत भगुआ के प्राथमिक विद्यालय मल्लाह टोला में शिक्षक हैं। ये प्रतिदिन करीब 10 किमी दूरी तय कर स्कूल आती-जाती हैं। शनिवार सुबह बारिश हुई थी। स्कूल पहुंचने में विलंब न हो इसलिए जल्दी में थीं। विद्यालय से कुछ ही दूरी पर फिसलने से इनका पैर फ्रैक्चर हो गया। दूर-दराज के क्षेत्रों में ड्यूटी करने वाली महिलाओं के साथ होने वाले हादसों का यह एक उदाहरण मात्र है। जिले में पहले भी दूर से आने-जाने के चलते महिला शिक्षकों के साथ ऐसे हादसे हो चुके हैं।
एसआरजी प्राथमिक विद्यालय बरौना की प्रधानाध्यापक शीला चतुर्वेदी कहती हैं कि विद्यालयों में महिलाओं की तैनाती करते समय इसका पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए की सड़क से विद्यालय की दूरी न्यूनतम हो। कंपोजिट विद्यालय परासिया, गौरी बाजार में सहायक अध्यापक पद पर तैनात प्रियंका राय कहतीं हैं सुबह का समय चुनाैतीपूर्ण रहता है। अपनी तैयारी के साथ ही परिवार की जिम्मेदारी, बच्चों के लिए लंच तैयार कर उन्हें विद्यालय भेजना इसके बाद स्कूटी चलाकर दस बारह किलोमीटर की दूरी तय कर विद्यालय पहुंचना होता है। विद्यालय से घर पहुंचते-पहुंचते तीन बज जाता है। फिर घर का काम का निपटाने में व शाम का भोजन तैयार करने में ही पूरा समय बीत जाता है। इसके अलावा जब तबीयत खराब हो जाती है तो उस समय और दिक्कत होती है। उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ की जिलाध्यक्ष हेमा त्रिपाठी कहती हैं कि घर में पति, बच्चों व सास-ससुर की देखभाल के बाद दस से पंद्रह किलोमीटर दूरी तय कर समय से विद्यालय पहुंचना महिला शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती है। यदि इनकी तैनाती के समय इसका ध्यान रखा जाए तो सहूलियत होगी।
शिक्षामित्र के पद पर कार्यरत शक्ति सिंह कहतीं हैं कि सबसे अधिक कठिनाई उन महिला शिक्षामित्रों की है जिनकी तैनाती उनके घर से 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर हुई है उनके लिए मामूली मानदेय में किराया खर्च कर विद्यालय पहुंचना बेहद कठिन होता है। कुछ इसी प्रकार की पीड़ा अनुदेशक के पद पर तैनात सुनीता कुशवाहा का भी है। उनका कहना है कि सरकार से कम मानदेय मिलता है लेकिन कुछ महिला अनुदेशकों की तैनाती उनके घर से दूर स्थित विद्यालयों पर है। जिससे उन्हें विद्यालय आने जाने में मुश्किल होती है।
शिकायतें
1. महिलाओं को घर से दूर स्थित स्कूलों में तैनात कर दिया गया है। उन्हें आने-जाने में परेशानी होती है।
2. चुनाव समेत अन्य कार्यो में ड्यूटी लगाए जाने से परेशानी होती है।
3. कभी-कभी सीसीएल लीव के लिए ऑनलाइन आवेदन करने पर भी जल्दी स्वीकृति नहीं मिलती है।
4. जिन महिलाओं के विद्यालय ग्रामीण इलाकों में हैं उनमें सुरक्षा को लेकर भय बना रहता है।
5. महिलाओं को त्योहारों पर भी केवल एक दिन की ही छुट्टी मिलती है, जिससे दिक्कत होती है।
सुझाव
1. महिलाओं को तैनात करते समय घर से उनके विद्यालय की दूरी का ख्याल रखा जाना चाहिए।
2. महिलाओं को विद्यालय में पहुंचने में 15 मिनट तक की देरी होने पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
3. विद्यालयों में महिलाओं की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए।
4. सीसीएल के लिए ऑनलाइन अवकाश की तत्काल स्वीकृति की व्यवस्था होनी चाहिए।
5. विशेष अवकाशों पर महिला शिक्षकों को अतिरिक्त अवकाश दिया जाना चाहिए।
परिवार सहित शहर में आईटीआई विद्यालय के पास रहती हूं। मेरा स्कूल घर से 27 किलोमीटर दूर है। बस-ऑटो से आना-जाना पड़ता है। कभी-कभी चालक जानबूझकर बस नहीं रोकते, जिससे दिक्कत होती है।
-नीलू मिश्रा
शहर के उमा नगर मोहल्ले में मेरा आवास है। स्कूल घर से 9 किलोमीटर दूर है। रास्ते में रेलवे क्रॉसिंग है।
उसके बंद होने के कारण कई बार समय से घर से निकलने के बावजूद स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है।
-तृप्ति मिश्रा
घर से 10 किमी दूर स्थित स्कूल में मेरी तैनाती है। एक छोटी बेटी है, उसे भी साथ ले जाना पड़ता है। गर्मी में उसे ले जाने में परेशानी होती है। रास्ते में रेलवे क्रॉसिंग है जो कभी-कभी आधे घंटे तक बंद रहता है।
-नम्रता रजक
घर से 10 किमी दूर स्थित स्कूल में मेरी तैनाती है। एक छोटी बेटी है, उसे भी साथ ले जाना पड़ता है। गर्मी में उसे ले जाने में परेशानी होती है। रास्ते में रेलवे क्रॉसिंग है जो कभी-कभी आधे घंटे तक बंद रहता है।
-नम्रता रजक
घर से 6 किलोमीटर दूर स्कूल में मेरी तैनाती है। मुझे स्कूटी चलाना नहीं आता। कई बार समय से सवारी न मिलने से स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है। बैतालपुर से एक किमी पैदल चलना पड़ता है।
-संध्या जोशी
सोनूघाट में परिवार के साथ रहती हूं। घर से 6 किमी दूर विद्यालय है। घर की जिम्मेदारियों के बीच समय से स्कूल पहुंचना चुनौती है। स्कूटी से जाती हूं। सड़क खराब होने से दिक्कत होती है।
-प्रियंवदा तिवारी
शहर के कृष्णा नगर में रहती हूं। घर से विद्यालय की दूरी 10 किमी है। घर से समय से निकलने के बावजूद कई बार सवारी नहीं मिलती। कई बार जाम में फंस जाती हूं। इसके कारण देर हो जाती है। -आभा श्रीवास्तव
मुंशफ कॉलोनी में रहती हूं। घर से स्कूल की दूरी 7 किमी है। तीन छोटे बच्चे हैं। पति भी शिक्षक हैं। घर की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद समय से स्कूल पहुंचना चुनौती है।
-शिखा जायसवाल
शहर के न्यू कॉलोनी में आवास है। स्कूल 12 किलोमीटर दूर है। सुबह घर से स्कूटी से निकलती हूं। फोर लेन सड़क पर कुछ युवा बेतरतीब गाड़ियां चलाते हैं, जिससे हादसे का भय बना रहता है। -स्तुति पांडेय
घर से स्कूल 15 किलोमीटर की दूरी पर है। घर में सास और दो छोटे बच्चे हैं। सुबह उनके लिए नाश्ता तैयार करके घर से निकलना पड़ता है। विद्यालय नजदीक रहता तो दिक्कत नहीं होती।
-रीमा सिंह
शहर की भुजौली कालोनी में रहती हूं। स्कूल से घर की दूरी 12 किमी है। परिवार की जिम्मेदारियों को भी देखना पड़ता है। स्कूल के रास्ते में रेलवे क्रासिंग है, जिसके कारण कभी-कभी देर हो जाती है।
-मंदाकिनी तिवारी
बैतालपुर नगर पंचायत में रहती हूं। स्कूल पहुंचने के लिए स्कूटी ही एकमात्र सहारा है। जिन महिलाओं की तैनाती दूर के स्कूलों में है उन्हें 10 से 15 मिनट की छूट दी जानी चाहिए।
-संदल मणि त्रिपाठी
पति सुबह ड्यूटी जाते हैं। बेटी भी स्कूल जाती है। रोज उनके लिए लंच बनाने के बाद ही स्कूल के लिए निकलना होता है। शहर में ट्रैफिक जाम होने से कभी-कभी स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है।
-नीलम सिंह
रामनाथ देवरिया शिवपुरम कालोनी में रहती हूं। स्कूल 10 किमी दूर है। ऑटो से 8 किमी जाना पड़ता है। उसके आगे दो किमी पगडंडी का रास्ता होने के कारण पैदल ही तय करना पड़ता है।
-मनोरमा उपाध्याय
बोले जिम्मेदार
विद्यालय आवंटन में दिव्यांग के बाद महिला शिक्षकों को वरीयता दी जाती है। प्रयास रहता है कि उनके दिए विकल्पों में से ही उन्हें विद्यालय मिले। कोशिश रहती है कि महिलाओं की तैनाती सड़क के समीप के स्कूलों में हो। शासन का निर्देश तैनाती स्थल से आठ किमी के दायरे में ही रहने का है। महिलाओं संग विभाग की पूरी सहानुभूति है लेकिन बच्चों के भविष्य से भी कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
शालिनी श्रीवास्तव, बीएसए, देवरिया
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।