बोले देवरिया : गहने गढ़ने वालों के हाथ से छिना रोजगार
Deoria News - देवरिया में आभूषण कारीगरों की जिंदगी कठिन हो गई है। ब्रांडेड कंपनियों के बढ़ते प्रभाव से उनके काम में कमी आ रही है। पहले जिन कारीगरों के पास अच्छी आय होती थी, अब वे दूसरे काम करने को मजबूर हो रहे हैं।...
Deoria News: बहू-बेटियों के लिए अपने हाथों से आभूषण बनाने वाले कारीगरों की जिंदगी से खुशी के गहने गायब होते जा रहे हैं। ब्रांडेड ज्वेलरी कंपनियों की धमक से इनका काम लगातार कम होता जा रहा है। अब तो हालत यह हो गई है कि दिन भर की मेहनत के बाद भी शाम को इनके हाथ में इतना पैसा नहीं होता, जिससे गृहस्थी की गाड़ी चल सके। शहर की आर्यसमाज गली में जेवरात कारीगरों ने ‘हिन्दुस्तान‘ से विशेष बातचीत में अपने हालात साझा किए। देवरिया। कुछ साल पहले तक लगन के सीजन मे आर्य समाज गली में जेवरात कारीगरों की दुकानें रात में भी दिन का आभास करा देती थीं। काम इतना होता था कि कारीगर सोचते थे कि कब लगन विराम लेगी और उन्हें आराम मिलेगा। इतनी मजदूरी मिल जाती थी कि जिंदगी खुशहाल थी। समय बीतने के साथ जेवर के काम में परंपरागत गहनों की जगह ब्रांडेड कंपनियों के आभूषणों ने सेंध लगानी शुरू कर दी। पहले बड़े शहरों में शोरूम खुले और धीरे-धीरे देवरिया जैसे शहर में भी इन कंपनियों ने अपने पांव जमा लिए। लोगों का रुझान ब्रांड की ओर बढ़ा तो कंपनियों के शोरूम में भीड़ जुटने लगी। इसका सीधा असर पुश्तैनी कारीगरों पर पड़ा और उनकी आजीविका प्रभावित होने लगी।
आर्यसमाज गली में वर्षों से आभूषण गढ़ने वाले सुभाष सोनी बताते हैं कि कंपनियां बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों से माल लेकर बेचती हैं। इससे स्थानीय कारोबारी प्रभावित हुए। इसकी वजह से स्थानीय जेवरात कारीगरों से भी काम छिनने लगा। अब स्थानीय व्यापारी भी बाहर से माल मंगाना शुरू कर दिए हैं। इसके चलते स्थानीय कारीगरों के पास से रहा सहा काम भी चला गया। आर्डर कम मिलने से कारीगरों की डिमांड कम हो गई।
कारीगरी का काम छूटा
कारीगरी का काम छोड़कर नमकीन और बिस्किट बेचने का काम शुरू कर चुके गिरिजाशंकर वर्मा बताते हैं कि आय खत्म होने पर मजबूरी में इस काम को शुरू किया। उनका कहना है कि पहले 20 ग्राम तक सोने का काम उनको मिल जाता था, जिससे अच्छी खासी आय हो जाती थी मगर अब हालात बदल गए हैं। बाजार में काम ही नहीं है। जो लोग अभी टिके हैं, वह जूझ रहे हैं। सुभाष सोनी कहते हैं कि सोने की महंगाई ने भी आभूषण कारीगरों के पेट पर करारा प्रहार किया है। महंगाई के इस जमाने में हल्के और डिजाइनदार आभूषण सभी की पसंद हैं। परम्परागत कारीगरों के आभूषण भारी होने के चलते महंगे पड़ते हैं ऐसे में लोग ब्रांडेड की तरफ भागते हैं। जिसका खामियाजा कारीगर भुगत रहे हैं।
व्यापार के बदले पैटर्न ने भी बढ़ाई मुश्किलें
जेवरात कारोबारी संदीप बताते हैं कि पहले बाजार में व्यापारी सोना लेकर गलाते और आभूषण बनाकर व्यापारी को दे देते थे। इसमें कारीगर की मजदूरी व्यापारी तुरंत दे देता था। कारीगर को पूंजी की चिंता नहीं होती थी। अब तरीका बदल गया है। व्यापारी अब माल नहीं देते हैं। अपनी पूंजी से सोना गलाकर कारीगर माल तैयार करते हैं। व्यापारी दो-तीन महीने बाद इसका भुगतान करता है। इससे हमारी पूंजी फंसी रहती है और हमें अधिक पूंजी की जरूरत पड़ती है। इसमें कारीगर टूट जाता है। वहीं व्यापारी जब बाहरी माल खरीदता तो उसका तुरंत भुगतान करता है।
सोना गलाकर बेचने ले जाओ तो पकड़ लेते हैं अधिकारी
सोनार समाज के पूर्व अध्यक्ष राजू वर्मा ने बताया कि जेवरात कारीगर अगर सोना गलाकर व्यापारी को बेचने ले गया तो अधिकारी कागज मांगने लगते हैं। कागज नहीं दिखाने पर तस्कर मान लेते हैं। इसके बाद उत्पीड़न का दौर शुरू हो जाता है। कारीगर की सफाई मानी नहीं जाती है। कई बार बेगुनाह कारीगरों को अधिकारी पकड़ कर मुकदमा दर्ज करा देते हैं। स्वर्णकार समाज के प्रदेश पदाधिकारी अजय कुमार वर्मा का आरोप है कि बाट माप विभाग कारीगरों को परेशान करता है। कारीगर माल तैयार करता है, उसे बेचता नहीं है। पर अधिकारी उससे बाट माप विभाग से कांटे का सत्यापन न कराने पर उत्पीड़न करते हैं। इससे कारीगर परेशान होता है। उसका चालान काटकर अधिकारी प्रताड़ित करते हैं।
चोरी के गहने बता भेज देते हैं जेल
कारीगर ऋतिक वर्मा ने बताया कि कारीगर के पास कई लोग अपने जेवरात बंधक रखते हैं। कुछ दिन बाद पुलिस के लोग उसी व्यक्ति के साथ आते हैं और चोरी का माल खरीदने का आरोप लगाते हैं। पुलिस कहती है कि यह व्यक्ति चोर है, तुम्हारे पास जेवर बेच गया है। तुमने चोरी का सामान खरीदा है। पुलिस कारीगर को थाने ले जाती है। हमसे सामान भी लेती है और ऊपर से पैसा भी लेती है। चोर का कुछ नहीं होता है। ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। इस तरह की घटनाओं से कारीगरों का उत्पीड़न होता है।
शिकायतें
1. कारीगरों के पास पूंजी का अभाव है। जो थोड़ी बहुत पूंजी रहती भी है वह कारोबरी के पास फंस जाती है। बैंक कारीगरों को लोन नहीं देते हैं।
2. सुरक्षा की समस्या है। चोरी की घटनायें नहीं रुक रहीं। अक्सर कारीगों का उत्पीड़न होता है।
3. बाहरी माल की आवक से कारीगरों का काम घट रहा है। ब्रांडेड स्टोर्स ने परेशानी बढ़ा दी है।
4. विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना समेत किसी योजना का लाभ नहीं मिलता है। कारीगर और उनका परिवार आयुष्मान कार्ड की सुविधा से वंचित हैं।
5. बीते एक साल में सोने के दाम में भारी वृद्धि होने से मुश्किल हो रही। जांच के नाम पर अधिकारी अलग से उत्पीड़न करते हैं।
सुझाव
1. व्यापारी, कारीगरों का समय से भुगतान करें। स्थानीय व्यापार को सरकार प्राथमिकता दें।
2. बंगाली कारीगरों का सत्यापन कराएं। दूसरे जिलों में बेरोकटोक माल की बिक्री की अनुमति मिले।
3. सरकार कारीगरों के लिए आईकार्ड जारी करे, इससे उत्पीड़न से हम बचेंगे। अभियान चलाकर कारीगरों का पंजीकरण कराया जाए।
4. कारीगरों को आसानी से ऋण मिले। मुद्रा लोन उपलब्ध कराये। कारीगरों तक श्रम विभाग की योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए।
5-कारीगरों के लिए सरकार पेंशन योजना लाये। बीमारी में पैसे के अभाव में इलाज नहीं हो पाता है। कारीगरों को आयुष्मान कार्ड जारी किया जाए।
हमारी भी सुनिए
आभूषण कारीगर काम छोड़ रहे हैं। बैंक से लोन नहीं मिलता है। किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है।
राजू वर्मा, पूर्व अध्यक्ष सोनार समाज
काम घट गया है। 20 साल पहले सीजन में दो तीन हजार रुपये आमदनी हो जाती थी। अब मुश्किल से पांच सौ रुपये मिल पाते हैं।
सुभाष सोनी
पहले काम होने पर तुरंत मजदूरी मिल जाती थी। अब अपनी पूंजी लगाकर काम करते हैं। व्यापारी दो महीने बाद पेमेंट देते हैं।
ऋतिक वर्मा
20 वर्ष से कारीगरी कर रहा हूं। नई मशीनों ने काम छीन लिया है। पहले मजदूरी 5%मिलती थी, अब तीन प्रतिशत मिल रही है।
दिलीप वर्मा
व्यापारियों ने खुद बंगाली कारीगर रख लिए हैं। वह भोजन पर काम करने को तैयार हैं। इससे स्थानीय कारीगर बेरोजगार हैं।
चंदन वर्मा
80%काम बड़ी कंपनियों के पास है। लोकल हिस्सेदारी 20 प्रतिशत रह गई है। इससे हमारी बेरोजगारी बढ़ रही है।
आशुतोष वर्मा
काम कम होता जा रहा है। योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। श्रम विभाग ने पंजीकरण कर खानापूर्ति कर ली है।
अजय वर्मा
हम लोग जीवन भर महीन काम करते हैं। इससे आंख जल्दी खराब हो जाती है। जेवरात कारीगरों को सरकार पेंशन दे।
राजेश वर्मा
अब व्यापारी सोना नहीं देते। खुद खरीदकर गहने तैयार करने पड़ते हैं। पहले व्यापारी का सोना होता था, हमें मजदूरी मिल जाती थी।
मंजेश वर्मा
20 वर्ष कारीगरी का काम किया अब इसमें पूंजी के बिना काम नहीं होता है। मैंने कारीगरी छोड़ बिस्किट बेचना शुरू कर दिया।
गिरिजा शंकर वर्मा
विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना का लाभ अधिकांश कारीगरों को नहीं मिला है। हमें कोई सरकारी लोन नहीं मिला।
सुनील वर्मा
कम आयु में काम सीखने के चलते हमारे समाज के बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं। हम लोगों को काम मिल नहीं रहा, इससे हालात खराब हो रहे हैं।
संदीप वर्मा
बोले जिम्मेदार
विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत जेवरात कारीगरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत 5 लाख रुपए तक का बिना गारंटी के ब्याज मुक्त ऋण सरकार जेवरात कारीगरों को उपलब्ध कराती है।
सतीश गौतम, उपयुक्त उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र
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