बोले देवरिया : कोल्ड स्टोरेज बनें, मंडी में भी तय हो सब्जी किसानों के लिए जगह
Deoria News - Deoria news : जिले में चीनी मिलों के बंद होने बाद गन्ना से किसानों का मोहभंग हुआ तो नगदी फसल के रूप में इन लोगों ने सब्जी की खेती को अपनाया। खेती की ल
देवरिया। लोगों की थाली तक हरी सब्जी पहुंचाने वाले किसान कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। कभी समय से उन्हें उर्वरक, बीज नहीं मिलता तो कभी बाजार में उनकी सब्जियों के भाव कम मिलते हैं। कई बार तो यह भाव उनकी लागत से भी कम होता है। कई किसान हुंडा पर खेत लेकर सब्जी की खेती कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से चलाई जा रहीं योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। मंडी में व्यापारियों का कब्जा होने के कारण किसानों को वहां अपनी दुकानें लगाने में परेशानी होती है। ऐसे में किसानों को औने-पौने दाम पर ही अपनी सब्जियों को व्यापारियों के हाथों बेचना पड़ता है। जिले के सब्जी किसानों की मांग है कि उनके लिए ग्रामीण क्षेत्र में अलग मंडी बने। यही नहीं अन्य फसलों की तरह सब्जी का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए।
जिले में लगभग 85 हजार किसान सब्जी की खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। जिले में हर महीने करीब पांच करोड़ रुपये का सब्जी का कारोबार होता है। सब्जियों की फसल का कुल रकबा करीब 1500 हेक्टेयर है। सब्जी की खेती करने वाले कुछ किसानों के पास ही अपना खेत है अधिकतर किसान हुंडा पर खेत लेकर खेती करते हैं। भटनी विकास खंड के तेनुआ के रहने वाले किसान राजेश कुशवाहा ने बताया कि वह अपने खेत के साथ ही दूसरों का खेत हुंडा पर लेकर सब्जी की खेती करते हैं। वह आलू, लहसुन, प्याज, टमाटर समेत अन्य मौसमी सब्जियां उगाते हैं, लेकिन संसाधन के अभाव में उन्हें काफी परेशानी होती है। नलकूप तो है, लेकिन नालियां टूटी होने से उनके खेतों तक पानी नहीं पहुंचता। बोरिंग कराने के लिए 3 सौ फीट से अधिक पाइप डालना पड़ता है। इसका खर्च बहुत अधिक आता है। ऐसे में किसान गंडक नदी से बाल्टी में पानी लाकर सब्जी की फसल की सिंचाई करते हैं।
भटनी विकास खंड के छपिया की रहने वाली सुगंधी देवी का कहना है कि उनका पूरा परिवार सब्जी की खेती करता है। पहले सब्जी की खेती करने पर अच्छी कमाई हो जाती थी, भटनी बाजार के साथ ही पड़री बाजार में भी सब्जी की बिक्री होती थी, लेकिन उपेक्षा के चलते पड़री बाजार की स्थिति काफी खराब हो गई। अब यहां सब्जी खरीदने बाहर से लोग नहीं आते हैं। ऐसे में वहां सब्जी की दुकान लगाने पर लागत भी नहीं निकलती। भटनी बाजार में व्यापारियों का पहले से ही कब्जा हो गया है, ऐसे में किसानों को दुकानें लगाने में दिक्कत होती है। परेशानियों से बचने के लिए किसान सब्जी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेच देते हैं। ऐसे में मुनाफा किसानों की बजाय व्यापारी खाते हैं।
हुंडा पर खेती करने वालों को नहीं मिलता खाद-बीज
सलेमपुर, भटनी, भागलपुर, भाटपाररानी समेत विभिन्न विकास खंड में बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जो दूसरों का खेत हुंडा पर लेकर सब्जी की खेती करते हैं। इसके बदले खेत के मालिक को तय रुपये मिलते हैं। किसान दुर्गेश कुशवाहा का कहना है कि उनके पास खेत नहीं है। इसलिए वह हुंडा पर दूसरों का खेत लेकर सब्जी की खेती करते हैं। जब वह उर्वरक लेने के लिए सरकारी गोदाम पर जाते हैं तो उनसे किसान बही मांगी जाती है, अब वह किसान बही कहां से दें? यही स्थिति बीज लेने के समय भी होता है। फसलों का बीमा भी नहीं हो पाता है।
जोताई-सिंचाई हुई महंगी नहीं मिल रहा बेहतर भाव
किसान मनोज कुमार कुशवाहा का कहना है कि खेत की जोताई पहले से काफी महंगा हो गई है। अधिकतर गांव में ट्यूबवेल खराब पड़े हैं। जो सही हैं, उनकी नालियां टूटी हंै। इसके चलते उनके खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। मजबूरन वह पंपसेट लगाकर अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं। डीजल महंगा होने से पंपसेट से सिंचाई काफी भारी पड़ती है। इसी तरह मजदूरों से निराई व गुड़ाई कराने पर भी पहले की अपेक्षा अधिक मजदूरी देनी पड़ती है। सब्जियों का भाव इसके अनुरूप नहीं मिल रहा है। इसके कारण सब्जी की खेती अब नुकसान का सौदा साबित होती जा रही है।
उपेक्षा से बदहाल हो गया सलेमपुर का पड़री बाजार
देवरिया। सलेमपुर विकास खंड का पड़री बाजार जिले में गल्ला व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध था। प्रशासनिक उपेक्षा व व्यापारियों के असहयोग के चलते इसने अब इसने अपना अस्तित्व खो दिया है। अंग्रेजी हुकूमत में इस बाजार में अन्न व सब्जी की खरीदारी करने के लिए बाहर से व्यापारी आते थे और किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिलती थी, लेकिन 1995 के बाद इस मंडी की स्थिति खराब हो गई। अब बाहर से व्यापारी यहां नहीं आते हैं इससे स्थानीय किसानों को उनकी पैदावर का भाव नहीं मिलता। जिले के साथ ही पड़ोसी प्रांत बिहार के भी किसानों को पड़री बाजार में लगने वाले बाजार के दिन का इंतजार रहता था। यहां गल्ला के साथ ही सब्जी की भी मंडी लगती थी और दूर-दूर से किसान अपनी सब्जियां लेकर यहां पहुंचते थे। सब्जी किसान प्रेम नाथ कुशवाहा का कहना है कि पहले सब्जी किसानों में पड़री बाजार में लगने वाले बाजार को लेकर उत्साह रहता था। अब बाजार में बाहर से लोगों के न आने के चलते सलेमपुर, भटनी समेत अन्य बाजारों में सब्जी लेकर जाना पड़ता है। उन बाजारों में भी किसानों को बैठ कर सब्जी बेचने के लिए स्थान नहीं मिलता है। किसान जैसे-तैसे अपनी सब्जियां बेचते हैं। उन्हें अपने उत्पाद की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। सब्जी किसान औने-पौने दाम पर ही व्यापारियों को अपनी सब्जी बेच देते हैं।
शिकायतें
1. जिले में कोल्ड स्टोरेज नहीं है। घर में रखने पर सब्जियां जल्दी खराब हो जाती हैं।
2. आलू किसानों को लागत के हिसाब से कीमत नहीं मिलती। औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा।
3. हुंडा पर खेती करने वाले किसानों को सरकारी उर्वरक व बीज मिलने में दिक्कत होती है।
4. बाजार में सब्जी किसानों के बैठने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। वहां बड़े व्यापारियों का कब्जा हो गया है।
5. सब्जी किसानों के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। सरकार से कोई मदद इन किसानों को नहीं मिलती है।
सुझाव
1. जिले में कोल्ड स्टोर बनाया जाए। इससे आलू के साथ ही अन्य सब्जियां अधिक समय के लिए सुरक्षित रखी जा सकेंगी।
2. हुंडा पर खेती करने वाले किसानों को भी सरकारी उर्वरक और बीज मिले। इससे उनका भी मनोबल बढ़ेगा।
3. बाजार में सब्जी किसानों के लिए अलग स्थान चिह्नित हो।
4. सब्जी किसानों के लिए सरकार अलग से योजनाएं शुरू करे, जिससे किसानों का मदद मिले।
5. सरकार को अन्य फसलों की तरह हरी सब्जियों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए।
किसानों का दर्द
दो वर्ष से एक बीघा खेत में सब्जी उगा रहा हूं। इस बार सब्जियों का रेट कम होने से लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो गया है।
-अमित कुमार
सब्जी की खेती में पहले लाभ ज्यादा था। महंगाई बढ़ने से अब दो जून की रोटी का ही इंतजाम हो पा रहा है। सही दाम नहीं मिल रहा।
-दिलीप कुमार
आलू, प्याज और गोभी की खेती करता हूं। भटनी में बाजार तो है, लेकिन बाजार में कोई विशेष व्यवस्था नहीं दी गई है।
-अर्जुन कुशवाहा
सब्जी किसानों की समस्याओं पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही जनप्रतिनिधि। इन्हें भी योजनाओं का लाभ मिले।
-प्रेम शंकर
कोल्ड स्टोरेज न होने से आलू औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है। गोभी, टमाटर को भटनी या फिर खुखुंदू बाजार ले जाना पड़ता है।
-सुरेश सिंह
परिवार के सभी सदस्य सुबह से शाम तक खेत में काम करते हैं, लेकिन बाजार में सब्जी का दाम ठीक नहीं
मिलता है।
-ऊषा देवी
लागत के अनुरूप दाम नहीं मिल रहा। सब्जियां बेचने के लिए बाजार में जगह नहीं मिलती। चौक-चौराहों पर बेचना पड़ता है।
-प्रिंस कुशवाहा
सब्जी की खेती में आमदनी पहले की अपेक्षा काफी कम हो गई है। बीज, सिंचाई व उर्वरक काफी महंगे हो गए हैं।
-अंकित कुशवाहा
जो हुंडा पर खेत लेकर सब्जी की खेती कर रहे हैं, उन्हें प्राइवेट दुकानों से उर्वरक और बीज खरीदना पड़ता है।
-नागेंद्र सिंह
नीलगायों के झुंड फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। फसलों की सुरक्षा के लिए रात में खेतों में ही सोना पड़ता है।
-विनय कुशवाहा
बहुत उत्साह के साथ आलू की खेती की थी, लेकिन कोल्ड स्टोरेज न होने के चलते उन्हें औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा।
-राजेश कुशवाहा
हमारे खेतों में सब्जियों की उपज तो अच्छी होती है, लेकिन बाजार बेहतर न मिलने से पैदावार का दाम अच्छा नहीं मिल पाता।
-सुगंधी देवी
बोले जिम्मेदार
उद्यान विभाग द्वारा सब्जी की खेती करने वाले किसानों को टमाटर, लौकी, करेला, गोभी आदि की खेती पर मिशन योजना के तहत 24000 रुपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान दिया जाता है। इसके लिए ऑनलाइन पंजीकरण होता है।
-राम सिंह, जिला उद्यान अधिकारी, देवरिया
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।