बोले देवरिया : पुरोहितों को मिले मानदेय, पेंशन की भी व्यवस्था करे सरकार
Deoria News - Deoria News : मानव के जन्म से लेकर उसके जीवन की अंतिम यात्रा तक पौरोहित्य कर्म का शास्त्रवत प्रावधान निर्धारित है। मनुष्य के 16 संस्कारों के अलावा जन्
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सनातन धर्म में 16 संस्कारों के अलावा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की परिकल्पना की गई है। इसके अलावा चार आश्रम भी बनाए गए हैं। इसके तहत पूर्व से चली आ रही परंपराओं में संस्कारों और कर्मकांड का विशेष महत्व है। इनका संपादन करने के लिए पुरोहित की आवश्यकता होती है। शादी-विवाह, अनुष्ठान व पूजा-पाठ कर दान दक्षिणा के सहारे अपना जीवन यापन करने वाले पुरोहितों की जीवन में मुश्किलें भी कम नहीं है। बढ़ती महंगाई के इस दौर में दान-दक्षिणा का उचित निर्धारण नहीं होने से पौरिहित्य कर्म कराने वाले पंडित अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। फिर भी परिवार के जीवन-यापन, बच्चों की पढ़ाई और दवाई के लिए पांडित्य पेशा करना उनकी विवशता है।
शहर के देवरिया खास स्थित काली मंदिर के पुजारी यशवंत मिश्रा कहते हैं कि यजमान अपनी समस्याओं के समाधान और कर्मकांड के लिए पुरोहित को याद तो जरूर करते हैं लेकिन उनके मन में हम लोगों के प्रति भाव बहुत अच्छा नहीं रहता। कुछ यजमान पूजा-पाठ करा लेने के बाद दान-दक्षिणा देने के लिए मोल-भाव करने लगते हैं। बहुत से यजमान ऐसे मिलते हैं जो अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कुंडली दिखाने के बाद मामूली धनराशि देकर प्रणाम कर लेते हैं। आचार्य संजय पांडेय का कहना है कि पौरोहित्य कार्य का कोई भविष्य नहीं है। शिक्षित होकर भी रोजगार नहीं मिलने पर उन लोगों को पांडित्य कर्म का सहारा लेना पड़ रहा है। उनका कहना है कि पुरोहित कर्म करने वाले पंडितों को सरकार की ओर से एक निश्चित मानदेय मिलना चाहिए जिससे हमारी आजीविका में मदद मिल सके।
उन्होंने कहा कि देश के कई राज्यों के मठ-मंदिरों में रखे गए पुजारी को मानदेय दिया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे मंदिर में लोगों द्वारा दिए जाने वाले दान-दक्षिणा के सहारे ही पुजारियों की रोजी-रोटी चल रही है। आचार्य रवि पाठक व आचार्य शेषनाथ पांडेय कहते हैं कि बुढ़ापे में पूजा पाठ नहीं कर पाने की स्थिति में जीवन एक बोझ सा हो जाता है। सरकार को हम पुरोहितों के लिए भी पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए।
सही नहीं आ रही विश्व पंचांग की प्रूफ रीडिंग, हो सुधार
ज्योतिषीय गणना के आधार पर ही पंचांग का निर्माण होता है। ज्योतिषियों द्वारा की गई गणना के आधार पर ही पंचांग में सभी पर्व, त्योहार और तिथियों का निर्धारण होता है। इस बारे में आचार्यों का कहना है यूं तो काशी से ही सबसे अधिक पंचांगों का प्रकाशन होता है, जिसमें विश्व पंचांग सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि इसकी ज्योतिषीय गणना सबसे सही और सटीक होती थी। एक समय था जब इस पंचांग में निर्धारित तिथियों के आधार पर ही सभी शुभ कार्य के निर्णय लिए जाते थे। लेकिन समय के साथ सबकुछ बदलता जा रहा है। सबसे सटीक कहे जाने वाल इस विश्व पंचांग की भी प्रूफ रीडिंग अब सही नहीं आ रही है। आचार्यों का मानना है कि इसका कारण बदली परिस्थितियों के आधार पर इस पंचांग के प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद पर आरक्षण व्यवस्था के तहत अन्य वर्ग को लोगों को इसकी जिम्मेदारी दिया जाना है। इसमें बदलाव किया जाना चाहिए जिससे पुन: इस पंचांग की विश्वसनीयता कायम हो सके। पंचाग के निर्माण में बहुत ही जिम्मेदारी और सम्पूर्ण गणितीय गणना ही मूल आधार है। इसलिए सरकार इस पर विचार करते हुए पुन: पहले के तरह की व्यवस्था लागू करे।
पूजन सामग्रियों में मिलावट बड़ी समस्या
पंडित हरिओम तिवारी कहते हैं कि पूजा-पाठ के सामानों में वर्तमान दौर में मिलावट एक सबसे बड़ी समस्या हो गई है। शुद्ध पूजन सामग्री नहीं मिल पा रही है। लेकिन मजबूरी में पूजा में इन सामग्रियों का प्रयोग करना पड़ रहा है। हवन में प्रयोग होने वाले तिल में भी मिलावट हो रही है। बाजार में तिल के तेल के नाम पर बिक रहा तेल तिल के दाम से भी सस्ता बिक रहा है। तेल की शुद्धता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। यजमान महंगे दामों पर पूजा-पाठ के सामान तो खरीद रहे हैं लेकिन उसकी गुणवत्ता के बारे में पता नहीं है। कम से कम पूजन सामग्री के सामानों के शुद्धता की गारंटी होनी चाहिए।
शिकायतें
1. पूजा-पाठ कराने के बाद दक्षिणा देने में यजमान अपनी उदारता नहीं दिखाते हैं।
2. पुरोहित कार्य का कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में युवा इस कार्य से मुंह मोड़ने लगे हैं।
3. मंदिर में रहने वाले पुजारी के लिए कोई मानदेय नहीं है। इस वजह से कई बार वे आर्थिक संकट से जूझते हैं।
4. मनरेगा मजदूर की भी मजदूरी तय है लेकिन हम लोगों की पारिश्रमिक तय नहीं है।
5. संस्कृत की शिक्षा लेने के बाद रोजगार की कोई गारंटी नहीं है।
सुझाव
1. पुरोहितों को भी आयुष्मान कार्ड समेत अन्य योजनाओं का लाभ दिया जाए।
2. मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य उच्च शिक्षा में हम लोगों के बच्चों के प्रवेश को कोटा मिले।
3. मंदिरों में तैनात पंडितों को एक निश्चित मानदेय मिले, जिससे वे आर्थिक संकट से उबर सकें।
4. संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ सरकार इसके अध्ययन के लिए प्रोत्साहित भी करे।
5. संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को नि:शुल्क पुस्तकें मिलें। साथ ही नौकरी का भी इंतजाम हो।
पुरोहितों का दर्द
पौरोहित्य कार्य में यजमान द्वारा दक्षिणा का निर्धारण नहीं होने के कारण समस्या आ रही है। महंगाई को देखते हुए इसका निर्धारण होना आवश्यक है। इस बारे में विचार होना चाहिए।
पंडित प्रदीप मिश्रा, मस्जिदियां
पूजा-पाठ की तिथि निर्धारित होने के बाद भी जब पंडित यजमान के यहां पहुंच जाते हैं। तब यजमान पूजा की तैयारी में जुटते हैं। इससे हम पुरोहितों के समय का नुकसान होता है।
पंडित संजय तिवारी
समाज में रह रहे लोगों की भलाई के लिए कार्य करने के बाद भी हम पंडितों को यश नहीं मिलता है। समाज में हमको सम्मान के रूप में देखा जाना चाहिए है। इसे बारे में भी कुछ विचार किया जाना चाहिए।
आचार्य हरिओम तिवारी
शादी समारोह में कभी-कभी तो हम लोगों को फल व मीठा खाकर ही कार्यक्रम संपन्न करना पड़ता है। हम लोगों के लिए अलग भोजन का इंतजाम करना अधिकतर लोग भूल जाते हैं।
अमित कुमार तिवारी
किसी भी पूजा- पाठ को संपादित करने से पहले यजमान को पूजन सामग्री की लिस्ट दी जाती है। बावजूद इसके अधिकांश सामानों में कटौती कर दी जाती है, जिससे पूजन कार्य विधिवत नहीं होता है।
पंडित दीन बंधु पांडेय
कुछ ऐसे महीने होते हैं जिनमें अनुष्ठान व पूजा-पाठ का कार्य नहीं होता है। इससे हम लोगों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। ऐसे में सरकार पुरोहितों का पंजीकरण कर कुछ मानदेय निश्चित करे।
राजीव रंजन चौबे
किसी-किसी यजमान के यहां तो हम लोगों को पूजा- पाठ करने के साथ ही हज्जाम की भी भूमिका निभानी पड़ती है। यजमान कहते हैं कि पंडित जी आप ही इसे भी कर दीजिए।
सत्येंद्र मिश्र
बदलते परिवेश में संस्कारों का लोप होता जा रहा है। समाज में इतना बदलाव हो गया है कि पुरोहित कार्य करने वाले पंडितों को कुछ लोग सम्मान की भी दृष्टि से नहीं देखते हैं।
लक्ष्मी नारायण उपाध्याय शास्त्री
शादी या अन्य कार्यक्रमों में टेंट हाउस, भोजन बनाने वाले, काम करने वाले सबकी मजदूरी तो तय कर दी जाती है, लेकिन ब्राह्मण की दक्षिणा यजमान के ही ऊपर निर्भर रहती है। कई बार कम दक्षिणा मिलने पर मन में कष्ट होता है।
चंद्रशेखर चौबे
यजमान पूजा-पाठ के कार्य में अपने लिए तो अच्छे वस्त्र खरीदते हैं लेकिन हम लोगों को अधिकांशत: ऐसा वस्त्र देते हैं जो पहनने योग्य न हो। दुकानों पर भी दक्षिणा में देने के लिए सस्ते कपड़े बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं।
पंडित पुरुषोत्तम तिवारी
शादी में नाच-गाना व जयमाल में सर्वाधिक समय बीतने के चलते वैवाहिक संस्कार के लिए बहुत ही कम समय मिलता है, जबकि सर्वाधिक समय संस्कारों को सम्पन्न कराने में ही दिया जाना चाहिए।
भूषण तिवारी
नव दंपतियों के लिए सिर्फ चार फेरे लेने का ही शास्त्रीय विधान है। लेकिन विवाह के दौरान हम लोगों की बातों को महत्व न देते हुए महिलाएं जबरदस्ती सात फेरे लगवाने को मजबूर करती हैं।
आचार्य यशवंत मिश्र
बोले जिम्मेदार
सरयू पारिण ब्राह्मण परिषद पौरोहित्य कर्म करने वाले पंडितों व ब्राह्मण समाज से जुड़े लोगों की समस्याओं के समाधान को लेकर सदैव प्रयासरत है। आर्थिक रूप से जो भी ब्राह्मण परिवार कमजोर होते हैं, उनके बेटे-बेटियों के विवाह में परिषद मदद करती है। संस्कार कराने के बाद ब्राह्मण की दक्षिणा तक देने में यजमान हीलाहवाली करते हैं। संस्कृत की उच्च शिक्षा लेने के बाद भी नौकरी नहीं मिलने के चलते ब्राह्मण पुरोहित कर्मकांड करने के लिए विवश हैं।
कौशल किशोर मिश्र, मंत्री ,सरयू पारिण ब्राह्मण परिषद
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