188 साल से रामलीला की थाती संजोए है बरहजवासी
बरहज में रामलीला की परंपरा 188 साल पुरानी है। यह धार्मिक आयोजन 1836 में शुरू हुआ था और हर साल दशहरा के अवसर पर होता है। इसमें हिंदू और मुस्लिम समाज की भागीदारी होती है। समय के साथ बदलाव के बावजूद,...
बरहज(देवरिया), विवेकानंद मिश्र। बरहज में रामलीला की परम्परा सदियों पुरानी है। बरहजवासी 188 साल से धार्मिक परम्परा की थाती सहेजे हुए है। इसने मुगलों व अंग्रेजों का शासनकाल देखा है। फिर आजादी दी देखी। धीरे-धीरे इस रामलीला ने 188 साल पूरे कर लिए हैं। परंपरागत रामलीला इसकी पहचान रही है। हालांकि बीच-बीच में इसे संक्रमण काल से गुजरना पड़ा। बावजूद इसके रामलीला अपना वजूद बचाए हुए हैं। बरहज में रामलीला की शुरुआत सन 1836 में हुई। उस समय बरहज प्रदेश के प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। ब्रस, चीनी व लोहे का व्यापार विदेशों तक होता था। प्राचीन हनुमानगढ़ी के हनुमान की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ। उस समय के उद्यमी हर्षचंद्र केडिया, लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल, ठाकुर मिश्र, ठाकुर प्रसाद बरनवाल, रामधनी जायसवाल, छेदी केडिया समिति के सदस्य बनाए गए।
यह रामलीला 12 दिन की होती थी। पहले दिन पटेल नगर स्थित कुंवर सिंह के कोट की देई स्थान पर मुकुट पूजा होती थी, जिसमें राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न की पूजा की जाती थी। रेलवे स्टेशन रोड मोड़ पर भरत मिलाप होता था। 1954 में भरत मिलाप को लेकर आयोजन समिति के सदस्यों के बीच विवाद हो गया है। लिहाजा समिति दो हिस्से में बंट गई और पुलिस चौकी के निकट दूसरे गुट के सदस्यों ने रामलीला का आयोजन किया। वर्ष 1955 में नगर की रामलीला नाट्य समिति उत्तरी ने पुलिस चौकी के निकट रामलीला का मंचन हुआ।
नगरपालिका के चेयरमैन रहे कन्हैया लाल जायसवाल, डा. मजूमदार, महेश बरनवाल, कपिलदेव जायसवाल द्वारा शुरू की गई। रामलीला नाट्य समिति उत्तरी की रामलीला नवरात्र के प्रथम दिन से शुरू होता है। रावण वध विजयदशमी के दिन होता है। यह रामलीला नगर के हृदयस्थल पर होता है। इसलिए लिए लोग सुगमता से पहुंच जाते हैं। झाकियां विशेष आकर्षण का केंद्र होती हैं। आज टीवी और सिनेमा के युग में रामलीला का आयोजन और उसमें दर्शकों को खींचना काफी मुश्किल हो गया है। हालांकि फिर भी लोगों को इस रामलीला का पूरे वर्ष इंतजार रहता है। क्योंकि रामलीला ने अपनी मर्यादा बनाए रखी है। विशेष बात यह है कि इसमें हिन्दू व मुस्लिम समाज की बराबर की हिस्सेदारी रहती है।
कमेटी के अध्यक्ष सुदामा वर्मा, रामलीला नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाती है। उस समय संसाधन कम थे। छोटे मंच पर पेट्रोमैक्स के उजाले में मंचन होता थे।लोग मर्यादा पुरुषोत्तम की लीलाओं से सीख लेते हैं। इसके आयोजन में नगर वासियों के सहयोग होता है। मंत्री संतोष वर्मा ने कहा, हम लोगों की कोशिश रहती है कि इसकी परंपरागत पहचान व धार्मिक मूल्य बने रहें। इसलिए समय के साथ ज्यादे बदलाव नहीं किए गए हैं।रामलीला का मंचन देखने के लिए नगरवासी उमड़ते हैं। लोगों Lmao दशहरा पर इसका इंतजार रहता है। महामंत्री अनिल बरनवाल ने कहा रामलीला मंचन के लिए अयोध्या, मथुरा से रामलीला मंडल आते हैं। समिति इसका सभी प्रबंध करती है। सभी के सहयोग से रामलीला का सफल आयोजन होता है।समिति से इस बार युवाओं को भी जोड़ा गया है।
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