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400 वर्ष पुराने शिवलिंग पर है हल का निशान, हर साल एक सेंटीमीटर ऊंचाई बढ़ने की मान्यता

  • हापुड़ के दहपा गांव में 400 साल पुराने शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां का शिवलिंग हर साल एक सेंटीमीटर बढ़ जाता है।

Ritesh Verma हिन्दुस्तान टीम, संवाददाता, हापुड़Fri, 28 Feb 2025 06:57 PM
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400 वर्ष पुराने शिवलिंग पर है हल का निशान, हर साल एक सेंटीमीटर ऊंचाई बढ़ने की मान्यता

हापुड़ के दहपा गांव में बेहद प्राचीन शिव मंदिर मौजूद है। मान्यता है कि इस मंदिर से कोई निराश नहीं लौटता। 400 वर्ष से अधिक पुराने इस मंदिर में प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है, जिस पर एक हल का निशान है। इलाके में कहा जाता है कि इस मंदिर का शिवलिंग चमत्कारी है और हर साल इसकी ऊंचाई एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है। ऊंचाई बढ़ने वाली बात की कोई प्रामाणिक जांच नहीं की गई है लेकिन यह मान्यता प्रचलित है।

धौलाना तहसील के पिलखुवा से ढाई किमी दूर स्थित दहपा गांव बसा है। इस गांव के शिव मंदिर की दूर-दूर तक ख्याति है। इलाके के लोग शिवलिंग को भगवान शिव का साक्षात रूप मानते हैं। पिछले दो सालों से मनोज शर्मा मंदिर के पुजारी हैं। उनसे पहले पुजारी रहे छोटू महाराज की दो साल पहले मौत हो गई थी। मनोज शर्मा ने बताया कि मंदिर का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है। मंदिर का शिवलिंग प्राकृतिक है जो जमीन से निकलकर प्रकट हुआ है।

मनोज शर्मा ने बताया कि इसी गांव के भिवानी सिंह जब खेत में हल चला रहे थे तो उनका हल एक पत्थर जैसी चीज से टकराकर रुक गया। खेत जोतने वाले बैल की जोड़ी बेसुध होकर गिर गई थी। उसी रात भिवानी सिंह को सपने में खेत छोड़ देने की आवाज आई। भिवानी सिंह अगली सुबह जब खेत गए तो उस जगह पर शिवलिंग था और उस पर हल का निशान भी लगा था।

मुगलकाल में मंदिर पर हमला

ग्रामीणों का मानना है कि शिवलिंग में भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। उनक बीच यह मान्यता है कि शिवलिंग की ऊंचाई हर साल एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है। पुजारी मनोज शर्मा ने बताया कि मुगलकाल में मंदिर पर कई बार हमला हुआ था। अंग्रेजों के शासनकाल में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ और तब दोबारा पूजा-अर्चना शुरू हुई थी।

भगवान कृष्ण की बारात मंदिर में रुकी थी

दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी और दिल्ली यूनीवर्सिटी में रखी ‘दिल्ली की खोज’ नाम की किताब में चर्चा है कि भगवान श्रीकृष्ण देवी कालिंदी से शादी के लिए बारात लेकर मुरारी गांव (वर्तमान में बुराडी) से चले थे तो बारात खंडेश्वर नाथ मंदिर (आज के समय में दहपा) में रुकी थी। बारात इतनी विशाल थी कि इंतजाम हापुड़ तक पहुंच गया था। उस समय जिसे सगली स्थान कहा गया, वो आज सबली गांव के नाम से जाना जाता है, जहां बारात पूरी हुई थी।

सावन माह में दूर से आते हैं श्रद्धालु

सावन महीने में श्रद्धालु भोले शंकर का जलाभिषेक करने दूर-दूर से आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में कांवड़िये बड़ी संख्या में आते हैं। मनोज ने बताया कि शिवरात्रि से चार दिन पहले ही शिव भक्तों का मेला शुरू हो जाता है। कांवड़ मेले के दौरान मंदिर परिसर दिव्य बन जाता है।

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