डीफार्मा में एडमिशन के नाम पर ठगी, थमाया फर्जी आईकार्ड और रिजल्ट; हिरासत में सरकारी डॉक्टर
- एडमिशन के नाम पर छात्र से एक लाख रुपये वसूले गए। बदले में उसे फर्जी आईकार्ड और रिजल्ट थमा दिया गया। पीड़ित को बाद में जालसाजी की जानकारी हुई तो वह रुपये मांगने लगा। आरोप है कि इस पर आरोपित धमकी देने लगा था। पुलिस केस दर्ज कर जांच कर रही थी। उससे पूछताछ की जा रही है।
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डीफार्मा में दाखिले के नाम पर जालसाजी करने के आरोपित गोरखपुर के एक प्राथमिक स्वाास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर तैनात एक डॉक्टर को पुलिस ने रविवार को हिरासत में ले लिया। आरोपित ने एडमिशन के नाम पर एक लाख रुपये वसूले थे और फर्जी आईकार्ड और रिजल्ट भी थमा दिया था। बाद में पीड़ित को जालसाजी की जानकारी हुई तो वह रुपये मांगने लगा। आरोप है कि इस पर आरोपित धमकी देने लगा था। पुलिस केस दर्ज कर जांच कर रही थी। उससे पूछताछ की जा रही है। हालांकि अधिकारी इसकी पुष्टि नहीं कर रहे हैं।
गोरखपुर के उरुवा बाजार क्षेत्र के लोहरा निवासी सूर्य प्रताप सिंह ने सितंबर, 2024 में केस दर्ज कराया था। इसमें उसने कहा था कि वह आदर्श पाली क्लीनिक, हड़हवा फाटक में रहकर काम करता है। 20 नवंबर 2022 को उसकी मुलाकात खोराबार पीएचसी पर तैनात डॉ.राजेश कुमार से रेलवे स्टेशन स्थित एक दुकान पर हुई थी। तब उन्होंने कहा कि वह अपने परिचित के सिकोहाबाद स्थित विद्यालय में डीफार्मा में उसका एडमिशन करवा देंगे।
पहले साल की फीस 80 हजार रुपये बताई थी। इसके बाद उसने सारे कागजात की फोटोकॉपी और 60 हजार रुपये डॉक्टर के फोन पे नम्बर पर ट्रांसफर कर दिए। फिर 29 नवंबर 2022 को 20 हजार रुपये और दे दिए। क्लास के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि बताया जाएगा, लेकिन कोई सूचना नहीं दी। जनवरी 2023 में डॉक्टर ने कॉलेज का आईडी कार्ड दिया और कहा कि एडमिशन हो गया है। क्लास के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। पूछने पर टालमटोल करते रहे और फोन उठाना भी बंद कर दिया।
फिर 13 मार्च 2023 को एडमिड कार्ड और रिजल्ट दोनों दे दिए और बोले आपका पेपर हो गया है, आप पास हो गए। संदेह हुआ तो वे लोग प्रथम वर्ष का रिजल्ट लेकर 08 सितंबर 2023 को जेएस विश्वविद्यालय पहुंच गए और वहां के लिपिक को दिखाया तो उन्होंने फर्जी रिजल्ट कहकर फेंक दिया।
विश्वविद्यालय गया तो पता चला रिजल्ट है फर्जी
पीड़ित के मुताबिक उसे पहले सेमेस्टर का रिजल्ट बिना परीक्षा दिए ही दे दिया गया था। इसके बाद ही उसे संदेह हो गया था और फिर वह इसकी जांच कराने के लिए जेएस विश्वविद्यालय गया तो उसे पता चला कि डिग्री पूरी तरह से फर्जी है। इसके बाद भी डॉक्टर मानने को तैयार नहीं थे और वह दूसरे सेमेस्टर में एडमिशन के नाम पर रुपये मांग रहे थे।