रावणत्व के विनाश से ही शांति संभव: रामेश्वरानंद
चकिया में मां काली मंदिर परिसर में नवदिवसीय राम कथा का आयोजन किया गया। कथा का शुभारंभ चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव ने किया। कथावाचक रामेश्वरानंद महाराज ने कहा कि समाज में व्याप्त रावणत्व को समाप्त किए बिना...
चकिया, हिंदुस्तान संवाद । नगर के मां काली मंदिर परिसर में श्री मानस प्रेम यज्ञ सेवा समिति के सौजन्य से बीते शनिवार की शाम से नवदिवसीय राम कथा का आयोजन किया गया। प्रथम दिवस की कथा का शुभारंभ चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव ने दीप प्रज्वलित कर किया। कथा वाचक जौनपुर से पधारे रामेश्वरानंद महाराज ने कहा की वर्तमान समाज में व्याप्त रावणत्व जब तक समाप्त नहीं होगा तब तक शांति की कल्पना साकार नहीं होगी। कथावाचक ने कहा कि आज भी रावण जिंदा है, केवल उसका नाम बदल गया है। आज भूख का रावण, गरीबों का मेघनाथ और मूर्खता का कुंभकरण समाज में पूरे जोर पर है। देवता रूपी श्रमिक अपना खून देकर क्षीण प्राण हो रहे हैं। कहा सारी दुनिया ही लंका जैसी होती चली जा रही है। एक तरफ सोने का संसार और दूसरी ओर दानवी चक्र में फंसे गरीब लोगों के आंसुओं का समुद्र और समुद्र के उस पार बसी यह लंका लोगों की छाती पर डंका बजाना चाहती है। कहा समाज से निकलकर अगर कोई पूछता है कि कहां है सत्य न्याय आस्तिकता और नैतिकता तो एक मौन उत्तर मिलता है कि सभी लंका की नीव के नीचे दबा दिए गए हैं। कथा वाचक ने कथा रसिकों से अपने अंदर के रावणत्व को मारकर स्वस्थ सबल और समृद्ध समाज की स्थापना करने की अपील की। कथा में मुख्य रूप से विजयानंद द्विवेदी, रामकिंकर राय, डॉ गीता शुक्ला, कैलाश जायसवाल आदि रहे।
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