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बोले बिजनौर : पुरोहितों-कथावाचकों को चाहिए योजनाओं की दक्षिणा

Uttar-pradesh News - पुरोहित और कथावाचक सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं। इनकी आर्थिक स्थिति खराब है और सरकारी सहायता का अभाव है। बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। पुरोहितों ने सरकार से मदद की अपील की...

Newswrap हिन्दुस्तान, bijnorSun, 23 Feb 2025 05:43 PM
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बोले बिजनौर : पुरोहितों-कथावाचकों को चाहिए योजनाओं की दक्षिणा

पुरोहित और कथावाचक समाज का वह महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो सनातन संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं। जन्म से लेकर विवाह संस्कार हो अथवा मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार तक इनके बगैर संभव नहीं है। अध्यात्म की ओर पूरी दुनिया के बढ़ रहे झुकाव के चलते पुजारियों और कथावाचकों की अहमियत तो बढ़ी है, लेकिन इनकी जिंदगी झंझावतों से भरी हुई है। कहीं भी कोई निश्चित दक्षिणा नहीं है। श्रद्धानुसार इन्हें यजमान जो भी दे देते हैं, रख लेते हैं। आज भी तमाम कथावाचक और पुजारी के पास आवास नहीं है। बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं मिल पा रही है। आर्थिक असुरक्षा तो है ही, चिकित्सीय सुरक्षा भी नहीं है। किसी प्रकार का बीमा योजना का लाभ इन्हें नहीं मिलता है। सरकार के पास इस महत्वपूर्ण वर्ग के लिए योजना के नाम पर अभी कुछ नहीं है। स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान कार्ड भी नहीं है।

सनातन संस्कृति तथा हिन्दू समाज में कथा, संस्कारों और अनुष्ठानों का बहुत महत्व है। भागवत कथा तथा अन्य अनुष्ठानों को करने वाले कथावाचक व धार्मिक कार्य करने वाले पुजारी जीवन में अनेक चुनौतियों से गुजर रहे हैं। यह लोग दिन-रात मेहनत करने के बाद भी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं। धार्मिक अनुष्ठान और संस्कारों के कार्य को करते हुए इनके सामने सुरक्षा तथा स्वास्थ्य की चुनौतियां भी रहती हैं। भागवत कथावाचक तथा अनुष्ठान करने वाले पुजारियों को किसी तरह की सरकारी सहायता भी प्राप्त नहीं होती है। यह सभी बिना किसी मानदेय अथवा सम्मान राशि के अतिरिक्त चढ़ावे के साथ दक्षिणा पर निर्भर रहते हैं। इन रुपयों से परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल होता है। कार्य करने के दौरान रास्ते में कोई हादसा होने पर इन लोगों को इलाज के लिए भी मशक्कत करनी होती है। कई बार तो मजबूरी में पैसा उधार लेना पड़ता है। जिले के कथावाचक और पुजारियों ने इसी तरह की विभिन्न समस्याओं को बताते हुए सरकार से योजना बनाकर सनातन संस्कृति के इन वाहकों की मदद की अपेक्षा की है। इस दौरान उन्होंने श्रम विभाग तथा उद्योग विभाग से रजिस्ट्रेशन कराकर योजनाओं का लाभ दिलाने की बात भी कही है। कई पुजारियों ने कहा कि जैसे अन्य वर्गों को प्रशिक्षण देकर सरकारी मदद दी जाती है, उसी तरह हम सभी को मदद मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम लोग मंदिर पर बिना किसी स्वार्थ के सेवा भाव करते रहते हैं। मिलने वाली दक्षिणा से बच्चों की पढ़ाई आदि कराना मुश्किल रहता है। इन लोगों ने आयुष्मान योजना से लाभ दिलाए जाने की मांग की। कई कथावाचकों ने कहा कि बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए संस्कृत स्कूलों का विस्तार किया जाए। उच्च शिक्षण संस्थान को खोलने की प्रक्रिया जनपद स्तर से होनी चाहिए।

समारोहों में हाशिए पर खड़ा रहता फेरों का मुख्य कार्य कराने वाला पुरोहित

पुरोहितों के अनुसार शादी समारोहों के दौरान लोग महंगे बैंक्वेट हाल बुक करते हैं। बैंड बाजों, डीजे, कॉकटेल से लेकर महंगे खाने की व्यवस्था पहले ही तय कर देते हैं। शादी में मुख्य फेरों का महत्वपूर्ण कार्य कराने वाले पुरोहित को दी जाने वाली दक्षिणा की कोई रकम पहले से तय नहीं होती और वह इन समारोहों में हाशिए पर खड़ा नजर आता है।

पुरोहितों की संतानें पुरोहितत्व से हो रहीं विमुख

आर्थिक असुरक्षा व अन्य कारणों के चलते पुरोहितों की संताने उनके इस पुरोहितत्व के कार्य को करना नहीं चाहते तथा शिक्षा ग्रहण कर पूर्वजों के इस काम के बजाए आजीविका के लिए कोई अच्छी नौकरी अथवा व्यवसाय करना पसंद कर रहे हैं। पंडित पूरण चंद्र शास्त्री ने बताया, कि आज सनातन संस्कृति व धर्म सुरक्षित है तो उसके पीछे पुरोहितों के उन पूर्वजों का ही हाथ है, जो उस समय जबकि आतताई धर्मग्रंथों को लेकर भाग गए थे, छिप गए थे। नालन्दा में आग लगा दी गई थी। ऐसे समय उन ऋषियों ने ही श्रुतियों को लिपिबद्ध करने का काम किया था। आज विकास के क्षेत्र में सबसे पीछे खड़े हैं।

कभी कण्वाश्रम में संचालित था आज नहीं कोई भी गुरुकुल

पुरोहितों के अनुसार कालांतर में कभी यहां मालन नदी के तट पर कण्वाश्रम में गुरुकुल संचालित था, लेकिन आज जिले में सरकार की ओर से एक भी गुरुकुल संचालित नहीं है। आर्यसमाज की ओर से नवलपुर बैराज में एक कन्या गुरुकुल जरूर है, लेकिन वह भी सरकारी नहीं है। जिले में कथावाचक तथा पुजारियों को उच्च शिक्षा के साथ पूजा पद्धति प्रशिक्षण की व्यवस्था न के बराबर है, धार्मिक पाठ्यक्रमों में आधुनिक ज्ञान की कमी होती है और कुछ जगहों पर उन्हें अपने काम में लगातार सुधार लाने का अवसर नहीं मिलता। इसके कारण वे केवल पारंपरिक कार्यों में ही सिमट कर रह जाते हैं। कथावाचक तथा पुजारियों ने जिले में गुरुकुल व संस्कृत के स्कूलों को खोलने की मांग की। बातचीत में कई आचार्यों ने बच्चों के प्रशिक्षण देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जिले में संस्कृत स्कूलों का संचालन सीबीएसई पैटर्न पर किया जाए, ताकि हमारे बच्चे भी संस्कृत में पढ़ाई कर सकें। आगे चल कर धार्मिक शिक्षा ग्रहण कर कथावाचन और पूजा पाठ की डिग्री लेकर कार्य करें।

स्थिति सुधारने को उठे उचित कदम, मिले मान्यता

जिले के कथा वाचक और पुजारियों की समस्याएं गंभीर हैं। समाज को इनकी जरूरतों और कठिनाइयों को समझने की आवश्यकता है। सरकार और धार्मिक संस्थानों को इनकी स्थिति सुधारने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। उनकी आर्थिक मदद, शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसर के साथ मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। कथा वाचक और पुजारियों ने कहा कि पाण्डित्य कार्य करने के लिए सरकारी मान्यता मिलनी चाहिए। विभिन्न योजनाओं में लाभ मिले और सरकार की ओर से पहचान पत्र दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें कार्य करने में किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न न हो।

कथावाचकों और पुजारियों की कमेटी बनाई जाए

शहर हो या फिर गांव, सभी जगह कथावाचक भागवत कथा करते हैं। कथा के दौरान कई ऐसे भी प्रसंग होते हैं, जिनके सुनने के बाद श्रोता भाव विभोर हो जाता है, लेकिन कभी कोई नहीं सोचता कि कथावाचक और पूजा पाठ के साथ अन्य अनुष्ठान कराने वाले पुजारियों की स्थिति क्या है। कथावाचक और पुजारियों ने उच्च स्तरीय आचार्यों से प्रशिक्षण प्राप्त कराकर सरकारी योजनाओं में प्रतिभाग कराने के लिए उन्हें वरीयता देने की मांग की। इसके साथ ही कहा कि जिले में कथावाचक और पुजारियों के लिए एक कमेटी बनाई जाए। जिसकी समय-समय पर बैठक हो। हर किसी की परेशानी पर चर्चा होनी चाहिए। कमेटी के माध्यम से ही समाज के लोगों के बच्चों को पढ़ाई में आर्थिक मदद, विवाह आदि में सहयोग, सामाजिक कार्यों में योगदान को बढ़ाया जाए। पुजारियों ने कहा कि मंदिर में आने वाले दान का एक भाग भी कमेटी में जाना चाहिए। आगे चल कर इस रकम से गुरुकुल जैसे संस्थान की स्थापना की जाए।

शिकायतें

सरकार पुजारियों और कथावाचकों के लिए कोई योजना संचालित नहीं कर रही है।

पुजारियों-कथावाचकों और उनके परिवार के लिए बीमारियों के दौरान इलाज की सुविधा नहीं है।

मंदिरों के पुजारियों और कथावाचकों को सरकार की ओर से कोई मानदेय नहीं दिया जाता है।

कथावाचकों और अन्य पाण्डित्य कार्य करने वालों को सरकारी प्रशिक्षण संस्थान नहीं हैं।

पुजारियों और कथावाचकों के बच्चों को उच्च शिक्षा में फीस माफी की सुविधा दी जाए।

सुझाव

सरकार को पुजारियों और कथावाचकों के लिए भी एक बोर्ड की स्थापना करनी चाहिए।

पुजारियों और कथावाचकों के लिए जीवन बीमा और हेल्थ बीमा योजना चलानी चाहिए।

कथावाचक और पुजारियों को सरकार की ओर से मासिक सम्मानराशि दी जानी चाहिए।

कथावाचक और पुजारियों को आयुष्मान कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

आर्थिक रूप से कमजोर कथावाचकों और पुजारियों को यात्रा में छूट मिलनी चाहिए।

हमें भी कुछ कहना है

सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सरकार को ब्राह्मणों (पुरोहितों) के लिए उचित मानदेय, पालन पोषण आदि की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। प्रत्येक जनपद मुख्यालय पर एक गुरुकुल की स्थापना करनी चाहिए जहां पर ब्राह्मण बालक उचित शिक्षा प्राप्त कर सके। - पंडित बृजमोहन सेमवाल

सरकार गुरुकुल बनाना चाहे तो स्वाहेड़ी के समीप एक व्यक्ति 10 बीघे जमीन देने को तैयार है। धर्म विशेष के मस्जिद मदरसों के मौलवियों को मानदेय दिया जाता है तो सनातन संस्कृति के लिए समर्पित पुरोहितों-कथावाचकों को क्यों नहीं सम्मान राशि दी जा सकती है। - पंडित शिवकुमार

ब्राह्मण को देवता कहा गया है, भूदेव व भूसुर भी कहते हैं। संसार देवताओं के अधीन है, देवता मंत्र के अधीन है और वे मंत्र ब्राह्मण के अधीन हैं। अत: ब्राह्मण कुलों के रक्षार्थ सरकार को उचित व्यवस्था करनी चाहिए। शास्त्रों को जीवित रखने के लिए उचित गुरुकुलों की स्थापना करनी चाहिए। - पंडित पूरन चंद्र

सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे ब्राह्मणों का भविष्य सुरक्षित रह सकें। सनातन की रक्षा करने को पहले संस्कृति के रक्षक ब्राह्मणों (पुरोहितों) की रक्षा करना अनिवार्य है। यदि हम धर्म की रक्षा करते हैं तो धर्म हमारी रक्षा करेगा और यह तभी सार्थक है जब ब्राह्मणों को उचित मानदेय मिलेगा। - पंडित जितेंद्र कुमार शर्मा

सनातन संस्कृति एवं मंदिर के पुजारियों एवं मंदिर की व्यवस्था एवं पुजारियों की वेतन पालन पोषण आदि की व्यवस्था करनी चाहिए। -पंडित मथुरा प्रसाद

पंडित और पुजारी लोक कल्याण के लिए पूजा व अनुष्ठान करते हैं, लेकिन इनके कल्याण के लिए कुछ नहीं हो रहा है। इनके बच्चों को संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्रवृत्ति जैसे लाभ मिलने चाहिए। उच्च शिक्षा में फीस माफी हो। - पंडित जितेन्द्र गौड़

सरकार विचार करें, कि इस वर्ग का उत्थान कैसे हो। पुरोहितों-कथावाचकों की संतानों की शिक्षा नि:शुल्क होनी चाहिए। भोजन व्यवस्था के लिए प्रति परिवार न्यूनतम 20 हजार रुपये सम्मान राशि मिलनी चाहिए। यात्रा में छूट मिले व योजनाओं में लाभ के लिए सक्षम अधिकारी से कार्ड बनाया जाए। - आचार्य विनोद गोस्वामी

बुजुर्ग कथावाचकों व पुरोहितों के लिए सरकार को पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए। बुजुर्ग होने पर धार्मिक कार्य सम्पन्न कराना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जरूरतों को पूरा करने के लिए पेंशन जरूरी है, ताकि परिवार की जरूरतें पूरी की जा सके। - पंडित विजयराज गौड़

जिले में धार्मिक पर्यटन स्थल विकसित किए जाएं। यहां पुजारियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इनकी बौद्धिक धार्मिक परीक्षा होनी चाहिए। सामाजिक प्रतिष्ठा कैसी है, इसका भी ध्यान रखा जाए। - पंडित हरीश सकलानी

अब देखने को मिल रहा है कि लोग पूजा पाठ का भी डिजिटलीकरण कर रहे हैं। कईं बार आनलाइन पूजा भी लोग कराते हैं। यह बहुत ही गलत है। इस तरह की पूजा का यजमान को कोई फल नहीं मिलता है। पूजा पूरे विधि विधान से कराने पर ही लाभप्रद होती है। - पंडित दीपक सेमवाल

आज के समय में सभी के परिवार छोटे होते हैं। आयुष्मान कार्ड के लिए अर्हता में छह लोगों का परिवार होना जरूरी बताते हैं, इस नियम में बदलाव होना चाहिए। पुजारियों व कथावाचकों को आयुष्मान कार्ड दिया जाना चाहिए। - पंडित गोपाल कृष्ण धौलाखंडी

सरकार को संस्कृत से उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को शोध कार्य के लिए बजट आवंटित करना चाहिए। संस्कृत के उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना होनी चाहिए। संस्कृत से शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए भी विशेष सुविधाएं मिलनी चाहिएं। - पंडित हिमांशु सेमवाल

सरकार पुरोहितों व कथावाचकों के लिए योजना बनाएं। प्रत्येक ब्राह्मण परिवार के एक बच्चे को पुजारी, पुरोहित, कथावाचक जरूरी बनना चाहिए। यह सनातन संस्कृति की मजबूती के लिए जरूरी है और पांडित्य कार्य भी परंपरानुसार चलता रहेगा। - पंडित विजय भारद्वाज

संस्कृत विद्यालयों में शिक्षा के लिए बच्चों को भेजना चाहते हैं। एडमिशन कराना तो आसान है, लेकिन वहां रहने व खाने की व्यवस्था न होने के कारण पीछे हटना पड़ता है। सरकार को संस्कृत की पढ़ाई करने केदौरान बच्चों को रहने के लिए हॉस्टल व भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। - पंडित ललित शर्मा

जिले में कईं आचार्य हैं जो मंदिरों में सेवा दे रहे हैं। उनके लिए सरकारी नौकरी में अलग से आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि उनका जीवन भी सरल हो सके। आचार्य बनने के बाद भी हम पूजा पाठ तो हमेशा ही करेंगे, लेकिन नौकरी में आरक्षण मिलने पर ही बात बन सकती है। - पंडित हीरामणि भारद्वाज

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