::::बोले बुलंदशहर:::: फलों के राजा की पट्टी में कब लगेगा मिठास का तड़का
Bulandsehar News - -बुगरासी और स्याना क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होती है आम की बागवानीपैमाने पर होती है आम की बागवानी -इन क्षेत्रों में होने वाला आम की पहचान देश ही नहीं
बुलंदशहर। कुछ वर्षों पहले तक फलपट्टी क्षेत्र स्याना व बुगरासी में उत्पादित फलों के राजा आम न केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी मिठास का रंग घोलकर दुनिया में जिला बुलंदशहर का नाम रोशन किया है। वर्ष 1986 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित फलपट्टी स्याना क्षेत्र व ऊंचागांव ब्लाक के बागानों के आम का जादू दुनिया भर में सिर चढ़कर बोलता था और इस संबंध में जनपद बुलन्दशहर के प्रमुख समाजसेवी, प्रगतिशील किसान व कस्बा बुगरासी के पूर्व चेयरमैन आफाक-उर-रहीम खान ने अपने ही खर्च और जोखिम पर जर्मनी, जापान, बांग्लादेश तथा खाड़ी देशों में भी आम का निर्यात करने के साथ-साथ दिल्ली में आयोजित होने वाले राष्ट्र स्तरीय मैंगों फेस्टीवल में भी कस्बा बुगरासी क्षेत्र सहित भारतीय आम का डंका बजाया।
वर्ष 1986 में तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक इम्तियाज मोहम्मद खान के प्रयासों से प्रदेश सरकार ने स्याना और ऊंचागांव को फल पटटी क्षेत्र घोषित किया था। जिसमें उन्नत पौध मैंगों पैकेजिंग हाऊस, आम क्षेत्र प्रसंस्करण केन्द्र बागबानों के लिए सहायता व आवश्यक उपकरण के लिए भरपूर बिजली दिए जाने का प्रावधान था। लेकिन कई साल बीतने के बाद भी अभी तक कोई सुविधा नहीं मिल सकी है। अब आम सरकारी उपेक्षा और सुविधाओं के अभाव के चलते आज अपने अस्तित्व के लिए ही जूझ रहा है। आम की फसल के लिए अनियमित मौसम व घटता बढ़ता तापक्रम एक बड़ी समस्या है। जिससे इसका फसल चक्र भी अनियमित रहता है। दक्षिण भारत जहां तटीय एवं पठारी भागों में मौसम अपेक्षाकृत नियमित रहता है। वहीं, उत्तर भारत में सर्दी के मौसम में अधिक तापक्रम कभी वर्षा कभी ओले जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं जिससे दक्षिण भारत में पाई जाने वाली आम की प्रजातियां उत्तर भारत की तुलना में बेहतर फसल देती हैं। फरवरी मार्च के दौरान इस समय यहां आम की प्रजातियां वानस्पतिक प्रजनन करती है। जलवायु में उतार चढ़ाव बना रहता है, जिससे निजात पाने के लिए कृषि विशेषज्ञों ने कार्बनिक पदार्थ पोलोब्रूटलॉजोल प्रयोग का सुझाव दिया। जिसके व्यवसायिक उत्पाद कल्टार और ऑस्टर है। विशेषज्ञों के अनुसार उक्त कार्बनिक पदार्थ कैंसरकारी रसायन है। जिससे न केवल पौधों का स्वास्थ प्रभावित होता है। बल्कि इसका अवशिष्ट यदि आम के फल में पाया जाता है जो लोगों के स्वास्थ के लिए भी हानिकारक होगा। प्रत्येक वर्ष मौसम का बदलता मिजाज आम की फसल का दुशमन बना हुआ है। फरवरी मार्च में जब आम में प्रजनन होता है उस समय कम तापमान (20 डिग्री सेल्सियस) की आवश्यकता होती है। लेकिन व्यवहार में इस दौरान अधिक तापमान होने लगा है। जिससे आम के प्रजनन और फल बनने की क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बागबानों के अनुसार फरवरी-मार्च में आवश्यकता से अधिक तापमान हाने से आम की फसल की बेहतर शुरूआत नहीं हो पाती। जिससे फसल प्रारम्भ में ही 50 फीसद रह जाती है। इस वर्ष भी फसल औसत रूप से काफी कम आंकी जा रही है। वैस्टर्न डिस्टरबेंस का प्रभाव लगातार प्रत्येक वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। ----------- अनदेखी से बागबान निराश पिछले कई वर्षों से जहां आम विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त और बागबान घाटे के चलते ऋणग्रस्त का शिकार है। वहीं, सरकार ने भी उद्यान विभाग के लिए बजट को लेकर मुंह फेरा हुआ है। गत वर्षों में वर्षा और ओलावृष्टि से तबाह हुई गेंहू व अन्य फसलों के लिए सरकार ने हजारों करोड़ों रुपया मुआवजे के रूप में दिया। लेकिन आम की फसल के बर्बाद होने से कंगाल व कर्ज में डूबे बागबानों के जख्मों पर कोई मरहम नहीं लगाया गया। डेढ़ दशक से बिगड़ रहे मौसम के मिजाज, प्राकृतिक आपदा, रोगों और कीटों के कारण आम की फसल से बागबानों का मोह भंग हो गया है। वर्ष में केवल एक बार आधी अधूरी फसल देकर वर्षभर भूमि को घेरे रहने वाले आम के बागान अब बागबानों के लिए बोझ बन गए हैं। फसल बर्बाद होने पर भी सरकारी सोतेलेपन ने बागबानों के पैर उखाड़ दिए अब वह इनसे पीछा छुड़ाकर अन्य फसलों की ओर देख रहे हैं। ------ सुविधाएं मिलें तो विकास को लगेंगे पंख बुलन्दशहर जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्याना क्षेत्र को फलपट्टी घोषित करते समय उम्मीद जगी थी कि अब यहां सुविधाएं मिलेंगी। मुख्यत आम और इसके अलावा अन्य फलों के उत्पादन से भरपूर क्षेत्र में पैकेजिंग हाउस, प्रोसेसिंग इंडस्ट्री आदि लगाई जाएंगी। बाहर आम का निर्यात होगा तो परिवहन की सुविधाएं बढ़ेंगी, आवागमन सुचारू होगा। साथ ही विद्युत आपूर्ति की समस्या भी नहीं होगी। लेकिन करीब 39 वर्ष बीतने के बाद भी पूरा फलपट्टी क्षेत्र अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। कृषि विशेषज्ञ और बागबान केदार त्यागी का कहना है कि पैकिंग हाउस के नाम पर सरकार से मिले अनुदान से बुगरासी क्षेत्र में मात्र दो कमरे बने हैं। जिन्हें आम स्टोर करने के काम मे लिया जा रहा है। पैकेजिंग हाउस के लिये आम की ग्रेडिंग, वाशिंग और ड्राइंग के लिये मशीनरी की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि अन्य बड़े शहरों की तर्ज पर क्षेत्र में एक पैकेजिंग हाउस बने। बागबानों के लिये हर गांव में स्प्रेयर मशीन उपलब्ध कराई जाए। फल तोड़ने के लिये हाइड्रोलिक सीढ़ी, आम के ऊपर चढ़ाए जाने वाले बैग इत्यादि बागबानों को सरलता से उपलब्ध कराए जाएं। बागों में लगाई जाने वाली दवाईयां बाजार में नकली मिलती हैं। जिससे बाग के बाग आम रहित होते जा रहे हैं। विभागीय अधिकारी और सरकार इस पर गम्भीरता से ठोस कदम उठाये। ये सुविधाएं मिलें तो न सिर्फ क्षेत्र में पेशेवर तरीके से आम का उत्पादन बढ़ेगा बागबानों के साथ पूरे क्षेत्र में आर्थिक विकास भी होगा। ---------- बागबानों का दर्द आम की फसल पर मौसम का गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि मौसम अनुकूल हो तो फसल अच्छी होती है। पिछले वर्षों की भांति इस बार भी आम पर जैसे ही बौरआया। मौसम अनियमित होने लगा रात में होने वाली ठंड ने बौर को बड़ी मात्रा में नष्ट कर दिया। जिससे बंपर फसल की उम्मीद पर पानी फिर गया। -मोहम्मद जावेद खां हमारा क्षेत्र फल पट्टी क्षेत्र घोषित है, लेकिन सुविधा के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। ना तो यातायात की बेहतर स्थिति है ना आसपास कोई बड़ी मंडी। बागबान लोग अपने दम पर ही आम का उत्पादन कर देश के अन्य भागों में भेजते हैं। जिससे अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है और लोग आम उत्पादन से अलग होते जा रहे हैं। -रामवीर सिंह चौहान फल पट्टी क्षेत्र होने के बावजूद आम उत्पादकों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं है। हर साल मौसम की मार और नए नए रोग आम की फसल को बर्बाद कर देते हैं। वर्ष भर फल का इंतजार करते और बागों की देखभाल करते बागबान न केवल खाली हाथ रह जाते हैं। अन्य फसलों की तरह नुकसान होने पर सरकार की ओर से आम उत्पादकों को भी मुआवजा मिलना चाहिए। -कृपाल सिंह चौहान आम की फसल में हर वर्ष कोई न कोई नया रोग आता है। आम उत्पादक जानकारी के अभाव में तरह तरह की दवाईयां प्रयोग करते हैं। जिससे रोग से छुटकारा नहीं मिलता और फसल बर्बाद हो जाती है। -आरिफ सईद खान फल पट्टी क्षेत्र होने के कारण मेंगो पैकेजिंग हाउस और आम से बनने वाले अन्य खाद्य पदार्थ जैम आदि बनने के कारखाने स्थापित किए जाने चाहिए। साथ ही ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्र में परिवहन और आवागमन के साधन सुलभ हों, जिससे आम उत्पादक और बागबान अच्छा लाभ कमा सकें। -फरहतुल्लाह खान आम की फसल पर पड़ने वाले मौसम और रोगों के प्रकोप से बागबानों और आम उत्पादकों का मोह भंग होने लगा है। सरकार मौसम के बदलते मिज़ाज के अनुसार नए किस्म के बीज विकसित कर आम की फसल को बढ़ावा दें। जिससे यह नकदी फसल भी आजीविका का मज़बूत स्रोत बन सके -अमन सिंह अप्रत्याशित तौर पर पड़ रही सख्त सर्दी और गर्मी की वजह से तीन बार निकलने वाला बौर भी खराब हो गया। पहली बार बौर निकलता था फिर बीच में निकलता था और फिर लास्ट में निकलता था तो एक बार की फसल बच जाती थी, लेकिन इस बार एक भी फसल नहीं बच सकी है। प्रतिकूल मौसम से हर बार आम की फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। -रईस क़ुरैशी घटिया दवाओं के लगने से हर साल आम का उत्पादन लगभग न्यून होता जा रहा है। सरकारी दवाइयों का अभाव और मजबूरीवश बाजार में मिलने वाले कीटनाशकों के इस्तेमाल से आम के बाग लगभग खत्म होने के कगार पर हैं। सरकार और उद्यान विभाग इस ओर गम्भीरता से ध्यान दे तो रास्ता निकल सकता है। -केदार त्यागी फलपट्टी को बचाने के लिये और बागबानों को प्रोत्साहित करने के लिये शासन प्रशासन की पहल पर उनकी आवश्यकतों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक साधन मुहैया कराए जाएं। इसके लिये क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को भी आगे बढ़कर इसमें अपनी भूमिका तय करनी चाहिए। -शाद खान जलवायु परिवर्तन के कारण, तापमान में बदलाव, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और चरम मौसम की घटनाओं से तो बागवानी फसलों को नुकसान हो ही रहा है। साथ ही बागवानी उत्पादों की खराब होने वाली प्रकृति के कारण, बाजार की उपलब्धता और परिवहन की समस्याएँ भी बागबानों के लिए एक चुनौती हैं। -प्रदीप त्यागी ------ सुझाव : 1.क्षेत्र में सरकारी मैंगो पैकेजिंग हाउस की सुविधा हो। जिसमें आम की ग्रेडिंग, वाशिंग और ड्राइंग करने का इंतजाम हो। 2.बागबानों की फसल से संबंधित जानकारी मुहैया कराने के लिये एक सूचना केंद्र स्थापित किया जाए। ताकि बागबानों को फसल से संबंधित सूचनाएं समय पर मिलती रहें। 3.फसल में लगे रोग के लिये सरकार की तरफ से दवाइयां उपलब्ध कराई जाएं। ताकि बागबानों को बाजार से नकली दवाइयां न लेनी पड़ें। 4.फलपट्टी क्षेत्र में आम की कोई बड़ी मंडी स्थापित की जाए। साथ ही यातायात के सुलभ साधन मुहैया कराए जाएं, ताकि आम को बाहर भेजने में सुविधा हो सके। 5.फलपट्टी क्षेत्र के लिये सरकार हर साल विशेष बजट जारी करें, ताकि क्षेत्र में फलपट्टी से संबंधित सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हो सकें और क्षेत्र को इसका उचित लाभ मिल सके। शिकायत 1.हर वर्ष फसल में लग रहे नये नये रोगों से बागबान अनभिज्ञ रहते हैं। सुलभ जानकारी न होने के चलते लगातार उत्पादन कम होता जा रहा है। 2.हर वर्ष आम की फसल मौसम की भेंट चढ़ जाती है। जानकारी और सुविधाओं के अभाव में बागबानों की फसल बर्बाद होती जा रही हैं। 3.क्षेत्र में मैंगो पैकेजिंग हाउस की कोई सुविधा नहीं है। लगातार बागबानों की मांग पर फलपट्टी घोषित होने के 39 साल बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। 4.सरकारों की अनदेखी फलपट्टी की दुर्दशा का मुख्य कारण है। क्षेत्र को फलपट्टी की कोई सुविधाएं मिलीं और क्षेत्र में कोई उद्योग भी नहीं लग सका। इसलिए क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ गया। 5.आधुनिकीकरण और पैसे कमाने की होड़ ने आमों के बाग पर कुल्हाड़ी चलाने को मजबूर किया। आम घाटे का सौदा साबित होने पर बागबानों ने बड़े बड़े बाग कटवाकर प्लॉटिंग कर दी। इससे पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। --------- कोट:- फलपट्टी क्षेत्र के लिये सरकारी योजनाओं का लाभ बागबानों को मिल रहा है। बागबानों की समस्याओं और आवश्यकतों का भी शीघ्र निस्तारण किया जाएगा। सरकार की अपील पर बागबानों व किसानों को जैविक खेती की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है। -देवेंद्र सिंह लोधी, विधायक स्याना ------------
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।