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बोले बुलंदशहर : जन औषधि केंद्रों को ग्राहकों का इंतजार

Bulandsehar News - बुलंदशहर में प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत 45 जन औषधि केंद्र खोले गए, लेकिन अब केवल 40 ही संचालित हो रहे हैं। चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाओं को प्राथमिकता नहीं देने के कारण मरीजों की...

Newswrap हिन्दुस्तान, बुलंदशहरFri, 4 April 2025 06:31 PM
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बोले बुलंदशहर : जन औषधि केंद्रों को ग्राहकों का इंतजार

बुलंदशहर। हर तबके के लोगों को बाजार के मुकाबले सस्ते दामों में औषधि (दवा) मिल सके, इसलिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत जिला बुलंदशहर में 45 जन औषधि केंद्रों को खोला गया। सहयोग ना मिल पाने की वजह से अब 40 ही दुकानें जिले में संचालित हो रही है। जन औषधि केंद्रों के संचालक और यहां पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि सहयोग ना मिलने की वजह से उनके साथ काफी दुश्वारियां भी चल रही है। ऐसे में उनकी भी समस्याओं का समाधान होने की सिफारिश यह लोग कर रहे हैं। बुलंदशहर में वर्तमान में 40 जन औषधि केंद्र संचालित हो रहे हैं। इन औषधि केंद्रों पर ब्लड प्रेशर, मधुमेह, थायराइड, सर्दी-खांसी, बुखार और दर्द रोधी सहित कुल दो हजार से अधिक प्रकार की दवाएं मिलती हैं। साथ ही इन केंद्रों पर अब 300 से अधिक सर्जिकल आइटम भी बिकने लगे हैं। लेकिन जन औषधि केंद्रों का संचालन कर रहे लोगों के सामने बड़ी समस्या यह है कि चिकित्सक वर्तमान में भी मरीज को परामर्श के लिए जेनेरिक दवाओं को प्राथमिकता के आधार पर पर्च पर लिखकर नहीं देते हैं। इसीलिए मरीज जन औषधि केंद्रों पर कम आते हैं। वह ही लोग उनकी दुकान पर पहुंचते हैं, जिन्हें जेनेरिक दवाओं की जानकारी है और जो महंगी दवाएं बाजार से खरीद नहीं सकते।

जिला अस्पताल में जन औषधि केंद्र के संचालक का कहना है कि दुकान पर हर रोज 200 से 300 लोग जेनेरिक दवाएं खरीदने के लिए पहुंचते हैं। अधिकांश लोग वही होते हैं जो सर्दी, खांसी, बुखार, मधुमेह या रक्तचाप से पीड़ित रहते हैं। ऐसे लोग जानकारी रखते हैं और दवाओं को साल्ट व एमजी के हिसाब से खरीदकर ले जाते हैं, लेकिन कोई भी मरीज या व्यक्ति ऐसा नहीं पहुंचता है, जो चिकित्सक के परामर्श पर उनके पास जेनेरिक दवाएं लेने के लिए आया हो। उनका कहना है कि शहर और देहात क्षेत्र में सरकार ने जन औषधि केंद्र स्थापित कर लोगों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने का दावा किया था। लेकिन चिकित्सकों की मनमानी से इसका असर धरातल पर बहुत ही कम है। जब तक चिकित्सक मरीजों को परामर्श के लिए जेनेरिक दवाएं नहीं लिखेंगे तब तक ना तो मरीज को सस्ती दवाएं मुहैया हो पाएंगी और ना ही जन औषधि केंद्रों का कारोबार बढ़ेगा। इसके लिए चिकित्सक विभाग के जिम्मेदारों को जिम्मेदारी निभानी होगी।

कम कीमत पर मिलती हैं जेनेरिक दवाएं

आम तौर पर जेनेरिक दवाएं साल्ट पर आधारित होती हैं। इनका कोई ब्रांड या कंपनी नहीं होती है। सरकार से सीधे ड्रग वेयर हाउस से जन औषधि केंद्रों पर इनकी आपूर्ति होती है। यहां से ये दवाएं मरीज के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। इन दवाओं की कोई ब्रांडिंग नहीं होती। इसीलिए यह अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले 60-70 प्रतिशत तक सस्ती मिल जाती हैं। लोग आसानी से खरीद लेते हैं। जेनेरिक दवाओं में सर्जिकल आइटम भी 50 प्रतिशत कम दाम पर मिलते हैं। सामान्य बीमारियों की दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन चिकित्सक मरीज को देखने के बाद ब्रांडेड दवाएं ही लिखकर देते हैं। जेनेरिक दवाओं की बिक्री पर कमीशन न होने की वजह से चिकित्सक नहीं लिखकर देते हैं। इसीलिए सस्ती दवाओं का कारोबार यहां कमजोर पड़ रहा है।

जन औषधि केंद्रों पर नहीं होती ब्रांडेड दवाओं की बिक्री

जन औषधि केंद्र संचालकों का कहना है कि जेनेरिक पर हावी ब्रांडेड दवाइयों की बिक्री पर मेडिकल स्टोर संचालकों को अधिक मुनाफा मिलता है। जबकि जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं। इन पर मुनाफा कम होता है। चिकित्सक भी जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति भी बेहद कम रहती है।

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कम मुनाफा, जीएसटी इंसेंटिव भी बड़ा झंझट

जन औषधि स्टोर का प्रचार सरकार ने स्व:रोजगार के विश्वनीय साधन के रूप में किया है। जन औषधि केंद्र संचालकों का कहना है कि सिर्फ 20 प्रतिशत ट्रेड मार्जिन (मुनाफा प्रति दवाई) और उस पर भी जीएसटी की कैंची चल रही है। ऊपर से केंद्रों पर ग्राहकों का आना भी कम है। यह केंद्र जीविका चलाने के उद्देश्य से खोले गए थे, लेकिन कम मुनाफ और जीएसटी के बड़े झंझट से यह केंद्र बंद होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। दुकान संचालकों का कहना है कि ट्रेड मार्जिन के अलावा सरकार दवाओं की मासिक सेल पर दस प्रतिशत इंसेंटिव देती है। यह भी सीधा उन्हें नहीं मिलकर बैंक खाते में आता है। सरकार को इंसेंटिव दस से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना ही चाहिए।

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दवाओं का स्टॉक खत्म होने से होती है सबसे ज्यादा दिक्कत

जन औषधि केंद्रों पर ठेकेदारी की प्रथा हावी है। ठेकेदारों पर ही इन केंद्रों को खुलवाने की जिम्मेदारी है और वे निजी पार्टियों से संपर्क कर केंद्र खुलवाते हैं। दवा की आपूर्ति के लिए भी वे जिम्मेदार होते हैं। कुछ केंद्रों पर दवाएं खत्म हो जाने के बाद उनका स्टॉक भी जल्द नहीं मिल पाता है। इससे भी केंद्र प्रभारियों को परेशानी रहती है। एक बार दवा खत्म होने पर उसका दूसरा स्टॉक मंगाने के लिए केंद्रों के प्रभारियों को मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए भी चिकित्सक इन केंद्रों से दवा नहीं मंगाते हैं। इन केंद्रों की संख्या कम हो रही है। इसलिए इस योजना को परवान चढ़ाने में काफी दिक्कत सामने आ रही हैं।

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औषधि केंद्र संचालकों और कर्मचारियों के मन की बात

जन औषधि केंद्रों को खोलने के बाद इनकी नियमित रूप से मॉनीटरिंग की जाती तो यह स्थिति नहीं होती। अब भी काफी सुधार किया जा सकता है। इसके लिए जिम्मेदारों को आगे आना होगा।

-सूर्या शर्मा

चिकित्सक जेनेरिक दवाओं को कम ही पर्चें पर लिखते हैं। इस कारण काफी लोगों को इन औषधि केंद्रों के बारे में पता नहीं होता। इसके लिए एक बड़ी पहल करने की आवश्यकता है।

-मनोज

जन औषधि केंद्रों पर जेनेरिक दवाओं के साथ-साथ जरनल स्टोर का भी सामान रखने का प्रावधान किया जाए। ऐसा होने से इस कारोबार में और तेजी आने की संभावना है।

-विकास

दवाओं के आभाव में नामित संस्था भी जिम्मेदार हैं। दवाओं को उपलब्ध कराने के लिए आखिर वह पैरवी क्यों नहीं करते। व्यवस्थाओं में सुधार करने के लिए संस्थाओं पर कार्रवाई होनी चाहिए।

-सुहैल चौहान

जन औषधि केंद्रों पर दवाओं की उपलब्धता बनी रहने के लिए सरकार को कड़ी निगरानी करने की आवश्यकता है। इन केंद्रों पर तैनात किए गए कंप्यूटर ऑपरेटरों का मानदेय भी समय से होना चाहिए।

-शिवम कौशिक

महंगी दवा खरीदने के लिए लोगों को अक्सर अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। लोगों की जेब पर कम भार पड़े, इन औषधि केंद्रों को इसलिए खोला गया था। लेकिन चिकित्सक अपनी मनमानी करते हैं।

-अजय शर्मा

जन औषधि केंद्रों पर जो दवाएं खत्म हो जाती है। उनका समय से उपलब्ध होना आवश्यक है। ऐसा होने से जन औषधि केंद्रों पर काम करने वालों पर असर कम होगा।

-यतेंद्र ठाकुर

रक्तचाप और मधुमेह रोग को कंट्रोल करने वाली अंग्रेजी दवाओं की कीमत काफी अधिक है। जबकि जेनेरिक दवाओं के दाम कम है। ऐसे में जो ग्राहक जन औषधि केंद्रों से जेनेरिक दवाओं की खरीदी कर रहे हैं, उन्हें काफी फायदा हुआ है।

-आशु पंडित

सामान्य बीमारी से लेकर गंभीर रोगों से बचाव के लिए दवाओं की उपलब्धता जन औषधि केंद्रों पर है। चिकित्सक अंग्रेजी दवा लिखकर देते हैं, ऐसे में मरीज जनऔषधी केंद्रों पर कम ही आता है।

-राहुल भारद्वाज

जन औषधि केंद्रों पर सर्जिकल आइटमों की बिक्री होने से निजी चिकित्सकों को राहत मिली है। क्योंकि यहां पर मिलने वाले आइटमों के दाम कम होते हैं।

-शिखा तिवारी

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सुझाव:

1.सभी जन औषधि केंद्रों पर दवाओं की आपूर्ति समय से होनी चाहिए। इससे मरीजों को होगी आसानी।

2.जन औषधि केंद्रों के खोलने का समय निर्धारित होना चाहिए। रात के समय में भी इन केंद्रों को खुलना चाहिए।

3.सरकारी अस्पतालों में तैनात चिकित्सक जेनेरिक दवाओं को लिखें तो केंद्रों पर मरीजों की संख्या बढ़ेगी।

4.जेनेरिक दवाओं का प्रचार-प्रसार होने से लोगों को इन केंद्रों के बारे में आसानी से जानकारी मिल सकेगी।

5.जन औषधि केंद्रों पर सभी प्रकार की दवाएं मिलनी चाहिए। इससे लोगों को आसानी होगी।

शिकायत:

1.जन औषधि केंद्रों पर सभी प्रकार की दवाओं की उपलब्धता नहीं।

2.केंद्रों के खोलने का समय भी निर्धारित नहीं। रात के समय यह केंद्र रहते हैं बंद।

3.जन औषधि केंद्रों का प्रचार-प्रसार नहीं होने से लोगों में जानकारी का आभाव।

4.चिकित्सक जेनेरिक के बजाय अंग्रेजी दवा पर्चें पर लिखते हैं। जिससे मरीजों को होती है असुविधा।

5.जन औषधि केंद्रों पर यदि सभी प्रकार की दवाएं मिलने लगेंगी तो लोगों को काफी राहत मिलेगी।

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कोट::

जन औषधि केंद्र संचालकों की जो-जो समस्याएं हैं। उनका जल्द ही निस्तारण कराया जाएगा। इसके लिए जल्द ही इन संचालकों की बैठक बुलाई जाएगी और उनसे वार्ता कर समस्याओं को दूर करने की पहल होगी।

-अतुल आनंद, जिला औषधि निरीक्षक

जन औषधि केंद्रों को खोलने का मकसद सिर्फ लोगों को सस्ती दवाओं को उपलब्ध कराना है। जिले में दो हजार से अधिक दवाएं, तीन सौ से अधिक सर्जिकल का सामान बाजार से 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती और गुणवत्ता के साथ दिया जा रहा है। अपने नजदीकी केंद्र का पता लोग सुगम एप के माध्यम से लगा सकते हैं।

-अमित कुमार, नोडल अधिकारी, जन औषधि परियोजना, यूपी वेस्ट

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