खून की जांच से पता चलेगा पैर काटना है या नहीं, नसों की सही स्थिति आ जाएगी सामने
- सही समय पर डायबिटिक न्यूरोपैथी के मरीजों की ब्लड और नर्व कंडक्शन की जांच हो जाए तो पैरों को काटने से बचाया जा सकता है। शोध करने वाले बॉयोकेमिस्ट्री के डॉ. मोहन राज पीएस ने बताया कि डायबिटिक न्यूरोपैथी में मरीजों के पैर तक काटने पड़ते हैं। एम्स में इलाज कराने वाले मधुमेह के 86 मरीजों पर शोध किया गया।
AIIMS Research: अब खून की कुछ बूंदों से पता चल जाएगा कि अल्सर पीड़ित मरीजों का पैर काटना पड़ेगा या नहीं। खून की जांच से ही पैरों की नसों की सही स्थिति पता चल जाएगी। डायबिटिक न्यूरोपैथी पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी के चिकित्सकों ने शोध किया है। यह शोध पत्र क्यूरियस जनरल ऑफ मेडिकल में प्रकाशित भी हो चुका है।
शोध के मुताबिक, अगर सही समय पर डायबिटिक न्यूरोपैथी के मरीजों की ब्लड और नर्व कंडक्शन की जांच हो जाए तो पैरों को काटने से बचाया जा सकता है। शोध करने वाले बॉयोकेमिस्ट्री के डॉ. मोहन राज पीएस ने बताया कि डायबिटिक न्यूरोपैथी में मरीजों के पैर तक काटने पड़ते हैं। इसे लेकर एम्स में इलाज कराने वाले मधुमेह के 86 मरीजों पर शोध किया गया। इसमें चयनित मरीजों को दो ग्रुप बांटा गया। एक ग्रुप में डायबिटीज टाइप-2 के 43 मरीजों को रखा गया जबकि दूसरे ग्रुप में डायबिटिक न्यूरोपैथी के 43 मरीजों को शामिल किया गया।
डायबिटिक न्यूरोपैथी के सभी 43 मरीजों के खून के सैंपल लिए गए। इसके बाद फिजियोलॉजी विभाग में नर्व कंडक्शन की जांच कराई गई। इसमें पाया गया कि 43 मरीजों को चलने से लेकर बैठने तक की दिक्कत थी। उनके पैरों में संवेदना (सुन्नता नहीं), झुनझुनी, जलन, दर्द, निचले पैरों में और पैरों पर बिस्तर रगड़ने पर जलन नहीं हो रहा था। गर्म और ठंडे पानी का भी पता नहीं चल पा रहा था। पैरों की नसें काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। उनका रक्तचाप भी ज्यादा मिला। मांसपेशियों में ताकत भी बेहद कम मिली। इसके आधार पर छह मिलीलीटर रक्त लेकर जांच की गई तो रक्त की बूंदों से अल्सर बीमारी की सही जानकारी मिली।
35 से 65 वर्ष की उम्र के मरीजों का लिया गया सैंपल
डॉ. मोहन ने बताया कि मधुमेह से पीड़ित 35 से 65 वर्ष के मरीजों का ब्लड सैंपल लिया गया। सैंपल में पहले जांच मधुमेह की गई। इसके बाद जांच से यह पता किया गया कि डायबिटिक न्यूरौपथी किन-किन मरीजों में हैं। इन मरीजों के फिर से ब्लड सैंपल लिए गए। इसके बाद उनके अल्सर जांच के लिए फिजियोलॉजी विभाग में उनके नसों की जांच की गई। जांच में पता चला कि अल्सर के कारण 43 मरीजों में करीब 80 फीसदी मरीजों की नसें काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। इनके पैरों में जान न के बराबर थी।