आज के दौर में वफा ही नहीं, कौन दे दो कोई सिला ही नहीं
Bijnor News - नजीबाबाद में बज़्म ए जिगर द्वारा शायर शहादत अली निज़ामी के सम्मान में शेरी नशिस्त आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में कई शायरों ने अपने उम्दा कलाम पेश किए, जिसमें डॉ. रईस अहमद भारती, शहबाज़ अख्तर...
नजीबाबाद। बज़्म ए जिगर नजीबाबाद की ओर से शायर शहादत अली निजा़मी के सम्मान में एक शेरी नशिस्त का आयोजन किया गया। जिसमें शेरों ने उम्दा कलाम पेश कर वाहवाही लूटी। मौहल्ला मेहंदीबाग में शायर डॉक्टर रईस अहमद भारती के आवास पर आयोजित शेरी नशिस्त का आग़ाज़ डॉक्टर तैय्यब जमाल ने नात ए रसूल ए पाक से हुआ। शहबाज़ अख्तर नजीबाबादी ने कहा..बीती बातों को याद कर कर के, मैं तो जीता हूँ रोज़ मर मर के। शायर उबैद नजीबाबादी ने रखना होता है कही और कही रखता हूँ, कोई सामान सलीके से नही रखता हूँ। शायर आसिफ मिर्ज़ा ने कहा..तुम्हारे एक नही ने बचा लिया वरना, तुम्हारे प्यार का अहसा उतारता कैसे। डॉक्टर तैय्यब जमाल ने..जिस का अहसास ए कल्ब मर जायें, जिंदा एक लाश है जिधर जाये। शेरी नशिस्त की निजा़मत कर रहे शायर शादाब जफर ने कहा...आज के दौर में वफा ही नही, कौन दे दो कोई सिला ही नहीं।
बुजुर्ग उस्ताद शायर डॉक्टर नसीम अख्तर मुल्तानी ने कहा...कभी बदली नही कश्ती, कभी दरिया नही बदला। भले ही डूब जाये हम, मगर जज़्बा नही बदला। मेज़बान बुजुर्ग उस्ताद शायर डाक्टर रईस अहमद भारती ने कहा...ये कहना है दानाओ का इक दिन ऐसा आयेगा, हंस चुगेगा दाना तुनका कव्वा मोती खायेंगा। दिल्ली से आए मेहमान शायर शहादत अली निजा़मी ने कहा...मेरे दिल पर वो अपनी हुक्मरानी छोड जाता है, रूलाकर जो मेरी आंखों में पानी छोड़ जाता है। शेरी नशिस्त की सदारत कर रहे शायर मौसूफ अहमद वासिफ ने कहा...दबे दबे हुए पाँव से आ रहा है कोई, गर्दिशो छोड़ दो पीछा बुला रहा है कोई। इन तमाम शायरों ने उम्दा कलाम पेश कर शेरी नशिस्त में खूब वाहवाही लूटी। शेरी नशिस्त की अध्यक्षता शायर मौसूफ अहमद वासिफ ने की व संचालन शादाब जफर शादाब ने किया। शेरी नशिस्त के मेहमान ए खुसुसी शहादत अली निजा़मी व डॉक्टर नसीम अख्तर मुल्तानी रहे।
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