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बोले बिजनौर : कम मानदेय और ज्यादा काम, समस्याओं का हो समाधान

Bijnor News - सरकारी वाहन चालक पुराने वाहनों को चलाने के लिए मजबूर हैं, जो 15 साल से अधिक पुराने हैं। वेतन कम और कार्य के घंटे लंबे हैं, जिससे उनकी सुरक्षा और कार्य-जीवन संतुलन प्रभावित हो रहा है। अधिकारियों से कई...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिजनौरMon, 28 April 2025 02:41 AM
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बोले बिजनौर : कम मानदेय और ज्यादा काम, समस्याओं का हो समाधान

रात-दिन ड्यूटी करने वाले सरकारी वाहन चालक जान हथेली पर रखकर पुराने वाहन चलाने को मजबूर हैं। सीएमओ दफ्तर समेत ज्यादातर दफ्तरों के वाहन 15 साल से अधिक पुराने हो चुके हैं। गाड़ियों के उचित रखरखाव की जिम्मेदारी तो चालकों के मत्थे है, लेकिन गाड़ियों के खड़े करने के लिए बने गैराज रिकॉर्ड रखने में इस्तेमाल हो रहे हैं। चालकों की माने तो गर्मी व सर्दी की वर्दी के लिए पांच साल में एक बार दी जाने वाली नाकाफी रकम भी उन्हें नहीं मिलती। इसके अलावा काम के घंटों की लंबी अवधि, कम वेतन, खराब कार्य-जीवन संतुलन और सुरक्षा के प्रति खतरा प्रमुख हैं। प्रशासन से कई बार मांग करने के बाद भी समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है।

सरकारी वाहन चालक भले ही किसी भी विभाग के हो, कमोबेश उनकी परेशानियां लगभग एक सी हैं। यह बात सीएमओ दफ्तर परिसर में स्थित स्वास्थ्य विभाग के राजकीय वाहन चालक संघ कार्यालय में जुटे विभिन्न सरकारी महकमों के वाहन चालकों से बातचीत में उजागर हुई। सीएमओ दफ्तर के वाहन चालकों ने कहा कि वे अधिकांशत: 15 साल से अधिक पुराने हो चुके वाहनों को चलाने को मजबूर हैं, जो कि नियमानुसार निष्प्रयोज्य घोषित हो जाने चाहिए और इन्हें चलाना घातक हो सकता है।

अन्य कईं विभागों के चालकों ने अपने यहां भी ऐसी ही स्थिति बताई। एक मलाल यह भी है कि रात दिन अफसरों की ड्यूटी बजाने वाले सरकारी वाहन चालकों का शुरु से अब तक चला आ रहा 1900 का वेतनमान बहुत कम है। सीएमओ कार्यालय की बात करें तो यहां पर गाड़ियां खड़ी करने के लिए सात गैराज हैं, लेकिन एक में भी गाड़ी खड़ी नहीं होती। वाहन चालकों के मुताबिक इन सब गैराजों में विभाग का रिकॉर्ड भरा हुआ है।

खास बात यह है कि इनमें जो रिकॉर्ड भरा है, वह यहां तैनात रहे पूर्व लिपिकों द्वारा भरा गया था जो स्थानांतरित होकर अन्य जनपदों को जा चुके हैं और उनके द्वारा यह अभी तक इनका चार्ज हैंडओवर ही नहीं किया गया है। सरकारी वाहन चालकों को यूं तो 24 घंटे में कहीं भी इमरजेंसी में जाना पड़ सकता है, इसके मद्देनजर 13 महीने का वेतन दिया जाता है, लेकिन वाहन चालकों के मुताबिक यह नाकाफी है। मार्च माह के मानदेय के समय मूल वेतन के साथ में उत्तराखंड आदि राज्यों की तरह डीए जोड़ा जाना चाहिए।

पुरानी पेंशन (ओल्ड पेंशन स्कीम) को सभी वाहन चालक तत्काल लागू किए जाने के पक्षधर हैं। इसे लेकर सभी बीते वर्ष दिल्ली के रामलीला में अटेवा के बैनर तले आंदोलन प्रदर्शन में पहुंचकर अपना रुख जता चुके हैं। वाहन चालकों के अनुसार गाड़ी में पंक्चर लगवाना और गाड़ी धुलाई भी चालकों को अपने पास से करानी पड़ती है। रिटायर होने पर अपने देयकों के लिए भटकना पड़ता हैं। जहां एक ओर अन्य सरकारी कर्मचारी आठ घंटे काम करने के बाद हाथ झाड़कर हाथ खड़े हो जाते हैं, इसके विपरीत वाहन चालकों को अमूमन 16 घंटे काम करना पड़ता है। राजकीय वाहन चालक संघ, स्वास्थ्य विभाग मंत्री नरेन्द्र कुमार के मुताबिक अफसरों को भी सोचना चाहिए और वाहन चालक भी कोशिश करें कि आठ-दस घंटे से अधिक गाड़ी न चलाएं।

चालक को नींद भी आ सकती है और दुर्घटना भी घट सकती है। उनका संगठन लगातार चालकों को वर्दी दिलाने, शासनादेश के अनुसार वर्दी धुलाई भत्ता 60 रुपये के बजाए 90 रुपये दिलाने, ऑफ रोड वाहनों को निष्प्रयोज्य कराने की कार्यवाही कर नीलाम कराने, वाहन चालकों को लॉग बुक दिलाने, वाहन चालकों की जीपीएफ/पासबुक/सर्विस बुक को पूरा कराने आदि मांग करता चला आ रहा है।

कोरोना को मात देने के लिए रोज लगाई लखनऊ की दौड़

कोरोना के जटिल समय में इन वाहन चालकों ने फ्रंट लाइन कोरोना योद्धा बनकर काम किया। बिजनौर से कोविड की जांच को सैम्पल एकत्र कर रोजाना लखनऊ की दौड़ लगती थी। स्वास्थ्य विभाग वाहन चालक अध्यक्ष मानवीर सिंह के अनुसार पहले केजीएमसी लखनऊ सैंपल जाते थे, फिर एसजीपीजीआई लखनऊ जाते थे। इसके बाद नोएडा लैब रोजाना भेजे जाते थे और फिर मेरठ भेजे जाने लगे थे। वाहन चालक विजयपाल बताते हैं कि अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना सैम्पल गिनवाते थे और नाम और नंबर मैच कराने का भी काम करते थे। लॉकडाउन में खाना भी दो दिन का घर से बांधकर ले जाते थे जो लखनऊ की दौड़ में एक टाइम सब्जी से खा लेते थे, लेकिन सब्जी खराब होने पर खाली पूरी खाकर पेट की भूख शांत करते थे।

स्वाहेड़ी के समीप एलवन फैसिलिटी में ड्यूटी करने वाले वाहन चालक फ्रेंक आस्किन खुद कोरोना की चपेट में आए तो सुशील भी न बच सके। कई वाहन चालक चपेट में आए, लेकिन ठीक होकर फिर से कोरोना से जंग में जुट गए। वाहन चालक बताते हैं कि अन्य कर्मियों फार्मेसिस्ट, एलटी, डेटा आपरेटर, आशा, एएनएम आदि को प्रोत्साहन राशि भी मिली, लेकिन रोज जोखिम उठाने वाले वाहन चालकों को प्रोत्साहन राशि तो क्या प्रमाणपत्र तक नहीं मिला।

कैंपस में बाहरी गाड़ियों के कारण आए दिन परेशानी

वाहन चालकों के मुताबिक सीएमओ कार्यालय कैम्पस में लोग बड़ी संख्या में बाहरी गाड़ियां खड़ी कर चले जाते हैं। हटाने को कहने पर वाहन चालकों से मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। इनमें जेल मिलाई को आने वाले लोग, कुछ व्यापारी, कुछ छुटभैये नेता, कुछ बाजार में किसी काम से आने वाले शामिल रहते हैं, जिन्होंने इसे निजी पार्किंग बनाकर रख दिया है।

शिकायतें

1. ज्यादातर दफ्तरों के वाहन 15 साल से अधिक पुराने हैं।

2. जान जोखिम में डालकर वाहन चालक पुरानी गाड़ियां चलाने को मजबूर हैं।

3. वाहनों को खड़े करने के लिए बनी पॉर्किंग में रिकॉर्ड भरा हुआ है।

4. सीएमओ कार्यालय परिसर में खड़े रहते बाहरी वाहन परेशानी का सबब हैं।

5. प्रावधान होने के बावजूद वर्दी नहीं मिलती है।

6. बच्चों को स्कूल ले जाने व अन्य घरेलू कार्यों में भी वाहन चालकों का शोषण होता है।

सुझाव

1. पुराने वाहन निष्प्रयोज्य घोषित कर नए वाहन दिए जाएंं।

2. नए वाहन होंगे तो चालक पुरानी गाड़ियां चलाने को मजबूर नहीं होंगे।

3. वाहनों को खड़े करने के लिए बनी पॉर्किंग में भरा रिकॉर्ड कहीं ओर रखवाया जाए।

4. सीएमओ कार्यालय परिसर में बाहरी वाहन खड़े करने वालों पर अंकुश लगे।

5. हर वित्तीय वर्ष में वाहन चालकों को वर्दी दिलाई जाए।

6. अफसरों के बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने आदि कार्यों में वाहन चालकों का शोषण रोका जाए।

क्या बोले चालक

अधिकतर वाहन 15 वर्ष पुराने हैं, जिन्हें चालक जोखिम उठाकर चलाने को मजबूर हैं। ऐसे वाहनों को निष्प्रयोज्य घोषित कर बदला जाए। - जबर सिंह

आउटसोर्स सरकारी वाहन चालकों को एक तो मानदेय ही कम मिलता है, ऊपर से तीन माह से इसके भी लाले हैं। -नसीम अहमद

13 महीने का वेतन 24 घंटे में कभी भी इमरजेंसी कार्य के लिए मिलता है नाकाफी है। मार्च के मानदेय में उत्तराखंड की तरह डीए जोड़ दिया जाए। -नरेन्द्र कुमार, जिला मंत्री

सात गैराज है, लेकिन सातों में बाबुओं ने रिकार्ड भर रखा है। इन्हें कहीं ओर रखवाकर वाहनों के खड़ा करने की गैराज में व्यवस्था की जाए। - मानवीर सिंह, अध्यक्ष स्वास्थ्य विभाग

रात दिन खून पसीना बहाते हैं, जबकि बाबू समय से छुट्टी कर चले जाते हैं। स्टार्टिंग वेतनमान 1900 बहुत ही कम है, बढ़ना चाहिए। - फ्रेंक आस्किन

आवास खंडहर हैं। सीएमओ कार्यालय पर तो कोई रहने लायक ही नहीं है। लोनिवि बुखारा कालोनी के आवासों में कईं पुलिसवाले रहते हैं, जबकि उनके लिए पुलिस लाइन व थानों में भी मकान बने हैं। - हरपाल सिंह

कैंपस में बाहरी गाड़ियां आकर खड़ी कर जाते हैं। सरकारी गाड़ी खड़ी करने को कई बार जगह नहीं बचती। ऐतराज करने पर मारपीट पर उतारु हो जाते हैं। - अमित मेहरोत्रा

तीन माह हो गए। आउटसोर्सिंग पर रखे हुए वाहन चालक व अन्य कर्मियों को वेतन नहीं मिला है। वेतन नियमित मिलना चाहिए। - शकील अहमद

गैराज में यहां से तबादला होकर जा चुके लिपिक रिकॉर्ड रखकर ताला लगाए हुए हैं। ताला खुलवाकर यह रिकॉर्ड हैंडओवर कर गैराज गाड़ियों के लिए इस्तेमाल होने चाहिए। - वीर सिंह

सर्विस बुक में कोई त्रुटि है, जिसके कारण 15-16 साल से अन्य चालकों की अपेक्षा वेतन कम मिल रहा है। मौखिक व लिखित शिकायत के बावजूद सुनवाई नहीं हो रही। - मधुसूदन वर्मा

वाहन चालकों को जोखिम उठाकर रात दिन दूरस्थ स्थानों तक जाना पड़ता है। सरकारी वाहन चालकों को शस्त्र लाइसेंस प्राथमिकता के आधार पर मिलने चाहिए। - विजयपाल

ग्रीष्मकालीन वर्दी या शीतकालीन वर्दी हर वर्ष मिलनी चाहिए। कम्बल के लिए 300 रुपये व 246 रुपए जूते खरीदने के लिए रकम बहुत कम है। - सुशील कुमार

अफसरों को भी चाहिए, कि वाहन चालकों से 8-10 घंटें से अधिक ड्यूटी न लें। चालक को नींद की झपकी आने पर अफसर भी हादसे के शिकार हो सकते हैं। - सुनीलदत्त शर्मा, जिला महामंत्री

कलक्ट्रेट में अफसरों की मीटिंग होने पर चालक कईं घंटे खड़े रहते हैं। धूप में गाड़ी में भी नहीं बैठ सकते। बारिश, जाड़ा, गर्मी से बचाव को बैठने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। - ललित कुमार, जिला मंत्री राजस्व विभाग

पुरानी पेंशन (ओपीएस) की चली आ रही मांग वाहन चालकों व सभी कर्मचारियों की जायज मांग है। सरकार को पुरानी पेंशन बहाल कर देनी चाहिए। - राजेंद्र  सिंह, जिलाध्यक्ष विकास भवन

ऑफरोड वाहनों को निष्प्रयोज्य घोषित कर इन्हें नियमानुसार नीलाम किया जाना चाहिए। रिटायर होने वाले चालकों के सभी देयकों का समय से भुगतान हो। - विकास  पाठक, गन्ना विभाग

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