Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़भदोहीWorshiping Mother Brahmacharini to defeat disease and grief

माता ब्रह्मचारिणी को पूजकर रोग व शोक हरने की कामना

‘चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है... नवरात्र के दूसरे दिन रविवार को माता रानी के दर्शन-पूजन के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिरों पर उमड़ पड़े। मां ब्रह्मचारिणी को पूजने के लिए मंदिरों पर...

Newswrap हिन्दुस्तान, भदोहीMon, 19 Oct 2020 03:06 AM
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‘चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है... नवरात्र के दूसरे दिन रविवार को माता रानी के दर्शन-पूजन के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिरों पर उमड़ पड़े। मां ब्रह्मचारिणी को पूजने के लिए मंदिरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। माता रानी के चरणों में शीश नवाकर लोगों ने रोग और शोक हरने की प्रार्थना की। शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में मां के जयकारों से माहौल भक्तिमय हो उठा। मंदिरों पर कतारबद्ध श्रद्धालुओं ने मां अम्बे को नारियल-चुनरी चढ़ाया।

नवरात्र के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा का विधान है। देवी मंदिरों में रविवार की सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिए गए। भदोही शहर, ज्ञानपुर, औराई, गोपीगंज, सुरियावां, नई बाजार, मोढ़, चौरी, दुर्गागंज, महजूदा, अभोली, ऊंज, जंगीगंज, महराजगंज, बाबूसराय, पाली आदि क्षेत्रों में पूरे दिन दर्शन-पूजन का क्रम चलता रहा। काफी संख्या में आस्थावानों ने मां के दर्शन किए और अपने मन की मुरादें पूरा करने की प्रार्थना की।

पूजा पंडालों में भी विधि-विधान से पूजन-अर्चन व आरती हुई और मां के जयकारे गूंजे। पंडालों में लोग दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं। जनपद से तमाम श्रद्धालु विंध्याचल की मां विंध्यवासिनी व मध्य प्रदेश में मैहर माता के दर्शन को रवाना हुए। यहां से विंध्याचल, इलाहाबाद, मैहर आदि जगहों पर जाने वाली बसों में काफी भीड़ रही। श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने वाराणसी, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर डिपो से अतिरिक्त बसें भी चलाईं।

तमाम श्रद्धालु कालीन नगरी के मंदिरों में दर्शन करने के बाद मां विंध्यवासिनी व मैहर माता के दर्शन को गए। सड़कों पर बसों व निजी वाहनों में चुनरी बांधे श्रद्धालु अद्भुत छटा प्रस्तुत कर रहे थे। महिलाओं ने अपने बच्चों का मंुडन व अन्य संस्कार भी कराए। फूल-माला, नारियल-चुनरी, प्रसाद के अलावा देवी मां को रोट का भोग लगा। जनपद के प्रसिद्ध व ऐतिहासिक मंदिरों के अलावा भी गांवों में बने देवी मंदिरों में और नीम के पेड़ की भी जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना की गई।

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