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बोले बस्ती : 12 साल में दो हजार मानदेय बढ़ा, तैनाती भी कई किमी दूर

Basti News - बस्ती के परिषदीय विद्यालयों में अनुदेशकों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। उन्हें कम मानदेय और ट्रांसफर की सुविधा नहीं मिल रही है। महिला अनुदेशकों को मातृत्व अवकाश नहीं मिलता, जबकि सामान्य समस्याओं का...

Newswrap हिन्दुस्तान, बस्तीSat, 1 March 2025 09:31 AM
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बोले बस्ती : 12 साल में दो हजार मानदेय बढ़ा, तैनाती भी कई किमी दूर

Basti News : परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़े। जूनियर हाईस्कूल के बच्चों में कम्प्यूटर, कला, पेटिंग, गृहशिल्प, खेल व शारीरिक शिक्षा के प्रति रुझान और ज्ञान में बढ़ोत्तरी हो। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए 2013 में सरकार ने अनुदेशकों की नियुक्ति की। महज 7000 रुपये मानदेय से शिक्षण कार्य शुरू करने वाले अनुदेशकों को अगले 12 वर्षों में 2000 की बढ़ोत्तरी मिली। समान कार्य पर समान वेतन की बात इनके लिए बेमानी है। इनकी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं है। यह दर्द अनुदेशकों ने ‘हिन्दुस्तान से वार्ता के दौरान साझा किया। नियर विद्यालय में विशेष विशेषज्ञ के तौर पर नियुक्त अनुदेशक पूरे समय स्कूल में तैनात रहते हैं। निर्धारित समय पर स्कूल पहुंचने के साथ विद्यालय बंद होने पर अपने घरों को जाते हैं। नियुक्ति के समय जो नियम बताए गए, बाद में उसका अनुपालन नहीं किया गया। यहीं से अनुदेशकों की दुश्वारियां शुरू हुईं। आवेदन के समय बताया गया कि अनुदेशक की तैनाती गृह ब्लॉक में होगी। नियुक्ति-पत्र मिला तो दुबौलिया के अनुदेशक को रुधौली में तैनाती मिली तो कोई बनकटी से परसुरामपुर पहुंच गया। 50 से 70 किमी का सफर तय कर अनुदेशक अपने विद्यालय जाते हैं। समय से विद्यालय पहुंचने के साथ यात्रा भत्ता उनके लिए एक चुनौती होता है। जितना मानदेय मिलता है, वह तेल और यात्रा खर्च पर व्यय हो जाता है।

नियुक्ति के समय बस्ती में कुल 403 अनुदेशकों की तैनाती हुई। यह 407 विद्यालय ऐसे थे, जहां पर जूनियर की कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या 100 से अधिक थी। लेकिन समय के साथ कई अनुदेशक साथी अपने कार्य के साथ न्याय नहीं कर पाए और वे विद्यालय को छोड़ते गए। इस समय जिले में अनुदेशकों की संख्या 356 है। अब जिले में 100 छात्र संख्या वाले कई अन्य विद्यालय हो गए हैं, लेकिन जरूरत होने के बाद भी इन विद्यालयों में अनुदेशकों को ट्रांसफर नहीं किया जाता है। यदि ऐसा कर दिया जाए तो अनुदेशक सुविधानुसार अपने ब्लॉक में पहुंच सकते हैं। संघ के नरेन्द्र सिंह का कहना है कि इस मुद्दे पर अधिकारी से लेकर शासन प्रशासन कोई सुनने वाला नहीं है।

अनुदेशकों का कहना है कि अधिकारी हमारे साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं। हमारी हाजिरी ऑनलाइन होनी चाहिए। 50 से 60 किमी दूरी तय करने में कभी जाम या अन्य समस्या के चलते 10 मिनट की देरी हो तो बताने के बाद भी अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते हैं।

अपनी बात रखने पर छात्र संख्या का हवाला देकर नवीनीकरण नहीं करने की अपरोक्ष धमकी दी जाती है। अनुदेशकों को रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण देने के लिए तैनात किया जाता है। दूसरे विद्यालय पर जाने का दबाव रहता है, लेकिन सुविधा के नाम पर कोई सहयोग नहीं मिलता है। यह प्रशिक्षण ऑनलाइन होता है। इसके लिए अच्छी क्वालिटी का मोबाइल और डाटा चाहिए, जो अनुदेशक के पास नहीं होता है। इतना ही नहीं, रानी लक्ष्मीबाई प्रशिक्षण का मानदेय भी समय से नहीं दिया जाता है। 24 दिनों का प्रशिक्षण देने के बाद महज 2000 रुपये मिलते हैं, जो वहां आने-जाने के खर्च में चला जाता है।

अनुदेशकों को शिक्षक के रूप में मिले तैनाती

अध्यक्ष परिषदीय अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन प्रमोद कुमार पांडेय बताते हैं कि जिले में कुल 356 अनुदेशक है। मानदेय कम मिलने की लड़ाई साथियों ने लड़ना शुरू किया। सरकार नहीं सुनी तो कोर्ट तक पहुंच गए। कोर्ट ने हमारी बातों को जायज माना और सरकार को आदेश दिया कि हमारा मानेदय 17 हजार रुपये कर दिया। इस मानदेय का भुगतान 2017 से अब तक ब्याज के साथ जोड़कर किया जाए। सरकार ने इस निर्णय को नहीं माना। इसके विरूद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। अब वहां से भी हम सभी न्याय की उम्मीद लगाए हैं कि हमारे मानदेय में बढ़ोत्तरी होगी। हमारी मांग है कि कम से कम 30 हजार रुपये मानदेय मिले तो परिवार व घर चले।

महामंत्री अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन रमाकांत चौधरी कहते हैं कि ‘समान कार्य का समान वेतन मिलना चाहिए। हमने अपने जीवन के 12 वर्ष बतौर अनुदेशक शिक्षक गुजार दिया है। जिले में 2013 में अनुदेशकों की नियुक्ति हुई। अधिकांश पर नौकरी के लिए लिहाज से ओवर एज हो गए हैं। अब कहीं अन्य जगह पर नौकरी मिलने से रही, ऐसे में हम कहां जाएं। यह अल्प मानदेय रास्ते के खर्च को भी पूरा नहीं करता है।

परिवार की जिम्मेदारी है, जिसका निर्वहन करना काफी कठिन होता है। हमें भी राज्य कर्मचारी की तरह नियमित किया जाए। वेतन व अन्य सुविधा मिले। मानदेय बढ़ोत्तरी को लेकर अनुदेशकों ने कई बार मांग उठाया। जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर पर आंदोलन हुआ। संगठन के प्रदेश पदाधिकारियों का शासन स्तर पर सचिवों से वार्ता हुई। अधिकारियों की तरफ से आश्वासन भी दिया गया, लेकिन बजट में धनराशि का कोई प्राविधान नहीं किया गया है। इस कारण हम अनुदेशक स्वयं को ठगा महसूस कर रहे हैं। इतना ही नहीं हमें अन्य कार्य में लगाया जाता है। निर्वाचन जैसे महत्वपूर्ण कार्य में ड्यूटी लगती है।

आधार कार्ड बनवाने का भी जिम्मा दिया जाता है। मीना मंच के कार्यक्रम में अनुदेशकों को भेज दिया जाता है, जबकि महिला शिक्षिका को जाने का प्राविधान है। यदि महिला शिक्षिका नहीं है तो उस विद्यालय के पुरुष शिक्षक को भेजा जाना चाहिए। अनुदेशक को भेजने का कहीं भी शासनादेश व निर्देश नहीं है। इसके उलट प्रधानाध्यापक अनुदेशक के जिम्मे ‘मीना मंच कर देता है

महिला अनुदेशक मातृत्व अवकाश से भी वंचित

महिला शिक्षिकाओं की तुलना में महिला अनुदेशकों के साथ सौतेला व्यवहार होता है। उन्हें महिला शिक्षिकाओं की तरह सुविधा नहीं मिलती है। महिला अनुदेशक सरोज और रचना का कहना है कि नियुक्ति के समय कई महिला अनुदेशक अविवाहित थीं। नियुक्ति के बाद उनका विवाह गैर जनपद व अन्य ब्लॉक में अपने निर्धारित विद्यालय से दूर हो गया। अब उनके ट्रांसफर की कोई व्यवस्था नहीं है।

महिला अनुदेशक परिवार और रोजगार के बीच फंस गईं। अनुदेशक रहें तो ससुराल व परिवार से दूर हो जाएंगी। इसके चलते कई महिला अनुदेशकों को त्यागपत्र देकर परिवार को प्राथमिकता दी। हमारे साथ आम तौर पर भेदभाव होता है। महिला अनुदेशक सरोज और रंजना का कहना है कि हमारी सामान्य समस्याओं को भी सरकार से लेकर विभाग तक मानने को तैयार नहीं है। मैटरनिटी लीव की हम अनुदेशकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण हमारे साथ अन्याय होता है। हम भी शिक्षक हैं और मैटरनिटी लीव नहीं मिलने पर हमारा काम कैसे चलेगा। इतना ही नहीं हम अपने नवजात को लेकर विद्यालय कैसे जाएं। नवजात को किसके सहारे छोड़ें। अल्प मानदेय में आया भी नहीं रख सकते हैं। यह हमारी मूलभूत समस्याएं हैं, लेकिन इस पर सुनवाई करने के लिए कोई तैयार नहीं है। शासन-प्रशासन इन मांगों को अनसुना कर देता है तो विभागीय अधिकारी नियमों का हवाला देकर उत्पीड़न करते हैं। अनुदेशक रजनी का कहना है कि मैटरनिटी लीव और चाइल्ड केयर लीव की कौन कहे, विभाग की तरफ से दिया जाना वाले शीत अवकाश भी हमें अनुमन्य नहीं है।

यह अवकाश प्रकृति, व्यवस्था, छात्र हित और विभागीय नियमों के तहत होता है, लेकिन इससे हमें अलग कर दिया जाता है। 15 दिनों के शीत अवकाश और 15 दिनों के ग्रीष्मावकाश का मानदेय काट लिया जाता है। हमें केवल 11 माह का मानदेय मिलता है और वर्ष में दो बार अनुदेशक बेरोजगार हो जाता है। यदि महिला अध्यापकों को 100 की संख्या वाले अन्य विद्यालयों में ट्रांसफर करने की नीति बन जाए तो उनकी कई दिक्कतों को आसानी से हल हो सकता है।

शिकायतें

- अनुदेशकों का मानदेय काफी कम है।

- अनुदेशकों से केवल 11 माह की सेवा ली जाती है।

- गृह क्षेत्र से तैनाती वाले विद्यालयों की काफी दूरी है।

- अनुदेशकों को चिकित्सीय सुविधा नहीं है।

- महिलाओं को सीसीएल और मैटरनिटी लीव नहीं मिलता है।

- अनुदेशकों का स्थानान्तरण नहीं होता है।

- अन्य विद्यालयों पर भेजे जाने का प्रशिक्षण भत्ता काफी कम है।

सुझाव

-कोर्ट के आदेशानुसार हमारा मानदेय दिया जाए।

- शिक्षकों की तरह 12 माह का मानदेय दिया जाए।

- अनुदेशक के निवास स्थान वाले ब्लॉक में तैनाती हो।

- चिकित्सीय सुविधा के लिए अन्य कर्मियों की तरह कैशलेस कार्ड दिया जाए।

-महिला अनुदेशकों को सीसीएल और मैटरनिटी लीव मिले।

- अनुदेशकों का स्थानान्तरण 100 संख्या वाले अन्य विद्यालयों में हो।

-अन्य विद्यालय में भेजकर प्रशिक्षण देने का भत्ता अधिक हो।

हमारी भी सुनें

अध्यापक ऑनलाइन हाजिरी का विरोध कर रहे हैं, लेकिन हमें रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण ऑनलाइन करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

आशुतोष

जिले की बहुत सी महिला अनुदेशकों की शादी अन्य जनपद में हो गई है। उनका शादी वाले जनपद में ट्रांसफर किया जाए।

अलका

सरकार अनुदेशकों को मेडिकल की सुविधा नहीं दे रही है। अन्य कर्मचारियों को कैशलेस चिकित्सा की सुविधा मिल रही है।

जितेन्द्र

अनुदेशकों का मानदेय 9000 रुपये है। इस महंगाई में घर चलना मुश्किल हो रहा है। मानदेय बढ़ाएं व समय से भुगतान किया जाए।

अमरेश यादव

अनुदेशकों को पहले 7000 रुपये मानदेय मिलता था। काफी प्रयास के बाद 9000 रुपये किया गया। मानदेय 30 हजार होना चाहिए।

केशव

महिला अनुदेशकों को चाइल्ड केयर लीव और मैटरनिटी लीव नहीं मिलती है। यह नेचुरल जरूरत है हमें मिलना चाहिए।

रुबीना खातून

हम अनुदेशकों के साथ विभाग में सौतेला व्यवहार होता है। हमसे शिक्षक के रूप में ही काम लिया जाता है। लेकिन सुविधाएं नहीं मिलती।

दिव्या

अनुदेशक तीन विषयों के लिए विशेष तौर पर तैनात किए जाते हैं, यह विषय विशेषज्ञ होते हैं। 100 छात्रों पर तैनाती मिलती है। लेकिन समान वेतन नहीं मिलता।

सुनीता

100 से कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों के अनुदेशकों को हटाने की बात होती रहती है। हमें वहां भेजें जहां पर 100 की छात्र संख्या हो।

तेज बहादुर

शासनादेश के अनुसार अनुदेशकों को गृह ब्लॉक में तैनात करना था। लेकिन नियुक्ति के समय इसका पालन नहीं किया गया।

सनोज

अनुदेशक पिछले 12 वर्ष से काम कर रहे हैं। इसके बाद भी हमारा भविष्य अंधकारमय है। सरकार से मांग है कि हमें नियमित किया जाए।

रमाकांत

खेल के अनुदेशकों को प्रशिक्षण देने के लिए अन्य विद्यालयों में भेजा जाता है। जिसमें अतिरिक्त खर्च होता है। इसका भत्ता मिले।

रामचंद्र

अनुदेशकों को प्रशिक्षण देने के लिए समय-समय पर दूसरे स्कूल में भेजा जाता है। उसका पारिश्रमिक है। वह समय से नहीं मिलता।

रंजना

अनुदेशकों को शीत और ग्रीष्मावकाश के समय में 15-15 दिन, कुल एक माह का मानदेय नहीं दिया जाता है, जो गलत है।

रचना

अनुदेशकों को भी राज्य स्तर के पुरस्कार में शामिल किया जाए। हमें किसी भी प्रकार का कोई पुरस्कार नहीं दिया जाता है।

सरोज

अनुदेशक की नियुक्त विशेष विशेषज्ञ के रूप में की गई है। उनसे शिक्षण के अलावा अन्य काम लिया जाता है। इससे मूल कार्य प्रभावित होता है।

गौतम

अनुदेशक न केवल बेहतर शिक्षा दे रहा है बल्कि बच्चों को खेलों में भी दक्ष बना रहे हैं। इसके बाद भी हमारा मानदेय कम है।

उमेश यादव

50-70 किमी दूर विद्यालयों में अनुदेशकों की तैनाती है। विद्यालय आने-जाने में ही मानदेय खर्च हो जाता है।

नीरज कुमार

महिला अनुदेशकों को शिक्षकों की तरह सीसीएल की सुविधा नहीं है। तबीयत खराब होने पर भी स्कूल आना पड़ता है।

श्वेता मिश्रा

अनुदेशक की मृत्यु होने पर उसके परिवार के किसी सदस्य को शिक्षकों की तरह नौकरी मिले। कम से कम उसका परिवार बेसहारा होने से बचे।

कपिलदेव वर्मा

हम शिक्षकों की तरह सारा काम कर रहे हैं। इसलिए मानदेय बढ़ाते हुए 12 माह का मानदेय दिया जाए। मानदेय सम्मानजनक किया जाए।

चंद्रप्रकाश

महिला अनुदेशकों का समायोजन उनके निवास स्थान के निकट होना चाहिए, जिससे आने-जाने में सुविधा हो सके।

प्रियंका

शिक्षकों को 14 दिनों का वार्षिक अवकाश मिलता है। जबकि अनुदेशकों को केवल 10 दिनों का अवकाश मिलता है।

फूलमती गिरी

कम छात्र संख्या होने पर अधिक छात्र संख्या वाले विद्यालयों में स्थानांतरित किया जाए। मानदेय में बढ़ोत्तरी की जाए।

संजय कुमार

सीसीएल व मेडिकल की सुविधा प्रदान की जाए और तैनाती निकटतम विद्यालयों में की जाए। जिंदगी बोझ लगने लगी है।

दिव्या

अनुदेशकों का नवीनीकरण समाप्त कर उन्हें पूर्णकालिक का दर्जा प्रदान किया जाए। जिससे जीवन कट जाए।

सुनीता

बोले पदाधिकारी

हम अनुदेशकों के साथ विभाग में सौतेला व्यवहार होता है। अधिकारी नवीनीकरण नहीं करने के लिए धमकाते हैं तो विद्यालय पर सहायक अध्यापक व प्रधानाध्यापक चाहते हैं कि अनुदेशक से ही सभी कक्षाओं का संचालन करा लिया जाए। मानदेय कम है, लेकिन गृह ब्लॉक में ट्रांसफर की सुविधा नहीं है। अनुदेशक कम्प्यूटर, कला और शारीरिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को पढ़ता है। समान काम के साथ समान वेतन मिले तो हम अनुदेशकों का भविष्य सुरक्षित हो।

प्रमोद कुमार पांडेय, अध्यक्ष, परिषदीय अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन

जुलाई 2013 में अनुदेशकों की तैनाती विषय विशेषज्ञ के रूप में सौ से अधिक छात्र संख्या वाले उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हुई थी। तब अनुदेशकों को कुल सात हजार रुपये मिलते थे। मार्च 2017 में योगी सरकार आने के बाद अनुदेशकों का मानदेय 17 हजार रुपया कर दिया गया। सरकार द्वारा बढ़ा मानदेय न देने पर मामला कोर्ट में गया। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच से जीतने पर सरकार डबल बेंच चली गई। वहां भी अनुदेशकों की जीत हुई। वर्तमान में सरकार सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर गई है।

अमित कुमार सिंह, जिलाध्यक्ष, पूर्व मा. अनुदेशक कल्याण समिति उप्र

बोले बीएसए

अनुदेशकों की हर समस्या का प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण कराया जा रहा है। उन्हें समय से मानदेय मिले, इसके लिए भी उचित कदम उठाया जा रहा है। अनुदेशकों की विभिन्न मांगों से उच्चाधिकारियों को सूचित कराया जाता है। परिषदीय स्कूलों में शिक्षण कार्य को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। नए सत्र में अधिक से अधिक नामांकन कराने के लिए अभी से कार्ययोजना बनाकर काम करने की आवश्कता है।

अनूप कुमार तिवारी, बीएसए, बस्ती

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