बोले बस्ती : ठोकरों से बचाते हैं मोची पर उनकी राहों में कांटे ही कांटे
Basti News - बस्ती में तुरकहिया मोची टोला के लगभग 100 परिवारों के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी मोची का काम कर रहे हैं। लेकिन अब युवा इस पेशे से दूर होते जा रहे हैं, जिससे इनकी संख्या घट रही है। आर्थिक तंगी और शराब की लत के...
Basti News : बस्ती में नार्मल स्कूल के पीछे तुरकहिया मोची टोला है। इस टोले में लगभग 100 परिवार हैं। तकरीबन 1200 लोग यहां निवास करते हैं । यहां के बाशिंदे पीढ़ी दर पीढ़ी मोची का कार्य करतेे आ रहे हैं। अब यहां के लोग इस पेशे से दूरी बनाने लगे हैं। इस पेशे में शामिल लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। फटे जूते-टूटी चप्पलें व सैंडल बनाना तथा पॉलिश करना इनका काम है। जूता-चप्पल बनाने के तमाम करखाने खुल जाने से मोची का काम तेजी से घट रहा है। युवाओं में तो इसे लेकर रुचि ही नहीं है। बड़े-बुजुर्ग ही यह काम कर रहे हैं। इसकी वजह भी है। दूसरों के पैरों को ठोकरों से बचाने के लिए पसीना बहाने वाले मोचियों की गृहस्थी की राह कांटों से भरी है। ‘हिन्दुस्तान‘ से बातचीत में मोची का कार्य करने वालों ने अपना दर्द साझा किया।
मोची का काम करने वालों के हाथ का हुनर काबिलेतारीफ है। यह एक पारंपरिक पेशा है। फटे जूते और टूटी चप्पलें बनाना तथा पॉलिश करना इनका काम है। ग्राहकों के फटे जूते और टूटी चप्पलों को सिलकर उन्हें मजबूत और नया जैसा बना देना तथा पॉलिश कर चमका देना इनका हुनर है। चमड़े के अन्य उत्पादों की भी ये मरम्मत करने में माहिर हैं। जूते व चप्पल बनाने और उनकी मरम्मत के कारखानों की संख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण अब इनका यहप्रभावित होने लगा है। ये अपना पुस्तैनी काम फुटपाथ पर दुकान लगाकर करते हैं। जूते, चप्पलों की पॉलिश करते हैं। लोगों के पैरों की सुरक्षा के लिए दिन भर पसीना बहाने वाले मोचियों के जीवन में अनेक दुश्वारियां हैं। फुटपाथ पर बोरे की दुकान सजाते हैं। बरसात के समय छत नहीं होने के कारण इन्हें अपनी दुकान समेट लेने को मजबूर होना पड़ता है। चिलचिलाती धूप व कड़ाके की ठंड में भी इन्हें अपनी दुकान बंद ही करनी पड़ती है। दुकान बंद होने के कारण इन्हें आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। इससे इनके परिवार के भरण-पोषण में कठिनाई होती है। इनके बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ने लगता है। आर्थिक तंगी के चलते ये अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाते हैं।
इस पेशे से जुड़े लोगों का कहना है कि दर्जनों लोगों की शराब की लत लग जाने की वजह से अल्प आयु में मौत हो गई। ये लोग प्रतिदिन पुराने जूते व चप्पल की मरम्मत व पॉलिश करते हैं। इस कार्य से कमाए हुए रुपये का बड़ा हिस्सा रोजाना पर खर्च हो जाता है। कुछ लोगों के रोजाना शराब पीने के कारण उनके शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसके कारण अल्पआयु में ही इनकी मौत हो जाती है। इसकी वजह से इनके परिवार वालों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दिवाकर, मायाराम, आकाश कुमार, राहुल बताते हैं कि सरकार को चाहिए कि आधार कार्ड लेकर शराब दे। अगर ये गरीब लोग शराब लेते हैं तो सरकार को चाहिए कि इनको सरकार से मिलने वाली सभी सुविधा को बंद कर दे। यह नियम लागू होने से गरीबों की आर्थिक तंगी काफी हद तक दूर हो जाएगी। इसके लिए सरकार को नशा मुक्ति का अभियान चलाना चाहिए।
मोचियों का कहना है कि रोजाना चौराहे व बाजारों में सड़क की पटरियों पर जमीन पर बैठकर जूता-चप्पल बनाते हैं। इस काम से मुश्किल से रोटी-दाल चल पाती है। आमदनी कम होने के कारण बीमा नहीं करा पाते। दुर्घटना होने पर परिवार बिखर जाता है। प्रेम प्रकाश, अखिलेश कहते हैं कि इनके लिए स्थाई जगह नहीं है। कंपनीबाग चौराहा, पानी टंकी, पक्का बाजार, रोडवेज, दक्षिण दरवाजा के साथ अन्य बाजारों व चौराहों पर दुकानों के सामने अपनी दुकान लगाते हंै। पूरे दिन बीत जाने के बाद बोहनी भी नहीं हो पाती है।
कमाई न होने से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित
मोची पेशे से जुड़े लोग बताते हंै कि पूरा दिन बीत जाने के बाद 100-300 रुपये की कमाई बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं। बरसात, कड़ाके की ठंड व लू में काम ही नहीं आता है। काम नहीं आने पर ब्याज पर रुपये लेकर घर की रोटी-दाल चलानी पड़ती है। वहीं ब्याज के रुपये समय से नहीं चुकाने पर कर्जदार का भी सुनना पड़ता है, जिससे बच्चें की पढ़ाई भी प्रभावित होने लगती है।
पूंजी की कमी से दुकान में सामान नहीं
टाउन क्लब के सामने नार्मल स्कूल बिल्ड़िग के बगल में स्वदेशी जूता व चप्पल की काफी पुरानी दुकान है। इस दुकान के मालिक जहूर अहमद बताते हैं कि उनके पिता ने यह दुकान खोली थी। उनके पिता ने काफी मेहनत करके इस दुकान को आगे बढ़ाया है। यह दुकान काफी मशहूर है। 10 वर्ष पूर्व उनके पिता की मृत्यु हो गई। अब यह दुकान उनकी देख-रेख में चलती है। इन्होंने बताया कि इसमें कमाई तो है, लेकिन इस काम के लिए पहले पूंजी की जरूरत पड़ती है। पूंजी की कमी की वजह से अच्छी आमदनी नहीं हो पाती है। इस कार्य को करने वाले काफी परेशान रहते हैं। बताते हैं कि जूता, चप्पल व इनकी मरम्मत मोची काफी मेहनत करके करता है। कभी-कभी इस कार्य को करने में मोचियों के हाथ में सुई चुभ जाती है, जिसकी वजह से कई दिन तक काम को बंद कर देना पड़ता है। उस समय परिवार के लोग भी परेशान होते हैं। इसके लिए सरकार को चाहिए कि मोची का कार्य करने वालों को पूंजी मिले। बैंक से लोन व सब्सिडी देकर इन्हें बढ़ावा दिया जाए जिससे इनकी व इनके परिवार की समस्या दूर हो सकें।
पूंजी नहीं होने पर फुटपाथ पर लगाते हैं दुकान
तुरकहिया निवासी पारसनाथ, राकेश कुमार के साथ अन्य लोग बताते है कि हम मोचियों के पास पूंजी की कमी है। पूंजी नहीं होने के कारण कोई अन्य व्यवसाय नहीं कर पाते हैं। इसलिए मजबूरी में मोची का काम करते है। इन्होंने बताया कि बैंक से ब्याज पर रुपये लेने के लिए जाते हैं, लेकिन बैंक कर्मियों को कागजात आदि मांगने के बाद रुपये देने से मना कर दिया जाता है। जिसमें पूंजी नहीं होने के कारण थक हार कर मोची का ही काम करते चले आ रहे है।
अल्पायु में पिता की मौत, बच्चे बिना घर के गुजार रहे जीवन
तुरकहिया नार्मल स्कूल के पीछे रहने वाले दिलीप व राजेश कुमार के साथ दर्जनों लोगों ने बताया कि वर्ष 2012 में विन्देश्वरी प्रसाद होश संभालने के बाद मोची का काम करने लगेे थे। पढ़े-लिखे नहीं होने के कारण रोजाना शराब के नशे में घर आते थे। घर में पत्नी के साथ दो छोटे-छोटे बच्चे थे। इनकी इस हरकत से पत्नी व बच्चे आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। विन्देश्वरी प्रसाद के रोजाना शराब पीने की वजह से इनकी पत्नी को बच्चों और घर को लेकर चिंता होने लगी। इसकी वजह से वह बीमार पड़ गई। बीमारी की दवा नहीं होने के कारण विन्देश्वरी प्रसाद की पत्नी की अचानक मौत हो गई। पत्नी की मौत होने के बाद विन्देश्वरी और अधिक शराब पीने लगे। वर्ष 2012 में विन्देश्वरी प्रसाद की मौत हो गई। विंदेश्वरी प्रसाद के दोनों बच्चों का उम्र बहुत कम था, जिसमें बड़ा लड़का आनंद (9) व अमरेन्द्र (7) वर्ष के थे। इन बच्चों का देख-रेख करने वाला भी कोई नहीं था। इन दोनों बच्चों के रहने के लिए पक्के घर की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। इन बच्चों ने बिना छत के 12 वर्ष गुजार दिए। आनन्द जब जानकार हुआ तो धीरे-धीरे ऑटो चलाना सीख गया। ऑटो सीखने के बाद ऑटो किराये पर लेकर दिन में ऑटो चलाता और रात में रहने के लिए घर नहीं होने के कारण ऑटो में ही रात के समय सो जाता। आनन्द का छोटा भाई अमरेन्द्र अब 19 वर्ष का हो गया है, जो अब बड़े शहर में रहकर मजदूरी करके अपना गुजारा कर रहा है। दोनों भाइयों ने अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बचत करने के बाद घर बनवाने की ठान ली। दोनों भाइयों ने मिलकर बड़ी मुश्किल से घर की नींव रख पाई है। महंगाई के चलते नींव का निर्माण कराने में ही उनके द्वारा बचत किए गए रुपये खत्म हो गए। रुपये खत्म होने पर दोनों भाइयों ने काम को रोकवा दिया। नींव का निर्माण कराए हुए लगभग एक वर्ष हो गया है लेकिन अभी तक घर का निर्माण फिर से शुरू नहीं हो पाया है। अभी भी इन दोनों भाइयों का संघर्ष जारी है।
शिकायतें
-नशा मुक्ति अभियान नहीं चलाया जा रहा है।
-मोची व इनके परिवार का बीमा नहीं हो पाता है।
-स्थाई दुकान नहीं होने पर फुटपाथ पर दुकान लगाने के लिए मजबूर हंै।
-मोची कार्य के लिए सरकार द्वारा शुरुआती दौर में पूंजी मुहैया नहीं कराई जाती है।
-मोची कार्य से कमाई नहीं होने पर बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है।
सुझाव
-नशा मुक्ति अभियान चलाया जाना चाहिए, जिससे लोग नशा से मुक्ति पा सकें।
-मोची कार्य से जुड़े लोगों व इनके परिवारों का बीमा कराया जाए।
-स्थाई दुकानों का निर्माण कराकर फ्री आवांटन किया जाए।
-सरकार द्वारा मोचियों को दूकान चलाने के लिए शुरुआत में पूंजी देनी चाहिए ताकि दिक्कत न हो।
-मोची कार्य से जुड़े लोगों के बच्चों की पढ़ाई के लिए एक स्कूल की व्यवस्था की जाए।
तीन पीढ़ी बीत गई। मोची का काम फुटपाथ पर करते हैं। टूटे चप्पल व जूते बनाते हैं। स्थाई जगह न होने से बरसात में दुकान बंद करनी पड़ती है।
मनोज
पहले लगभग सभी के घरों से टूटी चप्पल व जूते मरम्मत करने लिए आते थे। अब लोग जूता-चप्पल टूटने पर नया खरीद लेते हैं।
अनिल
अब इस काम को करने में युवाओं को अटपटा लग रहा है। इसके चलते नए युवा इस काम में रुचि लेना कम कर दिए हैं।
जितेन्द्र
मोची के कार्य से बड़ी मुश्किल से रोजी-रोटी चल पा रही है। अब इस कार्य को छोड़ कर दूसरा कार्य करने लगा हूं।
शिवा
नपा व नपं के क्षेत्र में मुख्य चौराहों पर दुकान का आवंटन किया जाना चाहिए, जिससे हम सभी लोगों का रोजी-रोटी चल सके।
वीरू
महंगाई बढ़ जाने से राशन व सब्जी खरीदने में पूरे दिन की कमाई लग जाती है। कपड़ा, सहित अन्य सामान के लिए रुपये ही नहीं बचते हैं।
बब्लू
कुछ बुजुर्गों की आंखें जवाब देनी शुरू कर दी हैं। इसलिए बुढ़ापे में यह काम अब नहीं कर पाते हैं। बुजुर्गों को पेंशन मिलनी चाहिए।
अखिलेश
गरीब बच्चों के लिए एक अच्छा स्कूल होना चाहिए, जिसमें बच्चों की पढ़ाई के लिए किताब, कपड़ा, रहने के लिए हॉस्टल की व्यवस्था हो।
प्रेम प्रकाश
चुनाव के दौरान नेताओं ने हमारे समुदाय के लिए बड़े-बड़े वादे किए। चुनाव खत्म होने के बाद जनप्रतिनिधि दिखते ही नहीं है।
राम प्रकाश
मोची का काम सीखना बहुत मुश्किल है। सरकार को शुरुआती दौर में यह काम सीखने वाले युवाओं को सहायता देनी चाहिए।
दिलीप
काम सीखकर इस पेशे में आए तो लगा बड़ी कमाई है। कई वर्ष सीखने में गवां दिए, तब पता चला कि इस काम से परिवार चलाना मुश्किल है।
राजेश
सरकार की कई योजनाएं संचालित हैं। जानकारी के अभाव में योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। जागरूक कर लाभ दिया जाना चाहिए।
सागर
रोजाना इस काम में कमाई नहीं होती है, इससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ता है। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा पाना मुश्किल है।
वीरेन्द्र प्रसाद
कभी-कभी काम नहीं आने से घर में राशन व सब्जी की दिक्कत होती है। कोई अलग से योजना बना काम करने की जरूरत है।
राकेश कुमार
लू में काम करना मुश्किल हो जाता है। इसके चलते तबीयत भी बिगड़ जाती है। इलाज में काफी रुपये खर्च हो जाते हैं।
पारस नाथ
मोची का काम तमाम लोग सीखे हैं। इस कार्य के लिए लोगों को थोड़ी पूंजी मिल जाती तो अपने परिवार का भरण पोषण कर पाते।
विक्रम प्रसाद
बोले जिम्मेदार
असंगठित कर्मचारी कर्मकारों के लिए केंद्र सरकार ने नि:शुल्क ईश्रम पंजीकरण शुरू किया है। पंजीकरण होने के बाद असंगठित क्षेत्र के मोची समुदाय के लोगों को पांच लाख तक कैशलेस चिकित्सा सुविधा मिलेगी। दो लाख रुपये तक दुर्घटना बीमा का लाभ मिलेगा। ई-श्रम कार्ड बनवाने के लिए 16 वर्ष से 60 वर्ष आयु वर्ग के कर्मकार होने चाहिए। इसका लाभ उसी मोची को मिलेगा, जो आयकर दाता नहीं हो। कहीं पर ईएसआई या ईपीएफ योजना से आच्छादित नहीं हो। ऐसे पात्र व्यक्ति का आधार कार्ड, बैंक पासबुक, नामिनी का आधार कार्ड व आधार से लिंक मोबाइल नंबर लेकर ई-श्रम कार्ड बनाया जाएगा। कार्ड से उसे कैशलेस इलाज व बीमा की सुविधा मिलेगी।
नागेन्द्र त्रिपाठी, श्रम प्रवर्तन अधिकारी, बस्ती
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