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बोले बस्ती : अफसर हैं पड़ोसी लेकिन शहरी कहलाने को तरस रहे ग्रामीण

Basti News - खौरहवां ग्राम पंचायत की जनसंख्या 5000 से अधिक है, लेकिन यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। ग्रामीणों ने कई बार नगरपालिका में शामिल होने की मांग की है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।...

Newswrap हिन्दुस्तान, बस्तीWed, 12 March 2025 10:46 AM
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बोले बस्ती : अफसर हैं पड़ोसी लेकिन शहरी कहलाने को तरस रहे ग्रामीण

Basti News : खौरहवां ग्राम पंचायत की जनसंख्या 5000 से अधिक है। इस ग्राम पंचायत में कई आलीशान मकान हैं। डीएम आवास, जिला कारागार कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत को नगरपालिका में शामिल करने के लिए कई बार मांग उठाई लेकिन कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही। इस ग्राम पंचायत में नालियां टूटी व गंदगी से चोक हो गई हैं। खंभे खड़े कर दिए गए हैं लेकिन स्ट्रीट लाइट नहीं है। ग्राम पंचायत शहर के पास इलाके से सटी है फिर भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं। ‘हिन्दुस्तान‘ से बातचीत में ग्रामीणों ने अपना दर्द साझा किया। खौरहवां गांव जिलाधिकारी आवास और जिला कारागार से महज 50 मीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव में 1672 मतदाता और लगभग 5000 से ज्यादा की आबादी है। खौरहवां गांव में दूरदराज क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग आकर जमीन खरीद कर आलीशान घर बनवाकर रह रहे हैं। इस गांव में आकर बसने वाले लोगों की तमन्ना थी कि जल्द ही उनका मकान नगर पालिका क्षेत्र में शामिल हो जाएगा और वे शहरी सुविधाओं का लाभ उठाएंगे। दूरदराज के गांवों से आकर लोगों ने यहां आलीशान मकान तो बनवा लिया लेकिन वर्षों बाद भी उन्हें शहरी सुविधाएं नहीं मिल रही हैंं। अपना गांव छोड़कर शहर के किनाए तो आए लेकिन समस्याओं से पीछा यहां भी नहीं छुड़ा पाए। खौरहवां गांव में पानी निकासी के लिए सही ढंग से नालियों और ढक्कन का निर्माण नहीं हुआ है। इस गांव में सड़कों की स्थिति काफी खराब है।

गांव में शहरी लाइट तो है लेकिन खंभों पर स्ट्रीट लाइट नहीं लगने से लोग अधेंरे में आने-जाने को मजबूर हैं। लोग अंधेरे में टूटी सड़कों पर गिरकर चोटिल भी हो जाते हैं। गांव के बृजेश कुमार पटेल व जितेंद्र के साथ दर्जनों लोगों ने बताया कि यह गांव आजादी के बाद से ही बदहाली का शिकार है। पहले यह भूवर निरंजनपुर ग्राम पंचायत के राजस्व गांव था। इस गांव के शहर से सटे होने के कारण यहां तेजी से जनसंख्या बढ़ती चली गई। इसी कारण वर्ष 2015 में इस गांव के विकास को देखते हुए इसको अलग कर अलग ग्राम पंचायत का दर्जा दे दिया गया। तब से एक ही ग्राम प्रधान को निर्वाचित हुए करीब नौ वर्ष बीत चुके हैं। इस इलाके में घनी आबादी होने के कारण यहां पर मनरेगा का कार्य शून्य है। इस ग्राम पंचायत में नालियां टूटी हैं और जर्जर नालियों के ऊपर ढक्कन नहीं होने से मच्छरों का प्रकोप जारी है। गंदगी की वजह से यहां के लोग बीमार पड़ रहे हैं। गांव के लोग बताते हैं कि शहर का सबसे बड़ा गंदा नाला इसी ग्राम पंचायत से होकर गुजरता है। गंदा नाला कच्चा और खुला होने के कारण इससे काफी दुर्गंध उठती है और मच्छरों की भरमार रहती है।

रजिस्टर्ड हैं 100 मनरेगा मजदूर, लेकिन नहीं मिलता काम

खौरहवां गांव के मजदूर रामदीन कहते हैं कि मनरेगा के तहत रोजगार मिलना काफी मुश्किल है। इस वजह से गांव से बाहर जाकर काम करना पड़ता है। शहर में जाकर रोजाना लेबर का काम करना पड़ता है। गांव के लोगों का आरोप है कि इस ग्राम पंचायत में मनरेगा के तहत विकास के कोई कार्य नहीं कराए जा रहे हं। इस वजह से इस गांव का विकास कार्य भी रुका पड़ा है।

रखरखाव नहीं होने से ग्राम पंचायत सचिवालय बदहाल

बस्ती। गांव के निवासी लल्लन दूबे बताते हैं कि ग्राम पंचायत सचिवालय का निर्माण हुए वर्षों बीत गए हैं लेकिन अभी तक इसकी बाउंड्रीवाल को दुरूस्त नहीं कराई जा सकी है। सचिवालय की बाउंड्रीवाल सही नहीं होने के कारण इसके परिसर में छुट्टा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है। यह भवन ग्राम पंचायत के अधीन है, इसकी देख-रेख नहीं होने के कारण भवन जर्जर हाल है। ग्राम पंचायत सचिवालय परिसर में गंदगी का अंबार है। भवन के शीशे टूटे पड़े हैं। ग्राम पंचायत सचिवालय का उपयोग नहीं होने के कारण मरम्मत व सफाई भी नहीं होती है। गांव के लोगों ने ग्राम पंचायत सचिव के सचिवालय में नहीं आने का आरोप लगाया है।

नागरिक सुविधाओं की उम्मीद में बसती गई आबादी

खौरहवा गांव के रामसूरत शर्मा, रवींद्र कुमार बताते हैं कि पहले यहां 100 से कम परिवार ही निवास करते थे। शहरीकरण की वजह से दूरदराज के लोगों ने यहां जमकीन खरीद का बसना शुरू कर दिया। शहर से सटा होने के कारण वर्ममान में यहां की जनसंख्या बढ़कर पांच हजार से अधिक हो गई है। शहर से सटा होने के कारण यहां पर बसने के लिए लोग 25-30 लाख रुपये प्रति बिस्वा खर्च कर जमीन लिखवा रहे हैं। नगरपालिका के पास बसने की चाहत में खौरहवा गांव में लोग बाहर से आकर जमीन लेकर आलीशान घरों का निर्माण भी करा चुके हैं। दूरदराज के गांवों से आकर बसे लोगों का कहना है कि पहले तो लोग यहां आकर जमीन खरीद लेते हैं। इसके बाद उन्हें पता चलता है कि यह इलाका नगर पालिका क्षेत्र में है ही नहीं। चूंकि नगर पालिका क्षेत्र में आवासीय जमीन बची ही नहीं हैं, इस वजह से मजबूरन लोग आसपास के इलाकों में जमीन खरीदकर बस रहे हैं। नगर पालिका क्षेत्र में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, लिहाजा आसपास के इलाकों में बसना मजबूरी है। खौरहवां के लोगों को आशा है कि शहर से सटा यह ग्राम पंचायत किसी न किसी दिन नगर पालिका क्षेत्र में समाहित होगा तो नागरिक सुविधाएं बेहतर होंगी।

पोल लगाकर विभाग भूल गया खंभे पर तार लगाना

ग्रामीण दर्शन यादव व मनीष कुमार का कहना है कि विद्युत विभाग की ओर से कई वर्ष पूर्व खंभे लगाए गए लेकिन उस पर तार अभी तक नहीं खींचा गया है। इस गांव के लोग लम्बी-लम्बी केबल खींचकर अपने घरों में प्रकाश की व्यवस्था की है। बंदरों के आतंक से आए दिन केबल टूट जाती है। टूटी केबल को जोड़ने के लिए विद्युतकर्मियों को बुलाते हैं तो तार जोड़ने के नाम पर 300-500 रुपये देना पड़ते हैं।

खुले नाले के कारण फैली रहती है दुर्गंध

शहर का मुख्य नाला इसी गांव की घनी आबादी से होकर गुजरता है। इस गंदे नाले में शहर के घरों से निकलने वाला गंदा पानी आगे की तरफ जाता है। खौरहवां गांव की तरफ गंदा नाला खुला और कच्चा है। इस वजह से गंदे पानी का जलभराव रहता है। नाले में गंदे पानी से उठने वाली दुर्गंध से लोग परेशान हैं। ग्रामीण कई दशकों से इस नाले के निर्माण के लिए आवाज भी उठा रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

सदन में उठा था पक्का नाला बनाने का मुद्दा

सदर विधायक महेंद्रनाथ यादव ने गंदे नाले का पक्का निर्माण कराने की विधानसभा में मांग उठाई थी। विधानसभा में मांग उठाने के बाद अधिशासी अधिकारी नगर पालिका परिषद की ओर से जवाब दिया गया था। उनके जवाब में संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर बताया गया था कि कच्चे नाले की लम्बाई लगभग तीन किमी है। इस नाले के पक्का निर्माण के लिए लगभग साढ़े ग्यारह करोड़ रुपये की जरूरत होगी। नगर पालिका के जवाब में कहा गया था कि नगर पालिका बोर्ड की बैठक में इसके निर्माण की पहल की जाएगी। इसके बाद बाद यह मामला दुबारा ठंडे बस्ते में चला गया। गंदा नाले का पक्का निर्माण नहीं होने से खौरहवां गांव के निवासी परेशान हैं। इसके लिए विधानसभा में भी मुद्दा उठाया गया था। फिर जिला प्रशासन ने इसकी सुधि नहीं ली। यह गंदा नाला लगभग 5000 से ज्यादा आबादी वाले क्षेत्र से गुजरता है। इस नाले में लगभग पूरे शहर का गंदा पानी भरता है और गांव से होकर गुजरता है। इस नाले में गंदगी होने से इससे उठने वाली बदबू से गांव के लोग परेशान रहते हैं। गंदगी के कारण यहां पर मच्छरों की भरमार है। इसकी शिकायत यहां के ग्रामीणों ने लगातार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से की है लेकिन अभी तक इस नाले का पक्का निर्माण नहीं हो सका है।

पुलिस गश्त नहीं होने से चोरों का आतंक

खौरहवां गांव के सुरेन्द्र मिश्रा, रमेश गुप्ता, रामसूरत शर्मा के साथ दर्जनों ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव में बाहर के लोग आकर बस रहे हैं। उनके घरों में ताले न बंद होने की दशा में चारियां हो जा रही हैं। चोरों को भी पता है कि इस गांव की 90 प्रतिशत आबादी बाहर के लोगों की है। इस वजह से चोर उन्हीं के घरों को निशाना बनाते हैं। पहले स्थानीय पुलिस की दो पहिया वाहन रात में गश्त लगाती थी लेकिन इधर कई महीनों से गांव में पुलिस की पेट्रोलिंग नहीं की जा रही है। आए दिन गांव में चोरियां होती रहती हैं। स्थानीय पुलिस महज तहरीर लेकर जांच का आश्वासन देकर टरका देती है। पूर्व में हुई किसी भी चोरी की पुलिस खुलासा नहीं कर सकी है। गांव के लोगों ने मांग कीा है कि रात में पुलिस गश्त बढ़ाई जाए।

शिकायतें

-खौरहवां गांव शहर से सटा व घनी आबादी होने के बावजूद नपा में शामिल नहीं है।

-गांव में टूटी नाली व ढक्कन, जर्जर सड़क और प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है।

-खाली प्लाटों में गंदा पानी एकत्रित होने से बीमारी फैल रही है।

-कालोनी में साफ-सफाई नहीं होने से गंदगी फैली रहती है।

-गांव में वाटर सप्लाई की व्यवस्था नहीं है, इससे पेयजल की समस्या रहती है।

सुझाव

-खौरहवां गांव को नगर पालिका में शामिल किया जाना चाहिए।

-टूटी नाली व ढक्कन, जर्जर सड़क, प्रकाश की अच्छी व्यवस्था के लिए प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।

-नाली का निर्माण कराया जाए, जिससे खाली प्लाटों में गंदा पानी एकत्रित न हो।

-नियमित साफ-सफाई कराई जाए जिससे ग्रामीणों को गंदगी से राहत मिले।

-वाटर सप्लाई की व्यवस्था की जाए, जिससे ग्रामीणों को पेयजल आसानी से मिल सकें।

ग्रामीणों का दर्द

खौरहवां गांव में नालियों का निर्माण नहीं होने से घरों से निकला गंदा पानी सड़कों पर बहता है। इस वजह से लोग बीमार पड़ रहे हैं।

नीरज मिश्रा

महंगे दामों में जमीन खरीद कर घर का निर्माण तो करा लिया लेकिन शहरी सुविधा नहीं मिलने से खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

रामनेवास

खम्भों पर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था नहीं है।ं रात में प्रकाश की व्यवस्था नहीं होने से लोग गिरकर चोटिल हो जाते हैं।

दिवाकर पाल

बचपन से यहां रह रहा हूं। विकास के नाम पर कोई काम नहीं कराया गया है। इससे यहां की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

अनिल गौड़

खौरहवां गांव डीएम आवास से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित है। फिर भी जिम्मेदार विकास से संबंधित कार्य ही नहीं कराते हैं।

अभय

गांव में कुछ खंभों पर तार नहीं लगने से लोग लंबी केबल से प्रकाश व्यवस्था किए हुए हैं। वाटर सप्लाई से आज भी लोग वंचित हैं।

लल्लन दूबे

गांव में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा हुआ है। कई बार जिला प्रशासन से शिकायत की गई लेकिन जिम्मेदार चुप्पी साधे बैठे हुए हैं।

अजय कुमार चौधरी

गांव में सफाई कर्मी की तैनाती है, लेकिन वह साफ-सफाई करने कभी नहीं आता है। गांव के लोग गंदगी में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं।

निरंकार प्रसाद

गांव की सरकारी जमीनों पर कब्जा होने के कारण युवा अपने फिटनेस के लिए प्राइवेट जिम में जाकर पैसा दे रहे हैं।

मनु प्रताप सिंह

इस गांव को नपा क्षेत्र में शामिल करने के लिए कई बार अधिकारियों को ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं है।

दर्शन यादव

रिश्तेदार आते हैं और बोलते हैं कि तुम लोग तो शहर में हो, तुम्हे क्या परेशानी है। लेकिन हम लोग बता नहीं पाते कि नगर पालिका से नहीं जुड़े है। मनीष कुमार

गांव की स्थिति खराब है। चुनाव के दौरान नेताओं की ओर से बड़े-बड़े वादे किए गए थे लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई वादा पूरा नहीं किया गया। रवि प्रताप सिंह

इस गांव में रहते हुए पूरी उम्र बीत गई लेकिन यहां विकास न के बराबर है। रखरखाव न होने के कारण पंचायत भवन कुछ ही दिनों में जर्जर हो गया। रमोद मिश्रा

गांव में गंदगी होने के कारण यहां पर मच्छर बहुतायत हैं। कई साल हो गए कभी भी इस गांव में फागिंग नहीं हुई।

शान्ति श्रीवास्तव

कोटेदार के यहां से राशन लाने के लिए लगभग पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती। इसी गांव में कोटेदारों का चयन होना चाहिए।

जितेन्द्र गुप्ता

एक बिस्वा जमीन के लिए 30 लाख खर्च करके लोग खौरहवां गांव को शहर समझ बसने चले आते हैं। यह गांव नपा में शामिल नहीं है।

रमेश कुमार

बोले जिम्मेदार

गांव के मुखिया काफी सुस्त हैं, इस वजह से यहां का विकास कार्य नौ वर्षों से ठप पड़ा हुआ है। इस गांव में टूटी नालियां, ढक्कन, जर्जर सड़क, प्रकाश की व्यवस्था जैसी तमाम समस्याएं हैं। जिन्हें समस्याओं को गिना पाना मुश्किल है। ताज्जुब की बात यह है कि यह गांव सरकारी अफसरों के निवास स्थल से काफी करीब होने के बावजूद यहां विकास कार्य बाधित है। इस वजह से ग्रामीण काफी परेशान हैं। गांव के विकास के लिए कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

- चौधरी बृजेश पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष, सरदार सेना

ग्राम पंचायत में मनरेगा के 100 जॉबकार्ड धारक मजूदर हैं, लेकिन मौके पर इनमें से अधिकतर बाहर रहते हैं। यहां पर मनरेगा के तहत कोई काम मांगने नहीं आता है। इतना ही नहीं पौधरोपण के समय ग्राम पंचायत में खोजने पर भी एक मजदूर नहीं मिलता है तो दूसरी ग्राम पंचायत से मदद लेनी पड़ती है। विकास के नाम पर ग्राम पंचायत की नालियों की मरम्मत कराई गई है। पेंशन के मामले में ग्राम पंचायत संतृप्त है।

रवि शंकर शुक्ल, सचिव, ग्राम पंचायत खौरहवा

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