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बोले बस्ती : अपनों के ठुकराए हैं, पेंशन और आयुष्मान कार्ड मिले

Basti News - बस्ती के बनकटा वृद्धाश्रम में 104 बुजुर्ग रह रहे हैं, जिनमें से कई को पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। परिवारों द्वारा छोड़े गए ये बुजुर्ग अकेले और बीमार हैं। वृद्धाश्रम में...

Newswrap हिन्दुस्तान, बस्तीMon, 10 March 2025 04:47 AM
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बोले बस्ती : अपनों के ठुकराए हैं, पेंशन और आयुष्मान कार्ड मिले

Basti News : ‘न मेरे पास पैसा है, न बंगला है और न बैंक बैलेंस, मेरे पास मां है... ये लाइनें वैसे तो एक फिल्म की हैं, जिसमें एक्टर इन लाइनों के जरिये ये बताने की कोशिश करता है कि अगर आपके पास मां है तो सबकुछ है। लेकिन वर्तमान में ये लाइनें महज एक डायलॉग बनकर रह गईं हैं। किस्मत के मारे बुजुर्ग जिन्हें बुढ़ापे में सहारे की जरूरत थी, वे अपने ही घर से बेघर होकर वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। यहां इन्हें भोजन और बुजुर्गों की टोली मिल जाती है, जिनके साथ भजन-भाव करते हुए उनका दिन गुजर जाता है। इनसे परिवार की बात जरा सी छेड़िए तो इनकी की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। इनकी बातों में अथाह पीड़ा है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में वृद्धाश्रम के बुजुर्गों ने अपना दर्द बयां किया।

समाज कल्याण विभाग से मिले बजट से बस्ती-बांसी मार्ग पर बनकटा वृद्धाश्रम का संचालन होता है। वृद्धाश्रम में रह रहे 104 बुजुर्गों में 48 महिलाएं भी हैं। इनमें आठ बुजुर्ग मानसिक रूप से बीमार हैं, जिनकी सेवा वृद्धाश्रम के कर्मचारी करते हैं। वृद्धाश्रम के कर्मचारी कहते हैं कि कुछ दिक्कतें भी होतीं हैं, लेकिन जो मिल रहा है, उसी में सब बेहतर तरीके से चलाया जा रहा है। इस वृद्धाश्रम में 104 बुजुर्ग नहीं बल्कि चलती-फिरती कहानियां हैं। इसमें हर किसी की अपनी एक पीड़ादायक दास्तान है। वृद्धावस्था पेंशन को मोहताज वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों ने बताया कि ज्यादातर लोगों को वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती है। आवेदन भी किए हैं, लेकिन आज तक स्वीकृति नहीं मिल पाई। कुछ लोगों को पेंशन मिलती थी, लेकिन कुछ कारणों से अटकी है। कुछ बुजुर्ग इसलिए आवेदन नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है। जिनके पास हैं भी उस पर पता घर का है। इस वजह से आय प्रमाण-पत्र नहीं बन पाता है। कई दिव्यांगजनों की पेंशन भी अटकी है। कागजों के अभाव में आवेदन नहीं कर पाना भी एक कारण है। वृद्धाश्रम की केयर टेकर माला जायसवाल ने बताया कि यहां कई बुजुर्ग ऐसे हैं, जो गंभीर रूप से बीमार हैं, जिनके इलाज के लिए काफी रुपये खर्च आता है। इनके पास आयुष्मान कार्ड भी नहीं है। इनमें से कई बुजुर्गों की उम्र 70 साल से कम है। लिहाजा नियम के अनुसार 70 की उम्र में ही आयुष्मान कार्ड बन पाएगा। वृद्धाश्रम में रहने वाले कई बुजुर्ग 67-68 साल के हैं। सरकारी नियम के अनुसार इन्हें आयुष्मान कार्ड के लिए तय उम्र तक इंतजार करना होगा।

बुजुर्गों के लिए लगे आयुष्मान कार्ड कैंप

बनकटा वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों का कहना है आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड और पेंशन से संबंधी आवेदन ऑनलाइन होते हैं। वृद्धाश्रम में रहने वाले कई बुजुर्गों की शरीरिक हालत ऐसी नहीं है कि उन्हें शहर में ले जाकर ऑनलाइन आवेदन कराया जा सके। ज्यादातर तो ऑनलाइन आवेदन के नाम से वृद्धाश्रम शहर जाना ही नहीं चाहते। ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि गैर सरकारी संगठनों के जरिए वृद्धाश्रम में कैंप लगवा कर बुजुर्गों की दुश्वारियों को दूर करने में मदद करे।

हेल्थ स्कीम से जोड़े जाएं वृद्धाश्रम

बनकटा वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग उम्रजनित बीमारियों से ग्रस्त हैं। ऐसे में इनके इलाज पर काफी खर्च होना स्वाभाविक बात है। बुजुर्गों का कहना है सरकार को चाहिए कि वृद्धाश्रमों को ईएसआईसी या सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम हॉस्पिटल से जोड़ देना चाहिए। ताकि, बीमार बुजुर्गों के इलाज में कोई संकट न हो। बनकटा वृद्धाश्रम की केयार टेकर माला जायसवाल बताती है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर महीने में दो बार वृद्धाश्रम आते हैं।

कई बार लोग दान में देते हैं खराब सामान

बनकटा वृद्धाश्रम के कर्मचारियों ने बताया कि वृद्धाश्रम में दान करने के लिए बहुत से लोग आते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ लोग जो सामान दान में देते हैं, उनकी गुणवत्ता काफी खराब होती है। कुछ लोग दान के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा करते हैं। कर्मियों ने बताया कि कुछ दिन पूर्व कुछ समाजसेवी बिस्किट के पैकेट दान में देने के लिए लाए थे। सभी बिस्किट की एक्सपायरी डेट बेहद नजदीक थी। लिहाजा हम लोगों ने खाद्द्य पदार्थों को दान में लेने से साफ इनकार कर दिया।

आंख-कान और बीपी की समस्या से परेशान

बनकटा वृद्धाश्रम में रहने वाले कमोबेश सभी बुजुर्गों को बीपी, शुगर, आंख, कान और दांत से संबंधी समस्याएं हैं। दांत का इलाज लंबा और खर्चीला होता है। वृद्धाश्रम में दांत का इलाज हो पाना संभव भी नहीं है। इसके लिए किसी बेहतर अस्पताल में बुजुर्गों को ले जाना पड़ता है। यदि कोई निजी संस्था हेल्थ कैंप लगाती भी है तो वह महज जांच करने तक सीमित रह जाती है। दांत की बीमारी के कारण कुछ बुजुर्ग ढंग खाना नहीं खा पाते हैं। लिहाजा, धीरे-धीरे उनका शरीर कमजोर पड़ने लगता है।

कलयुग में किसी का कोई नहीं है,अपने ही बन रहे दुश्मन

वृद्धाश्रम में कानपुर के रहने वाले एक बुजुर्ग रामलाल (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह मारवाड़ी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। कानपुर में उनकी दाल मिल थी, जिसका संचालन खुद करते थे। काफी परिश्रम से उन्होंने कारोबार को उचांइयों पर ले गए और अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दी। रामलाल ने बताया कि नौ साल पूर्व पत्नी का निधन हो गया, तब से मैं बिल्कुल अकेला हो गया। बेटा अपना खुद का कारोबार करता है। जब बेटे और बेटियों की शादी की तब मुझे कहां पता था कि यह समाज सिर्फ दिखावे का है। कलयुग में किसी का कोई नहीं है, अपने ही दुश्मन बन जा रहे हैं।

पत्नी के निधन के बाद से बेटे और बहू रोज झगड़ा करने लगे। मकान अपने नाम करने के लिए रोजाना दबाव बनाते थे, इसे लेकर आए अक्सर कलह होता था। आजिज आकर घर और प्रापर्टी बेटे के नाम कर दिया। इसके बाद बेटे और बहू ने मुझे घर से निकाल दिया। मैंने अपने जीवनभर की कमाई बेटियों की शादियों में लगा दी थी। बेटियों की शादी भी अच्छे घर में किया। मेरे तीन दामाद बहुत ही अच्छा व्यवसाय करते हैं। उन लोगों को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं है। लेकिन हिंदू समुदाय में सामाजिक ताना-बाना कुछ ऐसा है कि कोई पिता अपने बेटियों के घर पर रहने लगे तो आसपास के लोग तरह-तरह की बातें करने लगते हैं। यह बेटियों के घरवालों को भी अच्छा नहीं लगता है। मेरी बेटियां तो मुझे बहुत मानती हैं लेकिन वह भी अपने सामाजिक दबाव के के चलते मजबूर हैं। ऐसे में मेरे रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, अब बनकटा वृद्धाश्रम ही मेरा ठिकाना है। मेरी बेटियां ही मुझसे मिलने आती हैं।

शिकायतें

-कुछ दिव्यांगजनों की यूडीआईडी नहीं बनी है, जिसके चलते उन्हें सरकार से मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए।

-वृद्धावस्था पेंशन के लिए 50 से अधिक बुजुर्ग परेशान हैं, लेकिन कागजी अड़चनों के चलते वह आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।

-70 वर्ष की बाध्यता के चलते आयुष्मान कार्ड नहीं बना है। गंभीर रूप से बीमार होने के बाद भी कई बुजुर्ग बिना दवा के जीवनयापन कर रहे हैं।

-ऑनलाइन आवेदन के चक्कर में बुजुर्गों का आय प्रमाण-पत्र नहीं बन पाता है।

सुझाव

-ऑनलाइन आवेदन और आईडी में सुधार के लिए वृद्धाश्रम में शिविर लगाया जाना चाहिए, जिससे बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान हो जाए।

-वृद्धाश्रम में लंबे समय से रहने वाले बीमार बुजुर्गों को आयुष्मान कार्ड बनाने में 70 वर्ष उम्र की बाध्यता से छूट दी जानी चाहिए।

-सुविधा संपन्न बेटों ने संपत्ति लेकर यदि माता-पिता को घर से निकाल दिया है तो ऐसे लोगों को चिह्नित कर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

-बुजुर्गों के इलाज को महीने में चार बार चिकित्सक की विजिट कराने की व्यवस्था कराई जानी चाहिए।

बुजुर्गों का दर्द

बेटा, बहू से अनबन रहती है, वो लोग मुझे सताते थे। अब खेती नहीं कर पाता इसलिए वृद्धाश्रम में रहने लगा।

तीरथ

बेटा घर पर नहीं रहने देता है। 5 बीघा खेत है मेरे पास, बेटे के लिए बोलेरो ले लिया था फिर भी भगा दिया।

केशवराम

77 वर्ष की उम्र हो गई। मेरे पास पांच एकड़ खेती है। हर साल दो लाख का अनाज बिकता है। सब बेटा-बहू रख लेते हैं।

रवीन्द्र नाथ सिंह

एक साल से बहू और बेटा झगड़ा करते थे। हमें घर में नहीं रहने देते हैं। अब काम के लायक नहीं रह गया तो वृद्धाश्रम में रहने लगा।

विमल

तीन लड़कियां और एक लड़का है, लड़कियों की शादी हो गई है। बहू-बेटा घर से भगा दिए हैं।

गंगासागर

20 साल पहले ही बच्चे अलग हो गए। छत से गिरने के कारण पैर टूट गया था। ठीक होने पर वृद्धाश्रम में रहने लगा।

राम स्वरूप गुप्ता

फालिज मार दिया तो घर में कोई देखभाल नहीं करता था। नौ महीने पूर्व पत्नी का निधन हो गया तो यहां चला आया।

राजेन्द्र

तीन बेटे हैं, सब बाहर कमाते हैं। बहुओं से नहीं पटता है। कोई देखभाल नहीं करता था तो घर छोड़ यहां रहने लगी।

फुलवा

मेरे पति के निधन के बाद उनके भाइयों ने हमें हिस्सा नहीं दिया। हिस्सा नहीं मिलने से बहू मुझसे नाराज रहने लगी।

हरिशांति

तीन बीघे खेत था। पति के निधन के बाद दो बेटों को एक-एक बीघा खेत मिल गया। इसके बाद भी बहुएं घर में नहीं रहने देती हैं।

अनरसा

एक बेटी है। उसकी शादी हो गई है। पति नहीं हैं। लोगों ने कहा बेटी के घर नहीं रहना चाहिए। ऐसे में यहां रहने लगी।

बताशा

एक बेटी है, उसकी शादी 25 साल पूर्व हो गई थी। पति का निधन 10 साल पहले हो गया। पांच साल से वृद्धाश्रम में ही हूं।

सुभावती

एक दवा की कंपनी में अफसर के पद पर काम करता था। बेटी की शादी हो गई। पत्नी के निधन के बाद वृद्धाश्रम में रह रहा हूं।

संजीव नारंग

65 साल उम्र हो गई। मैं बाहर कमाई करता था, मेरी शादी नहीं हो पाई। पिता के निधन के बाद भाई ने हिस्सा हड़प कर भगा दिए।

गंगाराम

बोले जिम्मेदार

समाज कल्याण विभाग की तरफ से पीपीपी मॉडल पर आधारित बनकटा में वृद्धा आश्रम का संचालन किया जा रहा है। यहां पर भोजन, आवास, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था विभाग से होती है। यहां समय-समय पर स्वास्थ्य कैंप लगता है। इनके काउंसलिंग की भी व्यवस्था है। हाल में अयोध्या दर्शन व कुंभ स्नान भी बुजुर्गों को कराया गया है।

श्रीप्रकाश पांडेय, जिला समाज कल्याण अधिकारी बस्ती

यहां बुजुर्गों को स्वास्थ संबंधी समस्याएं ज्यादा हैं। ऐसी स्थिति में इलाज की दरकार होती है। कइयों के हेल्थ कार्ड न बनने से इलाज में परेशानी होती है। किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार के लोग अंतिम संस्कार करने भी नहीं आते हैं। संस्था ही किसी तरह अंतिम संस्कार करती है। इसके लिए पर्याप्त बजट मिलना चाहिए।

अतुल शुक्ला, अध्यक्ष, बनकटा वृद्धाश्रम, बस्ती

बोले समाज सेवी

संतान के पालन-पोषण में माता-पिता को जो कष्ट-पीड़ा सहन करना पड़ता है उस कष्ट पीड़ा से संतान 100 वर्षों में भी अपने मां-बाप की सेवा करके मुक्ति नहीं पा सकते। समाज में नैतिक मूल्यों का इस हद तक गिरावट आ गई है कि बेटे अपने आलीशान मकान में किरायेदार रख सकता है, लेकिन बूढ़े मां-बाप के लिए उसके घर में जगह नहीं है। जीवन के अंतिम मुकाम पर पहुंचकर मां-बाप खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। सामाजिक क्रांति के जरिये इसमें बदलाव लाया जा सकता है। पंडित ओमप्रकाश शास्त्री, मनहनडीह

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