बोले बस्ती : विशेषज्ञों की कमी के कारण इलाज से वंचित हो रहे मरीज
Basti News - बस्ती मंडल में महर्षि वशिष्ठ राज्यस्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय की चिकित्सा इकाई ओपेक अस्पताल कैली की स्थिति खराब है। मरीजों को विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी और सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ रहा है।...
Basti News : बस्ती मंडल में प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में महर्षि वशिष्ठ राज्यस्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय की चिकित्सा इकाई ओपेक हॉपिस्टल कैली का हाल काफी खराब है। यहां मरीज बेहतर इलाज की आस लेकर आते हैं लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं पाते हैं। कई महत्वपूर्ण विभाग या तो खुले ही नहीं या विशेषज्ञ नहीं होने के कारण निष्क्रिय हैं। मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ नियुक्ति हो जाएं और सुविधाएं मिल जाए तो बेहतर इलाज की आस पूरी हो जाएं। ‘हिन्दुस्तान‘ से बातचीत में मरीजों ने अपना दर्द साझा किया। बस्ती मेडिकल कॉलेज की चिकित्सा इकाई ओपेक हॉस्पिटल कैली की स्थापना हुई तो खूब चर्चाएं हुईं। बेहतर इलाज की आस लिए सिद्धार्थनगर और संतकीरनगर के साथ ही अन्य जिलों से मरीज आने लगे। उम्मीद थी कि बेहतर स्वास्थ सुविधाओं के लिए अब मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा। पर नागरिकों के मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा है। हाल यह है कि यहांकई महत्वपूर्ण विभाग नहीं होने और विभागों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी की वजह से मरीजों को गोरखपुर, फैजाबाद और लखनऊ जाना पड़ रहा है। इससे मरीजों का समय और ज्यादा पैसा खर्च हो रहा है। मेडिकल कॉलेज में बेहतर स्वास्थ सुविधाओं का सपना दिखावा साबित हो रहा है। यह मेडिकल कॉलेज ं मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। मेडिकल कॉलेज में पहुंचने वाले मरीजों को जांच के लिए आज भी निजी सेंटरों पर भेजा जा रहा है। यहां हर विभाग में विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी मरीजों के लिए मुसीबत रही है। विशेषज्ञों की कमी का खमियाजा मेडिकल कॉलेज में अन्य जिलों से आए मरीजों को भी भुगतना पड़ रहा है। यहां हालात यह है कि वार्ड ब्वॉय के न होने पर मरीज के तीमादारों को आक्सीजन सिंलेडर तक ढोना पड़ता है। तीमारदारों को काफी परेशानी उठनी पड़ती है। मेडिकल कॉलेज बने छह साल हो गए लेकिन वार्डों में ऑक्सीजन पाइप लाइन नहीं लगने से समस्या बनी रहती है। आए दिन किसी न किसी वार्ड में सिलेंडर गिरने और गैस रिसाव की घटनाएं होती रहती हैं। हाल में तीमारदार के हाथ से ऑक्सीजन सिलेंडर गिरने से इमरजेंसी और टीबी वार्ड में अफरा-तफरी जैसी स्थिति हो गई थी। ऑक्सीजन सिलेंडर के गिरने से मरीजों को चोटिल होने का भी भय बना रहता है। इसके इतर मेडिकल कॉलेज में एमआरआई की सुविधा आज तक नहीं मिल पा रही है। लोगों के मुताबिक 2018 में ही एमआरआई मशीन मिलनी थी। इसके लिए 2018 में करोड़ों की लागत से भवन का निर्माण कराया गया। अफसोस! मेडिकल कॉलेज बने छह साल हो गए लेकिन एमआरआई मशीन नहीं मिली। मरीज प्राइवेट संस्थानों में ज्यादा रुपये देकर जांच कराते हैं। शासन ने 27 अप्रैल 2022 को एमआरआई मशीन देने की घोषणा भी कर दी थी, लेकिन अब तक अमल नहीं हुआ।
ओपीडी में चलती है एमबीबीएस की क्लास
मेडिकल कॉलेज में इंटर्न चिकित्सकों को अस्पताल की अनदेखी का खमियाजा भुगताना पड़ रहा है। इंटर्न चिकित्सकों के लिए क्लास रूम नहीं होने से ओपीडी में इंटर्न चिकित्सकों को पढ़ाया जा रहा है। इससे इलाज के लिए आए मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है। मरीजों का कहना है ओपीडी में डॉक्टर की कक्षाएं चलती हंै। मरीजों का दबाव अधिक होने से उपचार मिलने में काफी समस्या होती है।
विभागों का हाल
मेडिसिन
मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में चिकित्सक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में मरीजों का सबसे अधिक दबाव मेडिसिन विभाग में रहता है। विभाग में अभी तक सीनियर रेजिंडेट की तैनाती नहीं हो सकी है। यहां सहायक प्रोफेसर के लिए चेंबर तक की व्यवस्था नहीं है। विभाग में पद के अनुसार कोई कमरा एलॉट नहीं है। ऐसे में चिकित्सक को ओपीडी में ही बैठना पड़ता है। चिकित्सकों ने बताया मेडिकल कॉलेज में शोध की कोई व्यवस्था नहीं है। इस वजह से काफी परेशानी हो रही है।
नेत्र रोग
नेत्र रोग विभाग भी में चिकित्सकों की कमी है। विभाग में एक एसोसिएट प्रोफेसर और एक सीनियर रेजिडेंट का पद खाली है। हाल यह है विभाग में परदे की जांच मशीन (ओसीटी) नहीं होने से मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है।
चर्म रोग
मेडिकल कॉलेज का चर्म विभाग भी चिकित्सक कमी से जूझ रहा है। मौसम में बदलाव होने से चर्म रोगियों की भीड़ लगी रहती है। विभाग में सिर्फ दो चिकित्सक और एक जूनियर रेजिडेंट के सहारे मरीजों का इलाज किया जा रहा है। हाल यह है यहां भी विभाग में सीनियर रेजिडेंट के पद खाली हैं। विभाग में एक जूनियर रेजिडेंट ही सेवाएं दे रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार गर्मी में मरीजों की भीड़ बढ़ जाती है। विभाग में आइसुलेशन रूम नहीं है। माइनर ओटी की सुविधा नहीं होने से नेल सर्जरी, सफेद दाग की सर्जरी, स्किन बायोप्सी नहीं हो पाती है।
ईएनटी
ईएनटी विभाग में विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी मरीजों पर भारी पड़ रही है। विभाग में पद के सापेक्ष प्रोफेसर और सीनियर रेंजिडेट का पद खाली चल रहे हैं। माइक्रोस्कोप और एंडोस्कोप मशीन नहीं होने से नाक-कान के मरीजों का इलाज नहीं हो पाता है।
बालरोग
पीडिया विभाग में मरीजों की इलाज के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी आड़े आ रही है। यहां भी विभाग विशेषज्ञों की तैनाती की राह देख रहा है। विभाग में आज तक एसोसिएट और स्थायी असिस्टेंट की नियुक्त नहीं हो सकी है। ऐसे में इलाज के लिए मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। नवजात बच्चों को बेहतर स्वास्थ सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एनआईसीयू में तीन वेंटिलेटर लगे हैं। विभाग की लापरवाही के चलते दो वेंटिलेटर खराब पड़े हैं। एक वेंटिलेटर के सहारे बालरोग विभाग का संचालन किया जा रहा है। इसका खमियाजा तीमारदारों को भुगतनाा पड़ता है।
सर्जरी
मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में दूरबीन विधि से सर्जरी की आस लेकर दूरसे मरीज आते हैं। सर्जरी विभाग भी डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। विभाग में बाबू की तैनाती न होने से डॉक्टर ही डिपार्टमेंटल काम देख रहे हैं। पद के सापेक्ष दो प्रोफेसर की सीट और एक एसोसिएट की नियुक्त आज भी नहीं हो सकी। विभाग में आईसीयू की सुविधा नहीं होने से मरीजों को रेफर करना मजबूरी है। विभाग में डॉक्टर अपने रिस्क पर ही सर्जरी करते हैं। हाल यह है कि विभाग में उपकरण के नाम पर कुछ भी नहीं है। ओटी में डॉक्टरों के लिए चेंजिग रूम की सुविधा नहीं है।
कम्युनिटी
मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन में पद के सापेक्ष चिकित्सकों की तैनाती नहीं हो सकी है। हाल यह है पद के सापेक्ष विभाग में दो एसोसिएट, एक प्रोफेसर, चार एपी और जूनियर रेजिडेंट के पद खाली हैं।
टीबी चेस्ट
टीबी चेस्ट विभाग भी चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। विभाग में पद के सापेक्ष दो सीनियर रेजिडेंट की तैनाती नहीं हो सकी है। मौसम में बदलाव से सांस के रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रही है। ऐसे में चिकित्सक की कमी से मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विभाग में आए मरीजों को जांच के अभाव में निजी सेंटरों पर भेजा जा रहा है। चिकित्सक के अनुसार पीएफटी मशीन थेरेकोस्कोपी और स्लीप स्टेडी मशीन आज भी नहीं मिल पाई है। ऐसे में इलाज करने में काफी परेशानी होती है।
आर्थो
आर्थो विभाग भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। यहां भी एसोसिएट, प्रोफेसर व जूनियर रेंजिडेट का पद रिक्त है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी होने से मरीजों को परेशानी होती है। विभाग में आर्थोस्कोपी और अन्य महत्वपूर्ण उपकरणों का आभाव है।
मानसिक
एक असिस्टेंट के सहारे मानसिक रोग विभाग में मरीजों का इलाज किया जा रहा है। विभाग में कई पद खाली पड़े हैं। विभाग में एसोसिएट और प्रोफेसर की तैनाती आज तक नहीं हो सकी है। विभाग सीनियर रेजिडेंट की कमी से जूझ रहा है। ओपीडी में सेवा दे रहे जूनियर रेंजिडेट का पीजी में होने से पद खाली हो गया। मरीजों को भर्ती करने की सुविधा नहीं मिल पाई है, जिससे गंभीर मरीजों को प्राथमिक उपचार ही मिल रहा है। चिकित्सक की कमी मरीजों पर भारी पड़ रही है। चिकित्सकों ने बताया यहां पर जांच की सुविधा मरीजों को नहीं मिल पाती है।
डॉक्टरों के लिए अलग वॉशरूम नहीं
मेडिकल कॉलेज में होने के बाद भी प्राथमिक स्तर की सुविधा चिकित्सकों को नसीब नहीं हो सकी है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन की ओर से अस्पताल में सेपरेट वाशरूम तक चिकित्सकों के लिए नहीं मुहैया कराई गई हैं। इस वजह से चिकित्सकों को काफी परेशानी हो रही है। चिकित्सकों का कहना है सेपरेट वाशरूम नहीं होने से ओपीडी छोड़कर मजबूरन मरीजों के वाशरूम का इस्तेमाल करना पड़ता है। पब्लिक वाशरूम में संक्रमण का भय बना रहता हैं। साफ-सफाई में कमी के कारण दुर्गंध फैली रहती है।
गायनी विभाग में भी नहीं है वाशरूम : मेडिकल कॉलेज का गायनी विभाग भी वाशरूम की समस्या से जूझ रहा है । मेडिकल कॉलेज प्रशासन की अनदेखी महिला चिकित्सकों और स्टॉफ नर्सों पर भारी पड़ रही है। हाल यह है कि विभाग में महिला चिकित्सकों के वाशरूम तक की व्यवस्था नहीं हैं। चिकित्सकों का कहना है विभाग में 24 घंटे की ड्यूटी रहती है। ऐसे में प्राथमिक सुविधा नहीं होने से ड्यूटी कर रहे स्टॉफ और कर्मियों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही हैं। विभाग में महिला स्टॉफ के लिए वाशरूम नहीं होने से अपने आवास पर जाना पड़ता है। गायनी में डॉ. अलका शुक्ला, डॉ. कल्पना मिश्रा, डॉ. वंदना, डॉ. अर्शी, डॉ. रुपाली नायक डॉ. आरती, आशुतोष राय व अन्य एसआर-जेआर तैनात हैं।
स्वास्थ्य कर्मियों के आवास जर्जर, सुविधाओं का अभाव
ओपेक अस्पताल परिसर में बने आवासीय परिसर में गंदगी का अंबार लगा है। दूसरों को स्वस्थ रखने के लिए प्रयासरत चिकित्सक व स्टाफ खुद बीमारियों के मुहाने पर बैठे हैं। परिसर हर तरफ से गंदगी से पटा पड़ा है। निवास करने वाले डॉक्टरों का कहना है आवासीय परिसर का जब से निर्माण हुआ है, तब से लेकर अभी तक मरम्मत नहीं हुई। भवन की रंगाई-पुताई नहीं होने से दीवारों में झाड़ियां उग गई हैं। रिहायशी परिसर में निवास करने वाले कर्मी वेतन से हाउस अलाउंस कटने के बाद बदहाली की मार झेल रहे हैं। कर्मियों ने बताया कि बाहर के कर्मियों को पैसा देकर गंदगी की सफाई कराते हैं। पिछले साल कुछ नर्सेज और उनके परिवार के सदस्य बीमारी की चपेट में आ गए थे। परिसर में जाने वाली सड़क बदहाल हो चुकी है। परिसर में जलनिकासी नहीं होने से पूरा परिसर जलमग्न हो जाता है। नालियों की सफाई नहीं होने से चोक हो गई हंै जिससे गंदा पानी सड़क पर पसर जाता है। परिसर में नहीं है पार्क : ओपेक अस्पताल में निवास कर रहे कर्मियों के लिए परिसर में पार्क तक की व्यवस्था नहीं है जिससे छोटे बच्चों को खेलने के लिए परेशानी होती है। परिसर में निवास कर रहे चिकित्सकों का कहना है आवासीय परिसर में पार्क की व्यवस्था होनी चाहिए शाम के समय बैठने के लिए परिसर में कोई बेहतर स्थान नहीं है।
मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन ठप
मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन मशीन ठप होने से मरीजों की जेब ढीली हो रही है। ऐसे में मरीजों को निजी सेंटरों पर 5000 तक खर्च करना पड़ रहा है। सीटी स्कैन मशीन 17 जून 2024 से खराब है। पैरामेडिकल कोर्स करने वाले छात्रों को सीटी स्कैन मशीन खराब होने से परेशानी हो रही है।
बरसात में सड़कों पर होता जलभराव
पानी का जमाव हो जाता है, जिससे आए दिन चिकित्सक की कार फंस जाती है। स्टाफ नर्स गिरकर चोटिल हो रही हैं। बरसात के समय जलभराव से होकर अस्पताल में ड्यूटी के लिए जाना पड़ता है, जिससे संक्रमण का भय बना रहता है। चिकित्सकों ने बताया जलभराव में आए दिन विषैले जीव-जन्तु पानी में तैरते रहते हैं। जिससे काटने का भय बना रहता है। सड़कों पर कचरा सड़ने से संक्रामक बीमारियों के फैलने की आशंका बनी रहती है। गंदगी, कचरा व गंदे पानी के कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। आवासीय परिसर में लगे शुद्ध पेयजल की टंकी के पास गंदगी होने के कारण दुर्गध आती है। परिसर में साफ-सफाई नहीं होने से विषैले जानवर का खतरा बना रहता है।
शिकायतें
-अस्पताल में विशेषज्ञ की तैनाती नहीं होने से मरीजों को इलाज के लिए हायर सेंटर जाना पड़ता है।
-कॉलेज में गैस्ट्रोलॉजिस्ट की तैनाती नहीं होने से मरीजों को गोरखुपर इलाज के लिए जाना पड़ता है।
-लेप्रोस्कोपिक ऑपरेशन की सुविधा न होने से मरीजों का चीरे से ऑपरेशन किया जाता है।
-मरीजों के लिए बने वाशरूम में सफाई नहीं होने से दुर्गंध बनी रहती है।
-दवा काउंटर के सामने मरीजों को खुले में खड़ा रहना पड़ता है।
सुझाव
-मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ की तैनाती की जाए, जिससे मरीजों को इलाज के लिए सहूलित मिल सकें।
-कॉलेज में गैस्ट्रोलॉजिस्ट की तैनाती होनी चहिए, जिससे मरीजों को बेहतर सुविधा मिल सके।
-सर्जरी विभाग में लेप्रोस्कोपिक की सुविधा होनी चाहिए।
-मरीजों के लिए बने वाशरूम में साफ-सफाई होनी चहिए, जिससे मरीजों को परेशानी न हो।
-मरीजों के लिए दवा काउटंर पर टिनशेड लगे।
मरीजों की पीड़ा
मेडिकल कॉलेज में न्यूरो के इलाज के लिए काफी दूर से आया था। कर्मियों से पूछने पर पता चला कि यहां पर न्यूरो के डॉक्टर नहीं है।
सलिकराम
डॉक्टर ने सीटी स्कैन के लिए परामर्श दिया। सीटी स्कैन कक्ष पर पहुंचने पर पता चला कि मशीन खराब पड़ी है।
रामसजीवन
मेडिकल कॉलेज में कर्मचारी खराब व्यवहार करते हैं। अल्ट्रासांउड विभाग में तैनात डॉक्टर प्रतिरोध जताने पर बदसलूकी पर उतर आते हैं।
चंदन
कूल्हे में दर्द से परेशान थी। डॉक्टर ने डिजिटल एक्स-रे के लिए परामर्श दिया लेकिन टेक्निश्यन ने नार्मल एक्स-रे थमा दिया।
उर्मिला
बड़ी उम्मीद लेकर मेडिकल कॉलेज आई थी कि गैस्ट्रोलाजिस्ट से परामर्श लूंगी। यहां पहुंचने पर पता चला कि डॉक्टर ही नहीं हैं।
रीमा देवी
सिर में चोट लगने की समस्या लेकर आया था। डॉक्टर ने एमआरआई जांच को परामर्श दिया। यहां जांच नहीं हो पाई। चिन्ताहरण
नवजात को सांस लेने में दिक्कत होने पर बालरोग विभाग में आया था। वेंटिलेटर खराब होने का हवाला देकर रेफर कर दिया गया।
त्रिभुवन
सर्जरी विभाग में पित्त में पथरी की समस्या लेकर लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन कराने के लिए आई थीलेकिन चीरे से ऑपरेशन कराना पड़ा।
सुन्दरी
ईएनटी विभाग में कान में दिक्कत की शिकायत को लेकर आई थी। लेकिन ऑडियोमेट्री न होने से लौटाना पड़ रहा है।
सरस्वती देवी
पाब्लिक वाशरूम में साफ-सफाई नहीं होने से दुर्गन्ध फैली रहती है। वाशरूम में टोंटी खराब होने से पूरा पानी भरा रहता है।
विजय लक्ष्मी
विभाग में लिफ्ट का संचलन नहीं है। वार्ड में आने-जाने में सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है। लिफ्ट नहीं चलने से मरीजों को दिक्कत होती है।
उजरावती
एक ही खिड़की से दवा का वितरण होता है। इस वजह से मरीजों की लंबी कतार लग जाती है। टीनशेड की व्यवस्था करनी चाहिए।
सुमावती देवी
विभाग में चिकित्सक की कमी होने से ओपीडी में लंबी कतार लग जाती है। इससे दूर से आए मरीजों को अस्पताल में परामर्श लेने में पूरा दिन लग जाता है।
सुशील कुमार
पेट दर्द की शिकायत लेकर आया था। डॉक्टर ने अल्ट्रासांउड के लिए परामर्श दिया। जांच के लिए एक माह की तारीख दी गई। मनोज कुमार
ओपीडी में पर्चा कटाने के लिए बैठे कर्मचारी मरीजों से अनैतिक व्यवहार करते हैं। मरीजों को अपमान की पीड़ा सहनी पड़ती है।
बलराम
वार्ड से मरीजों को ओपीडी में लाने के लिए स्ट्रेचर के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। स्ट्रेचर खुद खींचना पड़ता है।
नीता
बोले जिम्मेदार
मेडिकल कॉलेज के विभागों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती के लिए लगातार पहल की जा रही है। जिन विभागों में विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी है, उसे पूरा करने के लिए शासन के माध्यम से पहल की जा रही है। नौ विभागों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कोई आवेदन नहीं हो सका। मेडिकल कॉलेज में नौ अस्टिेंट प्रोफसर की नियुक्ति विभागवार की गई है। कॉलेज में चिकित्सकों को जल्द शोध के लिए भवन उपलब्ध करा दिया जाएगा। एमआरआई के लिए शासन से पत्राचार किया जा रहा है।
डॉ. मनोज कुमार, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज, बस्ती
चिकित्सकों के लिए सेपरेट वाशरूम नहीं होने से परेशानी हो रही है। कॉलेज में मरम्मत का काम चल रहा है। चिकित्सकों को एक ही कमरे में बैठना पड़ रहा है। चिकित्सकों को पद के अनुसार कक्ष का अप्रूवल आ गया है। जल्द ही चिकित्सकों को कक्ष का आवंटन करा दिया जाएगा। नए भवन में काम चल रहा है। महिला चिकित्सकों और स्टाफ नर्सों के लिए जल्द अलग वाशरूम व अन्य प्रसाधन की व्यवस्था करा दी जाएगी। डॉ× समीर श्रीवास्तव, सीएमएस
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।