बोले बस्ती : पर्चा काउंटर और ओपीडी में घंटों इंतजार, दवाएं भी कम
Basti News - बस्ती जिला अस्पताल में मरीजों को चिकित्सा की मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। रजिस्ट्रेशन से लेकर इलाज तक की प्रक्रिया में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कर्मचारियों का दुर्व्यवहार और सुविधाओं की...

Basti News : मंडल मुख्यालय स्थित जिला अस्पताल में समस्याएं ही समस्याएं हैं। यह अस्पताल देहात से लेकर शहर तक के लोगों के लिए चिकित्सा का प्रमुख केंद्र है। फिर भी अस्पताल की सुविधाएं इतनी कमजोर हैं कि मरीजों को बुनियादी इलाज तक नहीं मिल पा रहा है। तीमारदारों को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पर्चा बनवाना और ओपीडी में चिकित्सीय परामर्श लेना किसी चुनौती से कम नहीं है। पर्चा काउंटर पर बैठे कर्मियों और सिक्योरिटी गार्डों का व्यवहार परेशान करने वाला रहता है। महिलाओं के साथ ही पुरुष और बच्चे भी इलाज से ज्यादा यहां की अव्यवस्था से जूझने को मजबूर हो जा रहे हैं। कदम-कदम पर दुश्वारियां और इलाज के नाम पर धनउगाही को लेकर मरीजों और उनके तीमारदारों ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अपनी समस्याएं साझा कीं।
बस्ती जिला अस्पताल में रोजाना 1000 से 1100 से मरीज इलाज कराने आते हैं। जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को रजिस्ट्रेशन काउंटर से लेकर चिकित्सकों की ओपीडी तक पहुंचने में तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या तो रजिस्ट्रेशन काउंटर पर होती है, जहां मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। यहां कर्मचारियों की कमी और लापरवाही के कारण मरीजों का खासा वक्त बर्बाद होता है। कई बार मरीजों और तीमारदारों से काउंटर पर तैनात कर्मी दुर्व्यवहार करते हैं। इससे तनाव और बढ़ जाता है। पहले ऑफलाइन कंप्यूटराइज्ड पर्चे बनते थे, अब वह भी सुविधा बंद हो गई है। केवल उन्हीं का पर्चा बन रहा है जिनके पास स्मार्ट फोन रहता। तमाम मरीज और बुजुर्ग ऐसे आते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं होता। उन्हें इलाज से वंचित होना पड़ रहा है या फिर निजी अस्पताल में जाकर इलाज कराना पड़ता है। मरीजों और तीमारदारों का कहना है कि अस्पताल में कई बार इसकी शिकायत की गई लेकिन इन पर कोई कार्रवाई होती है न ही अस्पताल प्रशासन ध्यान देता है। यह स्थिति अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य कर्मियों की कार्यशैली पर सवाल है। अस्पताल के दवा काउंटर पर भी एक बड़ी समस्या है। यहां इंटर्न से दवा बंटवाते हैं, इससे पर्चे पर लिखी दवा कभी-कभी बदल जाती है, जबकि फार्मासिस्ट इधर-उधर कुर्सी पर बैठकर ‘रील्स देखते हैं। दवाओं की कमी बनी रहती है, और कई बार मरीजों को दवा के लिए बाहर जाना पड़ता है। यही नहीं न स्ट्रेचर मिलता है न ही वार्ड ब्वॉय दिखते हैं।
महिला मरीजों के लिए अस्पताल में महिला कक्ष में पुरुष कर्मचारियों की तैनाती और पुरुष कक्ष में महिला कर्मचारियों की तैनाती भी समस्या का कारण बन रही है। इससे न केवल असुविधा होती है, बल्कि यह अस्पताल की व्यवस्था पर भी सवाल है। कर्मचारियों की तैनाती वर्ग के अनुसार नहीं होती है। मरीजों और तीमारदारों का यह भी कहना है कि कई बार स्वास्थ्य कर्मी उनसे दुर्व्यवहार करते हैं, जिससे वे मानसिक तनाव में आ जाते हैं। वार्डों में कूलर बंद है। पेयजल के लिए लोग परेशान हैं, गर्मी में शासन ने सख्त निर्देश दिया है कि सुविधा बेहतर रखें। सड़क इतनी खराब की मरीज स्ट्रेचर से गिरकर घायल हो जा रहे हैं। सफाई का अभाव है, वार्ड में डस्टबिन नहीं है। भर्ती मरीजों को ड्रिप बदलवाने, वीगो लगवाने और यूरिन थैली बदलवाने तक के लिए जूझना पड़ रहा है। वार्ड की गंदगी इतनी कि नाक पर कभी-कभी रूमाल रखनी पड़ती है। चादर तक नहीं बदलते हैं, मक्खियां भिनभिनाती हैं। मच्छरों का प्रकोप इतना कि रात में जीना मुहाल कर दे रहे हैं। रात में मरीज को कोई परेशानी होने पर ऑनकाल पर चिकित्सकों के पहुंचने में समय लग जा रहा है। पीआईसीयू और चिल्ड्रेन वार्ड में प्रतीक्षालय के पास बेंच नहीं हैं। फर्श पर ही लोग समय बिताते हैं। शौचालय इतने गंदे हैं कि जाने को मन नहीं करता है। टूटे ह्वील चेयर भी सुविधा को ठेंगा दिखा रही हैं। ओपीडी के बाहर मरीज जैसे-तैसे फर्श पर समय बिता रहे हैं। ब्लड जांच, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड में तमाम दुश्वारियां झेलकर लोग रिपोर्ट प्राप्त कर रहे हैं। वार्डों के पंखे खराब हैं।
गार्ड पर खर्च हो रहे लाखों, ड्यूटी में मनमानी
बस्ती। जिला अस्पताल में मरीजों, कर्मियों और चिकित्सकों की सुरक्षा की दृष्टिगत तैनात किए गए 25 सिक्योरिटी गार्डों पर अस्पताल प्रबंधन लाखों खर्च कर रहा है, लेकिन ड्यूटी मनमानी तरीके से की जा रही है। रोस्टर का पता नहीं,जहां चाहे वहीं पर डंडा भांजने लगते हैं। इनकी बदसलूकी से मरीज-तीमारदार डरे-सहमे रहते हैं। जबकि इनका काम सहयोग करना है। मरीज बताते हैं कि नाइट में सिक्योरिटी गार्ड कम ही दिखते हैं, जबकि छह सिक्योरिटी गार्ड इमरजेंसी, ट्रामा और अन्य वार्डों में लगाए गए हैं लेकिन रात में नदारद रहते हैं। दिन में भी इधर-उधर घूमकर, मोबाइल चलाकर वक्त बिताते हैं। सिक्योरिटी गार्ड रोस्टरवार ड्यूटी छोड़कर साहब की जी-हजूरी में रहते हैं। एसआईसी साहब की सिक्योरिटी ऐसी कि कोई मरीज, तीमारदार कक्ष में जाकर आसानी से शिकायत तक नहीं कर सकता है।
10 से 12 हजार ऑपरेशन के फिक्स
बस्ती। जिला अस्पताल में सर्जरी के नाम पर काफी लूट मची है। हड्डी टूट गई तो प्लास्टर से लेकर ऑपरेशन तक में मरीजों को जेब ढीली करनी पड़ती है। मरीज जयकृष्ण की तीमारदार पल्लवी ने कहा कि 8000 पहले दिए थे। उसके बाद भी साढ़े चार हजार और देने के लिए कहा गया है। मरीज 10 दिनों से भर्ती है, लेकिन उपचार से संतुष्ट नहीं हैं। तीमारदार गीता देवी ने बताया कि जेठ का पैर फैक्चर हो गया है, 15 दिनों से भर्ती हैं। कोई लाभ नहीं दिख रहा, जबकि ऑपरेशन के समय 12 हजार रुपये दिया गया हैं। ऊपर से बाहर की दवाएं कमरतोड़ दे रही हैं। फूलचंद्र बताते हैं कि दो बार भर्ती हो चुके हैं। हजारों रुपये देने के बाद भी अभी ठीक से चल नहीं पा रहे हैं। यहा अव्यवस्थाएं भी ज्यादा है।
डिजिटल एक्स-रे सेवा ठप, मरीज बाहर कराते हैं जांच
यहां पर इलाज की सुविधाएं भी अत्यधिक सीमित हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिला अस्पताल में डिजिटल एक्स-रे की सुविधा नहीं है। जब कोई मरीज डिजिटल एक्स-रे करवाने के लिए डॉक्टर से सलाह लेता है, तो उसे बाहर के प्राइवेट अस्पतालों में जाकर करवाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिसकी कीमत भी काफी अधिक होती है। इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है, जो इलाज के खर्चे के कारण पहले से ही परेशान रहता है। इसके अलावा, जिला अस्पताल में हेल्थ एटीएम की सुविधा भी नहीं है, जबकि जिला महिला अस्पताल में मरीजों को तुरंत इलाज मुहैया कराने के लिए स्थापित की जा चुकी है। खास है कि हेल्थ एटीएम से मरीज दो मिनट के भीतर 25 से ज्यादा जांचें करवा सकते हैं, जिससे इलाज में समय की बचत होती है। लेकिन इस सुविधा के अभाव में यहां के मरीजों को बार-बार जांच के लिए अलग-अलग स्थानों पर दौड़ लगानी पड़ती है।
मरीजों और तीमारदारों को नहीं मिलता स्ट्रेचर
अस्पताल में स्ट्रेचर की भारी कमी है। कई बार मरीजों और उनके तीमारदारों को ओपीडी तक ले जाने के लिए कंधे पर मरीजों को उठाना पड़ता है। यह स्थिति बेहद असंवेदनशील और अस्वीकार्य है, क्योंकि एक मरीज को अगर गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया है, तो उसे इस प्रकार की अतिरिक्त परेशानी नहीं होनी चाहिए। मरीजों ने बताया कि अस्पताल प्रशासन से कई बार इस समस्या को लेकर शिकायत की गई है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला है।
डॉक्टरों की कमी, पीआईसीयू स्टाफ से ले रहे काम
जिला अस्पताल की यह स्थिति है कि मानक के अनुसार डॉक्टर नहीं हैं। 47 डॉक्टरों में 25 चिकित्सक ही हैं। ट्रामा सेंटर में मानक के अनुसार चिकित्सक नहीं हैं। पीआईसीयू के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नर्स को वहां ड्यूटी न कराकर नियम विरूद्ध तरीके से अन्य वार्ड में ड्यूटी कराई जा रही है। इससे चिल्ड्रेन वार्ड के पीआईसीयू में असुविधा होती है। स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वाय के अलावा स्वीपर की भारी कमी है, जो अस्पताल प्रशासन की यह कार्यशैली सवाल खड़ा कर रहा है।
न्यू सर्जिकल वार्ड में लगा रहता है ताला
न्यू सर्जिकल वार्ड में ताला लगा रहता है। ब्लड बैंक से आसानी से ब्लड नहीं मिलने, निगेटिव ग्रुप के ब्लड नहीं होने तथा प्लेट्लेट्स न बनने से मरीज भटकते हैं। एआरवी वैक्सीन 24 घंटे के बजाय सिर्फ दो बजे तक लगाई जा रही है, जबकि अस्पताल का चयन हुआ है। आयुष विंग में दवाओं का अभाव होने से परेशानी होती है। मरीजों के लिए बनने वाला भोजनमें भी कटौती और खुले में खाना बांटा जाता है।
हमारी भी सुनें
रजिस्ट्रेशन काउंटर पर काफी देर इंतजार करना पड़ता है। कर्मचारियों से बातचीत भी बहुत कठिन होती है। कई बार उनसे दुर्व्यवहार भी हो चुका है।
कर्तिकेय उपाध्याय
जिला अस्पताल में हेल्थ एटीएम की सुविधा नहीं है, जिससे कई जांचों के लिए हमें बाहर जाना पड़ता है। इससे समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है। हमें यहां सुधार की सख्त जरूरत है।
अरविंद
डिजिटल एक्स-रे के लिए अस्पताल में जांच की कोई सुविधा नहीं है। मुझे बाहर जाना पड़ा और पैसे भी ज्यादा खर्च हुए। यहां इलाज की सुविधाएं बहुत सीमित हैं।
गुरु
काउंटर पर कर्मचारी परेशान करते हैं। कभी भी सही तरीके से जवाब नहीं मिलता। अगर हम शिकायत करने जाते हैं तो कोई सुनता नहीं है। फोन न होने पर पर्चा नहीं बनता।
रुदल
डॉक्टर के पास जाने में बहुत समय लगता है। ओपीडी में भीड़ इतनी होती है कि इलाज में समय लगता है। सुविधा होती, तो शायद जल्दी ठीक हो पाती। सुविधाओं का विस्तार जरूरी है।
जुगराफिया
कभी-कभी दवाइयों की कमी भी हो जाती है। कई बार हमें बाहर से दवाइयां लानी पड़ती हैं। यहां के कर्मियों से संवाद करने में भी परेशानी होती है।
कोकिला
हमें अस्पताल में कई बार स्ट्रेचर नहीं मिला और कंधों पर ओपीडी तक मरीज को लेकर जाना पड़ा। यह बहुत कठिनाई भरा अनुभव था। अस्पताल प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।
शीला
कर्मचारियों का व्यवहार बहुत खराब है। हमने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। स्वास्थ्य कर्मियों को थोड़ा और संवेदनशील होना चाहिए।
सुमन
कई बार यहां इलाज के बाद भी तबीयत में कोई फर्क नहीं आता। डॉक्टर्स की कमी महसूस होती है और यहां डिजिटल एक्स-रे जैसी सुविधाएं भी नहीं हैं, तो इलाज कैसा होगा।
सीमा देवी
मरीजों द्वारा कई बार शिकायत की जा चुकी है, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। यहां पर काम करने वाले कर्मचारी पेशेवर नहीं हैं। समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
ओशमा
कई सीएचसी पर हेल्थ एटीएम की सुविधा तो है, लेकिन यहां पर नहीं है। मैनपावर और टेक्नीशियन की कमी है, ब्लड टेस्ट करवाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
सुमित
कर्मचारी बहुत ही अकुशल हैं और मरीजों के साथ ठीक से बात नहीं करते। अस्पताल में सही तरीके से इलाज कराने के लिए व्यवस्थाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो बिल्कुल भी नहीं हैं।
चंद्रशेखर
हमारे पास समय नहीं था, लेकिन रजिस्ट्रेशन काउंटर पर कर्मचारियों ने इतना वक्त लिया कि हम परेशान हो गए। प्रशासन को इसे प्राथमिकता पर सुधारना चाहिए। शैलेश
दवाइयां कभी-कभी खत्म हो जाती हैं और बाहर से लेनी पड़ती हैं। बाहर इन दवाइयों की कीमत काफी ज्यादा होती है। वार्डो में सफाई हो, डस्टबिन हो, मच्छरों के प्रकोप से बचाएं।
पवन पांडेय
उपचार के नाम पर शोषण बंद होना चाहिए। जो सुविधा नि:शुल्क है उसका शुल्क कैसे लिया जाता है, इस पर रोक लगनी चाहिए।
प्रवीण
चोट लगने पर कई बार अस्पताल में उपचार के लिए आना पड़ता है। पैसा खर्च होने के बाद भी जल्द आराम नहीं मिलता। अस्पताल में व्याप्त दुश्वारियां दूर हों।
फूलचंद्र
बोले जिम्मेदार
जिला अस्पताल में आयुष्मान मित्र की तैनाती का पत्र आया है। आईडी अभी नहीं बनी है, इससे मरीज अभी लाभ नहीं पा रहे हैं। जल्द ही आईडी बन जाएगी। मरीजों की ओर से यदि कोई शिकायत सिक्योरिटी गार्ड से संबंधित आएगा तो जांच कर संबंधित पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। सिक्योरिटी गार्ड को ट्रेनिंग देकर वहां पोस्टिंग दी गई है। यदि मरीजों और तीमारदारों के साथ गलत व्यवहार करते हैं तो वह शिकायत करें। संबंधित कंपनी को पत्र भेजकर कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. राजीव निगम, सीएमओ, बस्ती।
जिला अस्पताल में डिजिटल एक्स-रे के लिए प्रयास चल रहा है, जो भी कमियां होंगी उनको दूर किया जाएगा। अस्पताल में मरीजों और तीमारदारों के साथ व्यवहार को लेकर पहले भी कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। यदि मरीजों व तीमारदारों के साथ गलत व्यवहार करते हैं तो वह शिकायत करें फौरन कार्रवाई की जाएगी। मानक के अनुसार ड्यूटी लगाई जा रही है। दवाएं रहती हैं, उपचार के नाम पर धनउगाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बाहर की दवाएं लिखने वाले चिकित्सक चिह्नित किए जाएंगे, शिकायत पर सख्त कार्रवाई होगी। चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए शासन स्तर से डॉक्टर की मांग की गई है। पर्चा काउंटर की सुविधा बढ़ाई जाएगी।
डॉ. खालिद रिजवान अहमद, एसआईसी, जिला अस्पताल, बस्ती
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