बोले बरेली: नर्सिंग स्टाफ चाहता है सम्मानजनक वेतन और काम के तय घंटे
Bareily News - बरेली में नर्सिंग स्टाफ कम वेतन, नौकरी की अस्थिरता और काम के अत्यधिक दबाव का सामना कर रहे हैं। अधिकांश नर्सिंग स्टाफ को नियुक्ति पत्र नहीं मिलता और उन्हें 12 से 15 घंटे काम करना पड़ता है, जिसके लिए...
बरेली को प्रदेश का मेडिकल हब कहा जाता है जहां 700 से मेडिकल कालेज, अस्पताल, क्लीनिक हैं। यहां हजारों नर्सिंग स्टाफ काम करता है। इनके कंधों पर ही किसी अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था टिकी है लेकिन खुद नर्सिंग स्टाफ परेशानियों से घिरा है। दिहाड़ी मजदूर से भी कम वेतन, नौकरी की अस्थिरता और अवकाश नहीं मिलने की समस्या तो है ही, इमरजेंसी ड्यूटी के नाम पर अतिरिक्त कार्य का दबाव है सो अलग। हिन्दुस्तान से बातचीत में नर्सिंग स्टाफ ने अपनी समस्साएं साझा कीं और साथ ही उनके निदान के लिए सुझाव भी दिए। जिले में नए अस्पताल-क्लीनिक और नर्सिंग कालेज खुल रहे हैं। हर साल हजारों छात्र नर्सिंग का कोर्स पूरा कर अस्पताल, मेडिकल कालेजों में नौकरी करने जाते हैं। ऐसे में एकबारगी लग सकता है कि नर्सिंग स्टाफ को काफी सहूलियत है, वह सुकून में हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाला करीब 40-50 फीसदी स्टाफ लिखापढ़ी में वहां का कर्मचारी ही नहीं है। उसे न तो अस्पताल या संस्थान की तरफ से नौकरी के लिए कोई नियुक्ति पत्र मिला है और न ही बैंक खाते में सैलरी आती है। उसकी हालत दिहाड़ी मजदूर जैसी है और महीना पूरा होने पर कैश वेतन दे दिया जाता है। हिन्दुस्तान से बातचीत में अस्पतालों में काम करने वाले नर्सिंग स्टाफ ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी कम वेतन की है। करीब 30 प्रतिशत नर्सिंग स्टाफ की सैलरी प्रतिमाह 6-8 हजार रुपये मात्र है। इतने कम वेतन में भला घर कैसे चले। हर दिन का 200-300 रुपये औसत है और इससे अधिक तो दिहाड़ी मजदूरी होती है। नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि जब भी वेतन बढ़ाने की बात करो तो अस्पताल प्रबंधन नौकरी से हटाकर दूसरे को इतने ही वेतन में रखने की बात कहता है। आखिर क्या किया जाए, वेतन बढ़ाने के चक्कर में नौकरी से हाथ धोने की नौबत आ जाती है।
लिखापढ़ी है नहीं, अस्पताल नहीं देते नियुक्ति पत्र
नर्सिंग स्टाफ को सबसे बड़ा कष्ट है कि उनको नियुक्ति पत्र ही नहीं मिलता है। अधिकांश अस्पतालों में सिर्फ 30-35 प्रतिशत स्टाफ के पास ही प्रबंधन का नियुक्ति पत्र है। वह रिकार्ड में अस्पताल के कर्मचारी माने जाते हैं। बाकी 60-70 प्रतिशत स्टाफ कहने को तो अस्पताल में काम करता है, लेकिन लिखापढ़ी में वह अस्पताल का स्टाफ ही नहीं है। ऐसे में कई बार परेशानी होने पर अस्पताल प्रबंधन हाथ खड़े कर देता है या साफ मुकर जाता है कि हम उनके कर्मचारी ही नहीं है। एक बड़ी परेशानी पहचान पत्र की भी होती है। कई बार रास्ते में किसी वजह से पुलिस ने रोका तो अस्पताल का स्टाफ बताने पर पहचान पत्र मांगते हैं।
बैंक में अधिक सैलरी, हाथ में आती कम
नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि उनके साथ वेतन में भी कई बार अस्पताल प्रबंधन दबाव बनाकर मनमानी कर लेता है। अस्पताल प्रबंधन उनकी सैलरी कागज पर अधिक दिखाता है और वही सैलरी उनके बैंक खाते में भी भेजी जाती है। लेकिन फिर 40-50 प्रतिशत सैलरी उनको अस्पताल प्रबंधन को वापस करनी पड़ी है। यह आपस में पहले ही तय कर लेने के बाद ही उनको अस्पताल में नौकरी मिल रही है। निजी अस्पतालों और क्लीनिक, दोनों जगह उनका शोषण हो रहा है। लेकिन अगर कहीं शिकायत करें तो नौकरी जाना तय है। फिर शहर में निजी अस्पतालों का आपस में इतना मजबूत नेटवर्क है कि दूसरे अस्पताल में नौकरी मिलना भी मुश्किल है।
काम के घंटे तय नहीं, फ्री में करते हैं ओवरटाइम
अस्पताल में इमरजेंसी ड्यूटी के नाम पर भी उनसे अतिरिक्त काम लिया जा रहा है। नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि नौकरी पर रखते समय अस्पताल प्रबंधन यही बताता है कि उनको 8 घंटे की ड्यूटी करनी होगी लेकिन हकीकत यह है कि नर्सिंग स्टाफ इस समय 12-13 घंटे तक नौकरी कर रहा है। अगर ओवरटाइम करने से इंकार कर दो तो अस्पताल प्रबंधन अगले ही दिन नौकरी से निकाल देता है। अगर नौकरी करनी है तो उनका दबाव सहना पड़ता है। पहले तो इमरजेंसी के नाम पर बुलाया जाता था, अब तो 12 घंटे का ड्यूटी चार्ट ही बनाया जा रहा है। नर्सिंग स्टाफ ने इसे अपनी नियती मान लिया है और 12-12 घंटे रोजाना ड्यूटी कर रहे हैं। समझ नहीं आता कि इसकी शिकायत करें तो किससे। इतना ही नहीं, कई बार इमरजेंसी के नाम पर 14-15 घंटे भी काम कराया जाता है और उसका भी कोई ओवरटाइम नहीं मिलता है।
भविष्य को लेकर असुरक्षित
नर्सिंग स्टाफ अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। उनका कहना है कि अस्पताल 6-8 हजार रुपये उनको सैलरी देते हैं, वह भी बिना लिखापढ़ी के। प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाले 55-60 प्रतिशत स्टाफ का कोई रिकार्ड नहीं है। ऐसे में उनका न तो पीएफ कटता है और न ही कोई कारपोरेट पालिसी का बीमा ही है। अगर कभी बीमार हो जाएं, इलाज कराना पड़ जाए तो पूरे महीने की सैलरी वहीं खर्च हो जाती है।
शिकायतें:
- नर्सिंग स्टाफ का वेतन बहुत कम है जबकि अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था संभालने में उनका अहम योगदान है
- अधिकांश अस्पतालों में सिर्फ 45-50 प्रतिशत नर्सिंग स्टाफ को ही रिकार्ड में कर्मचारी दर्शाया गया है, बकाया स्टाफ दिहाड़ी मजदूर की तरह काम कर रहे हैं
- नर्सिंग स्टाफ से 12 से 15 घंटे तक काम कराया जा रहा है और उनको ओवरटाइम का अतिरिक्त भुगतान भी नहीं होता है।
- कई अस्पतालों ने अपना नर्सिंग कालेज भी खोला है। वहां के छात्रों से ट्रेनिंग के नाम पर अस्पताल का काम कराया जाता है और इसके लिए कोई भुगतान भी नहीं दिया जाता।
- नर्सिंग स्टाफ को अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कारपोरेट इंश्योरेंस समेत अन्य सुविधाएं नहीं दी जाती हैं।
- जिले में सिर्फ 15 प्रतिशत अस्पताल ही अपने नर्सिंग स्टाफ को ईएसआई और पीएफ जैसी सुविधा दे रहे हैं।
सुझाव:
- नर्सिंग स्टाफ के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाए। अस्पताल की क्षमता के अनुसार भी स्टाफ का न्यूनतम वेतनमान तय होना चाहिए।
- अस्पताल कितने बेड का है, इसके अनुसार वहां स्टाफ की तैनाती है या नहीं, इसकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए। इससे बिना लिखापढ़ी के अस्पताल अपने यहां नर्सिंग स्टाफ नहीं रख सकेंगे।
- नर्सिंग स्टाफ को अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कारपोरेट इंश्योरेंस का लाभ दिया जाना चाहिए।
- अस्पताल प्रबंधन हर साल नर्सिंग स्टाफ के वेतन में बढ़ोतरी करे जिससे हमारा मनोबल बना रहे।
- नर्सिंग कालेज वाले अस्पतालों में छात्रों को ट्रेनिंग के दौरान न्यूनतम भुगतान जरूर किया जाए।
- कुछ ऐसा नियम जरूर बने कि अस्पताल प्रबंधन किसी नर्सिंग स्टाफ को जब चाहे नौकरी से न निकाल सके।
हमारी भी सुनिए:
अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था की जिम्मेदारी नर्सिंग स्टाफ उठा रहा है लेकिन प्रबंधन उनके हित की नहीं सोचता। यह दुखद है कि तकनीकी रूप से सक्षम नर्सिंग स्टाफ को दिहाड़ी मजदूरों जैसा वेतन दिया जा रहा है। - ईश्वर चंद्र
नर्सिंग स्टाफ के लिए न्यूनतम वेतन तय होना चाहिए। महज 6 से 8 हजार रुपये में नर्सिंग स्टाफ कम कर रहा है जबकि अस्पतालों की फीस लगातार बढ़ रही है। उनको सम्मानजनक वेतन न मिलना सबसे बड़ी समस्या है। - राजकुमार वर्मा
परेशानी ये है कि अधिकांश नर्सिंग स्टाफ तो रिकॉर्ड में अस्पताल का स्टाफ ही नहीं है। उनको कैश वेतन दिया जाता है। यही वजह है कि कोई मामला होने पर अस्पताल प्रबंधन अपना पल्ला झाड़ लेता है और स्टाफ को उसके हाल पर छोड़ देता है। - अमित वर्मा
आज के समय में सिर्फ 6 से 8 हजार रुपये में भला घर कैसे चलेगा। अस्पताल प्रबंधन को नर्सिंग स्टाफ के बारे में सोचना चाहिए। हर साल निश्चित वेतन वृद्धि की व्यवस्था जरूरी है। इससे नर्सिंग स्टाफ के आर्थिक हालत में सुधार होगा। - इमरान
वेतन की बात करने पर नौकरी से निकालने की धमकी मिलने लगती है। आखिर नौकरी भी तो करनी है। इसके चलते स्टाफ कम वेतन में भी कम करने को मजबूर है। इस तरफ सरकारी तंत्र को ध्यान देना चाहिए। - चरन सिंह
नर्सिंग स्टाफ को अतिरिक्त भत्ता नहीं मिलता है और काम भी 8 घंटे की जगह 12 से 14 घंटे कराया जाता है। काम का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है जबकि वेतन में दो साल में 500 रुपये बढ़ाए जाते है। नर्सिंग स्टाफ आर्थिक संकट से जूझ रहा है। - प्रमोद सिंह
अधिकांश स्टाफ को न तो पीएफ का लाभ मिलता है और न ही ईएसआई की सुविधा। ऐसे में भविष्य को लेकर नर्सिंग स्टाफ बहुत असुरक्षित महसूस करता है। कुछ ऐसा हो कि सभी नर्सिंग स्टाफ को इसका लाभ जरूर मिले। - आसिफ खान
काम का दबाव बढ़ रहा नर्सिंग स्टाफ पर, 10 से 12 घंटे की ड्यूटी करना आम बात हो गई है। कई बार तो इमरजेंसी के नाम पर 15 घंटे तक काम करना पड़ जाता है। इसके लिए अतिरिक्त भुगतान भी नहीं किया जाता। - शिवदत्त
अस्पताल की सफलता बहुत हद तक नर्सिंग स्टाफ पर निर्भर करती है। इसके बाद भी प्रबंधन उनके लिए बेहतर करने का प्रयास नहीं करता तो दुख होता है। कम से कम न्यूनतम वेतनमान जरूर लागू होना चाहिए। - भानुप्रताप
अस्पताल में कम करने वाले सभी नर्सिंग स्टाफ को सम्मानजनक वेतन मिलना ही चाहिए। निजी अस्पतालों के प्रबंधन को उनको अपना परिवार मानकर सोचना चाहिए। काम के घंटे तय होना बहुत जरूरी है। - सुनैना
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन समय-समय पर निजी अस्पतालों की जांच करें और वहां काम करने वाले नर्सिंग स्टाफ की रिकॉर्ड का मिलान कराए। बिना लिखा पढ़ी के काम करने वाले नर्सिंग स्टाफ का भविष्य अंधकार में है। - शावेज
नौकरी की अनिश्चितता बनी रहती है और नर्सिंग स्टाफ दबाव में रहता है। कुछ ऐसा जरूर हो जिससे यह तनाव न हो। न्यूनतम वेतनमान लागू होना बहुत जरूरी है। साथ ही पीएफ और ईएसआई की सुविधा भी मिलनी चाहिए। - भावना
नर्सिंग कालेज लगातार बढ़ रहे हैं। हजारों की संख्या में छात्र एडमिशन ले रहे हैं। लेकिन नर्सिंग स्टाफ का करियर उतना बेहतर नहीं दिखता। अस्पतालों में काम करने वाला स्टाफ कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है, जिनका निदान होना जरूरी है। - राकेश चंद्रा
महज 7- 8 हजार रुपये मासिक वेतन पर भला घर का खर्च कैसे चलेगा। अगर कोई इमरजेंसी आ जाए तो घर का बजट भी गड़बड़ा जाता है। नर्सिंग स्टाफ के लिए न्यूनतम वेतनमान लागू होना बहुत जरूरी है। साथ ही अस्पतालों में बेड की संख्या के आधार पर भी उनका हर साल वेतन वृद्धि मिलनी चाहिए। - सत्यवीर गंगवार
नर्सिंग स्टाफ पर काम का बहुत दबाव है, वेतन भी कम है। अस्पताल प्रबंधन को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए। वेतन ऐसा हो जिससे नर्सिंग स्टाफ भी अपने घर परिवार की जरूरत को पूरा कर सके और आर्थिक संकट दूर हो। - डा. एमएल गंगवार
अस्पतालों में नर्सिंग स्टाफ के काम के घंटे तय होना जरूरी है। अगर उनसे अतिरिक्त काम कराया जाता है तो इसके लिए अतिरिक्त भत्ता भी मिलना चाहिए। इसके साथ ही सालाना वेतन वृद्धि का भी प्रावधान होना चाहिए। - मुकर्रम खान
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