बोले बरेली: सस्ते लोन व आधुनिक प्रशिक्षण से बढ़ेगा स्वर्ण कारीगरों का कारोबार
Bareily News - बरेली के सुनार कारीगर आर्थिक तंगी और रोजगार की कमी से जूझ रहे हैं। उनकी कला का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और आधुनिक मशीनों की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। हल्के आभूषणों की बढ़ती मांग और सरकारी सहायता की...
बरेली, जो कभी अपने सुनारी आभूषणों के लिए प्रसिद्ध था, अब यहां के कारीगर आर्थिक तंगी और रोजगार की कमी से जूझ रहे हैं। कारीगरों को अपनी कला का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है और वे आधुनिक मशीनों और टूल्स की कमी से परेशान हैं। पारंपरिक डिजाइन के बजाय हल्के आभूषणों की बढ़ती मांग और सरकार से कम सहायता के कारण कारीगरों की स्थिति और भी कठिन हो गई है। कारीगरों का कहना है कि उन्हें सरकारी सहायता के साथ ही सस्ते दर पर लोन मिले तो स्थिति सुधर सकती है। बरेली के पुराना शहर और बमनपुरी इलाके के कारीगरों ने इस कुटीर उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था, लेकिन आज समय के साथ उनका व्यवसाय संकट में है। यहां के करीब 20,000 कारीगरों को अपनी कला और मेहनत के उचित मूल्य के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
आज के इस बदलते समय में बरेली के सुनार कारीगरों का सामना अनेक समस्याओं से हो रहा है। एक तो आर्थिक तंगी के कारण उनके पास आभूषण डिजाइन करने के लिए आधुनिक मशीनें और टूल्स नहीं हैं। पुराने और परंपरागत तरीके से सोने के आभूषण बनाने में समय और मेहनत दोनों लगते हैं, लेकिन इस पर उन्हें उचित मेहनताना नहीं मिल पाता। इसके अलावा, अब बाजार में परंपरागत डिजाइनों की मांग घटने लगी है और लोग हल्के, डिज़ाइनर आभूषणों की ओर रुख कर रहे हैं, जिसके लिए मशीनों की आवश्यकता है। लेकिन अधिक पैसे नहीं होने और सरकारी सहायता की कमी के कारण कारीगर इस बदलाव को नहीं अपना पा रहे हैं।
कारीगरों का कहना है कि सरकार ने सुनार कारीगरों के लिए जो योजनाएं बनाई हैं, उनकी जानकारी बहुत कम लोगों तक पहुंच पाती है। योजना का प्रचार प्रसार बढ़ाना चाहिए, ताकि कारीगरों को इसका लाभ मिल सके। इतना ही नहीं सुनार कारीगरों को बेहतर डिजाइन बनाने के लिए नई मशीनों और टूल्स की आवश्यकता है, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत अधिक रुपये चाहिए, जो उनके पास नहीं हैं। यहां तक कि कुछ कारीगरों के पास यदि रुपये होते भी हैं, तो उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि इन मशीनों को कहां से और कैसे खरीदा जाए। कई बार अच्छे पैसे होने के बावजूद मशीनों की जानकारी की कमी के कारण कारीगर सही फैसला नहीं ले पाते।
ओडीओपी का नहीं मिल रहा लाभ
कई कारीगरों का यह भी कहना है कि सरकारी योजनाओं और वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) के बावजूद उन्हें कोई विशेष सहायता नहीं मिल रही है। इससे बेरोजगारी बढ़ रही है। स्थितियां ऐसी हो गई हैं कि कई कारीगर बेरोजगार बैठकर समय बिता रहे हैं। कई कारीगरों के लिए तो यह स्थिति इतनी विकट हो गई है कि वे अपनी आजीविका चलाने के लिए ई-रिक्शा चलाने या रेहड़ी लगाकर अपने परिवार का पेट पालने पर मजबूर हो गए हैं।
बारीक काम पर आमदनी कम
कारीगरों का कहना है कि सोना से आभूषण डिजाइन करना बहुत ही बारीक काम है। इसके लिए सोने को पकाना, छीलना, फटकना, काटना आदि कई काम करने होते हैं। इसके बाद शिल्पकार की डिजाइन बनाना होत है। इसमें काफी वक्त लगता है। साथ ही यह भी ध्यान रखना होता है कि सोने का औंस मात्र भी खराब न हो। इतनी मेहनत के बावजूद सही मेहनताना तक नहीं मिल पाता है।
हमारी भी सुनें:
- रस्तोगी समाज के महामंत्री नीतेश रस्तोगी का कहना है कि सुनार कारीगरों को आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है। सरकार सस्ते दरों पर आसान किस्तों में लोन उपलब्ध कराए।
- नीरज वर्मा का कहना है कि सरकार ने सुनार कारीगरों के लिए जो योजनाएं चला रखी हैं, उनकी किसी को जानकारी नही हैं। योजनाओं का प्रचार प्रसार होना चाहिए।
- शैलेंद्र का कहना है कि आधुनिक समय में सुनार कारीगरों को बेहतर डिजाइन बनाने के लिए नई मशीनों और टूल्स की जरूरत होती है, उसके लिए अधिक रुपये चाहिए।
- रवि कुमार रस्तोगी का कहना है कि कई बार रुपये होने के बावजूद मशीनों के बारे में बेहतर जानकारी नहीं होने के कारण यह पता ही नहीं चलता कि उसे कहां से खरीदें।
- आदित्य रस्तोगी का कहना है कि सरकार को कम ब्याजदर पर सुनारी कारीगरों को लोन देना चाहिए, जिससे वे बेहतर आभूषण डिजाइन करके उसे बेच सकें।
- रवि वर्मा का कहना है कि सरकार कम से कम दस लाख का लोन देना चाहिए। साथ ही लोन देने की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। बैंक वाले कई बार बेवजह सवाल पूछते हैं।
- सचिन रस्तोगी का कहना है कि किसी समय में बरेली के आभूषणों की डिजाइन सभी जगह काफी प्रचलित थी। अब हालात ये हो गए हैं कि कई कारीगर खाली बैठे हैं।
- अजय रस्तोगी का कहना है कि ओडीओपी में शामिल होने के बावजूद सुनारी कारीगरों को किसी तरह की कोई खास सहायता नहीं मिल पा रही है। लोग बेरोजगार हो रहे हैं।
- दिनेश वर्मा का कहना है कि पहले सर्राफ खुद सोना देकर डिजाइन तैयार करता था। अब ऐसा नहीं होता। कारीगरों के पास रुपये नहीं होने पर कोई काम वह कर नहीं पाता।
- दिनेश रस्तोगी का कहना है सर्राफा कारीगर तो ग्राहकों से 6.5 प्रतिशत तक मेकिंग चार्ज ले लेता है लेकिन कारीगर तक इसका दो फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाता है।
- उज्ज्वल वर्मा का कहना है कि सरकार को हमें स्वास्थ्य और बीमा योजनाओं का लाभ देना चाहिए। ऐसा होने से ही हमारा भविष्य सुरक्षित रह सकता है।
- राजेश रस्तोगी का कहना है कि हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि बरेली के 90 फीसदी कारीगरों के पास आज की तारीख में कोई काम नहीं बचा है। बेरोजगारी बढ़ रही है।
- सागर रस्तोगी का कहना है कि हालात इस कदर खराब होते जा रहे हैं कि आर्थिक तंगी की वजह से कुछ कारीगरों को ई-रिक्शा और रेहड़ी लगाकर गुजारा करना पड़ रहा है।
- राहुल रस्तोगी का कहना है कि आज के समय में बेहतर कारीगरी के लिए आधुनिक तरीके से प्रशिक्षण बेहद जरूरी है। सरकार को एक्सपर्ट लोगों से हमें प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।
- शोभित रस्तोगी का कहना है कि सोना काफी महंगा हो गया है। इसे खरीदकर आभूषण बनाना हर कारीगर के बस की बात नहीं है। इसलिए सरकारी मदद की सख्त जरूरत है।
समस्याएं:
1. सुनारी कारीगर के सामने सबसे बड़ी समस्या पूंजी की है। रुपये नहीं होने के कारण ये लोग सोना खरीदकर खुद आभूषण नहीं बना पा रहे हैं।
2. अब ज्यादातर सोने के आभूषण मशीनों से तैयार किए जाते हैं। बरेली के कारीगरों के पास अत्याधुनिक मशीन और टूल्स की कमी है।
3. आधुनिक समय में नए डिजाइन के आभूषण तैयार करने के लिए प्रशिक्षण की काफी जरूरत है। कई कारीगर अब भी परंपरागत तरीका अपनाते हैं।
4. अधिकतर कारीगरों का श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं है। इसके कारण इन लोगों को विभाग की ओर से दी जा रही सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है।
5. बरेली के कारीगरों के द्वारा बनाए गए आभूषणों का प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण इन्हें अब पहले के मुकाबले काम भी कम मिलता है।
सुझाव:
1. सुनारी कारीगरों की बेहतरी करने के लिए सरकार को इन्हें सस्ते दर पर लोन उपलब्ध कराने चाहिए, जिससे ये सोना खरीदकर आभूषण तैयार कर सकें।
2. सरकार को कैंप लगाकर सुनारी कारीगरों को आधुनिक मशीनों और टूल्स के बारे में जानकारी के साथ ही प्रशिक्षण देने की जरूरत है।
3. जिला उद्योग केंद्र की ओर से सुनारी कारीगरों के लिए जब भी प्रशिक्षण कैंप लगाया जाता है, उससे पहले उसका प्रचार-प्रसार करना जरूरी है।
4. श्रम विभाग को सुनारी कारीगरों के बीच जाकर योजनाओं की जानकारी देना चाहिए। साथ ही उनके पंजीकरण के लिए विशेष कैंप लगाने चाहिए।
5. कारीगरों को स्वास्थ्य और बीमा योजना का लाभ मिलना चाहिए। साथ ही बैंकों में लोन देने की प्रक्रिया को और अत्यधिक सरल बनानी चाहिए।
बड़े कारोबारियों को ही होता है अधिक मुनाफा
बरेली में शेरगढ़, शीशगढ़, बहेड़ी, रिठौरा, फरीदपुर, नवाबगंज, हाफिजगंज, आंवला, भमोरा, बिशारतगंज, देवचरा, अलीगंज आदि में लगभग 12 हजार कारीगर जेवर बनाते हैं। बरेली शहर के अंदर खन्नू मोहल्ला, छोटी बमनपुरी, बिहारीपुर, कन्हैया टोला, पट्टी गली, रोहली टोला, अलमगीरी गंज, जोगी नवादा आदि क्षेत्रों में सोने चांदी के आभूषण बनाने वाले लगभग आठ हजार कारीगर हैं। इनकी उत्पादन क्षमता करीब 1000 करोड़ रुपए वार्षिक है। कारीगरों का कहना है कि इस कारोबार को ज्यादातर हिस्सा बड़े सर्राफों के पास चला जाता है। उनके हिस्से बतौर मेहनताना कुछ रुपये ही आते हैं।
पहले सर्राफ ही सोना देकर बनवाते थे आभूषण
कारीगरों का कहना है कि पांच साल पहले तक भी ज्यादातर सर्राफ उन्हें सोना देकर आभूषण तैयार कराते थे। बाद में कुछ कारीगरों ने गलती कर दी। सर्राफों का सोना लेकर भाग गए, जिसका खामियाजा सभी को उठाना पड़ रहा है। अब सर्राफ अपनी ओर से सोना देकर आभूषण नहीं बनवाता है। स्थिति यह है कि यदि कारीगर के पास सोना खरीदकर आभूषण डिजाइन करने के पैसे नहीं हैं तो वह बेरोजगार होकर बैठा रहेगा।
बरेली में अब बंगाल और महाराष्ट्र के कारीगर भी आए
प्रदेश में मेरठ के बाद बरेली के काम को ही सराहा जाता है। यहां के कारीगर परंपरागत तरीके से आभूषण बनाते हैं, टिकाऊ होने के कारण मांग अधिक होती है। करीब दस साल पहले तक ज्वेलरी डिजाइनिंग के 50 फीसदी से अधिक काम बरेली के कारीगर ही करते थे लेकिन धीरे-धीरे समय ऐसा बदला कि यहां बंगाल और महाराष्ट्र के कारीगर भी अपना हुनर दिखाने आए। वे अपने साथ आधुनिक डिजाइन, तकनीक और टूल्स लेकर भी आए। बाजार पर अब इनका भी अधिपत्य होने लगा है।
चढ़ता गया सोने का भाव, पर नहीं बढ़ा कारीगरों का पारिश्रमिक
बरेली के कारीगरों के हाथों डिजाइन की गई ज्वेलरी की मांग सभी जगहों पर है। यह अपने बारीक काम और आकर्षक नक्काशी के लिए जाना जाता है। यहां के कारीगरों के हाथों से निकलने वाले गहनों में न केवल चमचमाती कटिंग होती है, बल्कि रंग-बिरंगी मीनाकारी और नेट वर्क की भी खूबसूरत बारीकियां देखने को मिलती हैं। इस सबके बावजूद यहां के कारीगर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। आभूषणों की चमक में कारीगरों के चेहरे का दर्द किसी को नहीं दिख रहा।
दरअसल, आभूषणों की खूबसूरती उनके कारीगरों की अद्भुत कला में छिपी होती है, लेकिन इन कारीगरों की चमक अब आर्थिक तंगी के कारण कम होती जा रही है। सोने की कीमत 90 हजार रुपये के आसपास पहुंच गई है। गहनों के मेकिंग चार्ज में भी ग्राहकों से 6.5 प्रतिशत तक लिया जाता है, लेकिन कारीगरों को इसका महज 2 प्रतिशत या उससे भी कम मिलता है। इस स्थिति ने कारीगरों की हालत दयनीय कर दी है। कारीगरों की मेहनत और कला का मूल्य उन्हें सही तरीके से नहीं मिल रहा। सोने के आभूषणों पर बारीक काम करना, मीनाकारी और चांदी की बारीक नक्काशी जैसी कला में विशेषज्ञता हासिल करने के बावजूद, उन्हें काम का उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। यही कारण है कि, जैसे ही सोने का रेट बढ़ा, वैसे ही इन कारीगरों की जिंदगी और मुश्किल हो गई। भविष्य अनिश्चित दिखाई देता है। जहां एक तरफ उनके द्वारा बनाए गए आभूषण दुनिया भर में मशहूर हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी मेहनत का उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
हर ज्वेलरी पर झलकती है कारीगर की मेहनत
हाल के सालों में, हल्की और सस्ती ज्वेलरी की मांग बढ़ी है, खासकर साउथ इंडियन और नेट वर्क की ज्वेलरी की। हालांकि, इन डिजाइनों में भी कारीगरों की बेहतरीन मेहनत झलकती है, लेकिन इन डिजाइनों के लिए उन्हें भी ज्यादा पैसे की जरूरत होती है। लेकिन संसाधनों की कमी और महंगी मशीनों की अनुपलब्धता के कारण वे इस परिवर्तन के साथ नहीं चल पा रहे हैं।
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