बरेली में चौबारी मेला शुरू, पाकिस्तानी मूल के घोड़े की है सबसे ज्यादा डिमांड
- बरेली में रामगंगा तट पर लगने वाले चौबारी मेले में दूर-दराज से घोड़े लेकर आते हैं लोग। साल 1927 से इस मेले का हर साल आयोजन हो रहा है।
बरेली के रामगंगा तट पर लगने वाला मेला अपने नखासे के लिए देश भर में मशहूर है। इस मेले की खासियत है यहां बिकने आने वाले पाकिस्तान मूल के वो घोड़े जो अब सीमा से लगे भारत के इलाकों में पाए जाते हैं। एक सप्ताह तक लगने वाले इस मेले में वैसे तो हर नस्ल के घोड़े लाए जाते हैं लेकिन सबसे अधिक मांग पंजाब, जम्मू-कश्मीर और गुजरात के सीमावर्ती इलाकों में पाए जाने वाले सिंधी नस्ल के घोड़ों की रहती है। इसका कारण यह है कि ये घोड़े कद-काठी में तगड़े होते हैं और वजन ढोने की क्षमता इनमें अधिक होती है।
रामगंगा तट पर लगने वाला चौबारी मेला सबसे पहले 97 साल पहले 1927 में लगाया गया था। तब से हर साल यह मेला लग रहा है। इस बार 11 नवंबर से मेला शुरू हो गया है। मेला में नखासे सज गए हैं और बिकने के लिए दूर-दराज से घोड़े आ गए हैं।
मेले में गुजरात के मोहम्मद कय्यूम 25 से अधिक सिंधी नस्ल के घोड़े लेकर पहुंचे हैं। कय्यूम बताते हैं कि वह हर साल सिंधी नस्ल के घोड़ों को लेकर चौबारी मेले में आते हैं। यहां अच्छा दाम मिलता है और बिक्री भी जमकर होती है। कय्यूम ने बताया कि सिंधी नस्ल के घोड़े काफी तेज दौड़ते हैं। वजन ढोने में भी इनका कोई सानी नहीं है। इसलिए ये खरीदारों की पहली पसंद है।
सिंधी नस्ल के पाकिस्तानी घोड़े बिकते हैं ज्यादा
पाकिस्तान में पाई जाने वाली सिंधी नस्ल के घोड़ों की गर्दन लंबी होती है। इसके साथ ही अपनी अदाओं से ये घोड़े आकर्षित करते हैं। इनका शरीर काफी मजबूत होता है। इनकी फुर्ती की वजह से घुड़सवार इन्हें काफी पसंद करते हैं।
मेले में लोगों को आकर्षित कर रहा बाहुबली
नखासा में इस साल सिंधी प्रजाति का एक सफेद घोड़ा भी बिकने आया है। इसका नाम बाहुबली है, जो लोगों को काफी पसंद आ रहा है। बाहुबली घोड़े की कीमत ढाई लाख रुपये रखी गई है। आयोजकों का कहना है कि बुधवार तक मेले में कई नस्लों के पांच सौ से ज्यादा घोड़े बिकने के लिए आएंगे।
घोड़ों की बिक्री के लिए चर्चित है चौबारी मेला
बरेली में 11 नवंबर से 19 नवंबर तक लगने वाला चौबारी मेला घोड़ों की बिक्री के लिए चर्चित है। यहां दूर-दूर से व्यापारी घोड़ा और घोड़ी खरीदने आते है। मेले में घोड़े-घोड़ियों की तमाम नस्ल मिलती है, जिनका दाम उनकी उम्र, नस्ल और मालिक पर निर्भर करता है। कोरोना संक्रमण के दौरान मेला प्रभावित हुआ था लेकिन अब इसकी रौनक वापस लौट रही है।