बोले बांदा: हमारे हुनर के‘जख्मोंको सिलने वाला कोई नहीं
Banda News - बांदा में दर्जियों का कहना है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा, महंगाई और कम आमदनी के कारण उनका पेशा संकट में है। अब लोग रेडीमेड कपड़े पहनना पसंद कर रहे हैं, जिससे काम की कमी हो गई है। सरकारी मदद और बिना ब्याज...
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बांदा। तीज त्योहार तो छोड़ दीजिए। आम दिनों में 15-15 दिन बाद की तारीख देते थे फिर भी समय पर कपड़े सिलकर नहीं दे पाते थे। अब वो दिन लौटकर नहीं आएंगे। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हर दिन आते नए फैशन और रेडीमेड व्यवसाय ने कमर तोड़ दी है। अब तो होली, दीपावली, ईद, बकरीद पर भी गिने-चुने लोग ही कपड़े सिलवाकर पहनते हैं। युवा पीढ़ी रेडीमेड फैशन की तरफ भाग रही है। अगर व्यापार को बढ़ावा देना भी चाहें तो पैसे की व्यवस्था कहां से करें। सरकारी ऋण के बारे में जानकारी ही नहीं है, लेना तो दूर की कौड़ी है। यह दर्द आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तानसे दर्जियों ने बयां किए। कमलेश और फूलचंद्र समेत तमाम दर्जियों ने कहा कि रोजाना नया फैशन, प्रतिस्पर्धा और महंगाई ने झकझोर के रख दिया है। अब आने वाली पीढ़ी इस पेशे से मुंह मोड़ रही है। हमारे अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं। आज के समय में लोग सिलवाने के बजाए सिले-सिलाए ब्रांडेड कपड़े ज्यादा पसंद करते हैं, जिसके चलते अब उतना काम नहीं मिलता है। बढ़ते फैशन के दौर से मुकाबले के लिए व्यापार बढ़ाना जरूरी है और उसके लिए पैसे चाहिए। कहां से लाएं। यहां तो खाने तक के लाले हैं। हां अगर ऋण के तौर पर सरकारी मदद मिल जाए तो एक उम्मीद की किरण दिखाई दे सकती है। कभी कभी तो लगता है कि जैसे हमारे जख्मों को सिलने वाला कोई है ही नहीं। कम आमदनी, प्रतिस्पर्धा, काम की कमी और बढ़ती महंगाई के चलते परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो गया है।
पूंजी के अभाव में प्रतिस्पर्धा का सामना कर पाना मुश्किल:दर्जियों के मुताबिक, पूंजी के अभाव के चलते पेशे में बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना मुश्किल हो गया है। आज के समय में हर काम को करने के लिए बड़ी-बड़ी और ऑटो मैटिक मशीनें उपलब्ध हैं जो कि कम समय में ज्यादा काम करती हैं। साथ ही लागत भी कम लगती है। मशीनों के महंगा होने और पूंजी के अभाव के चलते हम अपने काम को और बड़े स्तर तक पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं। इससे प्रतिस्पर्धा का सामना करना मुश्किल हो गया है। बैंक से लोन लेकर काम करने पर जितनी आमदनी नहीं होती, उतना ब्याज देना पड़ता है।
अब फुटपाथ पर ही मिलता काम:गुलरनाका चौराहा स्थित पार्क के पास फुटपाथ पर दुकान लगाए दर्जियों ने बताया कि अब लोग नए कपड़ों को सिलवाने के बजाए पुराने कपड़ों को ठीक कराने ज्यादा आते हैं। गली-मोहल्लों में दुकानें करने पर काम कम मिलता है। यहां फुटपाथ पर हैं तो आसानी से रोजाना थोड़ा बहुत काम मिल जाता है। धूप हो या बारिश, चाहे ठिठुरान भरी सर्दी ही क्यों न हो, परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सब सहना पड़ता है। सड़कों पर उड़ती धूल-मिट्टी और गंदगी से सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है।
आर्थिक तंगी से बच्चों की शिक्षा भी अधूरी:बताया गया कि पेशे में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और कम आमदनी के चलते हमें हमेशा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। होली, दीवाली या अन्य तीज त्योहारों में फिर भी काम ठीक चलता है। आमदनी भी अच्छी होती है। लेकिन आम दिनों में काम न के बराबर होता है। कभी-कभी तो हफ्तों तक काम नहीं मिलता। पहले स्कूलों में एडमिशन के समय या स्कूल बदलने पर लोग बच्चों के स्कूल ड्रेस सिलवाने आते थे। लेकिन अब स्कूल के ड्रेस भी बाजार में रेडीमेड मिल जाती है। इससे आम दिनों में ज्यादा काम नहीं मिल पाता है। भगवान भरोसे ही रहते हैं।
बोले दर्जी
पहले हमारी दुकानों में भीड़ लगती थी। अब वो भीड़ गुल हो गई है। रेडीमेड व्यवसाय पर अधिक कर लगाए जाएं,जिससे दोबारा हमारी पूछ हो। -शमशुद्दीन
पूंजी के अभाव में रोजगार को आगे बढ़ाना मुश्किल है। हमारे लिए बिना ब्याज के लोन की सुविधा उपलब्ध कराई। ताकि रोजगार आगे बढ़े और आर्थिक स्थिति में सुधार हो। -शीलन सिंह राजपूत
बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते। हमारे समाज के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए अलग से छूट मिलनी चाहिए।-मोहम्मद साबिर
पालिका या शासन से सुविधा तो कोई नहीं मिलती। अतिक्रमण का नाम देकर हटा दिया जाता है। तय स्थान की व्यवस्था हो।-मोहम्मद नफीस
बोले जिम्मेदार
उद्योग उपायुक्त बांदा गुरुदेव कहते हैं किसभी के लिए ऋण की सुविधा है। दर्जी भी ऋण ले सकते हैं। पांच लाख तक का ऋण पांच साल तक बिना ब्याज के दिया जा रहा है।
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