बोले बांदा: हमारे दुख-दर्द पर कोई तो लगाए मरहम
Banda News - बांदा के सरकारी अस्पताल की स्टाफ नर्सें मरीजों के साथ-साथ सिस्टम से भी लड़ाई कर रही हैं। उन्हें उचित आवास नहीं मिलता और वार्ड में मरीजों के तीमारदारों की भीड़ से उन्हें परेशानी होती है। नशेड़ी...
बांदा। सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली स्टाफ नर्स अव्यावहारिक मरीजों से ही नहीं बल्कि सिस्टम से भी लड़ रही हैं। उन्हें अपना काम बोझ नहीं सेवा लगती है, लेकिन सेवा का परिणाम अभद्रता, बदहाली और दबाव के रूप में मिलता है तो मन खिन्न हो जाता है। आखिर हमारे दुख-दर्द पर भी कोई तो मरहम लगाए। अनुकूल माहौल न मिलने से मरीजों का इलाज करना मुसीबत मोल लेने जैसा लगता है। संयोग से अगर गंभीर स्थिति में आए मरीज की मौत हो जाती है, तो तीमारदार भी हमसे अभद्रता करने लगते हैं। कई बार तो बात हाथापाई तक पहुंच जाती है। इन्हीं दुश्वारियों को सामने रखते हुए जिला अस्पताल की स्टाफ नर्सों ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान के साथ अपनी समस्याओं पर चर्चा की।
नर्सों के सरकारी आवास पर स्टाफ का कब्जा: नर्स सविता ने बताया कि वह गाजीपुर की रहने वाली हैं। आठ साल से यहां जिला अस्पताल में संविदा पर बतौर नर्स काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में काम करने वाली नर्सों के लिए अस्पताल में ही सरकारी आवास की सुविधा है, लेकिन उन्हें आज तक इसका लाभ नहीं मिला। वजह, ज्यादातर कमरों में स्टाफ का ही कब्जा है। जो रिटायर होने के बाद भी कमरों पर कब्जा कर अपना ताला लगाए हैं। इससे दूर-दराज से आने वाली नर्सों को सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता। मजबूरन किराए पर कमरा लेकर रहना पड़ता है। जिससे आर्थिक रूप से भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
एक मरीज के साथ आते 10-15 तीमारदार: नर्सों ने बताया कि वार्ड में बेहतर व्यवस्था बनाए रखने की हर संभव कोशिश करते हैं। लेकिन एक-एक मरीज के साथ 10-12 लोग घुस आते हैं। मना करने पर दुर्व्यवहार करने लगते हैं। यहां मरीज बाद में और नेताजी का फोन पहले आ जाता है। प्राथमिकता गंभीर मरीजों को मिलनी चाहिए, लेकिन जब लोगों की भीड़ साथ आती है तो हालात काबू से बाहर हो जाते हैं। उस समय हमें बहुत दबाव में काम करना पड़ता है। मरीज के साथ भले ही कितने भी लोग आएं,लेकिन जब खून की जरूरत पड़ती है, तब कोई तैयार नहीं होता। तीमारदारों को बड़ी मुश्किल से खून का इंतजाम करना पड़ता है। नर्स उमा कहती हैं कि हमारी भी समस्याओं को कोई ‘मरहम मिल जाए तो जिंदगी आसान हो जाए।
जहां काम करते हैं वहीं सुरक्षित महसूस नहीं होता: अस्पताल में कोई कभी भी आ-जा सकता है। किसी से कोई पूछताछ नहीं होती है। अक्सर अस्पताल में नशेड़ियों और अराजक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है। कई बार मरीज के साथ आए तीमारदार भी शराब पीकर नशे में दुर्व्यवहार करने लगते हैं। मना करने पर या समझाने पर बहस करते हैं। रात के समय तो हालात और भी मुश्किल हो जाते हंै। हर समय डर बना रहता है। हम जहां काम करते हैं वहीं सुरक्षित महसूस नहीं होता है।
अस्पताल में कहीं भी पार्किंग की व्यवस्था नही: अस्पताल में कहीं भी पार्किंग की सही व्यवस्था नहीं है। सुबह से अस्पताल में मरीजों और उनके साथ आए तीमारदारों की गाड़ियां यहां-वहां खड़ी रहती हैं। ऐसे में एम्बुलेंस को भी जगह नहीं मिलती। गाड़ियां हटवाने और मरीज को उतारने में ही काफी समय बर्बाद हो जाता है। इससे मरीजों की जान का खतरा बना रहता है। अस्पताल के ठीक मेन गेट और अन्दर ओपीडी के सामने चालक अपना ई- रिक्शा खड़ा कर देते हैं। हटाने के लिए कहने पर भी नहीं सुनते।
बोलीं नर्स
एक मरीज के साथ 10-10 तीमारदार आते हैं, मना करने पर दुर्व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे में कई बार बात हाथापाई तक पहुंच जाती है। - सरोज यादव
हमने भी वही परीक्षा दी थी, जिससे दूसरे नियमित हुए हैं। फिर भी हमारे साथ भेदभाव होता है। एक जैसी सुविधा नहीं मिलती। भेदभाव किया जाता है। - प्रियंका दीक्षित
मरीज बाद में और नेताजी का फोन पहले आ जाता है। एक मरीज के साथ 20-20 लोगों भीड़ आती है, तो हालात काबू से बाहर हो जाते हैं। - बीना गुप्ता
अस्पताल में पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। मरीजों और तीमारदारों की गाड़ियां यहां-वहां खड़ी रहती हैं। एम्बुलेंस को भी जगह नहीं मिलती। -सविता
बोले जिम्मेदार
प्रभारी सीएमएस जिला अस्पताल डॉ. विनीत सचान कहते हैं कि जो भी स्टाफ नर्स नियमित तौर पर अस्पताल में काम कर रही हैं। उन्हें कमरों के हिसाब से आवास की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। अन्य कोई समस्या के लिए स्टाफ नर्स आकर जानकारी दें। जानकारी होने पर निश्चित रूप से समस्याओं का निस्तारण किया जाएगा।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।