बोले बांदा: हम पर आफत बनकर टूटते हैं त्योहार
Banda News - बांदा में दूध विक्रेता हर मौसम में मेहनत कर घर-घर दूध पहुंचाते हैं। प्रशासन के उत्पीड़न और मिलावट के नाम पर वसूली के चलते उनकी मुश्किलें बढ़ रही हैं। त्योहारों के दौरान सबसे अधिक प्रताड़ित होते हैं।...
बांदा। टिठुरन भरी सर्दी हो या फिर चिलचिलाती गर्मी, चाहे झमाझम पानी ही क्यों न गिर रहा हो। हर मौसम में हाड़तोड़ मेहनत संग सफर तय कर समय पर घर-घर हम दूध पहुंचाते हैं। बड़ी दूध कंपनियों ने हमारे मुनाफे पर कब्जा कर लिया, लेकिन फिर भी हमने हार न मानी क्योंकि तिथि-त्योहारों पर अधिक दूध बेचकर पिछला मुनाफा औसत जो कर लेते हैं। लेकिन इस पर भी पिछले कुछ वर्षों से प्रशासन की नजर लग गई है। वो बात ठीक है कि इस दौरान कुछ लालची लोग मिलावट करते हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई के नाम पर हम सभी का उत्पीड़न किया जाना भी कतई गलत है। इसके अलावा पैसे देते वक्त कभी दूध फटने तो कभी निष्ठा को झकझोरते हुए पानी अधिक मिला होने का उलाहना देकर पैसे में कटौती की जाती है। यह दर्द आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से दूधियों ने बयां किया।
लक्ष्मीकांत, रामखिलावन समेत तमाम दूधियों ने कहा कि सबसे अधिक उत्पीड़न खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग से किया जाता है। विभाग के अधिकारी रोककर दूध का सैंपल लेते हैं। वजह, पूछने पर बोलते हैं हमारा काम है। सैंपल लेने के बाद कार्यालय में चक्कर लगवाते हैं। हमसे वसूली की जाती है। सबसे अधिक प्रताड़ित होली, दीपावली, रक्षाबंधन आदि त्योहारों में हम किए जाते हैं। सैंपलिंग के बाद भले ही उसमें कोई मिलावट न निकले, लेकिन नतीजा आने तक हमारी चप्पलें घिसती हैं और वसूली की मार पड़ती है सो अलग। मौसम की बजाय ये उत्पीड़न की मिलावट हमारे दूध को खट्टा कर देती है। साफ कहें तो त्योहार हम पर आफत बनकर टूटते हैं।
जनपद में लगभग तीन हजार से अधिक दूधिए हैं। यह दूधिए साइकिल, बाइक, बस ट्रेन और अन्य कई साधनों के जरिए 15 से 50 किलोमीटर तक का सफर तयकर ग्रामीण और शहरी इलाकों के घर -घर दूध पहुंचाते हैं। दूधियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों से 30 से 35 रुपये प्रतिलीटर के हिसाब से दूध खरीदते हैं। मिठाई प्रतिष्ठानवाले एक लीटर में निकलनेवाले खोए की मात्रा के अनुसार दाम तय करते हैं जो कि 45 रुपये प्रतिलीटर पड़ता है। मेहनत और महंगाई के हिसाब से दाम न मिलने से परिवार तक चलाना मुश्किल हो रहा है। शहरी क्षेत्र में रहने वाले तीन से चार दिन पुराना 65 से 70 रुपये लीटर तक का पैकेट वाला दूध बिना किसी मोलभाव के खरीद लेते हैं। सरकार डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं तो चलाती है, पर अधिकारियों व बैंकों की हीलाहवाली के चलते ऐसी योजनाएं सफल नहीं हो पातीं। दूध के बने उत्पादों के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं।, पर दूधियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है।
...हम दाम बढ़ा दें तो ग्राहक छूट जाते हैं: दूध की मांग अधिक है और उत्पादन कम। ऐसे में दूध के व्यवसाय में अब पूंजी लगानी पड़ रही है। मांग पूरी करने के लिए पशुपालकों को मवेशी खरीदने के लिए एडवांस में रुपया देना पड़ता है। वहीं, दुकानदारों और ग्राहकों के पास भी हिसाब बकाया रहता है। दूध खरीदने से लेकर बेचने तक दोनों तरफ रुपये लगते हैं। बिना पूंजी के अब यह कारोबार करना मुश्किल हो गया है। पैकिंग में बिकनेवाले दूध के दाम तो आसानी से बढ़ जाते हैं। हम दाम बढ़ा दें तो ग्राहक छूट जाते हैं। बताया कि ग्राहक माह के अंत में दूध का हिसाब करते हैं, वहीं हम जिन पशुपालकों से दूध लेते हैं। उन्हें सप्ताह में हिसाब देना होता है। कुछ पशुपालक तो हर जरूरी काम के लिए दूध विक्रेताओं से रुपये की मांग करते हैं। रुपये न देने पर पशुपालक दूसरे दूध विक्रेता को दूध बेचने लगता है। दूध विक्रेता ब्याज पर रुपये उठाकर पशुपालक किसानों को भुगतान करते हैं।
गर्मियों में दूध फटने पर उठाना पड़ता घाटा: दूधियों ने बताया कि गर्मी के सीजन में दूध फटने से आएदिन घाटा उठाना पड़ता है। दूध विक्रेताओं को अनुदान पर 50 लीटर क्षमता वाला शीतल पॉट (थर्मस) सरकारी स्तर से उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे गर्मी के मौसम में दूध खराब होने से बचाया जा सकता है। इस प्रकार का पॉट सभी दूध विक्रेताओं को उपलब्ध करा दिया जाए तो उन्हें आर्थिक नुकसान नहीं होगा।
बोले दूधिए
10 साल से घर-घर दूध पहुंचा रहे हैं। ग्राहक तोहमत लगाते हैं तो कभी देरी पर चार बातें सुनाते हैं। -रवि कुमार
पहले इस काम से परिवार पल जाता था। अब काम में ज्यादा मेहनत और आय कम होने से दिक्कतें हैं। संजय पाल
बैंक से किसानों को लोन मिलता है। पशुपालकों के लिए व्यवस्थाएं हैं पर हमारे लिए कुछ नहीं है। -रमेश कुमार
पैकिंग के दूध के दाम बढ़ने पर कोई विरोध नहीं करता, हम दाम बढ़ा दें तो ग्राहक ही छूट जाते हैं। -रामधनी
बोले जिम्मेदार
अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा एवं औषधी प्रशासन जेपी तिवारी कहते हैं कि दूधियों के बर्तन से सैंपल लेकर जांच कराई जाती है। मिलावट न मिलने पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। अगर विभाग का कोई कर्मचारी सैंपल के नाम प्रताड़ित या वसूली करता है तो कार्यालय में आकर बताएं। संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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