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बोले बांदा: उपेक्षा से उजड़ रही हमारी अभिनय की दुनिया

Banda News - बांदा में बुंदेली कलाकारों को उपेक्षित किया जा रहा है। सांस्कृतिक विभाग बाहरी कलाकारों को प्राथमिकता दे रहा है। बुंदेली लोकविधाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं। बुजुर्ग कलाकार पेंशन के लिए भटक रहे हैं...

Newswrap हिन्दुस्तान, बांदाSat, 22 Feb 2025 06:31 PM
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बोले बांदा: उपेक्षा से उजड़ रही हमारी अभिनय की दुनिया

बांदा। जिला बुंदेलखंड का दिल है, लेकिन यहां पर ही बुंदेली कलाकार उपेक्षित हैं। सांस्कृतिक विभाग जनपद में कराए जाने वाले आयोजनों में स्थानीय कलाकारों को तवज्जो न देकर बाहर से कलाकार बुलाता है। यदि अधिकारियों के चक्कर लगाने के बाद काम मिल भी जाए तो दाम के लिए भटकना पड़ता है। संरक्षण न मिलने से बुंदेली लोकविधाएं धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं। जनपद में बुजुर्ग कलाकार हैं, जो आज भी पेंशन के लिए भटक रहे हैं। कई कलाकारों को मंच तक नहीं मिल पाया है। यह दर्द आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बुंदेली रंगकर्मियों ने बयां किया। दीनदयाल, नरेंद्र जैसे तमाम कलाकारों ने बताया कि आधुनिकता में बुंदेली लोकविधा धूमिल हो रही है। कारण, न ही कलाकारों को प्रोत्साहन मिलता है, न ही लोक विधाओं के संरक्षण का काम किया जा रहा है। इससे कलाकार उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। नटराज संगीत महाविद्यालय के निदेशक डा. धनंजय सिंह की मानें तो जनपद में करीब पांच हजार कलाकार हैं, जो हुडुक, चंग, मयूर बीन, आल्हा, राई, फाग जैसी बुंदेली विधाओं में मंझे हैं, पर इन्हें तवज्जों मिलना बंद हो गई है। जिलास्तर पर कोई महोत्सव होता है तो बुंदेली कलाकारों को दरकिनार कर दूरदराज से कलाकार बुला लिए जाते हैं।

लोकगायिका किरन सेठी की मानें तो लोक गायन में बुंदेली महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। उन्होंने कई बार अपनी मांग में कहा कि जिलास्तर पर बुंदेली लोक विधाओं के संरक्षण की पहल करनी चाहिए। युवा प्रतिभाओं के निखारने के लिए उचित मंच की व्यवस्था करनी चाहिए। हमारी अभिनय की दुनिया तो उपेक्षा के चलते उजड़ जा रही है।

चित्तेरी कला को सहेजने की जरूरत: चित्तेरी बुंदेली कलाम शैली का एक हिस्सा है, जोकि शास्त्रीय के साथ लोक कला भी है। कलाकारों का दावा है कि यह कला लगभग 16वीं शताब्दी से है। घरों में चित्तेरी कला का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया जाता रहा है कि घर में लड़के या फिर लड़की की शादी तय हो गई है। नए रिश्ते लेकर कोई न आए। तीज-त्योहार पर भी घरों के बाहर कलाकृतियां बनाई जाती रहीं, पर अब यह कला लगभग विलुप्त है। ऐसी लोक कलाओं को जिंदा करने के लिए कलाकारों को अवसरों की जरूरत है। बुंदेली चित्तेरी कलाकार दीनदयाल सोनी ने कहा कि ऐसे चित्रकारों को चिह्नित कर उन्हें संरक्षण प्रदान कर प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उनकी कलाकृतियों को सहेज कर चित्तेरी बुंदेली लोक चित्रकला कला दीर्घा का निर्माण मंडल मुख्यालयों में करना चाहिए।

बोले रंगकर्मी

चित्रकूट में रामायण मेला हो या बांदा में कालिंजर या फिर बुंदेलखण्ड महोत्सव, बुंदेली कलाकारों को वरीयता मिले। -डा.धनंजय सिंह

कलाकारों को जिलास्तर पर एक मंच उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे ग्रामीण अंचलों के कलाकार प्रतिभा सामने ला सकें। -नरेन्द्र सक्सेना

बुंदेली लोकगायकी के संरक्षण के लिए यहां की महिलाएं हुनर रखती हैं। उन्हें सिर्फ प्रोत्साहन देने की जरूरत है। -किरन सेठी

चित्तेरी बुंदेली लोक चित्रकला दीर्घा का निर्माण मंडल मुख्यालयों में हो। ताकि उत्साहवर्धन हो सके।- दीनदयाल सोनी

बोले जिम्मेदार

क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव कहते हैं कि जिले में 18 ग्रुप रजिस्टर्ड हैं, जिसमें करीब डेढ़ से दो सौ कलाकार शामिल हो सकते हैं। पंजीकृत कलाकारों को ही स्थानीय स्तर पर बुलाया जाता है। साथ ही बगैर रजिस्टर्ड कलाकारों को भी रजिस्ट्रेशन के लिए प्रेरित किया जाता है। पारिश्रमिक शासन से बजट आने के बाद ही मिलता है।

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