बोले बांदा:कंघी-कैंची के बीच फंसा शानदार सैलून का ख्वाब
Banda News - बांदा में 500 से अधिक सैलून में काम करने वाले नाई आवास, स्वास्थ्य और राशन जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। बड़े सैलून के कारण छोटे सैलूनों को ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। सरकार से मदद और प्रशिक्षण की...
बांदा। जनपद में पांच सौ से अधिक सैलूनों में बारबर कार्यरत हैं, जो आवास, स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा समेत सभी मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित हैं। कई के पास आवास की स्थायी सुविधा तक नहीं है। शहर में बड़े-बड़े ब्रांडेड सैलून खुलने से पेशे पर खासा असर पड़ा है। इसलिए बेहतर प्रशिक्षण और सैलून खोलने के लिए ऋण मिले तो ये बारबर आगे बढ़ें, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। सबसे बड़ी बात कि इनके समाज के 50 फीसदी के तो राशन कार्ड तक नहीं बने हैं। यह दुश्वारियां आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान सविता समाज ने सामने रखीं। कामता, रामशरण समेत तमाम बारबरों ने बताया कि शहर में किराए पर कमरा लेकर किसी तरह से गुजर-बसर कर रहे हैं। 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके आज तक राशन कार्ड तक नहीं बने इसलिए सरकार की मुफ्त राशन वितरण योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा है। बनवाने के लिए कोशिश भी करो तो सहयोग के बजाए कोई न कोई बहाना या कागजात की कमी बताकर लौटा दिया जाता है। बढ़ती महंगाई, काम में प्रतिस्पर्धा और पूंजी के अभाव के कारण परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो गया है। हमारा शानदार सैलून का ख्वाब कंघी-कैंची के बीच फंसकर रह गया है। आज तक प्रशासन या किसी जनप्रतिनिधि ने हमारी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि ज्यादा मेहनत, प्रतिस्पर्धा और कम आमदनी के चलते आने वाली पीढ़ी अब इस पेशे को अपनाना नहीं चाहती। सुनील ने कहा कि बाल काटना तो हमारा काम है, लेकिन हमारी सुविधाओं पर तो प्रशासन की अनदेखी की कैंची हमेशा से चलती आ रही है।
पूंजी के अभाव में नहीं बढ़ पा रहे आगे: सैलून वालों ने कहा कि शहर में ब्रांडेड सैलून खुलने से छोटे सैलूनों में अब ग्राहकों का टोटा होने लगा है। पूंजी के अभाव के चलते ब्रांडेड सैलून से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। पहले दिनभर में 50 से 60 ग्राहक आते थे। अब यह आंकड़ा 10 से 15 में सिमटकर रह गया है। हर हफ्ते में रविवार, बुधवार और शुक्रवार को ही अच्छी आमदनी हो पाती है। बाकी दिनों में घर खर्च निकालना मुश्किल रहता है। दुकान का किराया, बिजली बिल और अन्य खर्च निकालने में पसीना छूट जाता है। आमदनी तो नहीं बढ़ती, लेकिन दुकानों का किराया हर साल कुछ न कुछ बढ़ जाता है। दुकानें बदलने में ग्राहकों की क्षति होती है। हमारी इन तकलीफों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है।
आर्थिक मदद के साथ मिलें सरकारी सुविधाएं :
बारबरों ने कहा कि सरकार को हम लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए अलग से योजनाएं चलानी चाहिए, जिससे हमारा कारोबार आगे बढ़े। कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे हम अपना हुनर निखार सकें। इस पेशे से जुड़े लोगों को कारोबार बढ़ाने के लिए कम ब्याज दर में ऋण मुहैया कराया जाए। इसका तरीका इतना आसान हो कि काम का नुकसान न हो।
एग्रीमेंट के बाद भी खाली करा ली जाती दुकान: कहा कि एग्रीमेंट के बाद भी दुकान मालिक दुकान खाली करने का दबाव बनाते हैं। खाली न करने पर परेशान किया जाता है। एग्रीमेंट की बात कहने पर कोई सुनवाई नहीं होती है। जोर जबरदस्ती कर दुकान खाली करवा ली जाती है। पुलिस भी हमारी मदद नहीं करती है। ऐसे में दूसरी जगह दुकान लेकर रोजगार दोबारा शुरू करने में समय लगता है।
अतिक्रमण के नामपर कभी नपा तो कभी पुलिस खदेड़ती: लोगों को सजाने संवारने के काम में लगे बारबर पूंजी के अभाव में फुटपाथ पर दुकान लगाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। कभी नपा तो कभी स्थानीय पुलिस हमें खदेड़ती है। इससे काफी परेशानियां उठानी पड़ती है। कभी-कभी तो कई दिनों तक हमें दूसरी जगह नहीं मिल पाती। ऐसे में सही से परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो जाता है। बच्चों के स्कूल की फीस तक भरने में परेशानी होती है। खास बात यह कि कहीं पर फरियाद लगाने पर सुनवाई तक नहीं होती। ऐेसे में हमें कोई तय स्थान मिलना चाहिए। जहां पर अतिक्रमण के बहाने हमें खदेड़ा न जाए। हम बेफिक्र होकर अपना काम कर सकें और परिवार की गाड़ी बगैर हिचकोले खाए दौड़ती रहे।
सरकार को हमारे लिए भी बनानी चाहिए योजना
बारबरों ने बताया कि कोरोना के समय व्यवसाय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था। ग्राहकों की संख्या में खासी कमी हो जाने के कारण भुखमरी तक झेलनी पड़ी थी। उस समय भी सरकार की ओर से कोई खास मदद नहीं मिली। उस विकट समय में भी संगठन के लोगों ने ही एक-दूसरे की मदद की थी। ऐसे में हम किस से फरियाद करें, यह समझ से परे हैं। हम लोगों का कोई बीमा भी नहीं किया जाता, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके। इस दिशा में सरकार को पहल करते हुए कोई खास योजना भी जरूर बननी चाहिए। आखिर हम भी समाज का एक अहम हिस्सा हैं। हमारे भी परिवार हैं, जिम्मेदारियां हैं। खराब आर्थिक स्थिति को लेकर हम सजग तो हैं, लेकिन कर कुछ नही सकते।
बोले बारबर
हम पूरे दिन कड़ी मेहनत करते हैं। कभी कभी बीमार भी पड़ जाते हैं। पूर प्रयास रहता है कि हमारा और परिवार का भविष्य सुरक्षित हो सके। बीमा की सुविधा उपलब्ध होने से परिवार को भी बल मिलेगा। -जोगेन्द्र कुमार सविता
गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। इसके बावजूद राशन कार्ड नहीं बने। इससे मुफ्त अनाज की सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। राशन कार्ड के लिए दफ्तर में चक्कर लगवाए जाते हैं। हर बार किसी न किसी बहाने से लौटा दिया जाता है। -लवकुश सविता
सैलून में काम करने वाले ज्यादातर लोगों के पास निजी आवास तक नहीं है। गरीबों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास देने की योजना है। पर हम इन आवास योजनाओं से वंचित हैं। कभी किसी ने यह भी नहीं बताया कि आवास का लाभ कैसे मिलेगा। -शिवम सविता
शहर में बड़े-बड़े ब्रांडेड सैलून खुलने से हमारे पेशे पर खासा असर पड़ा है। इसलिए बेतहर प्रशिक्षण और सैलून खोलने के लिए ऋण देने की जरूरत है। ऋण देने की प्रक्रिया भी आसान हो ताकि हमारा स्तर भी उठ सके। -सवरवन कुमार सविता
हमारे बच्चों को राइट टू एजुकेशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। निजी स्कूलों में यह सिर्फ हाथी के दांत की तरह है। वहां बच्चों के नामांकन से लेकर कॉपी-ड्रेस तक हजारों रुपये खर्च करने होते हैं। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि खर्च कर सकें। -सुनील कुमार सविता
बोले जिम्मेदार
उद्योग उपायुक्त गुरुदेव रावत कहते हैं कि रोजगार को बढ़ाने के लिए सीएम युवा योजना के तहत बिना ब्याज ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। ऋण में 20 प्रतिशत की छूट भी दी जा रही है। कार्यालय आकर इस योजना के बारे में जानकारी कर योजना का लाभ उठा सकते हैं।
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