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हमारे ‘आंगनको भी मिले खुशहाली का थोड़ा हिस्सा

Banda News - बांदा में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों ने अपनी कम आय और खराब कार्य परिस्थतियों के बारे में आवाज उठाई है। उन्होंने स्थायी कर्मचारी का दर्जा और मानदेय बढ़ाने की मांग की है। कार्यकर्त्रियों का कहना है कि...

Newswrap हिन्दुस्तान, बांदाThu, 27 Feb 2025 08:23 AM
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हमारे ‘आंगनको भी मिले खुशहाली का थोड़ा हिस्सा

बांदा। देश भर की आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियां अपनी कम आय और खराब कार्य परिस्थतियों को लेकर वर्षों से आवाज उठा रही हैं लेकिन समस्याओं का निपटारा तो दूर कोई सुनवाई तक नहीं हुई। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से कार्यकर्त्रियों ने खुलकर अपनी बात रखी। जिलाध्यक्ष नीलम वर्मा ने बताया कि मोबाइल फोन दिए गए हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता बेहद खराब है। डाटा एंट्री आदि के लिए जरूरी इंटरनेट रिचार्ज का खर्च भी खुद उठाना पड़ता है। बच्चों को क-ख- ग सिखाने से लेकर उनके अन्नप्राशन तक की जिम्मेदारी निभाने वाली कार्यकर्त्रियां यशोदा मां के रूप में जानी जरूर जाती हैं लेकिन उनकी स्थिति बेहद दयनीय है। काम तो तमाम कराए जाते हैं पर अवकाश पर कोई बात नहीं करता। बोलीं, हमारे ‘आंगनको भी मिले खुशहाली का थोड़ा हिस्सा।

आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों का कहना है कि वर्तमान में जो मानदेय दिया जाता है, वह उनके काम और जिम्मेदारियों के अनुपात में बेहद कम है। उनकी मेहनत और योगदान के लिए यह राशि केवल औपचारिक प्रतीत होती है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें स्थायी कर्मचारी के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। वे न तो सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं का लाभ उठा सकती हैं और न स्वास्थ्य बीमा और पेंशन जैसी आवश्यक सेवाओं का। स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिलना उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाएगा। एक अन्य बड़ी समस्या पोषाहार वितरण से जुड़ी है। पोषाहार वितरण की प्रक्रिया में अक्सर अनियमितताओं और शिकायतों का सामना करना पड़ता है। पोषाहार की जगह सीधे लाभार्थियों के खातों में धनराशि भेजी जानी चाहिए। इससे एक बड़ी जिम्मेदारी का बोझ कम होगा और वितरण में अधिक पारदर्शिता आएगी। सहखातों की व्यवस्था भी कार्यक्त्रिरयों के लिए सिरदर्द बन गई है। प्रधान और सभासद के साथ बैंक सहखातों में काम करना पड़ता है, जो न केवल जटिल है, बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। समय पर कार्य भी नहीं हो पाते। वह चाहती हैं कि इस व्यवस्था को समाप्त कर स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार दिया जाए।

कार्यकर्त्रियां कहती हैं कि जहां प्राथमिक शिक्षकों को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश जैसी सुविधाएं मिलती हैं, वहीं हमें सालभर बिना किसी छुट्टी के काम करना पड़ता है। इसके अलावा, प्रमोशन के अभाव में उनके करियर की संभावनाएं भी सीमित हो जाती हैं। मुख्य सेविका (एजुकेटर) के पदों पर नई भर्तियां करने की बजाय, कार्यकर्त्रियों को प्रमोशन देना अधिक उपयुक्त होगा। यही तरीका है उनके अनुभव और मेहनत को सम्मान देने का।

कार्यकर्त्रियों ने साफ तौर पर कहा कि राज्य कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 18 हजार मानदेय की मांग एक लंबे समय से की जा रही है। यह मांग न केवल उनकी आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी है, बल्कि आत्मसम्मान को भी बढ़ावा देगी। वर्तमान में उन्हें कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया गया है, जिससे उनके अधिकार और सुविधाएं सीमित हो गए हैं। न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद कार्यकर्त्रियों से अन्य विभागों के कार्य करवाए जाते हैं। इन्हें बीएलओ, जनगणना, पोलियो अभियान और गोद भराई जैसे कार्यों में लगाया जाता है। ये जिम्मेदारियां उनके मूल कार्य को प्रभावित करती हैं और उनके लिए अतिरक्ति दबाव बनाती हैं। इसके अलावा, इन कार्यों के लिए उन्हें कोई अतिरक्ति मेहनताना भी नहीं दिया जाता। तकनीकी परेशानियां भी उनके काम को और मुश्किल बनाती हैं। सरकार द्वारा विकसित एप्लीकेशन का हर सप्ताह अपडेट आना उनके लिए एक बड़ी समस्या है। रजिस्टर और फोन दोनों पर डेटा अपडेट करना चुनौतीपूर्ण भी है।

बोलीं कार्यकर्त्रियां

दिए गए मोबाइल फोन घटिया हैं। रिचार्ज का खर्च भी खुद उठाना पड़ता है। यह ठीक नहीं। -नीलम वर्मा जिलाध्यक्ष

स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिले तो आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी औरअधिकारों का सम्मान होगा। -विमला देवी

पोषाहार की जगह सीधे लाभार्थियों के खातों में धनराशि भेजी जाए। वितरण में गड़बड़ी रुकेगी। -शोभा श्रीवास्तव

सहखातों को समाप्त किया जाए ,स्वतंत्र रूप से काम की अनुमति दी जाए। काम आसान होगा। - ममता सिंह

बोले जिम्मेदार

जिला कार्यक्रम अधिकारी दिलीप पाण्डेय कहते हैं कि आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को मोबाइल फोन संचालन में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ,जानकारी है। इस विषय से शासन को अवगत करा दिया गया है, मोबाइल रीचार्ज की भी परेशानी संज्ञान में है। इसके अतिरक्ति यदि किसी कार्यकत्र्री को स्थानीय स्तर पर समस्या है हमें अवगत करा सकती हैं।

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