हजार महीनों की इबादत से बढ़कर है शब ए कद्र की एक रात
Balrampur News - मौलाना मोहम्मद आलम रज़ा जियाई ने शब-ए-कद्र की फजीलत और अहमियत बताई। इस रात की इबादत को हजार महीनों की इबादत से बेहतर माना जाता है। रमजान के आखिरी अशरे में आने वाली इस रात में अल्लाह की रहमत बरसती है...

गैड़ास बुजुर्ग। मौलाना मोहम्मद आलम रज़ा जियाई ने माहे रमजान में होने वाले शब-ए-कद्र की फजीलत और अहमियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि कुरआन-ए-करीम में इस एक रात की इबादत को हजार महीनों की इबादत से बढ़कर बताया है। शबे क़द्र का मतलब होता है सर्वश्रेष्ट रात। लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात। शबे कद्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है। जिसके एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसीलिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस से साबित है। आगामी शुक्रवार को बीसवें रमज़ान के 21वीं शाम को रमज़ान का आखरी अशरा शुरू हो जाएगा। मौलाना मोहम्मद आलम रज़ा जियाई कहते हैं कि हदीस शरीफ में आया है की शबे कद्र रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों जैसे 21, 23, 25, 27 और 29 वीं रात में तलाश करो। इन ताक रातों में रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करें और अपने गुनाहों की माफी मांगे। शबे कद्र की पूरी रात इबादत में गुजारनी चाहिए। नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमजान के आखिरी अशरे में इबादत का खुसूसी ऐहतेमाम बहूत कसरत से फरमाते थे। शब-ए-कद्र की रात में ही अल्लाह ने कुरआन पाक को नाजिल किया। जो पूरी इंसानियत के लिए हिदायत और मार्गदर्शन का काम करती है। इस वजह से यह रात एक खास इबादत वाली रात मानी जाती है। इस रात को अल्लाह के बंदों पर रहमत बरसती है। रमजान के महीने की इन ताक रातों के फजीलत को देखते हुए बहुत से लोग शब-ए-कद्र की रात से ही अल्लाह की इबादत के लिए एतिकाफ यानि कि एकांतवास में चले जाते हैं। ताकि वो बिना किसी खलल के अपनी इबादत पूरी कर सकें। ये लोग ईद का चांद निकलने के बाद ही घरों या मस्जिदों से बाहर निकलते हैं।
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