बोले बलिया : दूर हों राह की बाधाएं तो नहीं थमेंगे ट्रकों के पहिए
Balia News - ट्रक ऑपरेटरों को सरकार के नियमों और मार्ग डायवर्जन के कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गलत रूट पर भेजने और अनावश्यक दंड का सामना करते हुए, उनकी कमाई और समय पर डिलीवरी प्रभावित हो रही है।...
एक साथ कई टैक्सों के जरिए सरकार की झोली भरने वाले ट्रक ऑपरेटरों की राह आसान नहीं है। प्रशासन का मौखिक फरमान आए दिन उन्हें परेशान करता है। गलत रूट से चलने के लिए मजबूर किए जाते हैं, अनावश्यक दंड भी भुगतना पड़ता है। लंबा रास्ता तय करने में समय- ईंधन की बर्बादी होती है। सामानों की कीमत बढ़ती है, आमदनी प्रभावित होती है। गाड़ियों की किस्त जमा नहीं हो पाती। एक ही मार्ग पर ट्रक चलने से जाम लगता है। ऑपरेटर प्रशासन से सहयोगात्मक रवैये की उम्मीद करते हैं। पेट्रोल पंप परिसर में ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान ट्रक संचालकों ने अपने राह की बाधाएं गिनाईं। कुणाल राय ने कहा कि यूपी-बिहार को जोड़ने के लिए भरौली-बक्सर के बीच गंगा नदी पर पक्का पुल चालू हुआ तो काफी उम्मीद जगी। लगा कि कमाई बढ़ेगी और मुश्किलें कम हो जाएंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पुल चालू होने के बाद से प्रशासन आए दिन कोई न कोई मौखिक फरमान जारी करता है। इससे ट्रकों का संचालन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है। कब किस ओर से जाने को कह दिया जाए, कोई ठीक नहीं है। पिछले करीब एक महीने से बिहार से लाल बालू लेकर आने वाले ट्रकों को गाजीपुर जनपद के मार्गों से होते हुए बलिया जाने का आदेश जारी कर दिया गया है। इस आदेश के चलते ट्रकों को 33 किमी की बजाय 95 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। जो ट्रकें रोजाना एक चक्कर पूरी कर लेती थी, अब उन्हें एक चक्कर पूरा करने में तीन दिनों का समय लग जाता है। इसका खामियाजा बस ऑपरेटरों के साथ ही दुकानदारों और आम ग्राहकों भी भुगतना पड़ रहा है। यह फरमान भी केवल लाल बालू लेकर आने वाले ट्रकों के लिए है। इसके पीछे क्या मंशा है, साहब लोग ही जानें।
बालू लदान ही आय का जरिया
इसी बात को गोपालजी राय ने और आगे बढ़ाया। कहा कि ट्रकों के संचालन के प्रति प्रशासन की हमेशा बेरुखी रहती है। जनपद में कोई बड़ा उद्योग-धंधा नहीं है। इसके चलते बड़ी गाड़ियों के लिए भाड़ा की समस्या रहती है। ऐसे में ट्रकों को पड़ोसी राज्य से निकलने वाले लाल बालू की ढुलाई में लगाना पड़ता है। इसमें रोजाना भाड़ा मिलना निश्चित होता है, लेकिन उसमें भी बाधाएं खड़ी कर दी गई हैं। कभी जांच के नाम पर ट्रक घंटों खड़े रहते हैं तो कभी मनमाने तरीके से रूट डायवर्ट कर दिया जाता है। गोपालजी सवाल करते हैं कि आखिर लाल बालू लदे ट्रकों को एनएच 31 पर भरौली से बलिया तक क्यों नहीं जाने दिया जाता? जबकि इसी मार्ग से अन्य भारी वाहनों के आवागमन पर कोई रोक नहीं है। चौराहे पर तैनात पुलिस वाले यही कहते हैं कि ‘ऊपर से आदेश है।
परवाना के बाद भी मनमानापन
शशि कुमार ने बताया कि बिहार के कोईलवर में लाल बालू का खदान है। ट्रकों की कमाई का वह प्रमुख जरिया है। तमाम लोगों ने लोन-उधार लेकर ट्रकें ली हैं। खदान से लाल बालू लेकर चलते समय ऑनलाइन परवाना जारी होता है। उस पर रूट भी अंकित होता है। बलिया जाने के लिए बक्सर-भरौली-बलिया मार्ग से जारी परवाना लेकर चलते हैं लेकिन भरौली आने पर ट्रकों को गाजीपुर मार्ग से जाने का हुक्म सुना दिया जाता है। इसके बाद हमें बलिया पहुंचने के लिए 62 किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। तब हम समय से डीलरों को लाल बालू की आपूर्ति नहीं कर पाते। अतिरिक्त ईंधन की खपत होने के कारण भाड़ा भी बढ़ जाता है। इसे लेकर डीलरों से किचकिच भी होती है। राजेश यादव ने इससे जुड़ी एक और पीड़ा का जिक्र किया। कहा कि परवाना के विपरीत गाजीपुर जिले के मार्गों से होकर जाने पर कई बार ट्रकों का अवैध परिचालन के आरोप में चालान कर दिया जाता है। इसका दंश भी हमें भी झेलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कमाई से अधिक चालान का ही खर्च हो जाता है।
आईएसटीपी चार्ज के बाद भी मनमानी
गुड्डू यादव ने बताया कि बिहार-यूपी की सीमा भरौली में परिवहन विभाग ने कैमरे लगाए हैं। बिहार की ओर से आने वाले ट्रकों के नंबर प्लेट स्कैन होकर आईएसटीपी (इंटर स्टेट ट्रांजिट पास) का चार्ज कटता है। यह प्रति ट्रक औसतन दो से तीन हजार रुपये होता है। इस शुल्क के बाद ट्रकों पर लदे सामान को उत्तर प्रदेश के किसी भी स्थान पर चालान के अनुसार ले जाया जा सकता है। इसके बावजूद इन ट्रकों को मनमाने तरीके से दूसरे मार्ग की ओर भेज दिया जाता है।
हर महीने 72 हजार से सवा लाख का खर्च
कुणाल राय ने तकनीकी जानकारी देने के साथ समस्या गिनाई। बताया कि पुराने ट्रकों के संचालकों को प्रतिमाह औसतन 72 हजार, जबकि नए ट्रकों के संचालकों को करीब एक लाख 27 हजार रुपये हर महीने का खर्च आता है। इसमें नेशनल परमिट, रोड टैक्स, फिटनेस, बीमा, मेंटीनेंस के अलावा चालक और क्लीनर का व्यय होता है। इसके अलावा प्रतिदिन चालक और हेल्पर को खाने के लिए भी 800 रुपये देना होता है। गाड़ी चले या खड़ी रहे, यह खर्च होना तय है। यदि एक किस्त भी समय से जमा नहीं हुई तो उसका ब्याज तेजी से बढ़ने लगता है। दो-तीन किस्त फेल होने पर ट्रकों को फाइनेंस कंपनियां अपने कब्जे में ले लेती हैं। ऐसे में एक दिन का भी व्यवधान होने पर संचालकों को हजारों रुपये का नुकसान सहना पड़ता है।
सात माह ही लाल बालू की ढुलाई
शशि कुमार राय ने बताया कि बिहार के खदान से लाल बालू की ढुलाई का काम पांच से सात माह ही होता है। बरसात शुरू होते ही खदान बंद हो जाती है जो तीन माह बाद खुलती है। बालू निकालने में भी समय लगता है। उसके बाद ही ट्रक संचालकों को रोजाना भाड़ा मिलने की उम्मीद रहती है। उन्होंने कहा कि छिटपुट भाड़ा ही मिल पाता है। उसमें भी आए दिन कोई न कोई ग्रहण लगता रहता है।
नौ वर्ष बाद बना पुल, फिर भी बाधाएं बरकरार
कुणाल राय ने बताया कि यूपी-बिहार को जोड़ने के लिए भरौली-बक्सर के बीच पहले पक्का पुल का शुभारंभ 15 जुलाई 1977 को हुआ था। समय-समय पर पुल क्षतिग्रस्त हुआ तो मरम्मत भी होती रही। वर्ष 2012 में बिहार की ओर से आने वाले लाल बालू के ट्रकों से टैक्स वसूली के लिए वन विभाग ने भरौली में चेक पोस्ट स्थापित किया। तब लोडेड ट्रकों को घंटों पुल पर ही खड़ा होना पड़ता था। वर्ष 2014 में पुल काफी क्षतिग्रस्त हो गया। 12 मई 2014 की रात पुल के दोनों सिरे पर लोहे की बैरिकेडिंग लगा दी गई। बिहार स्थित लाल बालू के खदान तक पहुंचने का यह सबसे नजदीकी रास्ता है। इस मार्ग के बंद होने के बाद करीब नौ वर्षों तक ट्रकों का संचालन कभी गाजीपुर के रास्ते तो कभी मांझी पुल के रास्ते करना पड़ा। डेढ़ वर्ष पहले जब नया पुल बना तो ट्रकों का संचालन आसान हो गया लेकिन हमारी बाधाएं कम नहीं हुई हैं। समझ में नहीं आ रहा कि ट्रकों का संचालन कैसे किया जाए।
दो मंडियों की दूरी, लागत बढ़ी
गोपाल जी राय ने बताया कि एनएच पर भरौली से बलिया के बीच लाल बालू लदे ट्रकों का परिचालन बंद होने से दो महत्वपूर्ण मंडियों तक हम नहीं पहुंच पाते। लाल बालू की मंडी जिले के चितबड़ागांव और फेफना में लगती है। यहां अच्छी कीमत भी मिलती है। भरौली से चितबड़ागांव की दूरी 19 किमी, जबकि फेफना की दूरी 22 किमी है। अब इन मंडियों में जाने के लिए ट्रकों को 70 से 75 किमी की यात्रा करनी पड़ रही है। इससे लागत भी बढ़ रही है। उसकी भरपाई आसान नहीं होती।
सुझाव :
बिहार से आने वाले ट्रकों को एनएच के रास्ते बलिया पहुंचने में आसानी होनी चाहिए। इससे समय और ईंधन की बचत होगी।
यदि किसी कारण से रूट डायवर्ट किया जाता है तो दूसरे मार्ग से जाने पर चालान न कटे। इसे तय किया जाना चाहिए।
बिहार से आने वाले लाल बालू लदे ट्रकों को परवाना के अनुसार चलने दिया जाए। इससे लंबी दूरी तय करने से राहत मिलेगी।
मनमाना रूट डायवर्जन न किया जाए। इससे एक मार्ग पर ट्रकों का लोड कम होगा और जाम भी नहीं लगेगा।
जांच के नाम पर ट्रकों को जहां तहां न रोका जाए। इससे ट्रक संचालकों की परेशानी कम होगी और समय से डिलीवरी हो सकेगी।
शिकायतें :
बिहार से आने वाले ट्रकों को बलिया जाने के लिए दूसरे मार्ग से भेजा जाता है। इससे समय और ईंधन की बर्बादी होती है।
बलिया के लिए गाजीपुर होकर जाने पर चालान भी कर दिया जा रहा है। इससे आर्थिक नुकसान होता है।
एनएच 31 के भरौली-बलिया मार्ग पर लाल बालू लदे ट्रकों को रोका जाता है। लंबी दूरी तय में ट्रकों की आमदनी कम होती है।
मनमाने रूट डायवर्जन के कारण एक मार्ग पर ट्रकों का लोड बढ़ रहा है। इससे घंटों जाम लगता है।
जांच के नाम पर ट्रकों को जहां तहां रोका जाता है। इससे संचालक परेशान होते हैं।
बोले ऑपरेटर
ट्रकों का निर्बाध परिचालन होना चाहिए। विशेष स्थितियों में ही रूट डायवर्ट होना चाहिए। इससे राहत मिलेगी।
-आजाद खान
मनमाने डायवर्जन से गाजीपुर मार्ग पर ट्रकों का जाम लगता है। बलिया जाने वाले ट्रकों को भी इसी ओर भेजा जाता है।
-गोपाल जी राय
बिहार के खदान से जारी परवाना लेकर चलते हैं लेकिन हमें गलत रास्ते पर चलने के लिए बाध्य किया जाता है।
-शशि कुमार राय
आए दिन ट्रकों को जहां-तहां रोक देने से आर्थिक नुकसान होता है। समय पर डीलर तक माल भी नहीं पहुंच पाता।
-गुड्डू यादव
ट्रक संचालकों के लिए सोन का लाल बालू कमाई का मुख्य जरिया है। इसमें रोज बाधाएं खड़ी कर दी जाती हैं।
-कुणाल राय
ट्रकों को बलिया जाने के लिए लंबा रूट तय करना पड़ता है। इससे लागत बढ़ रही और आय प्रभावित हो रही है।
-संतोष
यूपी-बिहार के बीच नया पुल बनने के बाद से ट्रकों के आवागमन पर रोक-टोक हो रही है। इससे परेशानी होती है।
-सुधाकर
ट्रकों के अवैध परिचालन में चालान पर भारी जुर्माना भरना पड़ता है जबकि हमारा दोष नहीं होता।
-नीशू यादव
एनएच-31 पर भरौली से बलिया रोड पर केवल लाल बालू लदे ट्रकों को रोका जाता है। इसका कारण कोई नहीं बताता।
-डिंपू राय
ट्रकों का संचालन दिनों-दिन मुश्किल होता जा रहा है। आए दिन जांच के नाम पर परेशान किया जाता है।
-बेलाल अली खान
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