बोले बलिया : कैमरे में मुस्कान कैद करने वालों को मदद की दरकार
Balia News - फोटोग्राफरों की स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि डिजिटल कैमरे और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग ने प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है। ग्राहकों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं, जबकि फोटोग्राफरों की आय नहीं बढ़ी है।...
स्माइल प्लीज.... कहकर हमारी-आपकी प्यारी मुस्कान कैमरे में कैद कर लेने वाले फोटोग्राफरों के चेहरे की हंसी मद्धिम हो रही है। डिजिटल कैमरों और स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता ने प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है। ड्रोन व 360 डिग्री फोटोग्राफी तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर ने चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। ग्राहकों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं तो मार्केटिंग व वित्तीय प्रबंधन जैसे पेंच भी हैं। इनके लिए न तो कोई वर्कशाप होती है और न ही अन्य मदद। सरकारी आयोजनों में भी इनकी हिस्सेदारी बेहद मामूली ही रहती है। नगर के विशुनीपुर स्थित एक कटरे में ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में फोटोग्राफरों ने अपनी समस्याओं की ‘तस्वीर सामने रखी। अभिषेक सागर ने कहा, मौजूदा दौर में अधिकांश युवा ही फोटोग्रॉफी के व्यवसाय में हैं। इन्होंने डिजिटल फोटोग्रॉफी से ही शुरुआत की है। इसमें समय के साथ काफी बदलाव आया है। रोज-ब-रोज नए किस्म के डिजिटल कैमरे आ रहे हैं, जिससे फोटोग्रॉफी के तरीके बदल रहे हैं। फोटोग्रॉफी को लेकर लोगों का ‘टेस्ट व उनकी डिमांड में भी बदलाव आ रहा है। इसके चलते कैमरे, लेंस आदि में लागत बढ़ रही है लेकिन इसके सापेक्ष कमाई नहीं हो पा रही। आधुनिक और डिजिटल कैमरे की वजह से फोटोग्रॉफी आसान हुई है तो समस्याएं भी बढ़ी हैं। फोटोग्राफर खुद को कैसे नयी तकनीक के साथ अपडेट करें, इसके लिए सरकारी स्तर पर कोई वर्कशॉप या अन्य इंतजाम नहीं हैं। बताया कि कुछ वर्ष पहले यहां सुरहा ताल के किनारे बर्ड फेस्टिवल में फोटोग्राफी प्रतियोगिता हुई थी। उससे एक माहौल बना था। वह भी बंद हो गया।
पिंटू ने बताया कि करीब ढाई दशक पहले तक स्टूडियो का एक अलग क्रेज था। लोग शौक से फोटो खिंचवाने के लिए आते थे। खासकर परिवार के लोग एक से अधिक तस्वीरें खींचवाने के साथ ही उसकी कई प्रतियां बनवाते थे। अब वह क्रेज नहीं रहा। पहले के बने स्टूडियो भी दिखावा भर के लिए ही हैं। यह भी कह सकते हैं कि वे केवल ‘बुकिंग प्लेस बन गए हैं। अधिक मेगा फिक्सल कैमरे वाले मोबाइलों ने कारोबार को काफी प्रभावित किया है। जन्म दिन और अन्य फेमिली फोटो के लिए कम लोग ही फोटोग्राफर बुला रहे हैं। मोबाइल से फोटो खींची और सोशल मीडिया पर अपलोड या शेयर कर दिया।
निगम शर्मा ने बताया कि खास कार्यक्रमों व आयोजनों के लिए महंगे कैमरों का इस्तेमाल होने लगा है। खुद को बाजार में बनाए रखने के लिए बैंकों से लोन लेकर कैमरे की खरीदारी करते हैं। कहा कि कई बार आयोजन के बाद भुगतान के लिए फोटोग्राफरों को लम्बा इंतजार करना होता है। ऐसे में पैसे का संकट खड़ा हो जाता है। हमारे व्यवसाय के लिए सरकार की ओर से कोई योजना भी नहीं है। अनुदान पर लोन का इंतजाम होना चाहिए।
विक्की ने इसी बात को आगे बढ़ाया। बताया कि डिजिटल कैमरे 65 हजार रुपए से कम के नहीं हैं। जबकि वीडियो कैमरा एक लाख रुपए से भी अधिक का है। फाइनेंस पर कैमरा या वीडियो कैमरा लेने पर ब्याज देना पड़ता है। समय से लोन चुकता नहीं करने पर दुकानदार कर्ज में डूब जाता है। लाचारी में तमाम फोटोग्राफर सेकेंड हैंड कैमरा लेने को मजबूर होते हैं। कमाई के लिए भी लगन का ही इंतजार होता है। बाकी दिनों में तो गृहस्थी चलाना भी भारी होता है।
वर्ल्ड फोटोग्राफी-डे पर हो आयोजन, बने रेट चार्ट
राकेश कुमार मौर्य ने बताया कि हर वर्ष 19 अगस्त को वर्ल्ड फोटोग्रॉफी डे मनाया जाता है। इसका मकसद दुनिया के फोटोग्राफर को एकजुट करना है। इतिहासकारों के मुताबिक 19 अगस्त 1839 को फ्रांस सरकार ने फोटाग्रॉफी आविष्कार की घोषणा की। जिस उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है, वह पूरा होता नहीं दिखता। कारण? व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता। इसका खामियाजा सभी को भुगतना होता है। बुकिंग का कोई तय रेट नहीं रह जाता। हमारी आपसी होड़ के चलते ग्राहक भी सौदेबाजी करते हैं। अन्य कारोबार की तरह यहां भी एक रेट चार्ट तय होना चाहिए। सभी उसका कड़ाई से अनुपालन करें, यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है। वर्ल्ड फोटोग्राफी के दिन शासन-प्रशासन स्तर पर वर्कशाप तथा समय-समय पर प्रतियोगिताएं करायी जानी चाहिए। इससे सभी खुद को बेहतर करने का प्रयास करेंगे।
डार्करूम से डिजिटल हुए, पर दुश्वारियां कायम
इमरान अंसारी ने बताया कि करीब तीन दशक पहले तक कैमरे में रील (फिल्म) लगती थी। स्टूडियो के डार्करुम में ही फिल्म को लोड और प्रोसेस किया जाता था। वहां पूरी तरह अंधेरा होने के कारण काफी सावधानियां बरतनी होती थीं। भय रहता था कि फोटो खराब न हो जाए। डार्करूम में ही छवि को फोटोग्राफिक पेपर पर छापने के लिए प्रकाश का उपयोग किया जाता था। ब्लैक-एंड-व्हाइट प्रिंट बनाते समय सेफलाइट का उपयोग होता था। रंगीन फोटो की तो सुविधा ही नहीं थी। फोटो में कलर डलवाने के लिए वाराणसी जाना पड़ता था। समय बदलने के साथ कैमरे की फिल्म भी रंगीन आने लगी। करीब दो दशक पहले डिजिटल कैमरे ने दस्तक दी। इसके बाद से समय-समय पर बदलाव होता रहा। फिर भी कारोबार की जटिलताएं बरकरार हैं।
संस्थान लागू करें कोर्स, युवा बना सकते हैं कैरियर
अभिषेक सागर ने बताया कि फोटोग्रॉफी आज शौक नहीं बल्कि युवाओं के बीच करियर का लोकप्रिय क्षेत्र बन रहा है। तमाम सम्भावनाएं भी हैं। शौक के स साथ अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। 12वीं कक्षा के बाद कई तरह के फोटोग्राफी कोर्स में एडमिशन लेकर इसे सीखा जा सकता है। कई संस्थान हैं जो फोटोग्राफी में डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सेस कराते हैं। इससे फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर की जानकारी भी फोटोग्रॉफी स्किल को निखारने में मददगार साबित होती है। जननायक चंद्रशेखर विवि या अन्य कालेजों में इसे पाठ्यक्रम के तौर पर लागू करने की जरूरत है। इससे युवाओं का रूझान बढ़ेगा और सहुलियत होगी।
एआई की एंट्री से सहुलियत तो खतरा भी
पिंटू ने बताया कि इन दिनों फैशन फोटोग्रॉफी के अलावा पोर्टफोलियो फोटोग्रॉफी, प्री व पोस्ट वेडिंग फोटोग्रॉफी, प्रेग्नेंसी फोटोग्रॉफी काफी ट्रेंड में है। विज्ञापन और फैशन फोटोग्राफी में एजेंसी को अच्छे फोटोग्रॉफरों की जरूरत होती है। इसके अलावा सामान्य फोटोग्रॉफर होते हैं, जिनके साथ कोई टैग नहीं जुड़ा होता। इससे क्षेत्र में संभावनाएं तो हैं लेकिन शासन-प्रशासन स्तर पर इसे बढ़ावा देने की जरूरत है। फोटोग्राफी कारोबार की बाधाएं दूर होनी चाहिए। एआई तकनीक भी पांव पसारने लगा है। इससे काम तो आसान होगा लेकिन रोजगार प्रभावित होने का खतरा भी है।
सुझाव :
सरकारी आयोजनों में स्थानीय फोटोग्रॉफरों को अवसर दिया जाना चाहिए। काम मिलना चाहिए। इससे उन्हें आर्थिक राहत मिलेगी।
युवाओं के लिए राष्ट्रीय बैंकों से लोन की प्रक्रिया को आसान बनाया जाय। श्रम या उद्योग विभाग से कारोबार को मदद मिले।
उद्योग विभाग की ओर से वर्कशॉप आयोजित किया जाना चाहिए। सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाय।
पिछले वर्षों में हुए बर्ड फेस्टिवल की तर्ज पर आयोजन कर फोटोग्राफी प्रतियोगिता होनी चाहिए। इससे अवसर बढ़ेंगे।
जननायक चंद्रशेखर विवि व अन्य कालेजों में फोटोग्राफी पाठ्यक्रम लागू करना चाहिए। इससे युवाओं का आकर्षण बढ़ेगा।
शिकायतें :
वीआईपी मूवमेंट या अन्य सरकारी आयोजनों में स्थानीय फोटोग्राफरों को मौका नहीं मिलता है।
बैंकों में लोन की प्रक्रिया बेहद कठिन है। औपचारिकताओं को पूरा करना कमजोर व युवा दुकानदारों के लिए आसान नहीं होता।
उद्योग विभाग या प्रशासनिक स्तर पर फोटोग्राफरों के लिए कोई वर्कशॉप आयोजित नहीं होता। सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं मिलती।
सुरहा ताल के किनारे एक साल बर्ड फेस्टिवल हुआ। तब फोटोग्राफी प्रतियोगिता व प्रदर्शनी भी लगी थी। वह बंद हो चुका है।
फोटोग्राफी में कैरियर की संभावनाएं हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर उसके लिए कोई इंतजाम नहीं है।
बताई पीड :
डिजिटल होते दौर में फोटोग्राफी का कारोबार प्रभावित हुआ है। बेहतर मेगा फिक्सल के कैमरे वाले मोबाइल के चलते छोटे-छोटे आयोजनों में मौका नहीं मिल पाता।
राकेश कुमार मौर्या
फोटोग्राफी के ट्रेंड में काफी बदलाव आ गया है। महंगे कैमरे व कम्प्यूटर रखने पड़ते हैं। लागत बढ़ गयी है लेकिन उस हिसाब से आय नहीं बढ़ी।
पिंटू
लगन के सीजन में फोटोग्राफर पांच से छह माह तक कमाते है और आफ सीजन में छह से सात माह बैठकर खाते हैं। इससे उनके सामने आर्थिक चुनौतियां होती हैं।
इमरान अंसारी
नयी तकनीक के साथ खुद को अपडेट रखने की चुनौती फोटोग्राफरों के सामने है। संभावनाएं बढ़ी हैं लेकिन समस्याएं भी हैं। लागत के सापेक्ष आमदनी नहीं हो पाती।
अभिषेक सागर
फोटोग्राफी पहले की तुलना में आसान जरूर हुई है लेकिन कमाई घटी है। बर्थडे जैसे छोटे-मोटे आयोजनों व फेमिली फोटो के लिए स्टूडियो आने वालों की संख्या कम हुई है।
विक्की वर्मा
प्री वेडिंग शूट, प्रेग्नेंसी शूट, हल्दी, मेंहदी, संगीत जैसे आयोजनों ने काम तो बढ़ाया है लेकिन उस अनुपात में आमदनी नहीं बढ़ी है। छोटे स्टूडियो संचालकों के सामने चुनौती अधिक है।
आशुतोष चौरिसया
शादी-विवाह में ग्राहक फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी के लिए एडवांस में दो-चार हजार रुपए तो दे देते हैं लेकिन काम हो जाने के बाद शेष भुगतान के लिए दौड़ाने लगते हैं। इससे परेशानी होती है।
सुरेंद्र सिंह
अब फोटोग्राफी में पैकेज का ट्रेंड आ गया है। इस प्रतिस्पर्धा में छोटे फोटोग्राफर या स्टूडियो संचालक पिछड़ जा रहे हैं। उनके पास उस स्तर के संसाधन भी नहीं होते।
राजाराम
ग्राहकों की अपेक्षाएं अधिक होती हैं। हम उनकी डिमांड पूरी भी करते हैं लेकिन तय धनराशि देने में आनाकानी करने लगते हैं। इससे आर्थिक दिक्कत सामने आती है।
सूरज
कैमरा व वीडियो कैमरा महंगा हो गया है। लोन पर खरीदने में ब्याज आदि देना होता है। ऐसे में ग्राहकों के यहां पैसा फंस जाने पर संकट खड़ा हो जाता है।
अनूप मौर्या
मोबाइल व डिजिटल के दौर में शहर के कई स्टूडियो या तो बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर हैं। उनके लिए सरकारी स्तर पर मदद का इंतजाम होना चाहिए।
निगम शर्मा
महानगरों की तर्ज पर स्थानीय स्तर पर फोटोग्राफरों के लिए प्रदर्शनी, वर्कशॉप के आयोजन होने चाहिए। बड़े सरकारी कार्यक्रमों में छोटे-छोटे फोटोग्राफरों को मौका मिले।
विक्की सिंह
श्रम या उद्योग विभाग को कार्यशाला आयोजित कर फोटोग्राफी के लिए भी कोई योजना हो तो उसकी जानकारी दी जानी चाहिए।
हामिद
बैंकों से लोन लेना इतना पेंचीदा होता है कि थक-हार कर युवा नहीं करा पाते। श्रम विभाग को इस सम्बंध में जागरूक करने की जरूरत है।
सफीउल्लाह
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।